मैंग्रोव ऐसे वृक्ष होते हैं, जो पृथ्वी पर जल मंडल और स्थलमंडल के संगम पर विकसित होते हैं। ये वृक्ष उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों, ज्वारनदमुखों, ज्वारीय कीक्र, पश्चजल क्षेत्रों, लैगून, पंख जमाव के क्षेत्रों में विशेष रूप से पाए जाते हैं।
मैंग्रोव वन क्या हैं? What is the Mangrove Forest
ऐसा माना जाता है कि मैंग्रोव वनों का सर्वप्रथम उद्गम भारत में ही हुआ था क्योंकि आज भी भारतीय क्षेत्र में विश्व की सभी प्रकार की मैंग्रोव प्रजातियाँ पाई जाती है। मैंग्रोव वृक्ष न केवल खारे पानी में उग सकते हैं बल्कि ये वृक्ष ताजा पानी में भी उग सकते हैं लेकिन इन वृक्षों का विकास खारे पानी में अच्छी तरह होता है बल्कि ताजे पानी में ये वृक्ष अधिक विकास नहीं कर पाते हैं और बौनें रह जाते हैं।
किसी मैंग्रोव वनों में प्रजातियों की विविधता तथा विकास खारे पानी का क्षेत्र तथा वहाँ का तापमान इन कारकों पर निर्भर करता है।
NASA की Earth Observatory के अनुसार “मैंग्रोव वन आमतौर पर पेड़ों, झाड़ियों और ताड़ के पेड़ों से बने होते हैं, जो उच्च लवणता, गर्म हवा और पानी के तापमान, अत्यधिक ज्वार, कीचड़, तलछट युक्त पानी और ऑक्सीजन-रहित मिट्टी की कठोर परिस्थितियों के लिए अनुकूलित होते हैं। वे कई समुद्री प्रजातियों के लिए उपजाऊ नर्सरी हैं और लहर और पवन ऊर्जा को नष्ट करके तूफान और सुनामी के खिलाफ रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में भी काम करते हैं।” earthobservatory.nasa.gov
NASA की Earth Observatory अपने मानचित्र के आधार पर वैश्विक स्तर पर मैंग्रोव वनों के परिदृश्य के संदर्भ में लिखते हैं कि “ये मानचित्र मैंग्रोव के स्थान और सापेक्ष घनत्व को दर्शाते हैं, जो पृथ्वी की सतह के अनुमानित 137,760 वर्ग किलोमीटर (53,190 वर्ग मील) क्षेत्र को कवर करते हैं। ऐसे तटीय वन 118 देशों और क्षेत्रों में पाए जा सकते हैं, हालाँकि उनका लगभग 75 प्रतिशत क्षेत्र केवल 15 देशों में होता है। वे अक्सर 25° उत्तर और दक्षिण अक्षांश के बीच भूमध्य रेखा पर पाए जाते हैं। दुनिया के लगभग 42 प्रतिशत मैंग्रोव एशिया में पाए जाते हैं, 21 प्रतिशत अफ्रीका में, 15 प्रतिशत उत्तरी और मध्य अमेरिका में, 12 प्रतिशत ऑस्ट्रेलिया और ओशिनिया के द्वीपों में और 11 प्रतिशत दक्षिण अमेरिका में पाए जाते हैं।” earthobservatory.nasa.gov
आप यहाँ वृक्षों पर अम्लीय वर्षा के नकारात्मक प्रभाव के संदर्भ में पढ़ सकते हैं।
मैंग्रोव वृक्षों के प्रकार और मैंग्रोव वन का पर्यावरण: Types of Mangrove Trees and Environment of Mangrove Forest
विश्व में सभी प्रकार के विभिन्न क्षेत्रों में मैंग्रोव वृक्षों की पच्चास से भी अधिक प्रजातियाँ पायी जाती हैं किंतु मोटे तौर पर मैंग्रोव वृक्षों को कुल चार प्रकारों में विभक्त किया जाता है। लाल मैंग्रोव, काला मैंग्रोव, श्वेत मैंग्रोव तथा बटनवुड मैंग्रोव। लाल, काला और श्वेत मैंग्रोव प्रजाति को फ्लोरिडा की मूल प्रजाति माना जाता है।
लाल मैंग्रोव वृक्ष: Red Mangrove Tree
लाल मैंग्रोव वृक्ष की श्रेणी में वे पौधें या वृक्ष आते हैं, जो बहुत अधिक क्षारीय जल को सहन कर सकते हैं। यह वृक्ष समुद्र के समीप पाए जाते हैं। इन वृक्षों में भी अन्य मैंग्रोव वृक्ष के समान रूपांतरित जड़ें होती हैं। ये रूपांतरित जड़ें वृक्ष के तने के निचले भाग से निकलती हुई धरती तक पहुंचती हैं और उस वृक्ष को विभिन्न रूप से सक्षम बनाती हैं। इसीलिए इन जड़ों को क्षमता प्रदान करने वाली जड़ें भी कहा जाता है। ये जड़ें वृक्ष को ऐसी क्षमता प्रदान करती हैं, जिससे वह वृक्ष जहाँ कम ऑक्सीजन पाया जाता है, वहाँ भी विकसित हो सकता है क्योंकि ये जड़ें ऊपर जाकर वातावरण से ऑक्सीजन ग्रहण करती है और उस वृक्ष को प्रदान करती हैं, जिसके फल स्वरुप वह वृक्ष पोषण तत्वों को प्राप्त करता है।
अमेरिका की संस्था National Wildlife Federation के अनुसार “लाल मैंग्रोव, जो चौड़ी पत्ती वाले सदाबहार पेड़ हैं, आसानी से अपनी उल्लेखनीय जमीन के ऊपर की जड़ों से पहचाने जाते हैं, जो हवा को उनकी जलयुक्त जमीन के नीचे की जड़ों तक पहुंचाते हैं। उष्ण कटिबंध में, लाल मैंग्रोव 80 फीट (24 मीटर) से अधिक ऊंचाई तक बढ़ते हैं। हालाँकि, अमेरिका में, पेड़ शायद ही कभी 20 फीट (6 मीटर) से अधिक बढ़ते हैं, जो उन्हें झाड़ी जैसा दिखता है।” www.nwf.org
काला मैंग्रोव वृक्ष: Block Mangrove Tree
काला मैंग्रोव वृक्ष की श्रेणी में ऐसे वृक्ष को सम्मिलित किया जाता है, जो खारे पानी को सहन कर सकते हैं लेकिन इन वृक्षों में एक विशेष प्रकार की जड़ होती है, जिन्हें श्वसन जड़ें कहते हैं। इन श्वसन जड़ों के कारण ये मैंग्रोव वृक्ष दलदली भूमि में विकसित होने में सक्षम होते हैं। इन वृक्ष की एक विशेष संरचना होती है, जिसे वातरंध्र (लैन्टिकल्स) कहते हैं। यह संरचना बाहरी वातावरण एवं विभिन्न गैसों से उस वृक्ष का संबंध बनाती है। इस संरचना में वायु का प्रवेश वयवमूलों (न्यूमेटोफोर्स) से होता है।
Florida department of environmental protection के अनुसार “काले मैंग्रोव की पहचान कई उंगली जैसे प्रक्षेपणों से की जा सकती है, जिन्हें न्यूमेटोफोरस कहा जाता है, जो पेड़ के तने के चारों ओर मिट्टी से निकलते हैं। काले मैंग्रोव की पत्तियाँ आयताकार, ऊपर से चमकदार हरी और नीचे की तरफ छोटे घने बालों से ढकी होती हैं। काले मैंग्रोव आमतौर पर लाल मैंग्रोव से थोड़ी अधिक ऊंचाई पर पाए जाते हैं।” floridadep.gov
श्वेत मैंग्रोव वृक्ष: White Mangrove Tree
श्वेत मैंग्रोव वृक्षों की जड़ों एवं पत्तियों की एक विशेष बनावट होती है, जिसके कारण इन वृक्षों को स्पष्ट रूप से पहचाना जा सकता है। श्वेत मैंग्रोव वृक्ष की चिकनी सफेद खाल के कारण इन्हें श्वेत नाम दिया जाता है।
Florida department of environmental protection के अनुसार “सफेद मैंग्रोव में लाल और काले मैंग्रोव की तरह कोई दृश्यमान हवाई जड़ प्रणाली नहीं होती है। सफेद मैंग्रोव की पहचान करने का सबसे आसान तरीका पत्तियाँ हैं। पत्तियाँ 3 इंच तक लंबी, अण्डाकार (दोनों सिरों पर गोल), पीले रंग की होती हैं और प्रत्येक पत्ती के ब्लेड के आधार पर जहाँ तना शुरू होता है, वहाँ दो विशिष्ट ग्रंथियाँ होती हैं। सफेद मैंग्रोव आमतौर पर लाल या काले मैंग्रोव की तुलना में अधिक ऊंचाई पर और अधिक दूर स्थित होते हैं।” floridadep.gov
मैंग्रोव वृक्ष का यह प्रकार श्वेत मैंग्रोव वृक्ष के समान ही होता है किंतु इन वृक्षों का जो फल होता है, उसका रंग लाल भूरा होता है तथा उन फलों का आकार त्रिकोण जैसा होता है। ये वृक्ष बड़े-बड़े नहीं होते हैं बल्कि ये एक प्रकार की झाड़ियाँ होती हैं। University of the Virgin Islands के एक शोध पत्र के अनुसार “बटनवुड मैंग्रोव एक सहयोगी मैंग्रोव है; इसे वास्तविक मैंग्रोव के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है, लेकिन आम तौर पर यह उन क्षेत्रों में पाया जाता है, जहाँ मैंग्रोव उगते हैं। वे मैंग्रोव की तीनों वास्तविक प्रजातियों की तुलना में अधिक अंतर्देशीय बढ़ते हैं और इस वजह से, वे हवाओं, प्रदूषण और तूफान के लिए उत्कृष्ट बफर सिस्टम हैं।” uvi.edu
मैंग्रोव वनों का महत्व: Importance of Mangrove Forest
सयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन के वानिकी प्रभाग के निदेशक मैंग्रोव वनों के व्यापक महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि “सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने, तटीय समुदायों के लिए भोजन और आजीविका प्रदान करने, प्राकृतिक आपदाओं के खिलाफ हमारी तटरेखाओं की रक्षा करने, कार्बन का भंडारण करने, जलवायु परिवर्तन को कम करने और जैव विविधता की एक असाधारण श्रृंखला को बनाए रखने में मैंग्रोव की महत्वपूर्ण भूमिका है।” www.fao.org
पारिस्थितिकी को बढ़ावा देने में भूमिका: Role in promoting ecology
मैंग्रोव वन पारिस्थितिक रूप से तटीय भूमि को उपजाऊ बनाते हैं। मैंग्रोव वृक्षों की जड़े व्यापक रूप से फैली होती हैं। इसलिए मैंग्रोव वन मृदा अपरदन को रोकते हैं। विभिन्न प्रकार के वृक्षों की पत्तियाँ झड़ जाती हैं, तो वे सड़कर मिट्टी को उपजाऊ बनती हैं। मैंग्रोव वनों का विकास समुद्र किनारे होता है, इसलिए जब भी समुद्र में चक्रवात विकसित होते हैं, तब मैंग्रोव वन प्रथम सुरक्षा पंक्ति के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समुद्र से आने वाली तेज हवाओं ज्वार तथा भाटा की स्थिति में और तूफानी लहरों के समय तटीय समुदायों तथा कृषि को सुरक्षा प्रदान करते हैं। मैंग्रोव वन तरंग ऊर्जा को भी बढ़ावा देते हैं।
समुद्री ज्वार भाटा के समय महत्वपूर्ण भूमिका: Important role during fluctuations of sea tides
मैंग्रोव वृक्षों की जड़ें व्यापक रूप से फैली होने के कारण प्रतिदिन समुद्र में होने वाली हलचलों के समय तथा ज्वार-भाटा के समय आने वाली तरंगों एवं लहरों को सहन करने की क्षमता इन वृक्षों में होती है। विश्व के अधिकांश मैंग्रोव वन दिन में कम से कम दो बार ज्वार के कारण आनेवाली से जीव-जंतुओं, जैव विविधता और तटीय मानव गतिविधियों की रक्षा करते हैं।
जल को शुद्ध करने में भूमिका: Role in purifying water
मैंग्रोव वृक्ष अपवाह से पोषक तत्वों को अवशोषित करते हैं, इसके फलस्वरुप पानी की गुणवत्ता में सुधार होता है और शैवाल तटों का विकास होता है। हम यह भी जानते हैं कि शैवाल तट जैव विविधता की दृष्टि से समृद्ध होते हैं।
ब्लू कार्बन के भंडारण में भूमिका: Role in storage of blue carbon
पृथ्वी पर समुद्र के व्यापक भागों में से बहुत ही कम भागों में मैंग्रोव वन पाए जाते हैं फिर भी मैंग्रोव वन 10 से 15% कार्बन अवशोषित करते हैं। जब वृक्ष मर जाते हैं अथवा वृक्षों की पत्तियाँ झड़ जाती हैं, तब वे समुद्र तल पर गिर जाते हैं। गिरे हुए वृक्ष और पत्तियाँ मिट्टी में दब जाती हैं, जिसके कारण कार्बन का संग्रह होता है। इन दबे हुए कार्बन को ‘ब्लू कार्बन’ के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह मैंग्रोव, जंगलों, समुद्री घास पारितंत्र में पानी अथवा दलदली भूमि में के नीचे दबा रहता है अर्थात जमा होता है। “मैंग्रोव कार्बन का भंडारण करने में उत्कृष्ट हैं। दुनिया भर में, वे 6.23 गीगाटन से अधिक कार्बन संग्रहीत करते हैं”
जैव-विविधता को बढ़ाने में भूमिका: Role in increasing biodiversity
मैंग्रोव वन जैव-विविधता को समृद्ध बनाते हैं। इन वनों में पादप प्रजातियों और जीव जंतुओं की प्रजातियों में व्यापक विविधता पाई जाती हैं। मैंग्रोव वन पारितंत्र में विभिन्न प्रकार के पक्षियों की प्रजातियाँ, मछलियों की प्रजातियाँ, अकशेरुकीय स्तनधारी और पौधों जैसे अन्य जीवों की एक विस्तृत श्रृंखला को आवास और आश्रय प्रदान करने में मैंग्रोव वन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
मैंग्रोव वन प्रसिद्ध क्यों हैं? Why are mangrove forests famous?
विश्व में मैंग्रोव वन इसलिए प्रसिद्ध हैं क्योंकि मैंग्रोव वृक्षों की विशेषताएँ अन्य वृक्षों से भिन्न होती हैं। अपनी विशिष्टता, जल से समीपता, जैव-विविधता की दृष्टि से संमृद्धता और जीव-जंतुओं की विभिन्नता के कारण मैंग्रोव वन मनुष्य के लिए आकर्षक स्थान होते हैं।
मोटी चिकनी पत्तियाँ- मैंग्रोव वनस्पतियों में विशेष प्रकार की मोटी चिकनी पत्तियाँ पाई जाती हैं। वाष्पोत्सर्जन से कम से कम जल का उत्सर्जन होने में इन पत्तियों की विशेष भूमिका होती है।
जरायुजता- मैंग्रोव वृक्ष की कुछ प्रजातियाँ जैसे एविसी निया एल्बा (Avicennia alba) गुढ़जरायुजता दर्शाती हैं। इस प्रक्रिया के अंतर्गत वृक्ष के बीज नीचे गिरने से पहले ही उस बीज से भ्रूण का विकास होने लगता है। अर्थात पेड़ के ऊपर ही बीज से छोटे पौधे के भ्रूण का विकास होने लगता है।
गुरुत्वाकर्षण के विपरीत जड़ें- सामान्यतः वृक्षों की जड़े नीचे जमीन में जाती हैं लेकिन मैंग्रोव वृक्ष की जड़ें गुरुत्वाकर्षण के विपरीत भूमि के अंदर से ऊपर सतह पर आने लगती हैं।
अनुकूलन जड़ें- जहाँ भी मैंग्रोव वृक्षों का विकास होता है, उस क्षेत्र में ऑक्सीजन की कमी पाई जाती है। इसलिए मैंग्रोव वृक्षों की अनुकूलन जड़ें भी होती हैं। इन जड़ों के द्वारा मैंग्रोव वृक्ष ऑक्सीजन प्राप्त करते हैं।
विशेष नव-अंकुरित पौधें- मैंग्रोव वृक्षों की बहुत सी प्रजातियों के नव-अंकुरित पौधों में पर्याप्त मात्रा में खाद्य सामग्री संचित होती हैं। इन नव-अंकुरित पौधों की विशेष संरचना होती है, जिसके कारण वे जल पर तैरते हैं और जीवित भी रहते हैं।
वायवीय जड़ें- मैंग्रोव वृक्ष की वायवीय जड़ें होती हैं। इन जड़ों को श्वसन जड़ें भी कहते हैं। एक वृक्ष पर दस हजार श्वसन जड़ें हो सकती हैं।
विशेष श्वसन जड़ें- मैंग्रोव वृक्ष अधिकतर ऐसी भूमि पर विकसित होते हैं, जहाँ की भूमि अस्थिर होती है क्योंकि वहाँ समुद्री लहरों से भूमि का कटाव होता है। इस अस्थिर भूमि में मैंग्रोव वृक्ष की जड़े उस वृक्ष को स्थायित्व प्रदान करती हैं और श्वसन प्रक्रिया में सहायता करती हैं। ऐसी जड़ों को श्वसन जड़ें भी कहा जाता है। इन जड़ों के माध्यम से मैंग्रोव वृक्ष ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान करते हैं। इन जड़ों को ‘न्यूमेटोफोर्स’ भी कहा जाता है।
नमक अथवा क्षारीयता सहन करने की क्षमता- सभी प्रकार के मैंग्रोव वृक्ष कम अधिक रूप से लवनीय जल में विकसित होने की क्षमता रखते हैं। ये वृक्ष पानी का अवशोषण करते समय नमक की कुछ मात्रा को अलग कर देते हैं। मैंग्रोव वृक्ष अपने उत्तकों में अन्य पौधों एवं वृक्षों की तुलना में नमक की अधिक मात्रा सहन करने की क्षमता रखते हैं।
अत्यधिक सहनशीलता- मैंग्रोव वृक्ष अधिक सहनशील होते हैं क्योंकि इनकी जड़ों द्वारा इन्हें बल मिलता है, स्थिरता मिलती है। इनकी जड़ें व्यापक रूप से फैली होती हैं, इसलिए मैंग्रोव वृक्ष प्रतिदिन खारे पानी के बहाव को झेलते तो है ही, साथ-साथ ज्वार भाटा तथा तूफानी लहरों को भी झेलने की क्षमता रखते हैं।
मैंग्रोव वानों के समक्ष चुनौतियाँ: Challenges facing mangrove forests
आज पृथ्वी का कोई कोना नहीं बचा है जहाँ मनुष्य अपनी गतिविधियाँ न करता हो, ऐसी स्थिति में मैंग्रोव वन कहाँ बच पायेंगे। आज मैंग्रोव पारितंत्र व्यापक मानव गतिविधियों के दबाव में है, जिसके कारण इस विशिष्ट पारितंत्र के समक्ष अनेक चुनौतियाँ विद्यमान हैं।
तटीय क्षेत्रों का व्यावसायीकरण: Commercialization of coastal areas
तटीय कृषि क्षेत्र का विस्तार, एक्वाकल्चर, झींगा उत्पादन, मछली उत्पादन, चावल की खेती तथा ताड की खेती और विभिन्न प्रकार के औद्योगिक गतिविधियों के अंतर्गत होटल, उद्योग, हार्बर एवं पोर्ट जैसी मानव गतिविधियों के कारण मैंग्रोव वनों के समक्ष आज व्यापक चुनौतियाँ खड़ी हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण मैंग्रोव वनों के समक्ष विभिन्न प्रकार की चुनौतियाँ विद्यमान हैं। सुनामी, तूफान, चक्रवात तथा बाढ़ की बारंबारता में वृद्धि, एक चुनौती के रूप में खड़ी है। मैंग्रोव वृक्ष की एक विशेषता यह है कि ये भूमध्य रेखा के समीप पाए जाते हैं अर्थात इन वृक्षों को एक निश्चित तापमान की आवश्यकता होती है। एक समय में 10 डिग्री तापमान का उतार-चढ़ाव इन पौधों को व्यापक हानि पहुंच सकता है और एक समय में कुछ डिग्री तापमान में कमी आने से भी मैंग्रोव वृक्षों को अत्यधिक नुकसान हो सकता है। इसलिए ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति में इन वृक्षों के समक्ष आज विभिन्न चुनौतियाँ खड़ी हैं।
पिछले कुछ वर्षों से तटीय क्षेत्रों में मानव हस्तक्षेप में वृद्धि हुई है। मानव तटीय क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। इसके साथ-साथ तेल रिसाव तथा विभिन्न प्रकार के खनन कार्यों और पोर्ट संबंधी गतिविधियों मैं वृद्धि हुई है। मानव औद्योगिक कचरे को तथा विभिन्न प्रकार की गतिविधियों से निकले हुए विषैले पदार्थों को समुद्री किनारे फेंक रहा है, जिसके कारण मैंग्रोव वनों को हानि पहुंचती है।“विश्व के 123 देशों की समुद्र तट पर पाए जाने वाले 20 प्रतिशत से अधिक मैंग्रोव पिछले 40 वर्षों में वैश्विक स्तर पर नष्ट हो गए हैं, जिसका मुख्य कारण मानवीय गतिविधियाँ और प्राकृतिक ह्रास दोनों हैं।”
वैश्विक स्तर पर मैंग्रोव वन संरक्षण के प्रयास: Mangrove forest conservation efforts at global level
वैश्विक स्तर पर यूनेस्को, ISME (मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अंतरराष्ट्रीय समिति), UNDP, IUCN, रामसर कन्वेंशन, UNEP, वेटलैंड इंटरनेशनल आदि संस्थाओं द्वारा मैंग्रोव क्षेत्र के संरक्षण तथा प्रबंधन कार्यक्रमों को निर्धारित किया गया है। इन कार्यक्रमों के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के प्रयास सम्मिलित हैं। जैसे मैंग्रोव वन संरक्षण के संदर्भ में प्रशिक्षण देना, मैंग्रोव क्षेत्रों का संरक्षण हेतु उन्हें सूचीबद्ध करना, पर्यावरण तथा पर्यटन गतिविधियों का अध्ययन करना, मैंग्रोव वन क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की पौधशाला और वृक्षारोपण कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, जिन क्षेत्रों में अधिक समस्याएँ हैं, उन क्षेत्रों को सूचीबद्ध करके संरक्षित घोषित करना, वैश्विक स्तर पर मैंग्रोव वनों के मानचित्र को प्रकाशित करना आदि विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम सम्मिलित हैं।
मैंग्रोव वनों के संरक्षण की दिशा में रामसर कन्वेंशन एक महत्वपूर्ण कदम है। इस रामसर सूची के अंतर्गत एक तिहाई से अधिक क्षेत्र केवल मैंग्रोव क्षेत्र हैं। इस सम्मेलन के सदस्यों द्वारा लगभग 200 लाख हेक्टेयर से अधिक मैंग्रोव आधारित भूमि के संरक्षण तथा उनके विवेकपूर्ण उपयोग पर सहमति जताई गयी है।
विभिन्न वैश्विक स्तर मैंग्रोव संरक्षण की दिशा में उठाए गए कदमों के परिणाम स्वरूप मैंग्रोव वनों में पिछले कुछ वर्षों से वृद्धि पाई गई है।
निष्कर्ष: Conclusion
मैंग्रोव वन पृथ्वी पर एक विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण पारितंत्र है। यह पारितंत्र न केवल मनुष्य के लिए बल्कि जीव-जंतुओं एवं जैव-विविधता के लिए भी महत्वपूर्ण है। मैंग्रोव वृक्षों की अनेक प्रजातियों को मुख्यतः चार प्रजातियों में वर्गीकृत किया जाता है। ये वन भूमध्यरेखा के समीप पाए जाते हैं। पारिस्थितिकी को बढ़ावा देने, समुद्री ज्वार में स्थिरता प्रदान करने, जल को शुद्ध करने तथा ब्लू कार्बन के भंडारण में मैंग्रोव वनों की महत्वपूर्ण भूमिका है। आज इन वनों के समक्ष तटीय क्षेत्रों के व्यावसायीकरण, जलवायु संबंधी चिंताएँ तथा अत्यधिक मानव हस्तक्षेप जैसी अनेक चुनौतियाँ खड़ी है। हमें आज मैंग्रोव वन पारितंत्र को संरक्षित करते हुए इन वनों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।