सार: Abstract:
Jal sanrakshan ke upay क्या आप जानते है? क्या आप जानते है? धरती पर पीने योग्य पानी कितना है, आप जानकर आश्चर्य हो सकते हैं कि कुल 100% जल में केवल 3% जल पीने योग्य है। इसमें से भी अधिकांश जल बर्फ के रूप में जमा है और केवल 0.6% जल ही नदी, झीलों, तालाबों और भू-जल के रूप में हमारे पास उपलब्ध है। इससे भी आगे यह कहूँ कि आज नदी, तालाब और भू-जल भी प्रदूषित हो रहा है। ऐसी स्थिति में हमारे पास पीने योग्य जल कहाँ बचा है, आप ही विचार कीजिए। हम जल को जीवन केवल कहते हैं लेकिन उसका सम्मान नहीं करते है और केवल कहने से जल संरक्षण नहीं होगा।
आज बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण जल संकट गंभीर रूप धारण कर चुका है। 21 वीं सदी के मुख्य संकटों में से जल संकट एक है। पीने योग्य जल लगातार कम होता जा रहा है और विश्वभर में लाखों लोग स्वच्छ पेयजल की कमी से जूझ रहे हैं। कहने की आवश्यकता नहीं है कि जलवायु परिवर्तन समस्या इस संकट को और बल प्रदान कर रही है। जल संरक्षण ही इस भयानक जल संकट का एक मात्र समाधान है और कोई उपाय नहीं है।
आज वैश्विक स्तर पर जल संरक्षण की अनेक प्रभावी तकनीकियों का विकास हुआ है। इन तकनीकियों को हमें अपनाने की आवश्यकता है। इन तकनीकियों में कुछ तो प्राचीन काल से प्रचलित हैं और कुछ वर्तमान समय में विकसित की गई हैं। जैसे कि वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting), ड्रिप इरिगेशन (Drip Irrigation) और जल पुनर्चक्रण (Water Recycling) आदि प्रमुख हैं। ये तकनीकें जल संसाधनों का दक्षतापूर्वक उपयोग करने और भविष्य के लिए जल भंडारण सुनिश्चित करने में मदद करती हैं। प्रस्तुत आलेख में हम इन तकनीकियों के अलावा जल संरक्षण की अन्य विभिन्न तकनीकियों और पहलुओं पर विस्तृत चर्चा करने का प्रयास किया गया है।
जल संरक्षण के उपाय ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य Historical Perspective of Water Conservation:
जल संरक्षण कोई नई अवधारणा नहीं है बल्कि यह प्राचीन काल से हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में जल संरक्षण की विभिन्न परंपरागत तकनीकियों का विकास होता आया है। भारत में कम वर्षा वाले क्षेत्र जैसे कि राजस्थान और गुजरात में बावड़ियाँ एवं कुंड का निर्माण करते थे। इन स्थानीय जल संरक्षण के महत्व के संदर्भ में Mausmi Rastogi और उनकी टीम लिखती है कि “स्थानीय ज्ञान और पर्यावरण की स्थिति, सदियों से कृषि उद्देश्यों के लिए पानी का दोहन और संरक्षण करने में सहायक रही है। सबसे प्रमुख पारंपरिक तरीकों में से एक है ‘टैंकों’ का उपयोग, वर्षा जल संचयन संरचनाएँ जो आमतौर पर राजस्थान के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में प्रचलित रही है।” (Mausmi Rastogi and team 2024)
भारत में ऐसी उन्नत जल संरक्षण तकनीकियों की कमी नहीं है। यदि आप बिहार पर इस संदर्भ में अध्ययन करेंगे तो, पाएँगे कि “एक और उल्लेखनीय प्रथा बिहार में ‘आहर-पाइन’ प्रणाली है, जो एक देशी बाढ़ जल संचयन विधि है। आहर तीन तरफ तटबंधों वाले छोटे जलाशय हैं, जबकि पाइन नहरें हैं जो नदी के पानी को मोड़ती हैं। दक्षिणी राज्य कर्नाटक में, पानी को रोकने के लिए नदियों पर ‘कट्टा’ या अस्थायी चेक डैम बनाए जाते हैं। इसी तरह, पूर्वोत्तर क्षेत्र में, विशेष रूप से मेघालय जैसे राज्यों में, जीवित जड़ पुल, पारंपरिक ज्ञान और प्रकृति का एक समामेलन, जल संरक्षण और प्रबंधन की एक अनूठी विधि के रूप में कार्य करते हैं।” (Subba JR. 2009)
यही नहीं दक्षिण भारत में भी चेक डैम और टैंक सिस्टम, उत्तर और मध्य भारत में झीलें और तालाब आदि का निर्माण जल संरक्षण की प्राचीन अवधारणा का ही परिणाम हैं। यही नहीं भारत के बाहर भी रोमन में रोमन एक्वाडक्ट्स, चिली और पेरू में फोग कैप्चरिंग सिस्टम, अफ्रीका में ज़ायडी सिस्टम आदि जल संरक्षण की व्यापक तकनीकियाँ प्रचलित थी किंतु आज इन सभी तकनीकियों को आधुनिक मानव ताक पर रख दिया है फलत: आज जल संकट हमारे समक्ष खड़ा है। हमें इन पारंपरिक प्रणालियों को आधुनिक तकनीकों के साथ पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
जल संरक्षण की आवश्यकता Need for Water Conservation:
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव Impact of Climate Change:
जल संरक्षण की आवश्यकता पर किसी को जानकारी देने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए क्योंकि जब हम जल को ही जीवन है, तो जीवन की रक्षा की आवश्यकता क्या है और क्यों होती है सब जानते हैं। फिर भी इस संदर्भ में कुछ तथ्यों का विश्लेषण किया जा सकता है। आज दुनिया जलवायु परिवर्तन और घटते जलस्तर की विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा का पैटर्न बदल गया है। फलत: अनियमित वर्षा हो रही है। जैसे कही अत्यधिक वर्षा तो कही सूखा। कही कम समय में अत्यधिक वर्षा जिसके कारण बाढ़, बाढ़ से अनेक समस्याएँ उभर आती हैं। जहाँ वर्षा अक्सर कम हुआ करती थी, उसी क्षेत्र में वर्षा अधिक होने लगी है। जहाँ वर्षा अधिक होती थी, वह क्षेत्र सूखे का सामना कर रहा है। पिछले समय में एक-एक सप्ताह तक धीमी वर्षा होती थी जिससे वर्षा जल भूमि में जाता था और भौम जल का स्तर सुधारता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है, कुछ ही समय में अत्यधिक वर्षा हो जाती है जिसके कारण वर्षा जल बह जाता है। वह भौम जल नहीं बन पाता अत: जल संकट खड़ा हो जाता है। जलवायु परिवर्तन के ऐसे अनेक नकारात्मक प्रभाव हमारे जल उपलब्धता पर पड़ता है। इसलिए आज जल संरक्षण करने की अत्यंत आवश्यकता है।
जल संकट के सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव Social, economic and environmental impacts of water crisis:
किसी क्षेत्र में यदि जल की कमी हो जाती है, तो वहाँ से लोग पलायन करने लगते हैं क्योंकि जल के बिना जीवन संभव नहीं है। इस संदर्भ में देखा गया है कि अनेक क्षेत्रों से लोग जल संकट के कारण पलायन कर रहे हैं। जल संकट कृषि और उद्योगों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। कृषि जल के बिना नहीं की जा सकती और उद्योग के लिए भी जल की आवश्यकता होती है लेकिन जल ही उपलब्ध न हो अथवा प्रदूषित हो तब कैसे इन क्षेत्रों का विकास होगा। भारत में जल संकट के व्यापक प्रभावों पर विचार करते हुए Singh G, Jindal T, Patel N, Dubey SK. A. लिखते हैं कि “वैश्विक जल संकट के बढ़ते संकट से स्पष्ट होता है कि इसका कृषि पर गहरा प्रभाव पड़ता है, खासकर भारत जैसे देशों में। भारत का कृषि क्षेत्र वैश्विक स्तर पर पानी का सबसे बड़ा उपभोक्ता और घटते जल संसाधनों के कारण महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है, जो जलवायु परिवर्तन से और भी गंभीर हो गई है। विश्व संसाधन संस्थान (WRI) के अनुसार, भारत दुनिया के 17 ‘अत्यधिक जल-तनावग्रस्त’ देशों में 13वें स्थान पर है, जो पानी की मांग और आपूर्ति के बीच गंभीर असंतुलन को दर्शाता है।” (Singh G, Jindal T, Patel N, Dubey SK. A. 2022.) जब नदी और तालाबों में जल नहीं होता है अथवा प्रदूषित होता है, तब भौम जल स्रोतों पर दबाव बढ़ता है और जल स्त्रोतों का अत्यधिक दोहन होने लगता है। परिणामस्वरूप जैविविधता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) में जल संरक्षण की भूमिका Role of water conservation in Sustainable Development Goals (SDGs):
जल हमारे लिए इतना महत्वपूर्ण है कि हमने जो संधारणीय विकास लक्ष्य तय किए हैं, उनमें अधिकांश लक्ष्य जल संरक्षण करने से ही प्राप्त हो सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDG 6) में स्वच्छ जल और स्वच्छता को प्रमुख लक्ष्य के रूप में शामिल किया गया है। जब स्वच्छ जल उपलब्ध होगा तो लोग बीमार कम होंगे जिससे स्वास्थ्य का लक्ष्य पूरा होगा। जल के कारण कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र में विकास होगा, तो गरिमापूर्ण जीवन का लक्ष्य प्राप्त कर सकेंगे। कहना न होगा कि जल सभी संधारणीय विकास लक्ष्यों से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। इस दृष्टिकोण से। ही जल संरक्षण अत्यंत आवश्यक है।
Jal sanrakshan ke upay जल संरक्षण की प्रमुख तकनीकियाँ Key Techniques of Water Conservation:
यह कहने में कोई संदेह नहीं है कि आज भी भारतीय कृषि आधुनिक तकनीकियों से कोसों दूर है। भारत के किसान अभी भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाए हैं और उनकी आर्थिक स्थिति भारी लागत वाली कृषि तकनीकियों को अपनाने की अनुमति नहीं देती है। फिर भी जहाँ भी थोड़ी बहुत तकनीकियों का प्रयोग हो रहा है, वहाँ कृषि में सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इस संदर्भ में Mausmi Rastogi और उनकी टीम लिखती है कि “भारतीय कृषि के क्षेत्र में, प्रौद्योगिकी और नवाचार उत्पादकता, दक्षता और स्थिरता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चूंकि भारत बढ़ती आबादी, घटते प्राकृतिक संसाधनों और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रहा है, इसलिए उन्नत प्रौद्योगिकियों को अपनाना बहुत ज़रूरी हो गया है। जल प्रबंधन में सेंसर और इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (IoT) के उपयोग, डेटा-संचालित दृष्टिकोण और अभिनव समाधानों की खोज से जुड़ी तकनीकियाँ कृषि क्षेत्र में प्रवेश कर रही है। फलत: भारतीय कृषि परिदृश्य बदल रहा है।” (Mausmi Rastogi and team 2024)
वर्षा जल संचयन Rainwater Harvesting:
वर्षा जल संचयन की यह तकनीक प्राचीन काल से परंपरागत रूप से प्रचलित है। यह कोई विशेष तकनीकी नहीं हैं बल्कि यह एक प्रक्रिया है जिसमें वर्षा के जल को विभिन्न तरीकों से एकत्रित कर संरक्षित किया जाता है। जैसे कि छत से जल का संचयन (Rooftop Rainwater Harvesting) अर्थात वर्षा जल को अपने घर के नीचे अथवा घर के आस-पास टंकी बनाकर हम जल का संचयन कर सकते हैं। उस जल का प्रयोग पशुपालन और अन्य घरेलू कार्यों में किया जा सकता है। इस संदर्भ में Dabdoob RM, Kassim PJ. लिखते हैं कि “ये टांके छोटे टैंक होते हैं, जिन्हें अक्सर घरों के आँगन में बनाया जाता है, और पीने और सिंचाई के उद्देश्यों के लिए वर्षा जल को इकट्ठा करने और संग्रहीत करने के लिए उपयोग किया जाता है।” (Dabdoob RM, Kassim PJ. 2019)
भू-जल पुनर्भरण Groundwater Recharge:
एक ऐसी प्रक्रिया है, जो भौम जल को बल प्रदान करती है। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत चेक डैम तथा छोटे-छोटे गड्डा बनाकर जहाँ तहाँ वर्षा जल को रोका जा सकता है ताकि वह जल भूमि में धीरे-धीरे रिसता जाए। इस प्रकार की अनेक प्रक्रियाएँ आज भी प्रचलित हैं। इन प्रक्रियाओं से जल की उपलब्धता बढ़ती है और भू-जल स्तर बनाए रखने में मदद मिलती है।
स्पिंकलर और ड्रिप इरिगेशन Sprinkler and Drip Irrigation:
इन प्रक्रियाओं को हम माइक्रो-इरिगेशन तकनीक कह सकते हैं। कृषि में सिंचाई हेतु इन तकनीकियों का प्रयोग किया जाता है। ये तकनीकियाँ जल के अपव्यय को रोकती हैं और व्यापक दक्षाता के साथ सिंचाई करती है। स्पिंकलर तकनीक वर्षा जल के समान ही सिंचाई करता है। स्प्रिंकलर सिंचाई के संदर्भ में Chávez C. और उनकी टीम लिखती है कि “स्प्रिंकलर सिस्टम, एक और तकनीकी उन्नति, ने भी भारत में लोकप्रियता हासिल की है। ये प्रणालियाँ वर्षा का अनुकरण करती हैं और असमान इलाकों में विशेष रूप से उपयोगी होती हैं जहाँ पारंपरिक सिंचाई विधियाँ अव्यावहारिक होती हैं। स्प्रिंकलर पानी को अधिक समान रूप से वितरित करते हैं और सतही सिंचाई विधियों की तुलना में महत्वपूर्ण जल बचत कर सकते हैं।” (Chavez C. and team 2020)
उसी प्रकार ड्रिप सिंचाई तकनीकी द्वारा पौधों के जड़ों पर बूँद-बूँद जल को टपकाया जाता है। जिसमें पौधों की जड़ों तक सीधे पानी पहुँचता है। “ड्रिप सिंचाई, सबसे महत्वपूर्ण प्रगति में से एक है, जो कृषि में कुशल जल उपयोग का प्रतीक है। ड्रिप सिंचाई में, पानी को धीमे और स्थिर तरीके से सीधे पौधों की जड़ों तक पहुँचाया जाता है, जिससे वाष्पीकरण कम से कम होता है और यह सुनिश्चित होता है कि पौधों को पानी और पोषक तत्व सबसे कुशल तरीके से प्राप्त हों।” (Jarwar AH. and team 2019) इस तकनीकी के प्रमुख घटकों में पाइप और ड्रिपर्स तथा फिल्टर और प्रेशर रेगुलेटर को शामिल किया जाता है। जल की बचत और पौधों की उत्पादकता में बढ़ोतरी आदि इन तकनीकियों के व्यापक लाभ हैं।
जल पुनर्चक्रण Water Recycling:
जल एक ऐसा संसाधन है, जिसका हम एक से अधिक बार उपयोग कर सकते हैं। जैसे कि नहाए गए पानी का पुन: उपयोग पौधों के लिए, साग, सब्जी अथवा बर्तन को साफ करने में जो जल लगा है उसका उपयोग खाद बनाने में कर सकते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हम जल का पुन: उपयोग घरेलू उपयोग, औद्योगिक उपयोग, कृषि सिंचाई आदि अनेक क्षेत्रों में कर सकते हैं। हम जल को पुनः उपचारित कर विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग कर सकते हैं। कहने की आवश्यकता नहीं होना चाहिए की यदि हम पून: उपयोग करते हैं, तो जल की उपलब्धता में वृद्धि और जल प्रदूषण में कमी जैसे अनेक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
जब विश्व समुदाय हर क्षेत्र में नई-नई तकनीकियों का विकास कर रहा है, तो जल संरक्षण की दिशा में कैसे पीछे रह सकता है। आज जल संरक्षण की अनेक तकनीकियों का विकास हो रहा है। जैसे कि स्मार्ट इरिगेशन सिस्टम, AI और IoT आधारित जल प्रबंधन और पानी बचाने के लिए रोबोटिक्स और सेंसर्स का उपयोग आदि तकनीकियाँ न आज के लिए जल संरक्षण करेगी बल्कि भविष्य की पीढ़ी के लिए भी जल बचाए रख सकेंगी।
अत्याधुनिक तकनीकियों का प्रयोग जब कृषि कार्यों में होने लगता है उसे स्मार्ट कृषि कहते हैं। जलवायु स्मार्ट कृषि पर Matteoli F, Schnetzer J, Jacobs H. लिखते हैं कि “जलवायु-स्मार्ट कृषि (सीएसए) की अवधारणा ने जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा की दोहरी चुनौतियों से निपटने के साधन के रूप में भारत में महत्वपूर्ण गति प्राप्त की है। ऐसे देश में जहाँ आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है, कृषि उत्पादकता पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव एक गंभीर चिंता का विषय है। सीएसए का उद्देश्य कृषि उत्पादकता को स्थायी रूप से बढ़ाना, जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन और लचीलापन बनाना, और जहाँ संभव हो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना है।” (Matteoli F, Schnetzer J, Jacobs H. 2020) इस ढांचे के भीतर, मौसम पूर्वानुमान और जलवायु मॉडलिंग, लचीली फसल किस्मों का विकास और उपयोग, और एकीकृत कीट और पोषक तत्व प्रबंधन सहित कई प्रथाओं पर जोर दिया गया है।
जल संरक्षण और सरकारी नीतियाँ Water Conservation Policies and Regulations:
जल संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर लगभग सभी सरकारों द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं। इसी दिशा में भारत सरकार द्वारा भी भारत में सरकारी योजनाएँ जैसे कि जल शक्ति अभियान, अटल भूजल योजना आदि कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय जल संरक्षण नीतियाँ भी बनाई गई हैं।
सामुदायिक भागीदारी और जल संरक्षण Community Participation in Water Conservation:
जल संरक्षण की यह प्रक्रिया सर्वाधिक प्रभावी और सफल होती है। यदि कोई ग्राम पंचायत तय कर ले कि हमें वर्षा जल के समय हर संभव प्रयास करना है, तो वह ग्रामपंचायत कुछ ही वर्षों में हरा-भरा हो सकता है। ग्राम स्तर पर जल प्रबंधन के ऐसे कई उदाहरण हैं, जो सफल हुए हैं। इस प्रकार के सामुदायिक कार्यक्रम में यदि हम युवा पीढ़ी को भी जोड़ते हैं, तो कार्यक्रम के सफलता की संभावनाएँ और बढ़ जाती है। जलसा संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भूमिका पर विचार करते हुए Hu XJ, और उनकी टीम चीन का उदाहरण देते हुए लिखते हैं कि “जल प्रबंधन रणनीतियों की सफलता और स्थिरता के लिए स्थानीय समुदायों को शामिल करना महत्वपूर्ण है। समुदाय-आधारित दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करते हैं कि समाधान स्थानीय रूप से प्रासंगिक और व्यापक रूप से स्वीकृत हों। किसान सहकारी समितियाँ और जल उपयोगकर्ता संघ सहभागी जल प्रबंधन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये संगठन किसानों को सामूहिक रूप से जल संसाधनों का प्रबंधन करने, जल आवंटन के बारे में निर्णय लेने और जल-बचत तकनीकों को लागू करने के लिए सशक्त बनाते हैं।” (Hu XJ. 2014) अत: सामुदायिक सहभागिता जल संरक्षण को एक क्रांतिक कदम सिद्ध कर सकती है।
भविष्य में जल संकट की संभावनाएँ Possibilities of water crisis in future:
आज वैश्विक स्तर पर जल संबंधी विवाद बढ़ते जा रहे हैं। यही नहीं भारत में भी कावेरी, गोदावरी और नर्मदा आदि नदी जल विवादों का निपटान अभी भी चल रहे हैं। किंतु जब हम जल संकट के संभावित भविष्य पर विचार करते हैं, तो यह संकट और भी भयावह रूप धारण कर सकता है। आज का ही समय देखें तो बीस रुपए लीटर पानी लेकर पीना पड़ रहा है। कोई भी नदी, नाले, तालाब, झीलें यहाँ तक कि जंगलों के झरनें भी स्वच्छ नहीं हैं। कहीं भी पीने लायक जल बहुत कम है यदि यही सिलसिला चलता रहा, तो आनेवाले समय में साधारण जनता का क्या हाल होगा। जिनके पास पैसे हैं, वे तो जल खरीद कर एक-दो पीढ़ी तक चल सकते हैं लेकिन गरीब कहाँ जाएगे। जल जनित बीमारियाँ बढ़ेंगी, लोग जल अभाव के कारण मारे जाएंगे। कहना न होगा कि जल संकट का भविष्य भयावह है।
जल संरक्षण के आर्थिक और सामाजिक लाभ Economic and Social Benefits of Water Conservation:
जल संरक्षण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक क्षेत्र को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। जल संरक्षण की विभिन्न तकनीकियों का उपयोग कृषि क्षेत्र में जल का बचत और किसानों को आर्थिक लाभ पहुँचाता है। आधुनिक सिंचाई तकनीकियों की अपनाने पर कृषि उत्पादकता में वृद्धि होती है और देश की खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी। यदि जल स्वच्छ होगा तो जल जनित बीमारियाँ कम हींगी। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सूचकांक में सुधार होगा और जब स्वास्थ्य अच्छा रहेगा तो व्यक्ति अपनी कार्य शक्ति का उचित उपयोग करेगा और अंततः देश विकास की दिशा में आगे बढ़ेगा।
व्यक्तिगत स्तर पर Jal sanrakshan ke upay Water Conservation at Individual Level:
जल संरक्षण आज के समय की आवश्यकता ही नहीं बल्कि मजबूरी भी है। जल संरक्षण की शुरुआत हमें व्यक्तिगत स्तर से ही करना होगा। ये व्यक्तिगत उपाय हमारे घर से शुरू होते हैं। यदि हम अपने घरों में जल संरक्षण के विभिन्न तरीकें हैं जिन्हें हमें अपनाने की आवश्यकता है।
घर में जल संरक्षण के तरीके Ways to conserve water at home:
हम हमारे किचन और बाथरूम में जल के लिकेज पर विशेष ध्यान दे। यदि कहीं से भी जल व्यर्थ हो रहा है, तो तुरंत ठीक कराए। क्या आप जानते हैं, एक टपकती हुए बूँद चौबीस घंटे में पच्चास लीटर पानी का अपव्यय करती है। हम कम जल उपयोग वाले नल और शावरों को प्राथमिकता देनी चाहिए। टॉयलेट फ्लश का सही इस्तेमाल होना चाहिए। बर्तन धोते समय नल लगातार न चलाकर उसे बंद किया जाए। सब्जियां और फल धोने के लिए जो जल का उपयोग होता है, उसका पेड़ पौधों तथा सब्जी उगाने में पुन: उपयोग होना चाहिए। कपड़े धोते समय जल संरक्षण का विशेष ध्यान रखा जाए। बगीचे और लॉन में जल संरक्षण संरक्षण हेतु हम ड्रिप तकनीकी का प्रयोग कर सकते हैं। कम पानी वाले पौधे और सब्ज़ियों को प्राथमिकता दी जाए। वर्षा जल का जितना हो सके अधिक से अधिक संचयन करें अथवा छत पर रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाकर इसे बगीचे में इस्तेमाल कर सकते हैं।
जलविहीन तकनीकियाँ Waterless Technologies:
हम जल संरक्षण हेतु ऐसी प्रणालियों का उपयोग कर सकते है, जल का कम से कम उपयोग कर सकें जैसे कि कम्पोस्टिंग टॉयलेट, वैक्यूम टॉयलेट, ड्राई कार वॉश, बिना पानी के हाथ धोने वाले सैनिटाइजर, एरोपोनिक्स और हाइड्रोपोनिक्स तकनीकियों का प्रयोग और ड्राई कूलिंग सिस्टम आदि अनेक प्रगतिशील तकनीकियों का विकास हुआ है। जिसे हम अपना सकते हैं। इन उपायों के साथ हम जल दक्षता बढ़ाने वाले विभिन्न उपकरणों का भी प्रयोग कर सकते हैं। जैसे कि स्मार्ट नल और शावर, सेंसर-आधारित नल, एरोएटर नल, जल-संरक्षण वाले टॉयलेट सिस्टम, ड्यूल फ्लश टॉयलेट, वैक्यूम-आधारित फ्लशिंग सिस्टम, छतों से वर्षा जल संचयन प्रणाली को अपनाना और स्मार्ट वॉटर मीटर और रिसाइक्लिंग सिस्टम आदि का प्रयोग कर सकते हैं।
Jal sanrakshan ke upay: शिक्षा और जागरूकता:
सब जानने हैं, कि हमारे लिए जल अत्यंत आवश्यक है, फिर भी जल संरक्षण के संदर्भ में जागरूक नहीं रहते हैं। इसलिए हमें शिक्षा और जल संरक्षण अभियान चलाना चाहिए। लोगों को जल के महत्व और संरक्षण के लाभ समझाएँ जाने चाहिए। कृषि कार्य और कृषि सिंचाई में किसानों को जागरूक बनाने के संदर्भ में Yadav RA, Malik KK. लिखते हैं कि “शिक्षा और जागरूकता जल संरक्षण और टिकाऊ कृषि पद्धतियों की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण घटक हैं। किसानों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम उन्हें प्रभावी जल प्रबंधन के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल से लैस करने के लिए आवश्यक हैं। ये कार्यक्रम, जो अक्सर सरकारी एजेंसियों, शोध संस्थानों और गैर सरकारी संगठनों द्वारा संचालित किए जाते हैं, कुशल सिंचाई तकनीकों, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन और जलवायु-स्मार्ट कृषि सहित कई विषयों को कवर करते हैं। किसान क्षेत्र विद्यालयों के माध्यम से जन जागरूकता अभियान और शैक्षिक आउटरीच गतिविधियाँ जल संरक्षण के महत्व के बारे में व्यापक जागरूकता पैदा करने में मदद करती हैं। भारत सरकार द्वारा ‘जल शक्ति अभियान’ और ‘कैच द रेन’ अभियान जैसी पहलों का उद्देश्य नागरिकों को जल संरक्षण प्रयासों में शामिल करना है, जल संसाधनों की सुरक्षा में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका पर प्रकाश डालना।” (Yadav RA, Malik KK. 2023) कहना न होगा कि हमें जल संरक्षण के हर संभव प्रयास करने चाहिए।
निष्कर्ष Conclusion:
कहने की आवश्यकता नहीं है कि हमें प्रचलित Jal sanrakshan ke upay को अपनाते हुए और नए Jal sanrakshan ke upay खोजने होंगे। जल संरक्षण के संदर्भ में निष्कर्ष बताते हैं कि तकनीकी आविष्कारों और सक्रिय सामुदायिक जुड़ाव के साथ संयुक्त रूप से परस्पर जुड़ी जल संरक्षण गतिविधियाँ, जल अपव्यय को कम करने और संरक्षण करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं। जल संरक्षण के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होती है। हम आधुनिक तकनीकियों के उपयोग के साथ-साथ यदि हम जन जागरूकता अभियान चलाते हैं, तो समाज न केवल वर्तमान जल चुनौतियों का समाधान कर सकता है बल्कि आनेवाली पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित जल छोड़कर जा सकता है। यह आलेख पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने और सतत विकास का समर्थन करने के लिए जल संसाधन के संरक्षण में सहयोगात्मक कार्रवाई की महत्ता पर प्रकाश डालता है।
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