Animal Behaviour in Bhadra Wildlife Sanctuary भद्रा वन्यजीव अभयारण्य में प्राणियों का व्यवहार

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य का परिचय: Introduction to Bhadra Wildlife Sanctuary:

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भद्रा वन्यजीव अभयारण्य bhadra wildlife sanctuary दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक में पश्चिमी घाट का पूर्वी विस्तार है, जो जैव विविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इस अभयारण्य में वर्षा वन तथा आर्द्र पर्णपाती Moist Deciduous वन पाये जाते हैं। 

भद्र वन्यजीव अभयारण्य कर्नाटक के बांदीपुर, दंडोली अंशी, नागरहोल, बालगिरी, रंगनाथ मंदिर जैसे प्रमुख टाइगर रिजर्व में से एक है।

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य की भौगोलिक अवस्थिति: Geographical location of Bhadra wildlife Sanctuary

भौगोलिक दृष्टिकोण से भद्र वन्य जीव अभयारण्य दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य के चिकमगलूर और शिमोगा जिले में विस्तृत है।

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य 75.5° पूर्वी देशांतर से 76.00° पूरी देशांतर तथा 13.3° उत्तरी अक्षांश से 13.5° उत्तरी अक्षांश पर 500 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।

“भद्रा वन्यजीव अभयारण्य समुद्र तल से 1875 मी. (6152 फुट) ऊंचाई पर स्थित है।”1 हाबेगिरी भद्रा वन्यजीव अभयारण्य Bhadra Wildlife Sanctuary की सबसे ऊंची चोटी है।

भद्र वन्यजीव अभयारण्य चिकमगलूर से पश्चिमोत्तर की ओर 38 किलोमीटर तथा भद्रावती नदी के दक्षिण में 23 किलोमीटर की दूरी तक स्थित है।

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य का अवलोकन: Overview of Bhadra Wildlife Sanctuary

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य भौगोलिक, वनस्पति एवं वन्यजीवों की दृष्टिकोण से एक समृद्ध सुरक्षित क्षेत्र है।

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य की भौगोलिक एवं  वनस्पतिक विशेषताएँ: Geographical and botanical features of Bhadra wildlife Sanctuary

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य भारत के प्रसिद्ध हॉटस्पॉट क्षेत्र पश्चिम घाट का पूर्वी विस्तार है। इसका अधिकतर भाग पर्वतीय है तथा यहाँ वर्षावन, शुष्क पर्णपाती तथा आर्द्र पर्णपाती Moist Deciduous वन पाये जाते हैं। पर्वतीय क्षेत्र में शीतोष्ण वनस्पति भी पाई जाती है। भद्रा वन्य जीव अभयारण्य की वनस्पतियों में सागौन, साल, शीशम, चंदन जैसे शुष्क और आर्द्र पर्णपाती वृक्ष पाए जाते हैं।

भद्रा वन्यजीव अभ्यारण Bhadra wildlife sanctuary की जीवन रेखा है, भद्रावती नदी जो पश्चिमी घाट के पूर्व में कुदेरमुख के समीप गंगामूल से जन्म लेती है और भद्रा वन्यजीव अभयारण्य से प्रवाहित होती हुई तुंगभद्र नदी में मिल जाती है। तुंगभद्र नदी आगे पूर्व की ओर बहती हुई कृष्णा नदी में मिलती है और कृष्णा नदी बंगाल की खाड़ी में विलय होती है।

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य की प्रमुख वन्यजीव प्रजातियाँ: Major Wildlife Species of Bhadra Wildlife Sanctuary

देखा जाए तो भद्रा वन्यजीव अभ्यारण्य Bhadra wildlife sanctuary एक बाघ रिजर्व क्षेत्र है और यह बाघों के लिए प्रसिद्ध है। किंतु इस अभयारण्य में बाघ के अतिरिक्त 250 से अधिक स्तनधारी, सरीसृप एवं पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। 

220 से अधिक वन्यजीव प्रजातियाँ जिनमें सिंह, बाघ, हाथी, सियार, लोमड़ी, जंगली सूअर, लकड़बग्घा, खरगोश, हिरण, बारहसिंगा, चीतल, जंगली भैंस, आलसी भालू, काला तेंदुआ, जंगली बिल्ली आदि अनेक पर्यावरण, पारिस्थितिकी एवं जैव विविधता की दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण प्रजातियाँ इस अभयारण्य में निवास करती हैं।

आईयूसीएन सूची में सम्मिलित वन्य प्राणी: Wild animals included in IUCN list

शेर जैसी पूछ वाला बंदर Lion Tailed Macaque, अंडमानी जंगली सूअर Andaman wild Pig, सिस्परा डे छिपकली Sispara day Gecko, चार सिंगो वाला मृग Four Horned Antelope, तेंदुआ Leopard  और कभी-कभी मालाबार सीवेट Malabar Civet  और नीलगिरी ताहर Nilagiri Tahar के भी दर्शन हो जाते हैं।

कहना न होगा कि इन सभी प्रजातियों के बीच कई समृद्ध खाद्य श्रृंखलाएं तथा खाद्य जाल विकसित हैं। अतः इन प्रजातियों का अपने-अपने पोषण स्तर पर सबका समान महत्व है। 

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य के पारिस्थितिकी तंत्र से इन वन्यजीवों का अंतर्संबंध Interrelationship of these wildlife with the ecosystem of Bhadra Wildlife Sanctuary

“पारिस्थितिकी तंत्र एक विशेष अथवा विशिष्ट क्षेत्र होता है। जैसे वन, चारागाह, रेगिस्तान या तटीय क्षेत्र। पारिस्थितिकी तंत्र मैं जैविक और अजैविक घटकों के कार्मिक संतुलन की आवश्यकता होती है।”2

पारिस्थितिकी तंत्र को जलीय अथवा स्थलीय श्रेणी में विभाजित किया जाता है और भद्रा वन्य जीव अभयारण्य एक स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र है। 

वन्यजीवों का इस पारिस्थितिकी तंत्र से अंतर्संबंधों के परिणाम स्वरुप ही भद्रा वन्य जीव अभयारण्य एक विशिष्ट महत्व रखता है। भद्रा वन्य जीव अभ्यारण्य एक विशिष्ट परतंत्र है। इसलिए यहाँ की प्रजाति अपने विशिष्ट पारितंत्र के अनुरूप विकसित हुई है। जिसे अनुकूलन अथवा Adaptation भी कहते हैं। यह परतंत्र भारत के पश्चिमी घाट से प्रभावित है। 

जैसे हाथी को रेगिस्तान में तथा ऊंट को शीतोष्ण कटिबंधीय पारितंत्र में नहीं रखा जा सकता है क्योंकि हाथी की संरचना, व्यवहार एवं शारीरिक व्यवहार शीतोष्ण कटिबंधीय पारितंत्र के अनुरुप होता है तथा ऊंट की संरचना एवं व्यवहार रेगिस्तान पारितंत्र से अंतर्संबंधित होता है।

वन्य जीव अपने पारितंत्र से गहरे रूप से जुड़े होते हैं। पारितंत्र के अनुसार ही वन्य जीव प्रजातियाँ विकसित होती हैं। वन्यजीवों का शरीर, आकार, अंग, रंग आदि उनके अपने पारितंत्र के अनुरूप विकसित होते हैं।

जैसे मरुस्थलीय लोमड़ी के कान बड़े होते हैं क्योंकि उसे पारितंत्र में ऊष्मा विकिरण करना पड़ता है। इस प्रकार ऊष्मा बनाए रखने हेतु ध्रुवीय लोमड़ी के कान छोटे होते हैं। इस प्रकार वन्य जीवों का संपूर्ण जीवन अपने पारितंत्र के अनुरूप विकसित होता है।

इसलिए पश्चिमी घाट के वन्य जीव अपनी-अपनी विशिष्टता के कारण महत्वपूर्ण हैं और यही विशिष्टता भद्रा वन्य जीव अभ्यारण के वन्यजीवों में पाई जाती है।

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य में वन्य जीवों का व्यावहारिक अनुकूलन Behavioral adaptation of wild animals in Bhadra Wildlife Sanctuary

वन्य जीवों का अपना एक अलग और विशिष्ट संसार होता है और उन प्राणियों की क्रियाएँ तथा नियम भी अलिखित होते हैं किंतु सभी प्राणी प्रकृति के उन अघोषित नियमों का पालन करते हैं। वन्यजीवों में संरचनात्मक, व्यावहारिक तथा शारीरिक अनुकूलन की प्रवृत्ति पाई जाती है। 

व्यावहारिक अनुकूलन से तात्पर्य है कि ऐसा अनुकूलन जो वन्यजीवों के व्यवहार कार्य एवं उसकी जीवन शैली को सकारात्मक रूप से प्रभावित करें।

अनुकूलन अनुवांशिक रूप से तथा उसे सीख कर भी प्राप्त किया जा सकता है। जैसे उपकरण प्रयोग, भाषा, प्रवास, स्वर तथा विभिन्न क्रियाओं के माध्यम से। जैसे भालू सर्दी के मौसम में बहुत सोते हैं तो कुछ पक्षी जैसे ‘सारस’ पक्षी साइबेरिया के शीत प्रदेशों से उष्ण प्रदेशों की ओर प्रवास करते हैं। इसी प्रकार मरुस्थलीय जीव गर्मी के समय रात में ही बाहर निकलते हैं। इस प्रकार के व्यवहार को सुरक्षात्मक अनुकूलन भी कहते हैं। 

भद्रा वन्य जीव अभयारण्य Bhadra wildlife sanctuary हो अथवा अन्य कोई भी विशिष्ट पारितंत्र हो जिनके मांसाहारी तथा शाकाहारी प्राणियों में भोजन प्राप्त करने की अपनी एक विशिष्ट अनुकूलता होती है तथा इन प्राणियों में अपने युग्म को आकर्षित करने की अनुकूलता होती है। कहना न होगा कि प्राणियों में अधिकतर शारीरिक एवं व्यावहारिक अनुकूलता ही होती है। 

व्यावहारिक अनुकूलता कई प्रकार की हो सकते हैं जैसे प्रवास, छद्मावरण, सुरक्षात्मक व्यवहार, शीत निष्क्रियता एवं ग्रीष्म निष्क्रियता आदि।

प्रवासीय व्यवहार: Migration Behaviour

प्रवासीय व्यवहार में लंबी अथवा कम दूरी हो सकती है।

जैसे भारत में हाथी अनेक हाथी गलियारें विद्यमान हैं। जिसमें हाथी लंबी-लंबी दूरियाँ तय करते हैं।

इस प्रकार साइबेरियन क्रेन शीतकाल में भारतीय उपमहाद्वीप की ओर प्रवास करते हैं।

कहना न होगा कि भद्रा वन्य जीव अभयारण्य Bhadra wildlife sanctuary पश्चिमी घाट का पूर्वी विस्तार है। इसलिए इस अभयारण्य में प्रवासीय व्यवहार स्वाभाविक रूप से होता है। पश्चिमी घाट के विभिन्न वन्य प्राणी इस अभयारण्य में प्रवासीय रूप में आते हैं तथा इस अभयारण्य के स्थानीय प्राणी पश्चिमी घाट के अन्य अभयारण्यों में प्रवास करते हैं। जैसे कभी-कभी नीलगिरि ताहर एवं मालाबार सीवेट इस अभयारण्य में दृष्टिगोचर हो सकते हैं।

सुरक्षात्मक व्यवहार: Protective Behaviour

आंधी, तूफान, तेज हवा के समय वन्य प्राणी बड़े-बड़े वृक्षों के नीचे खड़े नहीं होते हैं क्योंकि बड़े वृक्षों पर बिजली गिरने की संभावना होती है। इस बात से वन्य प्राणी वाकिफ होते हैं। फलत: वे खुले में या किसी छोटे पेड़ के आश्रय में खड़े होते हैं तथा कुछ गुफाओं में शरण लेते हैं। 

“सांभर और छोटे हिरन के झुंड चुपचाप खड़े नजर आते हैं। पानी में भीगते हुए वे बहुत निरीह लगते हैं। वे ऐसे वक्त पर रमिल को बड़े मासूम लगते हैं, उन्हें सताने का मन नहीं करता है”3

शाकाहारी प्राणी जैसे हिरन का समूह अपनी सुरक्षात्मक व्यवहार में हमेशा एक समूह बनाकर रहते हैं और जब उन पर कोई संकट आ जाता है तब पूरा समूह मिलकर विरोधी पर हमला करते हैं।

Bhadra Wildlife Sanctuary

छद्मावरण का व्यवहार: kamouflag Behaviour 

छद्मावरण अर्थात परिवेश के साथ घुलमिल जाने की क्षमता है। कुछ छोटी प्रजातियाँ जैसे कीड़ों, सरीसृपों तथा स्तनधारी के शरीर पर कुछ ऐसे चिन्ह होते हैं, जिनके फल स्वरुप वह किसी वृक्ष पर या वृक्षों के पत्तों अथवा पौधों में उनकी पहचान कठिन हो जाता है। जैसे तेंदुआ, तितली, गिरगिट आदि।

शीत निष्क्रियता एवं ग्रीष्म निष्क्रियता: 

जो प्राणी अत्यधिक शीत अथवा ग्रीष्म ऋतुओं में प्रवास नहीं कर सकते हैं, उन प्राणियों में विशेष अनुकूलन की प्रवृत्ति होती है कि वह स्वयं शारीरिक रूप से निष्क्रिय Dorment अवस्था में चले जाते हैं।

ग्रीष्म निष्क्रियता के प्राणी: मगरमच्छ, केचुआ, सैलामैडर

शीत निष्क्रियता के प्राणी: चमगादड़, कंगारू, रोडेंट भालू

भोजन की प्रवृतियाँ और भोजन खोजने की रणनीतियाँ Food habits and foraging strategies

वन्य प्राणी अपनी जीवन प्रक्रिया में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कई बुद्धिमत्ता पूर्ण व्यवहार करते हैं और यह व्यवहार उनको प्रकृति द्वारा प्राप्त शक्तियों के अनुरूप होता है। 

प्रकृति से सभी जीव जंतुओं एवं प्राणियों को कुछ विशिष्टताएँ और कुछ सीमाएँ तथा कुछ शक्तियाँ प्राप्त हैं।

जैसे शिकार करने वाले प्राणी बाघ, शेर देखने एवं सुनने में बहुत तेज होते हैं। वे बहुत दूर तक देख सकते हैं और हल्की सी आहट पर दूर खड़े प्राणियों को पहचान लेते हैं कि वह बड़ा है अथवा छोटा। उनके कान की क्षमता बहुत होती है किंतु प्रकृति ने शिकार करने वाली प्राणियों की एक सीमा भी रखी है। वह सीमा यह है कि वह सुनने की क्षमता में अन्य प्राणियों की तुलना में कम क्षमता रखते हैं।

शिकार होने वाले प्राणी देखने, सुनने और गंध लेने तीनों क्षमता में तेज होते हैं किंतु उनकी भी एक सीमा होती है कि वह शेर अथवा बाघ के शरीर की गंध नहीं पहचान पाते हैं क्योंकि बाघ अथवा शेर के शरीर की गंध होती ही नहीं है। 

शाकाहारी प्राणी जो समूह में रहते हैं उनकी भोजन खोजने की रणनीतियाँ: Strategies for finding food for herbivorous animals that live in groups

ये प्राणी सामान्यतः झुंड में विचरण करते हैं। जैसे हिरनों के समूह का नेतृत्व नर प्राणी करते हैं और  वे सबसे आगे चलते हैं। कुछ नर प्राणी पीछे की सुरक्षा पंक्ति को संभालते हैं और बीच में मादा प्राणी तथा उनके मृग छौना चलते हैं।

जब यह समूह चारा चरने लगता है तब नर प्राणी चारों ओर से एक सुरक्षा पंक्ति का निर्माण करते हैं और आने वाले संभावित संकटों का निरीक्षण करते हैं। 

वन्य प्राणी अथवा शेर, बाघ आदि मांसाहारी अथवा शाकाहारी श्रेणी के प्राणी निर्वाह प्रक्रिया के आधार पर अपना जीवन जीते हैं। अर्थात वे प्रकृति के अलिखित और अघोषित नियमों का पालन करते हैं।

बाघ द्वारा प्राकृतिक नियमों का पालन: Natural laws followed by the Tiger:

जब तक शिकारी प्राणियों के पास खाने को कुछ है तब तक वह शिकार अथवा संग्रह नहीं करते हैं। यदि शेर का अथवा बाघ का पेट भरा हो तो उनके सामने यदि हिरण भी जाए वह उसका शिकार नहीं करेगा। 

“जब तक उनके पास शिकार का मारा बचा रहता है, वह दूसरा शिकार नहीं करते हैं।”4

बाघ को जब शिकार करना होता है तब वह अन्य सभी प्राणियों को सावधान कर देता है कि जो अपनी आत्मरक्षा करना चाहता है वह अवश्य कर ले। अतः वह शिकार के पूर्व दहाड़ता है। 

“जिस दिन उसका संचित शिकार खत्म हो जाता है और उन्हें जोरों की भूख लगती है उस दिन शाम को वह पूरे जंगल को कंपाकर गरजते हैं और समूचे जंगलवासियों को आगाह कर देते हैं कि आज जंगल के राजा को भूख लगी है। वह शिकार करने निकल रहा है। सभी सावधान हो जाए।”5

इस प्रकार अभयारण्य में अनेक पूर्व संकेत विद्यमान है। 

टिटहरी द्वारा अपना कर्तव्य पालन: Performance of duties by the Titular:

जब भी शेर अथवा बाघ शिकार करने हेतु निकलते हैं तब उसके आगे-आगे टिटहरी अपनी आवाज करती हुई वन्य प्राणियों को सावधान करती हुई उस बाघ के आगे-आगे चलती रहती है। यह उस टिटहरी का प्राकृतिक कर्तव्य है।

ऐसा इसलिए है क्योंकि प्राकृतिक वन्य प्राणियों में प्रकृति द्वारा स्थापित अघोषित कानून हैं कि पृथ्वी पर सभी जीव जंतुओं का समान अधिकार है। अतः आत्मरक्षा का अवसर सभी को मिले। यदि वे शेर अथवा बाघों से बचना चाहते हैं तो टिटहरी का संकेत पाकर अपने आप को बचा सकते हैं। 

“यह टिटहरी जमीन पर बैठी रहती है, बाबू साहब! शेर को गुजरते देखकर टिटहरी चिल्लाती हुई शेर के आगे-आगे चलती है। …यदि मैं संकेत पाकर गाड़ी न रोकता तो आज हम जान से हाथ धो लिए होते।”6

बाघ अथवा शेर द्वारा अपनाई जाने वाली शिकार करने की रणनीतियाँ: Hunting strategies adopted by Tiger or Lion

बाघ अथवा शेर जब शिकार करने निकलते हैं तब टिटहरी सभी वन्य प्राणियों को सावधान कर देती है। फिर भी बाघ इन सावधानियों के बावजूद भी अपना शिकार कर लेता है। यह उसकी रणनीतियों का परिणाम होता है। 

वन्य प्राणियों में सर्वाधिक चालक प्राणी बाघ और शेर ही होते हैं। शेर अथवा बाघ के शरीर की गंध नहीं होती है। अतः यदि बाघ अथवा शेर शिकार होने वाले प्राणियों को देखने व सुनने की क्षमता को भुला दे तो वे प्राणी आसानी से शिकार हो जाते हैं। बाघ और शेर इसी रणनीति को अपनाते हैं। बाघ और शेर बहुत ही दक्षता, सूक्ष्म और बुद्धिमत्ता के साथ शिकार करते हैं। पहले तो वे दूर से आकर के आधार पर शिकार को निश्चित करते हैं। 

चुनाव के समय वह हमेशा “कमजोर वह मोटे तगड़े के बीच हमेशा मोटे तगड़े को ही चुने की कोशिश करते हैं ताकि ज्यादा दिनों तक उसे अपना पेट भर सके।”7

शिकार चुनाव के पश्चात बाघ हवा की दिशा की मदद लेता है। वह जानता है कि दूर खड़ा शिकार उसके गंध से निश्चिंत है कि वह उनसे एक सुरक्षित दूरी पर है…कि जितनी दूरी से वह उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। अब बाघ शिकार के उस भरोसे को और पुख्ता करने हेतु उसी जगह उलट-पुलट कर खेलना आरंभ करता है। गर्जना करता है और इस बीच शिकार उसे दूर से देखता रहता है। 

बाघ उसे छकाने अथवा चिंतामुक्त करने का प्रयास करता है कि हम अभी भी तुमसे दूर हैं। फिर कुछ समय शांत होकर फिर गर्जना करता है कि देखो अभी भी हम यही हैं। तुम निश्चिंत रहो, मैं थोड़ी देर के लिए शांत हो गया तो भी यही हूँ। अतः तुम्हें भागने की आवश्यकता नहीं है। फिर अचानक हवा के रुख की मदद लेते हुए बिजली के वेग से छलांग लगाकर पीछे की ओर से शिकार पर हमला बोल देता है। 

इस प्रकार चतुराई और बुद्धिमत्ता पूर्ण व्यवहार हमें वन्य प्राणियों में देखने को मिलते हैं। 

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य की पारिस्थितिकी में इन वन्यजीवों का महत्व: Importance of these wildlife in the ecology of Bhadra Wildlife Sanctuary

पारिस्थितिकी तंत्र एक ऐसी इकाई है जिसमें जैविक, अजैविक तथा विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक चक्र का उचित संतुलन आवश्यक होता है क्योंकि यदि किसी एक चक्र अथवा प्रजाति की स्थिति संकट में पड़ती है तब धीरे-धीरे उस पारितंत्र का ह्रास होने लगता है। अर्थात पारितंत्र में जैविक, अजैविक घटक तथा विभिन्न प्राणियों के बीच एक की समृद्धि दूसरे का विकास तथा दूसरे की समृद्धि पहली प्रजाति को बल प्रदान करता है। अतः इन सभी वन्य प्रजातियों में अन्योन्याश्रित संबंध होता है। 

पारिस्थितिकी तंत्र को स्वास्थ्य एवं समृद्ध बनाए रखने में वन्य जीवों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह भूमिका खाद्य श्रृंखलाओं एवं खाद्य जालों के रूप में परिलक्षित होती हैं। 

जिस पारितंत्र में विकसित खाद्य श्रृंखलाएँ तथा खाद्य जाले होती हैं वह पारितंत्र समृद्ध और विविधता पूर्ण होता है। इसमें वन्यजीवों की सर्वाधिक भूमिका होती है। क्योंकि वह खाद्य श्रृंखलाओं एवं खाद्य जालों के विभिन्न पोषण स्तरों पर ऊर्जा प्रवाह में भूमिका निभाते हैं। 

जैसे पौधा-हिरण-शेर इस प्रकार प्रत्येक स्तर पर ऊर्जा का एकदिशीय संरक्षण होता रहता है और यह होना भी आवश्यक है। इन प्रजातियों की विविधता एवं खाद्य श्रृंखलाओं का सुचारू रूप से चलते रहना ही पारिस्थितिकी तंत्र की जैव विविधता को बल प्रदान करता है।

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य की जैव विविधता में विभिन्न वन्य प्रजातियों का योगदान: Contribution of various wild species in the biodiversity of Bhadra Wildlife Sanctuary

जैव विविधता से तात्पर्य है, पृथ्वी पर पाए जाने वाले पेड़, पौधों एवं जीव जंतुओं की विविधता। 1992 में रियो डी जेनेरियो में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन द्वारा जैव विविधता की सर्वसम्मत परिभाषा अपनाई गई जिसके अनुसार-

“जैव विविधता समस्त स्रोतों यथा अंतर क्षेत्र स्थलीय सागरीय एवं अन्य जलीय पारिस्थितिक तंत्रों के जीवों के मध्य अंतर और साथ ही उन सभी पारिस्थितिक समूह जिनके यह भाग हैं, में पाई जाने वाली विविधताएँ हैं। इसमें एक प्रजाति के अंदर पाई जाने वाली विविधता, विभिन्न जातियों के मध्य विविधता तथा पारिस्थितिकी विविधता सम्मिलित है।”8

विभिन्न प्रजातियाँ जैव विविधता को समृद्ध बनाने हेतु अनुवांशिक, प्रजाति, सामुदायिक तथा पारितांत्रिक रूप में अपना योगदान देती हैं। 

अनुवांशिक विविधता में योगदान Contribution to genetic diversity

पर्यावरण में वनस्पति जीव जंतु तथा विभिन्न प्रजातियों में परिवर्तन होते रहता है। साथ-साथ ये प्रजातियाँ अपने आप को अनुकूलित करने हेतु स्वयं में परिवर्तित करती रहती हैं। जिसे अनुवांशिक विविधता कहते हैं। 

अनुवांशिक विविधता बढ़ाने के साथ विभिन्न प्रजातियों की उनकी अपनी जातियों में परिवर्तन उस प्रजाति की अनुकूलता को बढ़ावा देती है। यदि अनुवांशिक विविधता कम होती है तो विभिन्न जातियों में समानता दिखाई देने लगती है।

प्रजातीय विविधता में योगदान: Contribution to racial diversity

किसी पारिस्थितिकी तंत्र में विद्यमान प्रजातियों की अनेकता ही प्रजातीय विविधता है। अर्थात समुदायों की विभिन्न किस्म की विद्यमानता।

प्रजातियों की संख्या पारिस्थितिकी तंत्र के आकार के अनुरूप बढ़ती है और प्रजाति की संख्या बढ़ने का अर्थ है जैव विविधता में वृद्धि और पारिस्थितिकी तंत्र यदि सिकुड़ने लगता है तो जैव विविधता में भी कमी आने लगती है।

सामुदायिक विविधता में योगदान: Contribution to community diversity

पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न प्रकार के आवास होते हैं। जैसे घास के मैदान, पर्वतीय, झील, मरुस्थल क्षेत्र, उष्णकटिबंधीय वर्षा वन आदि। इन आवासों में विभिन्न प्रकार की प्रजातियाँ एक साथ निवास करती हैं और एक दूसरे को प्रभावित भी करती हैं। प्रत्येक आवास की पर्यावरणीय दशाएँ भिन्न-भिन्न होती हैं। फलत: जीव, जंतु, पेड़, पौधों में तथा उनके प्रजातियों में भी विभिन्नताएँ पाई जाती हैं।

यही कारण है कि भद्रा वन्य जीव अभयारण्य में पश्चिमी घाट की विशेषताएं और जैव विविधता का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य के संरक्षण की चुनौतियाँ:Challenges of conservation of Bhadra Wildlife Sanctuary

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य Bhadra wildlife sanctuary को संरक्षित करने के कार्य में विभिन्न चुनौतियाँ विद्यमान हैं। इन चुनौतियों में वनाग्नि, ईंधन हेतु लकड़ियों की मांग, वनों का चारागाह के रूप में परिवर्तित होना, विदेशी प्रजातिओं का आक्रमण, आवासों का समाप्त होना, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, मानव द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित दोहन, वन्य प्राणियों के अवैध शिकार, उनकी तस्करी तथा मानव वन्यजीव संपर्क आदि प्रमुख हैं। अत: हमे इन चुनौतियों से निपटने हेतु सम्मिलित एवं संगठित रूप से सक्रिय भूमिका निभाने के आवश्यकता है।

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य को संरक्षित करने के प्रयास: Efforts to preserve Bhadra Wildlife Sanctuary:

कर्नाटक सरकार द्वारा इसे वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया है।

वन्यजीव अभयारण्य में कुछ अपवादों के साथ मानव क्रियाओं तथा पर्यटन की अनुभूति होती है किंतु मानव को यहाँ बसने की अनुमति नहीं होती है।

वन्यजीव अभयारण्य की घोषणा किसी विशिष्ट प्रजाति के संरक्षण हेतु की जाती है।

केंद्र सरकार द्वारा भद्रा वन्यजीव अभयारण्य को प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है।

प्रोजेक्ट टाइगर Project Tiger

भारत में बाघों की घटती संख्या को देखते हुए केंद्र सरकार द्वारा 1973 में संरक्षण के प्रयास शुरू किए गए।प्रोजेक्ट टाइगर केंद्र सरकार द्वारा संचालित योजना है जो क्रोड और बफर संरक्षण रणनीति पर आधारित है।

भारत में बाघ संकटग्रस्त प्रजातियों में से एक है। 2014 के आंकड़ों के अनुसार भारत में कुल 2226 बाघ थे। अब यह संख्या बढ़कर लगभग 3000 के आसपास तक पहुंच गई है।

भारतीय वन्यजीव अधिनियम 1972 के तहत भारत सरकार द्वारा भारत में कुल 50 से भी अधिक टाइगर रिजर्व क्षेत्र की स्थापना की गई है। इन टाइगर रिजर्व क्षेत्रों में भद्रा वन्यजीव अभयारण्य भी एक है।

प्रोजेक्ट टाइगर का उद्देश्य संकटग्रस्त प्रजातियों के साथ-साथ उसे क्षेत्र के आस-पास निवासित जनजातीय लोगों के अधिकारों को भी मान्यता प्रदान करना है।

राष्ट्रीय टाइगर संरक्षण प्राधिकरण National Tiger Conservation Authority

यह एक संविधिक निकाय है जो पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत है। यह वन्य जीव अधिनियम 1972 (2006 में संशोधित) के तहत कार्य करता है। इस प्राधिकरण के निम्नलिखित कार्य हैं।

राज्य की टाइगर संबंधी योजनाओं को मंजूरी प्रदान करना।

संरक्षण में लगे कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना।

संरक्षण उपाय के विभिन्न कौशल विकास के कार्यक्रमों तथा नवाचार के कार्यक्रमों को चलाना।

गुणात्मक सुधार के लिए सूचनाएँ प्रदान करना।

निष्कर्ष:

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य Bhadra wildlife sanctuary कर्नाटक का प्रमुख जैव विविधता पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र है। जो सरकार द्वारा बाघ रिजर्व क्षेत्र के रूप में संरक्षित है। भद्रा वन्यजीव अभयारण्य पर पश्चिमी घाट की वनस्पतियों एवं वन्यजीवों का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है।

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य के वन्य प्राणी प्राकृतिक रूप से अपने पारितंत्र के अनुकूल व्यवहार करते हैं। सभी वन्य प्राणियों में कुछ विशेषताएँ हैं तो कुछ सीमाएँ भी हैं। ये वन्य प्राणी अपनी इन विशेषताओं एवं सीमाओं के अनुरूप व्यवहार करते हैं। 

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य के इन प्राणियों के व्यवहारों में प्रवासीय व्यवहार, सुरक्षात्मक व्यवहार, छद्मावरण व्यवहार, शीत एवं उष्ण निष्क्रियता, भोजन संबंधी व्यवहार आदि प्रमुख हैं। जिसमें सर्वाधिक आश्चर्यजनक व्यवहार बाघ द्वारा किया जाने वाला शिकार है।

भद्रा वन्यजीव अभयारण्य में निवासित वन्य प्राणियों का पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में तथा जैव विविधता को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका है।

अतः हमें इस अमूल्य वन्यजीव अभयारण्य को सुरक्षित रखने हेतु प्रयास करने चाहिए तथा सरकार द्वारा निर्धारित नीति और नियमों का पालन करना चाहिए।

हसदेव अभयारण्य Hasdeo Sanctuary

पर्यावरण से आदिवासी समुदायों का अंतर्संबंध Interrelationship of tribal communities with the environment

संदर्भ ग्रंथ:

  1. https://hi.m.Wikipedia.org
  2. MM गोयल, पर्यावरण संरक्षण की महत्ता, अनुप्रिया पब्लिकेशन हाउस जयपुर, प्रथम संस्करण 2001, पृष्ठ-23
  3. महुआ माजी, मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ, राजकमल प्रकाशन दिल्ली, प्रथम संस्करण 2012, पृष्ठ- 61
  4. महुआ माजी, मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ, राजकमल प्रकाशन दिल्ली, प्रथम संस्करण 2012, पृष्ठ- 58 
  5. महुआ माजी, मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ, राजकमल प्रकाशन दिल्ली, प्रथम संस्करण 2012, पृष्ठ- 58
  6. देवेंद्र सत्यार्थी, रथ के पहिए, प्रवीण प्रकाशन दिल्ली प्रथम संस्करण 1953, पृष्ठ-74 
  7. महुआ माजी, मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ, राजकमल प्रकाशन दिल्ली, प्रथम संस्करण 2012, पृष्ठ- 62
  8. https://en.m.Wikipedia.org 

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