आलेख का सार: Summary of the article:
Kachra prabandhan और पुनर्चक्रण सतत विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण संरक्षण और विभिन्न संसाधनों को बल प्रदान करता है।
प्रस्तुत आलेख में विभिन्न प्रकार के कचरे बायोडिग्रेडेबल और गैर-बायोडिग्रेडेबल और उनके पर्यावरणीय प्रभावों पर विचार किया गया है। इस आलेख में भू, पानी और वायु प्रदूषण को रोकने हेतु प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन के महत्व पर प्रकाश डाला गया है, जो मानव स्वास्थ्य और प्रकृति के संतुलन के लिए खतरा पैदा करता है। प्रस्तुत आलेख में कचरे को कम करने और प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने, ऊर्जा बचाने, लैंडफिल उपयोग को कम करने और प्रदूषण को कम करने के लिए पुनर्चक्रण को एक महत्वपूर्ण समाधान के रूप में देखा गया है।
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आज भारत के समक्ष Kachra prabandhan की समस्या खड़ी है। भारत में प्रति वर्ष 62 मिलियन टन से अधिक अपशिष्ट का उत्पादन होता है, जिसमें से एक बड़ा हिस्सा अनुपचारित रहता है। किंतु यदि हम इस दिशा में कार्य करते हैं तो कागज़ यांत्रिक, रासायनिक और थर्मल रीसाइक्लिंग जैसी प्रक्रियाओं द्वारा कचरे को धातु, प्लास्टिक और कागज सहित उपयोगी उत्पादों में परिवर्तित कर सकते हैं। आज इलेक्ट्रॉनिक कचरे (ई-कचरे) की भी समस्या बढ़ती जा रही है। यह चिंता का विषय इसलिए है क्योंकि इसमें स्थित खतरनाक घटक कई स्तरों पर मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। आज हमें इस ई-कचरे को भी पुनर्चक्रण करने हेतु प्रयास करने की आवश्यकता है। प्रस्तुत आलेख में kachra prabandhan के विभिन्न समाधानों पर प्रकाश डालते हुए “वेस्ट टू वेल्थ मिशन” और पुनर्चक्रण में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अनुप्रयोग जैसी तकनीकियों पर चर्चा की गई है। यह आलेख पुन: उपयोग किये जाने वाली तकनीकों और व्यक्तिगत प्रयासों की भूमिका पर जोर देता है।
कचरे का परिचय: introduction of waste:
हमारे दैनिक जीवन में कचरा एक ऐसा हिस्सा है जिसे हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं। यह घरों, कारखानों और विभिन्न व्यापारों से उत्पन्न होता है, जिसमें प्लास्टिक, कागज, धातु और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण शामिल हैं। सही तरीके से प्रबंधित न होने पर कचरा पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। इसके कारण भूमि, जल और वायु प्रदूषण बढ़ता है, जो मानव स्वास्थ्य और प्राकृतिक संतुलन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
Kachra prabandhan या पुनर्चक्रण क्या होता है? What is waste management or recycling?
Kachra prabandhan और पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) एक ऐसा प्रभावी तरीका है, जहाँ इस्तेमाल किये जाने वाले सामानों को फेंकने के बजाय पुन: उपयोग करते हुए कचरे की मात्रा को कम किया जाता है। भारत विश्व के उन 10 देशों में से एक है, जो सबसे ज्यादा नगरपालिका ठोस कचरा (MSW) पैदा करता है। संसाधन संस्थान (TERI) की रिपोर्ट से यह जानकारी मिलती है कि “हर साल 62 मिलियन टन से ज्यादा कचरा बनता है, जिसमें से सिर्फ 43 मिलियन टन को इकट्ठा किया जाता है, 12 मिलियन टन का उपचार होता है और 31 मिलियन टन बिना किसी प्रक्रिया के फेंक दिया जाता है।”1 Kachra prabandhan और कचरा पुनर्चक्रण (Waste Recycling) संधारणीय विकास का एक महत्वपूर्ण घटक है । यह प्रक्रिया कचरे को नई उपयोगी सामग्री में बदलकर प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को कम करने में मदद करती है। पुनर्चक्रण से ऊर्जा की बचत होती है, लैंडफिल कम भरते हैं और प्रदूषण में कमी आती है। Kachra prabandhan या पुनर्चक्रण इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह पृथ्वी के सीमित संसाधनों को बचाने और पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद करता है।
यह न केवल प्रदूषण को नियंत्रित करता है बल्कि स्वास्थ्य को भी सुरक्षित रखता है। इसके अलावा यह आर्थिक रूप से भी लाभदायक है क्योंकि इससे रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं। kachra prabandhan और पुनर्चक्रण द्वारा प्राकृतिक संसाधनों को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। साथ ही यह अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करता है क्योंकि पुनर्नवीनीकरण सामग्री से नए उत्पाद बनाने में कम खर्च होता है। अत: Kachra prabandhan और पुनर्चक्रण या रीसाइक्लिंग हमारे जीवन और पर्यावरण दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कचरे के विभिन्न प्रकार: Different Types of Waste:
सामान्यतः खतरे के दो प्रकार माने जाते हैं। एक है जैविक कचरा और दूसरा है अजैविक कचरा। यह दोनों प्रकार के कचरे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर भिन्न-भिन्न प्रभाव डालते हैं।
- जैविक कचरा: ऐसा कचरा होता है जिसे प्राकृतिक प्रक्रिया द्वारा विघटित किया जा सकता है जैसे कागज और खाद्य अपशिष्ट पौधे के अवशेष जो जल्दी सड़ते हैं और प्राकृतिक प्रक्रिया के द्वारा विघटित हो जाते हैं।
- अजैविक कचरा: प्राकृतिक रूप से विघटित नहीं होता है इसलिए यह कचरा अधिक चिंता का विषय बनता है। जैसे प्लास्टिक धातु कांच के टुकड़े इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट जो लंबे समय तक पर्यावरण में रहते हैं इसी कारण अजैविक कचरा पर्यावरण को अधिक प्रदूषित करते हैं। यह कचरा प्राकृतिक रूप से नहीं सड़ता है या विघटित नहीं होता है इसलिए यह पर्यावरण के लिए गंभीर रूप से खतरनाक होता है।
Kachra prabandhan ke upay कचरा प्रबंधन के उपाय: Measures for waste management:
Kachra prabandhan और पुनर्चक्रण के अनेक उपाय हैं। कचरे का व्यवस्थित रूप से निपटा करना या उसे कचरे को एक संसाधन समझ कर उसे अन्य संसाधन के रूप में प्रयोग करना अथवा उसे कचरे से जहां तक हो सके अपनी आवश्यकता है पूरी करना इस प्रक्रिया में कचरे का पुनर्चक्रण होता है पुनर्चक्रण के और Kachra prabandhan के कई मॉडल उपलब्ध हैं।
Kachra prabandhan ke model: Models of Waste Management:
कचरा प्रबंधन के अनेक मॉडल हैं जिनसे हम कचरा प्रबंधन और पुनर्चक्रण तथा सफल निपटान की प्रक्रियाओं के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करते हुए कचरे का प्रबंधन करते हैं।
कचरा प्रबंधन का 4Rs मॉडल: 4Rs model of waste management:
डॉक्टर रवीश अग्रवाल अपने लेख में 4Rs मॉडल के संदर्भ में विस्तार से लिखते हैं कि “कचरे के पुनर्चक्रण के चार महत्वपूर्ण प्रक्रिया होती हैं जिसे 4Rs कहा जाता है। जैसे मना करना (refuse), कम करना(reduce), पुनः उपयोग( reuse) करना और पुनर्चक्रण (recycle)”2
- मना करना (Refuse): हमारे लिए जो वस्तु आवश्यक नहीं है ऐसी वस्तुओं को खरीदने से बचना चाहिए। हमें वही चीज खरीदनी चाहिए जो वास्तव में हमारे लिए आवश्यक है।
- कम करना (Reduce): दूसरा तरीका यह है कि हमें जहां तक हो सके कचरा को काम करना चाहिए। इसके लिए हम अपनी जीवन शैली को पर्यावरण हितेषी बना सकते हैं ताकि हमारा जीवन शैली भी साधारण गुणवत्तापूर्ण और पर्यावरण के अनुकूल बन सके। कचरे की मात्रा को कम करें। ऐसा करने से एक तो हम कचरे का कम उत्पादन करेंगे और दूसरी ओर एक पर्यावरण हितैषी जीवन शैली भी अपना पाएंगे।
- पुनः उपयोग करना (Reuse): कहां तक हो सके हमें अपनी चीजों और वस्तुओं का बार-बार उपयोग करना चाहिए इसका परिणाम यह होगा कि कचरे का उत्पादन कम हो पाएगा जो चीज दोबारा उपयोग करने योग्य है उन्हें हमें फिर से उपयोग में लाना चाहिए।
- पुनर्चक्रण (Recycle): चीजों का उपयोग हम साधारण जीवन में करते हैं यदि वह चीज पुनः उपयोग करने योग्य हैं तो उन्हें अलग रखा जाना चाहिए और जहां उसका पुनर्चक्रण हो सकता है वहां पहुंचना चाहिए जैसे कि कचरा बिनने वालों कबड्डी वालों को देना चाहिए इससे उसे कचरे का पुनर्चक्रण हो सकेगा। यह कचरा प्रबंधन की पुनर्चक्रण विधि है।
कचरा प्रबंधन हेतु हम और भी कुछ गतिविधियां अपना सकते हैं। जैसे कि स्रोत पर कचरे का अलगाव: स्रोत पर ही कचरे को अलग कर दिया जाए। जैविक (बायोडिग्रेडेबल) और अकार्बनिक (गैर-बायोडिग्रेडेबल) ठोस कचरे को अलग-अलग डिब्बों में रखें। कम श्रम और लागत में सभी घटकों का पुनर्चक्रण करें। विभिन्न प्रकार के ठोस कचरों के लिए अलग-अलग उपचार: विभिन्न प्रकार के ठोस कचरे के लिए अलग-अलग उपचार विधि अपनाई जाए और हर प्रकार के कचरे के लिए उपयुक्त तकनीक का उपयोग करें। जैसे बाजार के सामान्य कचरे के लिए जो तकनीक उपयुक्त है, वह कत्लखाने के कचरे के लिए सही नहीं हो सकती। कचरे का उपचार नजदीकी स्थान पर: ठोस कचरे का उपचार जितना संभव हो विकेंद्रीकृत तरीके से किया जाना चाहिए। यदि हो सके तो उत्पन्न कचरे का उपचार उसी स्थान पर करना चाहिए, यानी प्रत्येक घर में ही इसे निपटाया जाए। या उस कचरे को नजदीकी किसी स्थान पर वहाँ पहुँचाया जाए जहाँ उसका उपचार या पुनर्चक्रण होता हो।
Kachra prabandhan और पुनर्चक्रण की विभिन्न तकनीकियाँ: Various techniques of waste management and recycling:
कचरे का पुनर्चक्रण करने के लिए आज हमारे पास विभिन्न तकनीकियाँ मौजूद हैं, जिन्हें मैकेनिकल पुनर्चक्रण, रासायनिक पुनर्चक्रण और थर्मल पुनर्चक्रण तकनीकियाँ कहा जाता है। इन तकनीकियों के माध्यम से कचरे को विशिष्ट प्रक्रियाओं द्वारा विभिन्न उपयोगी उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है। इस प्रकार इन तकनीकियों द्वारा कचरा प्रबंधन भी होता है और हम पर्यावरण हितैषी विकास भी कर पाते हैं।
मैकेनिकल प्रक्रिया: Mechanical Process:
- इस Kachra prabandhan प्रक्रिया में कचरे के विभिन्न प्रकार जैसे प्लास्टिक और धातुओं को भौतिक रूप में तोड़ कर कच्चे पदार्थ को प्राप्त किया जाता है, जिससे नए उत्पाद बनाये जा सकते हैं। केवल यांत्रिक पुनर्चक्रण नहीं बल्कि एक विकाशील पर्यावरण के लिए और भी तरीके अपनाने चाहिए। इसमें कचरें जैसे प्लास्टिक आदि को उसके मूल रूप में तोड़कर उसे द्रव्य या गैस रूपों में बदलकर उपयोगी वस्तु बनाने में प्रयोग किया जाता है।
रासायनिक पुनर्चक्रण: Chemical Recycling:
- यह और एक Kachra prabandhan की विशिष्ट प्रक्रिया है। इसके अंतर्गत कचरे को रासायनिक प्रक्रिया जैसे गैसीकरण (gasification) हाइड्रोथर्मल उपचार (hydrothermal treatment) डिपोलिमरीकरण (depolymerization) के माध्यम से इसके मूलभूत रासायनिक घटकों में विभाजित किया जाता है। इस प्रक्रिया के द्वारा धातु, प्लास्टिक पॉलिमर और रसायनों जैसे मूल्यवान संसाधनों का पुनः उपयोग करना संभव होता है। जैसे ई-वेस्ट पुनर्चक्रण में हाइड्रो मेटालर्जिकल (hydrometallurgical) प्रक्रियाओं का उपयोग करके फेंके गए कम्प्यूटरों के सर्किट बोर्डों से कीमती धातुएं जैसे सोना और चांदी निकाला जा सकता है।
थर्मल पुनर्चक्रण: Thermal Recycling:
- इस Kachra prabandhan प्रक्रिया में विभिन्न प्रकार के कचरे को तापीय प्रक्रिया के माध्यम से कचरे को उपयोगी ऊर्जा प्रारंभिक सामग्री में बदल दिया जाता है और जब यह परिवर्तित हो जाता है तब हम उससे बिजली भी बना सकते हैं। जैसे बड़े-बड़े नगरपालिका के ठोस कचरे को जलाकर बिजली का उत्पादन किया जाता है।
इन परंपरागत प्रोद्योगिकियों के अलावा हाल ही में अनेक तकनीकियों का विकास हुआ है जो kachra prabandhan की दिशा में हमें गति प्रदान कराती हैं। “2024 में कई रोमांचक उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ उत्पन्न हुई है जैसे ‘पेलो’ एक नई तकनीक है जिसे व्यवसायों को उनके पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने और उनके अपशिष्ट संग्रह को अधिक कुशलता से प्रबंधित करने में मदद करने के लिए विकसित किया गया है। ‘पेलो’ कई अलग-अलग तरीकों से कंपनियों को इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है। सबसे पहले ’पेलो’ सिस्टम आपके कूड़ेदानों के भराव स्तर की निगरानी करता है और डंपस्टर की सामग्री और स्थान के बारे में वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करता है । यह बताता है कि कंटेनर दूषित है या नहीं और संग्रह के समय पिकअप अलर्ट भेजता है।”3
रीसाइक्लिंग रोबोट: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हाल ही में बहुत चर्चा में रहा है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस kachra prabandhan और रीसाइक्लिंग के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है। AI रोबोट को विभिन्न सामग्रियों के बीच तेज़ी से कचरे को सटीक रूप से अलग करने के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है। कई रीसाइक्लिंग केंद्र पहले से ही इस तकनीक का उपयोग कर रहे हैं। गीले और सूखे कचरे को अलग करने कार्य रोबोट द्वारा तेजी से किया जा सकता है। गीला कचरा जैसे खाद्य कचरे को कंपोस्ट में डाला जा सकता है जबकि सूखा कचरा जैसे कांच और धातु को अलग से निपटाया जाना चाहिए।
E kachra prabandhan विश्व में इलेक्ट्रॉनिक कचरे का बढ़ता संकट: The growing problem of electronic waste in the world:
आज का विश्व तकनीकी क्रांति को और बढ़ा रहा है। तकनीकी आधारित विकास जैसे जैसे बढ़ रहा है वैसे वैसे इस डिजिटल युग में इलेक्ट्रॉनिक कचरा या ई-वेस्ट भी उतना ही बड़ा संकट के रूप में हमारे समक्ष खड़ा हो रहा है। जितनी तेजी से टेक्नोलॉजी बढ़ती जा रही है जैसे इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों में टीवी, मोबाइल फ़ोन, लैपटॉप, आदि उतनी ही तेजी से E-kachra भी बढ़ता जा रहा है। इस कचरे में धातुओं और जहरीले रसायनों का मिश्रण होता है जिससे पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुँचता है। इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में काम करने वाले व्यापारी लाभ तो कमा रहें हैं किंतु E-kachra prabandhan पर कम ध्यान दे रहें हैं।
अत: यह समस्या और भी गंभीर होती जा रही है। E kachra की बढ़ती समस्या पर विचार करते हुए किंग लियू अपने लेख में लिखते हैं कि “ई-वेस्ट में पुराने और अनुपयोगी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण शामिल होते हैं, जिन्हें सठीक तरीके से नष्ट या पुनः संसाधित नहीं किया जाता, जिसके कारन पर्यावरण में संकट उत्पन्न हो रहा है। इस बढ़ती समस्या का प्रमाण इसकी 3-5% की वार्षिक वृद्धि से ज्ञात होती है I”4 यह तो रहा वैश्विक स्तर पर E kachre का संकट लेकिन भारत भी इस संकट का सामना कर रहा है। भारत द्वारा kachra prabandhan की दिशा में कार्य हो रहा है लेकिन वह पर्याप्त नहीं है। E kachra prabandhan की चुनौती अभी भी बनी हुई है। इस संदर्भ में सोनल गुप्ता इंडियन एक्सप्रेस में अपना लेख लिखते हुए गंभीर चुनौतियों की ओर ध्यान आकर्षण करते हुए लिखते हैं कि “वर्ष 2021-22 में देश में उत्पन्न कुल 16,01,155 टन ई-वेस्ट में से केवल 32.9% (5,27,131 टन) को ही पुनर्चक्रित किया गया जबकि 10,74,024 टन (67%) अनुप्रक्रियित रह गया। यह आंकड़ा पिछले वर्षों से बेहतर है: 2020-21 में 26.33%, 2019-20 में 22.07%, 2018-19 में 21.35%, और 2017-18 में केवल 9.79% ई-वेस्ट पुनर्चक्रित हुआ था”5 अत: कहना न होगा कि हमें kachra prabandhan की दिशा में विशेष रूप से सोचने और कदम उठाने की आवश्यकता है।
Kachra prabandhan और पुनर्चक्रण के दौरान कई प्रक्रियाएँ अपनाई जाती है। जैसे पूर्ण-घटक पुनर्चक्रण, पिरोलिसिस, हाइड्रोमेटलर्जी और इलेक्ट्रोकैमिकल आदि विभिन्न प्रक्रियाओं से इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को मूल्यवान धातुओं जैसे ताम्बा, टिन आदि निर्माण सामग्री के रूप में परिवर्तित किया जाता है।
भारत में ई-वेस्ट प्रबंधन का 90% हिस्सा अब भी असंगठित क्षेत्र द्वारा संभाला जाता है, जिसे “ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग की रीढ़” कहा गया है। हालांकि औपचारिक सुविधाएं होने के बावजूद अधिकांश ई-वेस्ट असंगठित क्षेत्र में ही पुनर्चक्रण किया जा रहा है। सरकार द्वारा नए ई-वेस्ट प्रबंधन नियम 1 अप्रैल, 2025 से लागू होंगे। इनमें खतरनाक पदार्थों की सीमा तय करना, पुनर्चक्रण में लगे श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास सुनिश्चित करना और डेटा संग्रह के लिए ऑनलाइन पोर्टल की स्थापना जैसी व्यवस्था में शामिल हैं।
2023 की एक और रिपोर्ट कहती है कि वर्तमान में कई निम्न-आय वाले क्षेत्रों गैरकानूनी तरीके से E kachra prabandhan करते हुए लाभ प्राप्त कर रहे है। परिणामतः इन गतिविधियों के कारण उत्पन्न हुए विषाक्त और हानिकारक पदार्थ पृथ्वी के भू-रासायनिक चक्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। फलत: kachra prabandhan या इ- वेस्ट सामग्रियों के पुनर्चक्रण में भी काफी सारी चुनौतियाँ आज हमारे सामने खड़ी हैं। चुनौती यह भी है कि पारंपरिक प्रौद्योगिकियाँ, मूल्यवान प्राथमिक सामग्री को सक्रिय रूप से अलग नहीं कर पाती है इस कारण अधिक संसाधनों का नुक्सान होता हैं।
Kachra prabandhan kaise kiya ja sakta hai प्रबंधन के उपाय: How can waste management be done? Management measures:
हमें kachra prabandhan हेतु कई स्तरों पर कार्य करने की आवश्यकता है। क्योकि यह समस्या किसी एक सरकार, संगठन, व्यक्ति के प्रयासों से हल होनेवाली नहीं है। इस समस्या से निपटने के लिए हम सब को प्रयत्न करने की आवश्यकता है।
- पहला स्तर है हमारे व्यक्तिगत प्रयास अर्थात हमें कचरे को एक निश्चित तय की गई कूड़ेदान में डालना। उसमें भी गीला कचरा व सूखा कचरा को अलग अलग रूप में संग्रहित करना चाहिए। इस दिशा में जो सरकार कार्य कर रही है उसमें हमें सहयोग करना चाहिए।
- हमारे घर के भीतर भी हमें पुन: उपयोग वाले कचरे का उपयोग करना और कचरे की पहचान कर उसे उपायुक्त स्थान या पुनर्चक्रण केंद्र तक पहुँचाना चाहिए।
- Kachra prabandhan को सफल बनाने के लिए भारत सरकार और सरकारी, गैर-सरकारी संगठनों को अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और kachra prabandhan की प्रक्रियाओं को अपनानाने की आवश्यकता है।
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ’बेसल कन्वेंशन’ के अन्तर्गत E kachra और उपयोग में न आने वाले उत्पादों को अपनी सीमा में अवश्य शामिल करनी चाहिए ताकि इसके अवैध व्यापार और गैर-कानूनी गतिविधियों को रोका जा सके।
- विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी (एपीआर) से E kachra निर्माताओं को जोड़ना चाहिए ताकि उनके द्वारा उत्पादित kachra prabandhan हेतु उन्हें जवाबदेह बनाया जा सके।
- प्लास्टिक पानी की बोतलें, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं, उन्हें आधा काटकर पौधों के होल्डर के रूप में पुनः उपयोग किया जा सकता है।
- ऐल्यूमिनियम फॉयल जो अवशोषणीय नहीं होता है उसे पौधों के लिए रिफ्लेक्टर के रूप में पुनः उपयोग किया जा सकता है।
- फल और सब्जियों के छिलके जैसे खाद्य कचरे को खाद में डाला जा सकता है और इसे बागवानी में उपयोग किया जा सकता है। प्लास्टिक बोतलों को फेंकने के बजाय उन्हें इको-ब्रिक (eco -brick) के रूप में बदला जा सकता है, जिन्हें मॉड्यूलर फर्नीचर या बागवानी सजावट के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
- पुराने अखबारों का पुनः उपयोग पैकिंग सामग्री या सफाई के सामान के रूप में किया जा सकता है। अंत में प्लास्टिक पदार्थ जैसे टूथब्रश और स्ट्रॉ की बजाय जैविक विकल्पों को अपनाना कचरे को कम करने और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए एक सरल कदम है।
- मोबाइल ऐप का प्रयोग पुनर्चक्रण के लिए मोबाइल एप्प का विकास होने लगा है। यह नए श्रेणी के मोबाइल ऐप्प खाद्य कपड़े को नेक काम में दान करने से लेकर पुनर्चक्रण केन्द्रों की खोज करने में सहायता करता है। कुछ ऐप्प यह भी जानकारी प्रदान करते हैं कि आपके स्थानीय क्षेत्र में कौन से सामग्री पुनः उपयोग की जा सकती हैं।
Kachra prabandhan या पुनर्चक्रण के फायदे: Advantages of waste management or recycling:
Kachra prabandhan या उसका पुनर्चक्रण कई पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ प्रदान करता है। यदि हम kachra prabandhan को सफल बनाते हैं तो यह प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में मदद करता है। जैसे कि पेड़ों की कटाई और खनन की आवश्यकता को कम करता है। जिससे वनों की रक्षा और जैव विविधता का संरक्षण किया जा सकता है। इस संदर्भ में डॉक्टर ओसामा असानोसि लम्मा लिखते हैं कि “इसी प्रकार, लकड़ी और कागज का पुनर्चक्रण जंगलों और पेड़ों को बचा जा सकता है। एक टन वजन वाले कार्यालय के पुनर्नवीनीकरण कागज से 7,650 गैलन पानी, 18 पेड़, और 472 गैलन तेल बचाया जा सकता है। प्राकृतिक वर्षावनों को पुन: स्थापित नहीं किया जा सकता, इसलिए उन्हें नष्ट करने से बचना बेहतर है”6
एक सफल Kachra prabandhan और रीसाइक्लिंग प्रदूषण को कम करने और जलवायु परिवर्तन से लड़ने में भी मदद करता है क्योंकि यह उत्पादन प्रक्रियाओं के दौरान ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को घटाता है। Kachra prabandhan लैंडफिल पर दबाव को भी कम करता है क्योंकि पर्यावरण संरक्षण एजेंसी का अनुमान है कि अगर 37% कचरे को रीसाइक्लिंग किया जाए तो लैंडफिल की जगह 65% तक कम हो सकती है।
आर्थिक रूप से kachra prabandhan और रीसाइक्लिंग रोजगार के नए अवसर उत्पन्न करता है और अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाता है। “2018 में अकेले रीसाइक्लिंग गतिविधियों ने अमेरिका में 6,93,000 नौकरियां, $38.6 बिलियन वेतन और $5.65 बिलियन कर राजस्व उत्पन्न किया।”7 अत: आज हमें इस दिशा में क्रांतिक कदम उठाने की आवश्यकता है।
वेस्ट टू वेल्थ मिशन: Waste to Wealth Mission:
यह मिशन Kachra prabandhan और पुनर्चक्रण की एक पहल है जो सफल सिद्ध हुई है। इस दिशा में न केवल भारत बल्कि विश्व के सभी देश प्रयासरत हैं। भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय की इस पहल के संदर्भ में कहा गया है कि “‘वेस्ट टू वेल्थ मिशन’ (waste to wealth mission), जो भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय द्वारा संचालित है। यह मिशन कचरे को उपयोगी संसाधन में परिवर्तित करने वाले तकनीकों पर केंद्रित है। इस मिशन का लक्ष्य कचरा-रहित एवं शून्य- लैंडफिल राष्ट्र बनाना है”8
इस मिशन के अंर्तगत एक ड्रेन मास्टर डी एम- 80 (drain master DM -80) मशीन का प्रारम्भ किया गया जो शहरी नालों की गंदगी को हटाने में सक्षम है। इसी प्रकार इस मिशन के तहत जाफराबाद में विकेन्द्रित कचरा प्रबंधन प्रौद्योगिकी पार्क (Decentralized waste management technology park) की स्थापना की गई है।
कोविड-19 महामारी के दौरान इस मिशन ने बायोमेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट इनोवेशन चैलेंज (biomedical waste treatment challenge) की शुरुआत की जिसमें जीडी एनवायर्नमेंटल प्राइवेट लिमिटेड (GD Environmental Pvt. Ltd.) द्वारा 150 किलोग्राम/घंटा गैस उत्पादन यंत्र (गैसीफायर) का चयन किया गया।
यह तकनीक नगर निगम और बायोमेडिकल कचरे या जैविक चिकित्सा कचरे को जलाकर ऊर्जा में बदलती है। जिससे सुरक्षित kachra prabandhan और ऊर्जा की पुनः प्राप्ति की समस्याओं का समाधान होता है। यह शहरी कचरे की बढ़ती समस्या का समाधान करने के साथ-साथ पुनर्चक्रण और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देता है। जिससे एक स्वच्छ और हरित भारत का निर्माण किया जा सकता है।
निष्कर्ष: Conclusion:
Kachra prabandhan और पुनर्चक्रण की यात्रा कहीं न कहीं हमारे घर से ही शुरू होती है। घर के चार दीवारों के भीतर, जहाँ हम छोटे-छोटे कदम उठाते हैं। गीला और सूखा कचरा अलग करना, पुराने सामान का पुनः उपयोग करना, वहीं से यह प्रक्रिया विस्तार पाती है। घर से शुरू होकर यह कदम समाज और दुनिया तक पहुंचते हैं। कहना न होगा कि आज कचरे की समस्या न केवल एक व्यक्ति बल्कि देश और संपूर्ण विश्व के सामने खड़ी है। इस समस्या से निपटने के लिए हमें कई स्तरों पर क्रांतिकारी परिवर्तन के साथ कदम उठाने की आवश्यकता है। व्यक्तिगत जीवन शैली से लेकर AI रोबोटिक तक के प्रयास हमें सफल रूप से kachra prabandhan करने में बल प्रदान कर सकते हैं।
संदर्भ: References:
- Dr. Ravish Agrawal, Mona Chaudhary, Jayveer Singh, Waste Management Initiatives In India For Human Well Being, European Scientific Journal, June 2015, Special edition, page- 107-113
- Jo Romano, 6 smart waste management technologies emerging in 2024, USA, RTS, January 2024 https://www.rts.com/
- Kang Liu, Quanyin Tan, Jiedong Yu, Mengmeng Wang, A global perspective on e-waste recycling, Tsinghua University Press March 2023, Volume 2, Issue – 1, Annexure- 1, https://www.sciencedirect.com
- Sonal Gupta, Recycling has gone up in last 5 years, but 67% of e-waste remains unprocessed, नई दिल्ली, Indian Express, New Delhi, Date-1.3.2023
- Dr. Osama Asanosi Lumma, The impact of recycling in preserving the environment, International Journal of Applied Research, December- 2021, Page-301
- Jo Romano, 6 smart waste management technologies emerging in 2024, USA, RTS, January 2024 https://www.rts.com/
- India Solid Waste Management, International Trade Administration, 27.4.2023 https://www.trade.gov/
- Waste to Wealth website, office of the Principal Scientific Adviser to the Government of India https://www.psa.gov.in/waste-to-wealth