आलेख का सार Summary of the article:
पवन ऊर्जा, वैश्विक ऊर्जा की व्यापक मांग और जलवायु परिवर्तन जैसे चुनौतियों का सामना कर सकती है। जलवायु परिवर्तन के संभावित दुष्परिणामों को ध्यान में रखते हुए विश्व समुदाय पिछले कुछ दशकों में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की संभावनाओं को तलाश रहा है। यही कारण है कि संधारणीय ऊर्जा के क्षेत्र में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा का विकास हो रहा है क्योंकि वैश्विक ऊर्जा संकट, जीवाश्म ईंधनों के घटते भंडार और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं के समाधान के रूप में पवन ऊर्जा, हाइड्रोजन ऊर्जा और सौर ऊर्जा को महत्वपूर्ण विकल्प माना जा रहा है। फलत: पिछले दो दशकों से पवन ऊर्जा में बढ़ोतरी हुई है। Global Wind Energy Council के अनुसार “2000 और 2011 के बीच, वैश्विक पवन ऊर्जा क्षमता लगभग हर 3 साल में दोगुनी हो गई, 2011 के अंत तक अनुमानित कुल बिजली उत्पादन 238 गीगावाट था; चीन, अमेरिका और जर्मनी शीर्ष उद्योग खिलाड़ी हैं।” (GWEC, 2011) अत: पवन ऊर्जा की दिशा में विश्व तेजी से आगे बढ़ रहा है। प्रस्तुत आलेख में पवन ऊर्जा के संदर्भ में शोधपरक विचार करने का प्रयास किया गया है। पवन ऊर्जा एक स्वच्छ, अक्षय और अपेक्षाकृत कम पर्यावरणीय प्रभाव वाली ऊर्जा प्रणाली है किंतु हम इस तथ्य की उपेक्षा नहीं कर सकते कि आज पवन ऊर्जा की अपनी चुनौतियाँ भी हैं। जैसे ऊर्जा उत्पादन में अस्थिरता, अत्यधिक प्रारंभिक लागत, पर्यावरणीय प्रभाव और भौगोलिक निर्भरता आदि। प्रस्तुत लेख पवन टरबाइन की कार्यप्रणाली, उसकी सीमाएँ और समाधान पर विस्तार से प्रकाश डालता है।
पवन ऊर्जा का परिचय Introduction to Wind Energy:
पवन ऊर्जा का उत्पादन हवा की गति से किया जाता है। हवा की गति से विद्युत ऊर्जा का निर्माण ही पवन ऊर्जा कहलाती है। पवन ऊर्जा निर्माण की प्रक्रिया की यदि हम विचार करे तो ज्ञात होता है कि जब हवा किसी टरबाइन के ब्लेड से टकराती है जिसके कारण वह ब्लेड घुमाती है। ब्लेड के घुमने से यांत्रिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। तत्पश्चात इस यांत्रिक ऊर्जा को एक विशिष्ट जनरेटर द्वारा विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
आज भारत अपनी कुल ऊर्जा मांग का सत्तर प्रतिशत कोयले से पूर्ण करता है। अर्थात हम आज भी कोयले से उत्पादित बिजली पर अधिक निर्भर है। कोयले पर निर्भरता का एक परिणाम यह हुआ कि “2015 से 2022 तक CO2 उत्सर्जन में 29% की चिंताजनक वृद्धि हुई है। ऊर्जा की बढ़ती मांग और जीवाश्म ईंधन की तेजी से कमी के कारण वैकल्पिक ईंधन की आवश्यकता स्पष्ट है।” (Nagababu Garlapati, Kunj Patel, Yagna Patel. January 2025) कहना न होगा कि ऊर्जा की अत्यधिक माँग और जलवायु चुनौतियों को देखते हुए हमें हरित ऊर्जा की संभावनाओं को तलाशना ही होगा। इस दिशा में पवन ऊर्जा एक सशक्त विकल्प बनकर उभरता है।
पवन टरबाइन की संरचना और उसके प्रमुख घटक Structure of a wind turbine and its major components:
पवन ऊर्जा की तकनीक विद्युत ऊर्जा उत्पादन हेतु दो चरणों का उपयोग करती है। प्रथम चरण में पवन टरबाइन हवा की गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) को यांत्रिक ऊर्जा (Mechanical Energy) में परिवर्तित करते हैं और दूसरे चरण में उस यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा (Electrical Energy) में बदलकर बिजली का उत्पादन करती है। टरबाइन एक उन्नत तकनीकी उपकरण है। इसकी संरचना के अन्तर्गत मुख्य रूप से छह प्रमुख घटकों सम्मिलित हैं। ये सारे घटक एक-दूसरे के साथ समन्वय में काम करते हुए ऊर्जा का उत्पादन करते हैं।
ब्लेड (Blades)
ब्लेड अर्थात पंखा जो हमें बड़े-बड़े दिखते हैं। इनका निर्माण हल्के लेकिन कठोर पदार्थों से किया जाता है। जैसे कि फाइबरग्लास (Fiberglass) या कार्बन फाइबर (Carbon Fiber) आदि। एक पवन टरबाइन में आमतौर पर एक या दो ब्लेड दिखाई देते हैं। इन ब्लेडों की संरचना एयरोडायनामिक (Aerodynamic) होती है। ये ब्लेड हवा की गति से घूमते हैं और घूमने की प्रक्रिया में पवन ऊर्जा को अवशोषित करते हैं। ब्लेड की एक विशेष कार्यप्रणाली होती है। जब हवा ब्लेड से टकराती है तब ब्लेड विशेष कोण (Angle of Attack) पर घूमने लगते हैं। यही घूर्णन गति (Rotational Motion) को ब्लेड रोटर तक पहुंचाता है।
रोटर (Rotor)
रोटर ब्लेड से प्राप्त ऊर्जा को टरबाइन के अन्य भागों तक पहुँचता है। ब्लेड और इसके हब Hub दोनों संयुक्त रूप से रोटर कहलाता है। रोटर एक ऐसी संरचना होती है, जो हवा के घूमती रहती है। जैसे-जैसे ब्लेड घूमते हैं वैसे-वैसे वे रोटर को भी घूमाने लगते हैं। यही घूमने की गति आगे चलकर गियरबॉक्स और जनरेटर तक पहुँचती है और आगे अलग रूप में परिवर्तित होती है।
गियरबॉक्स (Gearbox)
जिस प्रकार किसी गाड़ी में गियरबॉक्स का कार्य होता है, वही कार्य यहाँ गियरबॉक्स का होता है। इस गियर के द्वारा पवन टरबाइन की गति को नियंत्रित किया जाता है। इस गियर से जब आवश्यक हो गति बढ़ाने और घटाने का कार्य लिया जाता है। इस संरचना अर्थात गियरबॉक्स में कई गियर (Gears) होते हैं, जो विभिन्न गति (Speed) और टॉर्क (Torque) को नियंत्रित करते हैं। इस संरचना के अंतर्गत स्पर गियर (Spur Gear), हेलिकल गियर (Helical Gear) और प्लैनेटरी गियर (Planetary Gear) आदि शामिल है।आमतौर पर देखा जाता है कि पवन टरबाइन के ब्लेड धीमी गति से घूमते हैं (लगभग 10-20 RPM) लेकिन विद्युत उत्पादन के लिए जनरेटर को उच्च गति (1000-1800 RPM) की आवश्यकता होती है। इसी आवश्यकता की पूर्ति गियरबॉक्स करता है। गियरबॉक्स ब्लेड की गति को बढ़ाकर जनरेटर तक पहुंचाता है। कुछ आधुनिक टरबाइन गियरलेस डायरेक्ट-ड्राइव सिस्टम (Gearless Direct-Drive System) का उपयोग करते हैं, जिससे दक्षता और विश्वसनीयता बढ़ती है।
जनरेटर (Generator)
टरबाइन का यह घटक यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने का कार्य करता है। जनरेटर में दो मुख्य घटक होते हैं। एक रोटर (Rotor) और दूसरा स्टेटर (Stator)। इस संरचना में इसमें एसी (AC) या डीसी (DC) विद्युत उत्पादन के लिए मैग्नेट (Magnets) और कॉपर वाइंडिंग (Copper Winding) का उपयोग किया जाता है। जनरेटर विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) के सिद्धांत पर कार्य करता है। अर्थात जब गियरबॉक्स से उच्च गति पर घूमती यांत्रिक ऊर्जा जनरेटर तक पहुचती है, उससे विद्युत धारा उत्पन्न होती है। इसी धारा को जनरेटर ग्रिड (Grid) या बैटरी स्टोरेज (Battery Storage) तक भेजता है।
टावर (Tower)
टावर ऐसे बड़े-बड़े स्टैंड होते हैं, जिसकी सहायता से टरबाइन को ऊँचाई पर स्थापित किया जाता है ताकि टरबाइन अधिकतम हवा की गति प्राप्त कर सके। टावर को स्टील (Steel), कंक्रीट (Concrete), या हाइब्रिड संरचना से बनाया जाता है। इसका निर्माण आमतौर पर ट्यूबलर (Tubular), ट्रस (Lattice), या मोनोपोल (Monopole) डिज़ाइन में किया जाता है। टावर की ऊँचाई 50 मीटर से लेकर 150 मीटर या इससे भी अधिक हो सकती है। कहना न होगा कि जैसे-जैसे धरातल से ऊंचाई बढ़ती जाती है वैसे-वैसे पवन की गति भी बढ़ती है। इसलिए टावर जितने ऊंचे होंगे उतने ही अधिक टरबाइन को पवन की गति प्राप्त होगी। टावर के अंदर सीढ़ी (Ladder) और लिफ्ट (Lift) होती है, जिससे मेंटेनेंस टीम नैसेल तक पहुँच सकती है।
नैसेल (Nacelle)
नैसेल एक प्रकार का ड्राइवर अर्थात चालक है। यह टरबाइन के सभी महत्वपूर्ण यांत्रिक और विद्युत घटकों को मॉनिटर करता है। नैसल एक मजबूत संरचना है और यह पूरे सिस्टम का संरक्षक भी होता है जैसे कि जनरेटर, गियरबॉक्स, ब्रेक सिस्टम और अन्य उपकरणों को सुरक्षित रखता है। इसके अंदर सेंसर और कंट्रोल सिस्टम लगे होते हैं, जो टरबाइन की कार्यक्षमता को मॉनिटर करते हैं। नैसल एक ऐसा सिस्टम है जो हवा की दिशा के अनुरूप टरबाइन की स्थिति को समायोजित करता है। नैसेल में एक विशिष्ट सिस्टम (Yaw System) लगा होता है। यही सिस्टम हवा की दिशा के अनुसार टरबाइन को मोड़ता है। इस कार्य को सफलता से करने के लिए इसमें ब्रेकिंग सिस्टम भी होता है, जो तेज हवा या आपातकालीन स्थिति में टरबाइन को रोकने का कार्य करता है।
पवन टरबाइन संरचना के इस विस्तृत परिचय के बाद कहने की आवश्यकता नहीं है कि पवन टरबाइन एक परिष्कृत प्रणाली है। जिसमें विभिन्न यांत्रिक और विद्युत घटक आपस में संयोजित होकर कार्य करते हैं। इसकी कुशलता इस बात पर निर्भर करती है कि हवा की ऊर्जा को कितनी प्रभावी ढंग से विद्युत ऊर्जा में बदला जा सकता है। सही डिज़ाइन, उचित रखरखाव और आधुनिक तकनीकों के उपयोग से पवन टरबाइन अधिक ऊर्जा उत्पादन कर सकते हैं और अक्षय ऊर्जा स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
पवन ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रिया Process of Wind Energy Generation:
जब हम पवन ऊर्जा की उत्पादन प्रक्रिया पर विचार करते हैं, तो हमें इस प्रक्रिया में चार चरण दिखाई देते हैं। प्रथम चरण में हवा टरबाइन के ब्लेड से टकराती है, जिससे वे घूमते हैं। दूसरे चरण के अन्तर्गत रोटर घूमने की गति को गियरबॉक्स के माध्यम से जनरेटर तक पहुँचाता है। तीसरे चरण में जनरेटर यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है और चौथे चरण में उत्पन्न बिजली को ग्रिड या बैटरी में संग्रहीत किया जाता है। पवन टरबाइन की प्रक्रिया पर Tong W. लिखते हैं कि “शक्ति टरबाइन पवन की गतिज ऊर्जा का उपयोग करते हैं, टर्बाइन ब्लेड को घुमाने के लिए प्रेरक शक्ति प्रदान करते हैं और ड्राइव शाफ्ट के माध्यम से बिजली उत्पन्न करने के लिए यांत्रिक शक्ति विकसित करते हैं। पवन टर्बाइनों को मुख्य रोटर शाफ्ट (या तो क्षैतिज या ऊर्ध्वाधर अक्ष) के घूर्णन की धुरी और चाहे वे तट पर या अपतटीय स्थित हों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।” (Tong 2010)
पवन टरबाइन की बिजली उत्पादन क्षमता पर विचार करते हुए International Renewable Energy Agency द्वारा जानकारी दी गई कि “आधुनिक वाणिज्यिक पवन टरबाइनों के लिए, मुख्य रोटरशाफ्ट क्षैतिज रूप से संरेखित होता है। रेटेड बिजली उत्पादन क्षमता मुख्य रूप से रोटर व्यास और हवा की गति पर निर्भर करती है; उदाहरण के लिए, यदि हवा की गति दो गुना बढ़ जाती है, तो इसकी ऊर्जा क्षमता आठ गुना बढ़ जाती है।” (IRENA, 2012)
पवन ऊर्जा उत्पादन प्रक्रिया के सन्दर्भ में सोरेंसन एट.एल दो शब्दों का परिचय देते हैं। एक ‘कट-इन-स्पीड’ और दूसरा ’कट-आउट-स्पीड’ इन दोनों शब्दों के संदर्भ में वे लिखते हैं कि “दो प्रमुख गति शब्द ‘कट-इन स्पीड’ हैं, जिस पर पवन टर्बाइन बिजली का उत्पादन करना शुरू कर देता है और ‘कट-आउट स्पीड’ जिस पर रोटर और ड्राइव-ट्रेन मशीनरी को संभावित नुकसान से बचाने के लिए टरबाइन को बंद करना पड़ता है।” (Sorensen 2009, Tong 2010)
हम यहाँ पवन ऊर्जा उत्पादन प्रक्रिया के संदर्भ में और एक बात कहना चाहेंगे कि सौर ऊर्जा हो या पवन ऊर्जा दोनों की उत्पादन प्रक्रिया उस मौसम और भौगोलिक परिस्थितियों से प्रभावित होती है जहाँ उसे स्थापित किया गया है। उदाहरण के लिए यदि सौर पैनलों की स्थापना हमेशा बादल छाए रहने वाले क्षेत्र में की जाती है, तो स्वाभाविक है कि उत्पादन कम होगा। उसी प्रकार पवन टरबाइनों की स्थापना पावन की कम गति वाले क्षेत्र में करने से पवन ऊर्जा कम उत्पादित होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि सौर हो अथवा पवन दोनों ग्रीड का उत्पादन कई कारकों पर निर्भर करता है।
पवन ऊर्जा की प्रमुख विशेषताएँ Salient features of wind energy:
अक्षय और हरित ऊर्जा स्रोत:
पवन ऊर्जा तकनीकी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह ऊर्जा उत्पादन में जिस संसाधन का उपयोग करती है, वह अक्षय अर्थात कभी समाप्त होनेवाली नहीं है। अत: पवन ऊर्जा सौर ऊर्जा की तरह असीमित और अक्षय ऊर्जा स्रोत का उपयोग करती है। कहना न होगा कि पवन एक संधारणीय स्रोत है, इसलिए पवन ऊर्जा उत्पादन प्रक्रिया में कार्बन उत्सर्जन नहीं होता। पवन ऊर्जा पर्यावरण हितैषी और भविष्य के लिए लाभकारी है।
कार्बन उत्सर्जन में कमी:
पवन ऊर्जा का उत्पादन और विकास दो स्तरों पर कार्बन उत्सर्जन में कमी लाता है। एक तो यह तकनीक स्वयं कार्बन उत्सर्जन किए बिना बिजली का उत्पादन करती है। दूसरा यह कि पवन ऊर्जा के उपयोग से जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम होती है और वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन घटता है।
ऊर्जा आत्मनिर्भरता को बढ़ावा:
हम जानते हैं कि कोई देश जब अपनी ऊर्जा की आवश्यकता पूर्ति हेतु किसी अन्य देश अथवा अन्य देश के संसाधनों पर निर्भर रहता है तब वह देश कई तरह से कीमत चुकाता है। जो देश या क्षेत्र पवन ऊर्जा को अपनाते हैं, वे बाहरी तेल और कोयले की आपूर्ति पर निर्भरता कम कर सकते हैं। इससे उस देश की अर्थव्यवस्था में सुधार हो सकता है।
पवन टरबाइन की सीमाएँ और चुनौतियाँ Limitations and Challenges of Wind Turbines:
पवन ऊर्जा पर्यावरण हितैषी और अक्षय है, इसलिए इस ऊर्जा के के अनेक फायदे हैं किंतु फिर भी आज यह क्षेत्र के समक्ष कई सीमाएँ और चुनौतियाँ खड़ी हैं।
तकनीकी चुनौतियाँ Technical Challenges:
पवन ऊर्जा हवा की गति पर निर्भर करती है, इसलिए ऊर्जा उत्पादन में अस्थिरता देखी जाती है क्योंकि हवा की गति हमेशा एक समान नहीं होती है। यदि हवा धीमी हो, तो टरबाइन पर्याप्त बिजली नहीं उत्पन्न कर सकता और यदि हवा की गति तेज रही तो टरबाइन अधिक ऊर्जा उत्पन्न करता है। इस स्थिति में बड़े पैमाने पर संग्रहीत करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। ऊर्जा भंडारण की समस्या बैटरी की सीमित भंडारण क्षमता के कारण आती है क्योंकि बैटरी भंडारण अभी भी महंगा और सीमित क्षमता वाला है। पवन ऊर्जा क्षेत्र में उच्च रखरखाव और मरम्मत लागत की और एक तकनीकी चुनौती है। अपतटीय पवन ऊर्जा की तकनीकी अथवा इंजीनियरिंग चुनौतियों को स्पष्ट करते हुए Muhammad Arshad, Brendan C. O’Kelly. अपने शोध में लिखते हैं कि “अपतटीय पवन ऊर्जा उत्पादन में कई इंजीनियरिंग चुनौतियां शामिल हैं: नींव/समर्थन संरचनाओं के विश्लेषण और डिजाइन के लिए उपलब्ध सीमित दिशानिर्देश; निर्माण के लिए अपर्याप्त रसद और तुलनात्मक रूप से महंगी संचालन और रखरखाव लागत, जिसके परिणामस्वरूप ऊर्जा की वर्तमान लागत, तटवर्ती पवन ऊर्जा उत्पादन की तुलना में लगभग दोगुनी है।” (Muhammad Arshad, Brendan C. O’Kelly 2013)
पर्यावरणीय प्रभाव Environmental Impact:
पवन ऊर्जा तकनीक आज विश्व में सबसे किफायती ऊर्जा स्रोत के रूप में उभरी है, जो ऊर्जा उत्पादन के लिए सबसे अधिक जलवायु और पर्यावरण हितैषी विकल्पों का उपयोग करती है। फिर भी पवन ऊर्जा का जैव-विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। तेज़ गति से घूमते टरबाइन ब्लेड कई पक्षियों और चमगादड़ों के लिए जानलेवा साबित होते हैं। पक्षियों और चमगादड़ों के लिए टरबाइन के खतरे का विश्लेषण करते हुए
आर्थिक और बुनियादी ढाँचा संबंधी चुनौतियाँ Economic and Infrastructure Challenges:
एक पवन टरबाइन स्थापित करने की प्रारंभिक लागत अत्यधिक होती है। अत: छोटे निवेशक इस दिशा में आगे नहीं बढ़ पाते हैं। इसके साथ-साथ ट्रांसमिशन और ग्रिड एकीकरण की समस्या भी एक विचारणीय तथ्य है। अक्सर पवन ऊर्जा संयंत्र उन क्षेत्रों में स्थित होते हैं, जहाँ बिजली की अधिक मांग नहीं होती। इससे उत्पन्न बिजली को दूर-दराज के शहरों तक पहुँचाना महंगा हो जाता है। इस समस्या पर विचार करते हुए Oleksii Mykhailenko और उनकी टीम लिखती है कि “मौजूदा बिजली आपूर्ति प्रणालियों की संरचना में ऐसे स्टेशन के एकीकरण के लिए एक उपयुक्त विद्युत नेटवर्क बनाने की आवश्यकता होती है। क्योंकि उत्पादन उपकरण काफी दूर स्थित होते हैं, इसलिए ट्रांसमिशन नुकसान होता है। एक पंप स्टोरेज पावर प्लांट को इसके कार्यान्वयन के लिए विशेष परिस्थितियों की आवश्यकता होती है।” (Oleksii Mykhailenko and team 2025)
भौगोलिक और जलवायु संबंधी सीमाएँ Geographical and Climatic Limitations:
पवन टरबाइन उन्हीं क्षेत्रों में प्रभावी होते हैं जहाँ हवा की गति पर्याप्त होती है और टरबाइन की ध्वनि समस्या भी होती है, इसलिए पवन फार्म की स्थापना तटीय इलाके और पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है। पवन ऊर्जा के साथ ध्वनि और दृश्य प्रदूषण की समस्या भी जुड़ी है। पवन टरबाइन से उत्पन्न शोर ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को परेशान कर सकता है। इसके अलावा कुछ लोग विशाल टरबाइनों को देखने में अप्रिय मानते हैं। इस संदर्भ में Oleksii Mykhailenko और उनकी टीम लिखती है कि “हालांकि, घूमने वाले भागों की उपस्थिति और पवन टरबाइन द्वारा उत्पन्न अल्ट्रासाउंड के उच्च स्तर को देखते हुए, पवन ऊर्जा संयंत्रों को शहरों और गांवों के बाहर रखा जाता है।” (Oleksii Mykhailenko and team 2025) कहना न होगा कि पवन फार्म की स्थापना हेतु बड़ी मात्रा में भूमि की आवश्यकता होती है। अत: भूमि उपयोग और पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
पवन ऊर्जा कम हवा वाले क्षेत्रों में सीमित कार्यक्षमता दर्शाती है क्योंकि समतल या गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में हवा की गति कम होती है, जिससे पवन ऊर्जा का उत्पादन कठिन हो जाता है। इसके साथ-साथ चरम जलवायु परिस्थितियों में उपकरणों के रखरखाव में व्यापक चुनौतियाँ होती हैं। “तटवर्तीय पवन ऊर्जा की तुलना में अपतटीय पवन ऊर्जा उत्पादन की अधिक संभावना है, लेकिन समुद्री परिस्थितियाँ परियोजना वितरण के लिए बड़ी चुनौतियाँ पेश करती हैं क्योंकि परिणाम पर्यावरणीय परिस्थितियों से अत्यधिक प्रभावित होते हैं।” (Muhammad Arshad, Brendan C. O’Kelly. 2013. p 148)
पवन ऊर्जा की प्रभावशीलता बढ़ाने के उपाय Measures to increase the effectiveness of wind energy:
- पवन ऊर्जा क्षेत्र के विकास हेतु हमें कई मोर्चे पर कार्य करने की आवश्यकता है। जैसे कि ऊर्जा भंडारण तकनीकों का विकास करतेहुए एडवांस बैटरी और हाइड्रोजन स्टोरेज विकल्पों को अपनाना होगा।
- स्मार्ट ग्रिड और कुशल ट्रांसमिशन सिस्टम के विकास से बिजली वितरण को अधिक कुशल बनाया जा सकता है।
- पर्यावरण-अनुकूल टरबाइन डिज़ाइन को विकसित करके हम पक्षी सुरक्षा के लिए ब्लेड मॉडिफिकेशन और ध्वनि प्रदूषण को कम करने वाले डिज़ाइनों को अपना सकते हैं।
- नीति-निर्माण और सब्सिडी समर्थन द्वारा सरकार यदि वित्तीय सहायता और अनुकूल नीतियों को बढ़ावा देती है, तो छोटे निवेशक भी इस क्षेत्र में निवेश करने हेतु उत्सुक हो सकते हैं।
निष्कर्ष: Conclusion:
पवन ऊर्जा एक स्थायी, पर्यावरण हितैषी और हरित ऊर्जा स्रोत है। पवन ऊर्जा का विकास किसी देश को अनेक दृष्टिकोण से आगे बढ़ाने में सहायक है। लेकिन इस क्षेत्र में अभी बहुत-सी चुनौतियाँ भी विद्यमान हैं, जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। जैसे कि तकनीकी नवाचार, नीति समर्थन और स्मार्ट ग्रिड इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देकर पवन ऊर्जा की प्रभावशीलता में वृद्धि की जा सकती है। भविष्य में यदि इन सीमाओं को कम किया जाता है, तो यह ऊर्जा स्रोत दुनिया की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
संदर्भ References:
GWEC (Global Wind Energy Council). (2011). Global Wind Report-Annual Market Update. See http://www.windpower-international.com/microsites/gwec/Annual_report_2011_lowres.pdf (accessed 14/09/2012).
IRENA (International Renewable Energy Agency). (2012). Renewable Energy Technologies: Cost Analysis Series, http://www.irena.org/Document.Downloads/Publications/. RE_Technologies_Cost_Analysis-WIND_POWER.pdf (accessed 15/05/2012)
Muhammad Arshad, Brendan C. O’Kelly. (November 2013). Offshore wind-turbine structures: A review. Proceedings of the ICE Energy. 166(EN4):139-152. DOI: 10.1680/ener.12.00019
Nagababu Garlapati, Kunj Patel, Yagna Patel. (January 2025). Exploring the Feasibility of Green Hydrogen Production Using Wind Energy in India, Environmental and Climate Technology 29(1):21-34. Abstract p 21. DOI: 10.2478/rtuect-2025-0002
Oleksii Mykhailenko 1, Nadezhda Karabut 1, Volodymyr Doskoch 2, Olena Burtseva 3, Vitaliy Kuznetsov 2, Sergij Tsvirkun 4, Hanna Kolomits. (February 2025). Modeling of Wind Speed Distribution in Urban Environment for the Application of Wind Energy Potential Estimation: Case Study Published: TEM Journal. Volume 14, Issue 1, page- 108- 116, ISSN 2217-8309, DOI: 10.18421/TEM141-10
Sorensen SPH, Brodbaek KT, Moller M, Augustesen AH and Ibsen LB (2009) Evaluation of load–displacement relationships for large-diameter piles in sand. Proceedings of the 12th International Conference on Civil, Structural and Environmental Engineering Computing (Topping BHV, Costa Neves LF and Barros RC (eds)). Civil-Comp Press, Sterling, UK, paper 244
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