हसदेव अभयारण्य और आदिवासी समुदाय Hasdeo Sanctuary and Tribal Community

हसदेव अभयारण्य का परिचय Introduction to Hasdeo Sanctuary

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हसदेव अभारण्य Hasdeo Sanctuary मध्य भारत की उच्च भूमि के राज्य छत्तीसगढ़ में स्थित पर्णपाती सागवान, शॉल तथा महुआ जैसे असंख्य वनस्पतियों से समृद्ध एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र है जो मध्य भारत की जैव विविधता और पर्यावरण को समृद्ध बनाने के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

हसदेव अभयारण्य की भौगोलिक अवस्थिति: Geographical location of Hasdev Sanctuary

भौगोलिक दृष्टिकोण से यह अभयारण्य अति महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मध्य भारत में कर्क रेखा से दक्षिण की और चिपका हुआ है। यह अभयारण्य 220 से 230 उत्तरी अक्षांश और 820 से 830 पूर्वी देशांतर पर अवस्थित है। यह अभयारण्य अचानकमार, कान्हा टाइगर रिजर्व तथा बोरामदेव वन्य जीव अभयारण्य से घिरा हुआ है। यह अभयारण्य लगभग 170000 हेक्टर क्षेत्रफल में छत्तीसगढ़ राज्य के तीन जिले यथा कोरबा, सूरजपुर, और सरगुजा तक फैला हुआ है। कर्क रेखा से संयुक्त होने के कारण यह अभयारण्य उष्णकटिबंधीय वन्य परितंत्र का एक सुंदर उदाहरण है।

हसदेव अभयारण्य की जैव-विविधतात्मक विशेषताएं Biodiversity Features of Hasdeo Sanctuary

जैव विविधता से तात्पर्य किसी भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवन एवं वनस्पतियों की संख्या से है। अर्थात जैव विविधता उस विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में निवासित विभिन्न प्रकार के पौधों, वृक्षों, जीव-जंतुओं तक ही सीमित नहीं है बल्कि उसके अंतर्गत पर्यावरण को भी सम्मिलित किया जाता है जिसमें वह निवास करते हैं। 

सन 1992 रियो डी जनेरियो में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन में जैव विविधता की मानक परिभाषा सभी देशों द्वारा अपनाई गई। इस परिभाषा के अनुसार-

“विविधता समस्त स्रोतों यथा अंतरिक्ष क्षेत्रीय स्थलीय सागरीय एवं अन्य जलीय पारिस्थितिक टैटो के जीवों के मध्य अंतर और साथ ही उन सभी पारिस्थितिक समूह जिनके यह भाग हैं, मैं पाई जाने वाली विविधताएं हैं। इसमें एक प्रजाति के अंदर पाई जाने वाली विविधता विभिन्न जातियों के मध्य विविधता तथा पारिस्थितिकी विविधता सम्मिलित है।”1 इस परिभाषा के आधार पर यदि हसदेव अभयारण्य Hasdeo Sanctuary की जैव-विविधता का विश्लेषण करे तो हसदेव  अभयारण्य Hasdeo Sanctuary मध्य भारतीय उच्च भूमि हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण है। 

उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वनस्पति: Tropical Deciduous Vegetation

पर्णपाती वन्य परितंत्र के वृक्ष सामान्यतः शुष्क ग्रीष्म ऋतु में अपनी पत्तियां गिरा देते हैं ताकि वाष्पोत्सर्जन कम से कम हो सके। इस कारण इन वनों को पर्णपाती वन भी कहा जाता है।

यहाँ सागवान, शीशम, साल, बांस, महुआ आदि महत्वपूर्ण वनस्पतियां अथवा वृक्ष पाए जाते हैं।

वन्य प्राणी एवं जीव-जंतु: Wild Animal and Fauna 

Hasdeo Sanctuary अभयारण्य उष्णकटिबंधीय वनों के साथ-साथ इस पारितंत्र के विभिन्न वन्य प्राणियों के लिए भी महत्वपूर्ण है। यहाँ पाए जाने वाले वन्य प्राणियों में टाइगर भालू, जंगली सूअर, गौर, सांभर, चीतल, जंगली भैंसा, हाथी एवं बारहसिंगा आदि प्रमुख हैं।

इस अभयारण्य Hasdeo Sanctuary में पक्षियों की 82 प्रजातियां, वनस्पतियों की 200 से अधिक प्रजातियां तथा 18 से अधिक संकटग्रस्त प्रजातियां पाई जाती हैं। यह अभयारण्य अचानकमार, कान्हा टाइगर रिजर्व और बोरामदेव वन्य जीव अभ्यारण्य के बीच हाथियों का निवास और प्रवास गलियारे की भूमिका भी निभाता है।

हमें वन और वन्यजीवों का संरक्षण क्यों करना चाहिए

Hasdeo Sanctuary

IUCN सूची में हसदेव अभयारण्य के पशु पक्षी: Animals and Birds of Hasdeo Sanctuary in IUCN List

फॉरेस्ट आउलेट (Forest Owlet), सोशिएबल लैपिंग(Sociable Lapwing), स्पून बिल्ड सैंड पाइपर ( Spoon Billed Sandpiper),  चिंकारा (Chinkara, Indian Gazelle),  नीलगाय (Nilgai), फिशिंग बिल्ली (Fishing Cat),  चार सिंगो वाला मृग (Four Horned Antelope), सांभर (Sambhar), तेंदुआ (Leopard) आदि संवेदनशील वन्य प्राणी इस अभयारण्य में निवास करते हैं।

पारिस्थितिकी तंत्र बनाए रखने में हसदेव अभयारण्य की भूमिका: Role of Hasdeo Sanctuary in Maintaining the Ecosystem  

मध्य भारत के विभिन्न प्रकार के वन हो अथवा Hasdeo Sanctuary अभयारण्य उनका पारिस्थितिकी तंत्र तथा पर्यावरण को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका है। महुआ माजी द्वारा रचित उपन्यास ‘मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ में एक पात्र कहता है कि-

“वन देवता की कृपा है इस जंगल पर। आसपास के सभी जंगलों से पहले बारिश हो जाती है यहां। बरसात से पहले ही। साल के बीज गिरने के चार पहर के अंदर-अंदर। मध्य वैशाख में ही …।”2 सर्वप्रथम वर्षा होने का प्रमुख कारण मध्य भारत की भौगोलिक अवस्थिति है। 

पश्चिमी मानसून को आकर्षित करने में भूमिका: Role in attracting western monsoon:

जब पश्चिम मानसून का आगमन होता है तो अरब सागर में यह मानसून दो शाखों में विभक्त होता है। एक बंगाल की खाड़ी शाखा व दूसरी अरब सागर की शाखा। अरब सागर की शाखा में पुनः तीन शाखाओं का विभाजन होता है। 

एक शाखा पश्चिम तट पर पवनभिमुखी क्षेत्र में वर्षा करती है और दूसरी शाखा सीधे गुजरात राजस्थान होकर हिमालय में वर्षा करती है किंतु तीसरी शाखा महत्वपूर्ण है, जो नर्मदा नदी के सहारे उत्तर में सतपुड़ा पर्वत श्रेणी तथा दक्षिण में सतमाल, अजंता, गोवलीगढ़ तथा महादेव पहाड़ियों के बीच से होती हुई बंगाल की शाखा में मिलने का प्रयास करती है।

“समय पर्वत की अवस्थिति वर्ष का मुख्य निर्धारक होती है।”3

यह शाखा जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे नीचे उतरती जाती है और छत्तीसगढ़ झारखंड के साल वर्षों की लंबाई करीब 140-150 फुट होती है। 

“साल के पेड़ों में अपनी लंबाई से 6 गुना अधिक ऊंचाई तक के इलाके को ठंडा रखने की क्षमता होती है।”4 

अर्थात सालवन अपने ऊपर से गुजरते मानसून को ठंडा करके वर्षा करने हेतु मजबूर कर देते हैं। 

अतः सर्वप्रथम वर्षा छत्तीसगढ़, झारखंड में हो जाती है। कहने का तात्पर्य यह है कि मध्य भारत में साल वनों का पर्यावरणीय महत्व है क्योंकि यह सालवन मानसून को अपनी ओर आकर्षित करते हैं तथा वर्षा करवाते हैं। वर्षा अच्छी होने के कारण मध्य भारत की पारिस्थितिकी समृद्धाता और पर्यावरणीय स्थिति मजबूत बनी हुई है किंतु वर्तमान समय में इन साल वनों को काटा जा रहा है। वनों का सफाया किया जा रहा है। जिसके कारण यहां के पर्यावरण को हानि पहुंच रही है। 

हसदेव अभयारण्य क्षेत्र के आदिवासी समुदाय: Tribal communities of Hasdeo sanctuary area:

मध्य भारत की उच्च भूमि क्षेत्र, जो विद्यांचल पहाड़ियों के साथ-साथ उड़ीसा की महादेव पहाड़ियां तथा राजमल की पहाड़ियों तक विस्तृत है। इस क्षेत्र में मुख्यतः ‘मुंडा’ ‘हो’ ‘गोंड’और  ‘संथाल’ ‘खाडिया’ ‘भील’ ‘बैगा’ ‘पहाड़िया’ ‘कबूतर’ ‘मारिया’ जैसे अनेक आदिवासी समुदाय रहते हैं किंतु हसदेव अभयारण्य से जुड़े मुख्यतः दो आदिवासी समुदाय हैं। एक गोंड समुदाय और दूसरा ओरांव समुदाय तथा अन्य अनेक समुदाय इस अभयारण्य से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं।

आदिवासी समुदायों का हसदेव अभयारण्य से सांस्कृतिक जुड़ाव: Cultural connection of tribal communities with Hasdeo Sanctuary:

कहना न होगा कि आदिवासी समुदायों की जीवन शैली, उनके जीवन मूल्य तथा उनकी विश्व दृष्टि संपूर्ण रूप से पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर आधारित होती है। वे पर्यावरण को मात्र संसाधनों का भंडार नहीं मानते हैं बल्कि पर्यावरण को वे अपना जीवन आधार मानते हैं। इसीलिए उनका पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी से सांस्कृतिक जुड़ाव होता है। 

आदिवासी समुदायों के ‘पर्व एवं त्योहार’ वन परितंत्र से संबंधित होते हैं। मध्य भारतीय आदिवासी समुदायों में ‘सरहुल’ ‘खोदी’ ‘मां पर्व’ ‘सरहोई पर्व’ ‘भागो पर्व’ ‘भगोरिया पर्व’ ‘मांगे पूर्व’ आदि महत्वपूर्ण हैं।

ये सभी पर्व एवं त्योहार पर्यावरण और प्रकृति से संबंधित हैं। इन पर्वों एवं त्योहार के माध्यम से आदिवासी समुदाय पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण से अपना सांस्कृतिक संबंध जोड़ते हैं।

“करमा पर्व के द्वारा देवताओं के प्रति श्रद्धा, अपने खेती के प्रति आस्था एवं परस्पर मिलजुलकर रहने की प्रेरणा मिलती है। यह पर्व हमें आत्म संयम रखने, धर्म के अनुसार आचरण करने, महिलाओं का सम्मान करते हुए ईर्ष्या, द्वेष से दूर रहने, क्षमाशील बनाने, अपने परिश्रम से आगे बढ़ाने, अपने पूर्वजों एवं अपनी परंपराओं से प्रेरणा लेने, ईश्वर के प्रति अधिक श्रद्धा रखन तथा समाज के लिए लोगों के साथ मिलजुलकर कार्य करने की प्रेरणा देता है।”5  

‘सरगोई पर्व’ कार्तिक मास का त्यौहार है, जो मवेशियों का पर्व कहलाता है।

‘फागु पर्व’ फागुन के महीने में मनाया जाता है। इसमें सेमर के वृक्ष में पुआल बांधकर पहान द्वारा आग लगाने का रिवाज है।

आदिवासी समुदायों का हसदेव अभयारण्य से अंतर्संबंध: Interrelationship of tribal communities with Hasdeo Sanctuary:

आदिवासी समुदायों का प्रकृति एवं पर्यावरण से ऐतिहासिक,  सामाजिक, धार्मिक एवं  सांस्कृतिक अंतर्संबंध  होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि इनमें एक की भलाई दूसरे की भलाई है तथा दूसरे का विनाश पहले का विनाश है। अर्थात यदि वनों को समाप्त कर दिया जाए अथवा उन्हें कुछ हानि पहुंचती है तब आदिवासी समुदायों के जीवन मूल्य एवं सांस्कृतिक मूल्य लड़खड़ाने लगते हैं तथा उनका जीवन जो वनों एवं प्रकृति पर आधारित है, वह भी निर्बल होने लगता है। उनके जीवन जीने के वैकल्पिक संसाधन जो वनों से प्राप्त होते हैं, उनसे छीन लिया जाता है। फलत: उनका जीवन खतरे में पड़ जाता है।राजेंद्र अवस्थी द्वारा रचित उपन्यास में आदिवासी समाज की आजीविका किस प्रकार वन्य परितंत्र पर निर्भर है, चित्रित किया गया है। 

“पेट के लिए चारा तलाशते हुज़ूर! यहाँ खाने का ठिकाना कहाँ है। थोड़ा सा मक्का पैदा होता है। कुछ कुदई और कुटकी। पर चार छह माह से ज्यादा पेट नहीं चल सकता। इसलिए हम जंगल जाते हैं।”6

यदि Hasdeo Sanctuary वन्य परतंत्र का संरक्षण एवं संवर्धन होता है और उसमें आदिवासी समुदायों को अपने ऐतिहासिक अधिकार प्राप्त होते हैं, तब वन्य जीव, वन्य परितंत्र की और आदिवासी समुदाय सभी का संरक्षण, संवर्धन और विकास भी होता है किंतु यदि वन परतंत्र का ह्रास होता है तब आदिवासी समुदायों का जीवन संकट में पड़ जाता है।

पर्यावरण और आदिवासी समुदायों का अंतर्संबंध

भारत में पर्यावरण संरक्षण संबंधी प्रयास: Environmental protection efforts in India:

  • वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 The wildlife (Protection) act 1972
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 The Environment (Protection) act 1986
  • अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों को मान्यता) अधिनियम 2006 The Schedule Tribe and Other Traditional Forest Dwellers  (Recognition of Forest Rights) act 2006
  • राष्ट्रीय वन नीति 1986 National Forest Policy 1986
  • राष्ट्रीय वन्यजीव कार्यवाही योजना National Wildlife Action Plan

सामाजिक वानिकी Social Forestry, कृषि वानिकी Form Forestry, सामुदायिक वानिकी Community Forestry, सार्वजनिक वानिकी Extension Forest, संयुक्त वन प्रबंधन Joint Forest Management 

आदि अनेक सरकारी कानून अथवा विभिन्न संगठनों द्वारा विभिन्न प्रकार के पर्यावरण संरक्षण संबंधी कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं फिर भी भारतीय पर्यावरण और वन्य पारिस्थितिकी पर हमेशा संकट छाया रहता है। इसलिए स्थानीय समुदायों द्वारा विभिन्न प्रकार के आंदोलन किए जाते रहे  हैं तथा आज भी किये जा रहे हैं। इन आंदोलनों में प्रमुख हैं-

चिपको आंदोलन Chipko Movement 1974, बिश्नोई आंदोलन Bishnoi Moment, साइलेंट वैली आंदोलन Silent Veli Moment, नर्मदा बचाओ आंदोलन, अप्पिको आंदोलन, 1980 के दशक में जंगल बचाओ आंदोलन, वंद्न्या आंदोलन 1982, बलियापाल आंदोलन, गंगा बचाओ आंदोलन, मैती आंदोलन आदि अनेक आंदोलन स्थानीय समुदायों द्वारा किए जाते रहे हैं।

आज वर्तमान समय में आदिवासी समुदायों द्वारा हसदेव Hasdeo Sanctuary बचाओ आंदोलन चल रहा है।

भद्रा अभयारण्य में वन्यजीवों का व्यवहार

हसदेव अभयारण्य पर वर्तमान खतरा: Current Threats on Hasdeo Sanctuary:

हसदेव अभयारण्य Hasdeo Sanctuary दक्कन ट्रैप पर अवस्थित है जो प्राचीन गोंडवाना लैंड का भाग है। अतः इस क्षेत्र में धात्विक और अधात्विक खनिजों का भंडार है। जिसे सरकार निकालना चाहती है। 

‘भारतीय वन्यजीव संस्थान’ द्वारा प्रस्तुत की गई 200 से अधिक पृष्ठों की रिपोर्ट में कहा गया है कि हसदेव क्षेत्र तथा आसपास के क्षेत्र संबंधी पारिस्थितिकी, वन्य परतंत्र, स्थानीय समुदाय और वन्य प्राणियों के संदर्भ में यह खनिज उत्खनन कितना संकट उत्पन्न कर सकता है फिर भी सरकार द्वारा इन सारी चेतावनियों को ताक पर रख दिया गया है और किसी एक निजी कंपनी को यहां उत्खनन की निविदा प्रदान कर दी गई है।

परिणाम स्वरूप हसदेव अभयारण्य पर वर्तमान और संभावित संकट छाया हुआ है। हसदेव अभयारण्य के वन्य परतंत्र पर छाए इस संकट और संभावित संकट को टालने हेतु स्थानीय आदिवासी समुदायों द्वारा हसदेव बचाओ आंदोलन किया जा रहा है। 

निष्कर्ष:

  1. The Rio Declaration on Environment and Development 1992- www.cod.int 
  2. महुआ माजी- मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ, रामकमल प्रकाशन नई दिल्ली, प्र.सं. 2012, पृष्ठ-13
  3. महेश कुमार बर्नवाल- भूगोल एक समग्र अध्ययन, कॉस्मास पब्लिकेशन, दिल्ली, नवम. सं. 2011, पृष्ठ-236
  4. महुआ माजी- मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ, रामकमल प्रकाशन नई दिल्ली, प्र.सं. 2012,पृष्ट 13
  5. रेशमा खलको- जनजातीय महिलाएँ, क्लासिक पब्लिकेशन कंपनी, दिल्ली, प्र.सं. 2008, पृष्ठ -100
  6. राजेंद्र अवस्थी- जंगल के फूल, राजपाल एंड संस, दिल्ली, प्र.सं. 1996, पृष्ठ-91

By Dr. Rathod Pundlik

Asst. Professor

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