जैविक खेती की तकनीकियाँ: समृद्ध मिट्टी, स्वस्थ फसल Organic Farming Techniques: Rich Soil, Healthy Crop

जैविक खेती का महत्व: Importance of organic farming:

This research article covers the following topics यह शोध आलेख निम्नलिखित विषयों को कवर करता है hide

जैविक खेती उत्पादन विधियों की ऐसी प्रणाली है जो मुख्यतः पर्यावरण हित को अधिक महत्व देती है। यदि कृषि क्षेत्र में जैविक कृषि की दिशा में निवेश किया जाय तो यह अर्थव्यवस्था के लिए एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में उभर सकता है।

विश्व के कुछ विकसित देशों को यदि छोड़ दिया जाय तो आज संपूर्ण विश्व के समक्ष चाहे वह विकासशील देश हो या पिछड़े देश सभी के सामने संभावित खाद्य सुरक्षा का संकट खड़ा है। जैविक खेती प्राकृतिक संसाधनों का उचित प्रयोग करते हुए खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ बनाती है और जब किसी देश की खाद्य सुरक्षा सुदृढ़ होती है तो वह देश धीरे-धीरे विकास करने लगता है और ग़रीबी दूर होने लगती है। आज वैश्विक आबादी की वृद्धि बाताती है कि आनेवाले समय में खाद्य सुरक्षा किसी देश की महत्वपूर्ण कमजोरी होगी। 

आज का विश्व हरित क्रांति के आधार पर अपनी खाद्य सुरक्षा बनाए रखा है। हरित क्रांति की कृषि पद्धति में कृतिम कृषि रसायनों, उर्वरकों, कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग और उच्च पोषक प्रतिक्रियाशील बीजों के कारण कृषि उत्पादकता में क्रांतिक बढ़ोत्तरी आई है। कृषि की यह क्रांति ऊपरी तौर पर बहुत ही सकारात्मक लगती है किंतु जब हम गहराई से समझने का प्रयास करते है तब पाते हैं कि इस हरित क्रांति की उत्पादकता अधिक समय तक नहीं रहेगी क्योंकि यह कृषि प्रणाली मृदा, जल और खाद्यान्न की सुद्धता पर ध्यान नहीं देती है। साथ-ही साथ इस प्रणाली के आगत मृदा क्षमता को तबाह कर देते हैं कालांतर में उत्पादकता कम होती जाती है। इस संदर्भ में Kambaska Kumar Behera और उनकी टीम द्वारा Organic Farming History and Techniques लेख में हरित क्रांति के परिणामों पर प्रकाश डाला गया है किहरित क्रांति की तकनीकें जैसे कि उर्वरकों और कीटनाशकों जैसे सिंथेटिक कृषि रसायनों का अधिक उपयोग, पोषक तत्वों के प्रति संवेदनशील, अधिक उपज देने वाली फसलों की किस्मों को अपनाना, सिंचाई क्षमताओं का अधिक दोहन आदि ने अधिकांश मामलों में उत्पादन को बढ़ावा दिया है। उचित विकल्प के बिना और इन उच्च ऊर्जा इनपुट के निरंतर उपयोग से विभिन्न फसलों के उत्पादन और उत्पादकता में गिरावट आ रही है, साथ ही मिट्टी के स्वास्थ्य और पर्यावरण में भी गिरावट आ रही है।” (Kambashka Kumar Behera 2012)

कहना न होगा कि हम हमारी खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में हरित क्रांति पर ही निर्भर नहीं रह सकते। इसलिए हमें किसी अन्य विकल्पों की खोज करनी चाहिए। जैविक कृषि पद्धति एक संधारणीय और पर्यावरण हितैषी प्रणाली है। अत: हमें इस पद्धति को अपनाना चाहिए।

जैविक खेती की परिभाषाएँ: Definitions of organic farming:

जैविक खेती एक ऐसी कृषि प्रणाली है, जिसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और अन्य कृत्रिम रसायनों के उपयोग को कम या पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाता है। इसके बजाय, जैविक खेती में प्राकृतिक तरीकों जैसे खाद, जैविक खाद, जैव उर्वरक और जैविक कीट नियंत्रण का उपयोग किया जाता है। यहाँ तक कि जैविक खेती में तैयार होने वाले अपशिष्ट का भी कचरा प्रबंधन खाद के रूप में कर लिया जाता है।

  • सुधांशु मिश्र के अनुसार “जैविक उत्पाद वह उत्पाद है जो जैविक खेती से उत्पन्न होता है। इसमें कोई जैविक खाद्य मिट्टी संश्लेषित और कोई केमिकल उपयोग नहीं होता। जैविक उत्पाद स्वास्थ्य के लिए अधिक उपयोगी होता है।”
  • दीपिका राजवंशी के अनुसार: “जैविक खेती और उत्पाद एक प्रकार की विचारधारा है जो मानव और पर्यावरण के लिए उत्तम है। यह भूमि का सम्मान करती है, आवश्यक पोषक तत्वों का समृद्ध उत्पादन करती है और स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण उत्पाद उत्पन्न करती है।”

जैविक खेती के उत्पादन: Production of organic farming:

ऐसा कोई भी कृषि उत्पादन नहीं है, जो जैविक कृषि प्रणाली के अन्तर्गत नहीं उगाया जाता हो। इस कृषि पद्धति के माध्यम से हम हर प्रकार के उत्पादन कर सकते हैं। जैविक फसलों के अन्तर्गत जैसे गेहूं, चावल, दालें, सब्जियां, फल आदि का उत्पादन होता है। उसी प्रकार जैविक मांस के रूप में जैसे मुर्गी, मछली, मांस आदि, जो जैविक रूप से पाले गए जानवरों से प्राप्त होते हैं।जैविक डेयरी उत्पाद के अन्तर्गत जैसे दूध, दही, पनीर आदि, जो जैविक रूप से पाले गए जानवरों के दूध से बनाए जाते हैं। जैविक अंडे जो मुर्गियों को जैविक आहार खिलाकर प्राप्त किए जाते हैं। यही नहीं इस कृषि प्रणाली के अन्तर्गत जैविक शहद का भी उत्पादन किया जा सकता है, जो परागणकों को जैविक फूलों से प्राप्त होता है।

जैविक खेती की विशेषताएँ: Characteristics of organic farming:

जब हम जैविक खेती की विशेषताओं पर विचार करते हैं तब जैविक खेती की अनेक संधारणीय विशेषताएँ हमारे समक्ष आती हैं। यह कृषि प्रणाली प्राकृतिक संसाधनों का ऐसा उपयोग करती है, जिससे वर्तमान पीढ़ी की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो जाए और भविष्य की पीढ़ी के लिए भी संसाधन सुरक्षित रह सकें। कहना न होगा कि यह कृषि प्रणाली पर्यावरण हितैषी है।

  • प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण: जैविक खेती के अन्तर्गत पारिस्थितिकी की मूल विशेषताओं को बनाए रखते हुए कृषि की जाती है। यह कृषि प्रणाली पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों को महत्व देती है। जैसे कि मृदा संरक्षण, जल संरक्षण करते हुए उत्पाद की गुणवत्ता बनाए रखना आदि। इन प्राकृतिक संसाधनों बनाए रखने और समृद्ध करने हेतु किसान विभिन्न प्रकार के फसल चक्र अपनाते हैं।  
  • निर्धारित मानदंडों का पालन: जैविक कृषि करनेवाले किसान स्थानीय संघों अथवा नियामक संस्था द्वारा निर्धारित मानदंडों का पालन करते हैं, तभी उनके उत्पाद को जैविक उत्पाद का प्रमाणन प्राप्त होता है। जैविक किसान आनुवांशिक संशोधित फसलों का उत्पादन नहीं करते हैं।
  • पोषक तत्वों से समृद्ध मृदा: जैविक कृषि से मृदा में पोषक तत्त्व लगातार बढ़ते रहते हैं। विभिन्न फसल में विद्यमान पोषक तत्वों को मृदा में घुलाने दिया जाता है। फलत: मृदा में नाइट्रोजन का स्तर बढ़ाता है। जैसे कि मुख्य फसल के साथ फली वाली फसलों को उगाने पर मृदा में नाइट्रोजन स्तर में बढ़ोतरी होती है। 
  • फसल कीटों पर प्राकृतिक नियंत्रण: जैविक कृषि में फसलों अथवा पशुओं पर होनेवाली कीट समस्या का समाधान घरेलू उपचारों के माध्यम से किया जाता है। जैसे कि जैविक बागवानी, पशुपालन आदि में इन घरेलू उपचारों का प्रयोग होता है।
  • मृदा की जैविक उर्वरता का संरक्षण: जैविक खेती करने वाले किसान खेत में उगनेवाले खरपतवार और विभिन्न प्रकार के जैविक खादों का पुनर्चक्रण करते हैं। हरि घाँस को चूर्ण के रूप में परिवर्तित कर उसका कृषि में पुन: उपयोग कर लिया जाता है। इस खाद से मृदा की जैविक उर्वरता बनी रहती है।
  • पर्यावरण हितैषी गतिविधियाँ: जैविक खेती की गतिविधियाँ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण को बल प्रदान करती है। इन गतिविधियों के द्वारा पारिस्थितिकी संवर्धन और वन्य जीवों में वृद्धि होती है। 

Kambaska Kumar Behara and Afroz Alam तथा उनकी टीम द्वारा अपने शोध आलेख Organic Farming History and Techniques में जैविक कृषि की विभिन्न विशेषताओं की चर्चा की है। “1. स्थानीय संसाधनों का अधिकतम लेकिन टिकाऊ उपयोग। 2. खरीदे गए इनपुट का न्यूनतम उपयोग, केवल स्थानीय संसाधनों के पूरक के रूप में। 3. मिट्टी-पानी-पोषक तत्व-मानव सातत्य के बुनियादी जैविक कार्यों को सुनिश्चित करना। 4. पारिस्थितिकी संतुलन और आर्थिक स्थिरता के आधार के रूप में पौधों और जानवरों की प्रजातियों की विविधता को बनाए रखना। #एक आकर्षक समग्र परिदृश्य बनाना जो स्थानीय लोगों को संतुष्टि दे। 6. जोखिम को कम करने के लिए बहुसंस्कृति, कृषि वानिकी प्रणाली, एकीकृत फसल/पशुधन प्रणाली आदि के रूप में फसल और पशु तीव्रता में वृद्धि करना।” (Kambashka Kumar Behera 2012)

जैविक खेती की प्रमुख तकनीकियाँ: Major techniques of organic farming:

जैविक खेती प्रणाली के अन्तर्गत अनेक तकनीकियों का प्रयोग होता है। इन तकनीकियों में अधिकांश हमारे यहाँ प्राचीन काल से प्रचलित हैं और कुछ तकनीकियाँ आधुनिक हैं। ये सभी तकनीकियाँ पर्यावरण हितैषी कृषि पद्धतियों को बल प्रदान करती हैं।

पोषक तत्व प्रबंधन: Nutrient Management:

जैविक खेती करने वाले किसान पोषक तत्व प्रबंधन में ज्यादातर उपलब्ध जैविक पदार्थ के प्राकृतिक विघटन पर निर्भर करते हैं। पोषक तत्व प्रबंधन के लिए जैविक खेती प्रणाली मिट्टी की उर्वरता को बेहतर बनाने के लिए कई तरह के तकनीकियों का प्रयोग करती है। इन तकनीकियों के द्वारा कार्बन पृथक्करण का एक अतिरिक्त लाभ होता है, जो ग्रीनहाउस गैसों को कम कर सकता है और जलवायु परिवर्तन को कम करने में सहायक हो सकता है।  

जैविक खेती के अन्तर्गत अनेक तकनीकियों जैसे कि कवर क्रॉपिंग, फसल चक्र, कम जुताई और खाद का इस्तेमाल शामिल है। इससे जुताई कम करने से मिट्टी उलटी नहीं होती और हवा के संपर्क में नहीं आती है। अत: वायुमंडल में जितना कम कार्बन होता है, उतना ही मिट्टी में अधिक कार्बन हो सकता है।

जैविक किसान कवर फसलों, फसल चक्र, फसल अवशेष और पशु खाद, कुछ प्रसंस्कृत उर्वरक जैसे कि डी-ऑइल केक, बोन मील, जैव उर्वरक और विभिन्न खनिज पाउडर जैसे रॉक फॉस्फेट और ग्रीन सैंड का उपयोग करते हैं, जो पोटाश का एक प्राकृतिक रूप है और यह पोटेशियम प्रदान करता है।

फसल चक्र: Crop Rotation: 

जैविक खेती की प्रमुख तकनीक है। इसके अंतर्गत एक ही भूमि पर अलग-अलग मौसमों में भिन्न-भिन्न फसलों को उगाया जाता है। इस तकनीक से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और कीटों तथा बीमारियों की समस्या कम होती है। इस संदर्भ में Berzsenyi z अपने शोध पत्र में लिखते हैं कि “अंतर फसल, मिश्रित फसल और रिले फसल अन्य विकल्प हैं जो परस्पर क्रिया को अनुकूलित करने के लिए हैं। पौधों के कार्यों के अलावा, खरपतवार दमन, मिट्टी जनित कीटों और बीमारियों में कमी, पूरक पोषक तत्व आपूर्ति, पोषक तत्व पकड़ना और मिट्टी को ढंकना जैसे अन्य महत्वपूर्ण लाभों का उल्लेख किया जा सकता है।” (Wibberley 1096; Berzsenyi et al 2000)

हरी खाद: Green Manure:

यह हरी खाद कहीं बाहर से नहीं लाया जाता है बल्कि अपने खेत में बढ़ने वाले खरपतवार को ही चूर्ण बनाकर मृदा में मिला दिया जाता है। इस तकनीक का उपयोग भूमि की उर्वरता बढ़ाने के लिए किया जाता है। हरी खाद (जैसे ढैंचा, सनई) को खेत में ही जुताई कर मिला दिया जाता है, जिससे जैविक पदार्थों की मात्रा बढ़ती है। इस संदर्भ में Berry PM and team लिखती है कि “ऑर्गेनिक खेती के तरीकों में मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए खाद का इस्तेमाल किया जाता है ‘ग्रीन खाद भी मिट्टी में पोषक तत्व जोड़ने का एक अच्छा तरीका है। यह अल्फाल्फा जैसे प्रचुर मात्रा में पत्ती वृद्धि वाले पौधों को उगाने और मुख्य फसल की खेती से पहले उन्हें मिट्टी में दफनाने की प्रथा है। हरी खाद वाली फसलें मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ जोड़ती हैं जो पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक है” (Berry PM et al 2002)

कम्पोस्टिंग: Composting

यह कोई नई तकनीक नहीं है। भारत में यह प्राचीन काल से प्रचलित है। एक गड्डा बनाया जाता है और उसमें जैविक कचरे (खाद्य अवशेष, पशु अपशिष्ट, पत्तियाँ आदि) को विघटित कर के प्राकृतिक खाद तैयार की जाती है, जो मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने में सहायक होती है। इस खाद से मृदा की गुणवत्ता बढ़ती है और फसल की उत्पादकता में भी वृद्धि होती है।

वर्मी कम्पोस्ट: Vermicomposting: 

इस तकनीक में केंचुओं की सहायता से जैविक अवशेषों को विघटित कराया जाता है और ऐसी खाद का निर्माण किया जाता है, जो अत्यधिक पोषक तत्वों से युक्त होती है। एक गड्डानुमा बनाकर उसमें केंचुए छोड़ दिए जाते हैं। उसके पश्चात केंचुए अपना कार्य करते रहते हैं।

बायोडायनामिक खेती: Biodynamic Farming:

यह पद्धति बहुत ही विशिष्ट है। इसके अंतर्गत जैविक खेती के सिद्धांतों के साथ-साथ चंद्रमा और ग्रहों की गति के अनुसार खेती की जाती है। इसमें विशेष प्रकार के जैविक प्रिपरेशन (BD-500 आदि) का उपयोग किया जाता है। जैविक खेती की यह तकनीक विशेष रूप से लाभदायक है।

मल्चिंग: Mulching:

म्लचिंग तकनीक का उपयोग कम से कम जल का उपयोग करने के लिए किया जाता है। खेत में पौधों के आसपास घास, सूखे पत्ते या जैविक अवशेष बिछाकर नमी बनाए रखी जाती है और खरपतवार नियंत्रण किया जाता है। इस तकनीक द्वारा पौधों की जड़ों में लंबे समय तक नमी बनी रहती है। फलत: जल की बचत होती है।

आच्छादन फसल: Cover Cropping:

यह तकनीक मिट्टी के कटाव को रोकती है और मृदा का कटाव रुकने का मतलब है, मृदा उर्वरता का संरक्षण। इसके तकनीक के अंतर्गत  ऐसी फसलें उगाई जाती हैं, जो मुख्य फसल के साथ या उसके बाद खेत में बनी रहती हैं।

जैविक कीट नियंत्रण: Biological Pest Control: 

जैविक कृषि पद्धति के अन्तर्गत परंपरागत कीटनाशकों का पूर्ण रूप से उपेक्षा की जाती है। कीटनाशकों जगह प्राकृतिक शत्रुओं (जैसे नेमाटोड्स, लाभकारी कीट, पक्षी) और जैविक विधियों (जैसे नीम तेल, ट्राइकोडर्मा, बैसिलस थुरिनजिएन्सिस) का उपयोग किया जाता है। यह तकनीक खाद्यान्न की गुणवत्ता को बनाए रखती है। इसीलिए जैविक खाद्यान्न मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोगी होते हैं।

संवहनीय जल प्रबंधन: Sustainable Water Management:  

जैविक कृषि प्रणाली में जल संरक्षण को विशेष महत्व दिया जाता है और प्रयत्न किया जाता है कि कम से कम जल का उपयोग करके अधिक से अधिक उत्पादन किया जाए। इसलिए जैविक कृषि प्रणाली के अन्तर्गत ड्रिप सिंचाई, वर्षा जल संचयन और अन्य प्राकृतिक जल संरक्षण तकनीकों का प्रयोग किया जाता है। इस संदर्भ में Avimanyu Palit अपने शोध आलेख में लिखते हैं कि “पारिस्थितिक सिद्धांत जैविक खेती में स्थायी जल प्रबंधन का मार्गदर्शन करते हैं। वर्षा जल संचयन, मल्चिंग और कवर क्रॉपिंग जैसी तकनीकें मिट्टी में नमी को संरक्षित करने और कटाव को कम करने में मदद करती हैं। ये प्रथाएँ यह गारंटी देती हैं कि जल संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग किया जाता है और स्थानीय जल विज्ञान चक्रों को बनाए रखने में मदद करता है।” (Avimanyu Palit 2025)

मिश्रित खेती: Mixed Farming: 

मिश्रित खेती से तात्पर्य है कि एक ही खेत में विभिन्न प्रकार की फसलों, फलदार वृक्षों और पशुपालन को एक साथ जोड़कर खेती की जाती है, जिससे पारिस्थितिक संतुलन बना रहता है। जैविक कृषि प्रणाली के मिश्रित संरचना पद्धति के संदर्भ में Kambashka अपने शोध आलेख में लिखते हैं कि “जैविक कृषि प्रणालियों में, व्यक्ति उचित विविधीकरण के लिए प्रयास करता है, जिसका आदर्श अर्थ मिश्रित खेती या खेत पर फसल और पशुधन उत्पादन का एकीकरण है। इस तरह, कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र में चक्रीय प्रक्रियाओं और अंतःक्रियाओं को अनुकूलित किया जा सकता है, जैसे पशुपालन में फसल अवशेषों का उपयोग और फसल उत्पादन के लिए खाद का उपयोग करना।” (Kambashka Kumar Behera 2012)  

जैविक बीज उत्पादन: Organic Seed Production: 

इस तकनीक का उपयोग विभिन्न बीजों की विविधता बनाए रखने के लिए की जाती है। इसके अंतर्गत पारंपरिक और देशी बीजों का संरक्षण और उनका जैविक तरीके से उत्पादन किया जाता है ताकि आनुवंशिक विविधता बनी रहे।

सिंचित और शुष्क भूमि कृषि तकनीक: Irrigated and Dryland Organic Farming: 

पानी की उपलब्धता के आधार पर जैविक खेती की तकनीकों को अपनाया जाता है, जैसे ड्राईलैंड फार्मिंग में जल संरक्षण और नमी बनाए रखने की तकनीकों का उपयोग।

जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु सरकारी प्रयास: Government efforts to promote organic farming:

जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार भी अनेक स्तरों पर प्रयास कर रही है। इस दिशा में सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं को लागू किया गया है। 

  • परंपरागत कृषि विकास योजना: एक ऐसी ही योजना है जिसके द्वारा सरकार किसानों को 3 साल के लिए 50 हजार रूपये प्रति हैक्टेयर की आर्थिक सहायता प्रदान करती है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस योजना से 2020-21 तक लगभग 9 लाख किसानों को 1200 करोड़ रूपये की आर्थिक राशि प्रदान की जा चुकी है, जिससे अनुमानित 5 लाख हैक्टेयर भूमि पर जैविक खेती की गई। 
  • जैविक खेती पोर्टल: इस पोर्टल का उपयोग करते हुए किसान अपने जैविक उत्पाद बेच सकता है। यह पोर्टल किसानों को बाजार तक पहुंच प्रदान करता है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2021 तक इस पोर्टल पर लगभग 5 लाख किसानों ने पंजीयन किया गया है।
  • पूंजी निवेश सब्सिडी योजना: इस योजना के अंतर्गत आर्थिक सहायता देने के साथ-साथ कचरा प्रबंधन, जैविक अवशेषों को उर्वरक व खाद में परिवर्तन की विधि का ज्ञान दिया जाता है और किसानों को विभिन्न प्रकार से प्रशिक्षित किया जाता है।
  • इंडिया ऑर्गेनिक मार्क: यह एक ऐसा मार्क है जो जैविक उत्पादों को जैविक मानकों पर खरा होने की गारंटी है। इस पहल के अन्तर्गत सरकार द्वारा जैविक उत्पादों की पहचान हेतु जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण के उपरांत ‘इंडिया ऑर्गेनिक’ मार्क लगाया जाता है।
  • एपेड़ा (APEDA): वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार जैविक उत्पादन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPOP) चला रही है।

निष्कर्ष: Conclusion: 

जैविक कृषि और उत्पाद पर्यावरणीय दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने में मददगार है बल्कि पर्यावरण का भी संरक्षण करती है। इस कृषि प्रणाली में अनेक प्रकार की तकनीकियों का प्रयोग किया जाता है। यहाँ कहना आवश्यक है कि जैविक कृषि तकनीकियाँ कोई नई नहीं हैं, इन तकनीकियों में से अधिकांश तकनीकियाँ हमारे यहाँ प्राचीन काल से प्रचलित हैं। कहना न होगा कि इस पद्धति को अपनाने में अभी भी चुनौतियाँ विद्यमान हैं। जैसे कि ऊँची उत्पादन लागत और उचित प्रशिक्षण की आमंत्रित आवश्यकता। यद्यपि सही दिशा में प्रयासों तथा सरकारी मदद के चलते इन समस्याओं का समाधान संभव है। जैविक कृषि का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। इस कृषि प्रणाली के माध्यम से और इसका प्रचार प्रसार करते हुए हम एक स्वस्थ और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से संतुलित कृषि व्यवस्था की ओर तेजी से बढ़ सकते हैं। जैविक उत्पादों की मांग, पर्यावरणीय लाभ और स्वास्थ्य संबंधी लाभ के कारण जैविक कृषि एक स्थायी और समृद्ध कृषि पद्धति के रूप में उभर सकती है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर और सुरक्षित पर्यावरण का निर्माण करेगी। 

संदर्भ: Refrens:

  • Avimanyu Palit (2025), Principles and Practices of Organic Farming: Core Principles Guiding Organic Farming System Book Editor: Dr. Monika Ray, Recent Strides in Sustainable Agriculture and Organic Farming (Volume 1) Publisher: Cornous Publications LLP, Puducherry, India. Page 03 
  • Berzsenyi Z, Gyorffy B, Lap D (2000) Effect of crop rotation and fertilisation on maize and wheat yields stability in a long term experiment Eur J Agr 13 (2-3): 225-244
  • Berry PM, Sylvester- Bradley R, Philips L, Hatch DJ, Cuttle SP, Rayns FW, Gosling P (2002) Is the productivity of organic farms restricted by the supply of available nitrogen? Soil use manage 18: 248-255
  • Kumbaska Kumar Behara and team, Organic Farming History and Techniques, Book Edited, Dr. Eric Lichtfouse, Agroecology and Strategies for Climate, Change, Springer Dordrecht Heidelberg London New York, 2012, p 289https://www.researchgate.net/publication/226271466_Organic_Farming_History_and_Techniques 
  • Kumbaska Kumar Behara and team, Organic Farming History and Techniques, Book Edited, Dr. Eric Lichtfouse, Agroecology and Strategies for Climate, Change, Springer Dordrecht Heidelberg London New York, 2012, p 290
  • Kumbaska Kumar Behara and team, Organic Farming History and Techniques, Book Edited, Dr. Eric Lichtfouse, Agroecology and Strategies for Climate, Change, Springer Dordrecht Heidelberg London New York, 2012, p 297





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