Vayu pradushan ke karan और रोकथाम के उपाय पर हम कहते बहुत हैं लेकिन करते बहुत कम हैं। आज संपूर्ण विश्व में वायु प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती जा रही है। औद्योगिक इकाइयों, बड़े-बड़े नगरों तथा विभिन्न प्रकार की मानवीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न यह समस्या और भी भयावह होती जा रही है।
प्रमुख वायु प्रदूषकों का परिचय: Introduction to Major Air Pollutants:
प्रमुख वायु प्रदूषकों के अंतर्गत कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, हाइड्रोजन सल्फाइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन, क्लोरीन, सीसा, ओजोन, मीथेन गैस, कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, वाष्पशील कार्बनिक पदार्थ, प्रकाश रासायनिक एक्सीडेंट्स, निलंबित कणिकीय पदार्थ, एरोसॉल, प्रकाश रासायनिक धूम कोहरा, फ्लाई ऐश आदि को सम्मिलित किया जाता है।
आप इसे पढ़कर वायु प्रदूषण क्या है? इस प्रश्न का वैज्ञानिक उत्तर पा सकते हैं।
क्लोरोफ्लोरोकार्बन:
यह एक ऐसी गैस है जो क्लोरीन और कार्बन का यौगिक है। सीत ताप नियंत्रकों, रेफ्रिजरेटरों, फाम प्लास्टिक, प्रसाधन सामग्रियों आदि से इस गैस का उत्सर्जन होता है। इस गैस का जब अत्यधिक उत्सर्जन होने लगता है तब वायु प्रदूषण बढ़ता जाता है। वायुमंडल में क्लोरोफ्लोरोकार्बन का सांद्रन अधिक हो जाने पर यह ओजोन परत पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। जिसके फलस्वरुप ओजोन परत पतली होने लगती है।
जब पृथ्वी के समतापमंडल में स्थित ओजोन परत कमजोर होती है तब सूर्य से हानिकारक पराबैंगनी किरणें धरातल पर पहुंचती हैं और तापमान में वृद्धि होने लगती है। इसके साथ-साथ जीव-जंतुओं को विभिन्न बीमारियों से ग्रसित करती है।
हाइड्रोजन सल्फाइड: यह गैस रासायनिक उद्योगों, जैव ईंधन, आयल, तेल शोधन कारखानों, मलवाहित नालियों आदि से उत्सर्जित होती है। इस गैस से आंखों के विभिन्न रोग होते हैं।
पारा: पारा कोयला व पेट्रोल दहन भट्ठियों से उत्सर्जित होता है। कोयला आधारित ताप विद्युत भट्ठियों से इसका अत्यधिक उत्सर्जन होता है। इससे शरीर में विकृतता और अपंगता उत्पन्न होती है।
क्लोरीन: इसका उत्सर्जन कपड़े व आटे की ब्लीचिंग क्रियाओं एवं रासायनिक क्रियाओं से होता है। जो श्वसन तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
सीसा: सीसा का उत्सर्जन स्वचालित वाहनों, पेट्रोल व डीजल से होता है। इससे शरीर की बढ़ोतरी रुक जाती है और रक्तचाप बढ़ जाता है। फलस्वरुप विभिन्न प्रकार की बीमारियों का कारण बनता है।
ओजोन: यह नाइट्रोजन ऑक्साइड एवं हाइड्रोकार्बन के बीच सूर्य की प्रकाश किरणों की उपस्थिति में अंत:क्रिया के द्वारा इसका निर्माण होता है। क्षोभमंडल में ओजोन मनुष्य के लिए हानिकारक होती है। इससे दमा रोग बढ़ता है और चर्म कैंसर होने लगता है।
मीथेन गैस: विभिन्न प्रकार की जैविक प्रक्रियाओं के द्वारा इसका सृजन होता है। जैसे भेड़, बकरियाँ व गायों के यांत्रिक खमीर, जैव इंधनों के जलन आदि से होता है। फलस्वरुप हरित गृह प्रभाव में वृद्धि होती है।
आप यहाँ 21वीं सदी के भयानक संकट के बारे में पढ़ सकते हैं
वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण: vayu pradushan ke karan: Major causes of air pollution:
वायु प्रदूषण कई प्राकृतिक और मानव-निर्मित कारणों से होता है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
मानव स्वयं को विकसित करने हेतु ऐसी-ऐसी गतिविधियों को अपनाते चला गया है, जिसके कारण पृथ्वी का वायुमंडल दूषित हो गया है और यह प्रक्रिया आज भी चल रही है।
वाहनों का धुआं: Vehicular smoke:
वर्तमान में परिवहन क्षेत्र का जो विकास हुआ है इसके कारण प्रदूषण भी प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। आर के गुप्ता लिखते हैं कि “महानगरों में होने वाले कुल वायु प्रदूषण का 50 से 60% केवल सड़कों पर दौड़ रहे विभिन्न श्रेणी के वाहनों द्वारा उत्सर्जित होता है। धुआँ, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, विविध पदार्थ, सीसा, नाइट्रोजन के ऑक्साइड तथा अधजल हाइड्रोकार्बन इनके उत्सर्जनों में मुख्य हैं।”1 पेट्रोल और डीजल से चलने वाले वाहनों से निकलने वाला धुआं कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर छोड़ता है। गाड़ियों से निकलने वाला यह धुआँ वायुमंडल में प्रवेश कर जाता है। पेट्रोल और डीजल से निकलने वाले नाइट्रोजन के ऑक्साइड से कोहरे का जन्म होता है, जो सूर्य के प्रकाश में हाइड्रोकार्बन से क्रिया के द्वारा घातक प्रकाश रासायनिक धूम कोहरा को जन्म देता है।
उद्योगों का प्रदूषण: Pollution from Industries:
वायु प्रदूषण का मुख्य और मूल कारण औद्योगिक विकास है। औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला धुआं प्रदूषण को तो बढ़ाता ही है, साथ ही जरा सा भी इसमें लापरवाही से लोगों की मृत्यु का कारण बन जाती है। इस संदर्भ में हमें भोपाल गैस त्रासदी को नहीं भूलना चाहिए। इन फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं और हानिकारक गैसें (जैसे सल्फर डाइऑक्साइड, अमोनिया) वायु को प्रदूषित करते हैं। उद्योग से होने वाले वायु प्रदूषण की निर्भरता पर विचार करते हुए डॉ. विष्णु दत्त शर्मा लिखते हैं कि “घरेलू और औद्योगिक ईंधन (भट्ठियों) से होने वाला वायु प्रदूषण दो बातों पर निर्भर करता है। एक तो यह कि किस प्रकार का ईंधन प्रयुक्त किया गया है और दूसरे यह कि ईंधन को किस प्रकार जलाया जा रहा है।”2 अत: हमें ईंधन की गुणवत्ता और उसे जलाने की प्रक्रिया को सुधारने की आवश्यकता है।
बिजली संयंत्रों से प्रदूषण: Pollution from power plants:
कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधनों का उपयोग बिजली उत्पादन में होता है, जो बड़ी मात्रा में हानिकारक गैसों का उत्सर्जन करता है। कोयले को जलाकर ताप ऊर्जा प्राप्त करते समय वायु प्रदूषण का खतरा अनायास बढ़ते रहता है क्योंकि सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन के ऑक्साइड कोयले की राख, कार्बन के सूक्ष्म कण जैसे प्रदूषण वायु में फैलते रहते हैं। कोयले की खपत से बिजली उत्पादन पर विचार करते हुए आर. के गुप्ता लिखते हैं कि “कोयले की कम खपत का अर्थ है, धन की बचत तथा वायु प्रदूषण में कमी। कोयले से प्राकृतिक गैस की अपेक्षा 72 से 92% अधिक कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है।”3 हमें बिजली उत्पादन में कोयले की खपत को कम करना होगा।
कचरा जलाने से प्रदूषण: Pollution due to burning of garbage:
हम रोजमर्रा के जीवन में ऊर्जा प्राप्त करने हेतु विभिन्न प्रकार के जैविक जैसे लकड़ी आदि का दहन करते हैं। जिससे विभिन्न प्रकार की गैसें और सूक्ष्म कण वायुमंडल को प्रदूषित करते हैं। प्लास्टिक और अन्य ठोस कचरे को जलाने से हानिकारक रसायन और धुआं वायुमंडल में फैलता है। इसके साथ नियमित घरेलू कार्य यथा भोजन बनाने, पानी गर्म करने आदि में ईंधन जैसे लकड़ी, कोयला, गोबर के कंडे, मिट्टी का तेल, गैस आदि का प्रयोग होता है। जलने की क्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड आदि गैसें उत्सर्जित होती हैं, जो वायुमंडल को प्रदूषित करती हैं।
कृषि गतिविधियों से प्रदूषण: Pollution from agricultural activities:
वर्तमान में कृषि कार्यों में विकास हुआ है किंतु वह विकास भी कहीं न कहीं पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है। कृषि कार्यों में कीटनाशक दवाओं का प्रयोग बढ़ने लगा है। कीटनाशकों का छिड़काव करने से प्रदूषित रसायन वायु में घुल मिल जाते हैं , जो वायु के द्वारा हमारे भीतर पहुंच जाते हैं और शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। फसल के अवशेष जलाने और रसायनिक उर्वरकों का उपयोग वायुमंडल में नाइट्रोजन ऑक्साइड और अमोनिया उत्सर्जित करता है।
रेडियोधर्मिता द्वारा प्रदूषण: Pollution by Radioactivity:
आज विश्व का प्रत्येक देश अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने हेतु परमाणु शक्तियों का विकास कर रहा है। विश्व के सभी देश ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु परमाणु संयंत्र लग रहे हैं, जिनकी सुरक्षा हेतु पर्याप्त प्रबंध किए जाते हैं फिर भी तकनीकी अथवा मानवीय गलतियों से यदा-कदा इन संयंत्र से रेडियोधर्मी पदार्थ बाहर निकल जाते हैं, जो कि जीवन के समाप्ति का कारण बनता है।
प्रदूषण के प्राकृतिक कारण: Natural causes of pollution:
ज्वालामुखी विस्फोट: Volcanic Eruption:
यह एक प्राकृतिक घटना है। इस घटना की प्रक्रिया में धुआं, राख, चट्टानों के टुकड़े और इससे सल्फर डाइऑक्साइड, वायुमंडल में फैलते हैं। धूल भरी आंधियां: रेगिस्तानी इलाकों से उठने वाली धूल वायुमंडल में प्रदूषण बढ़ाती है।
जंगलों की आग: Forest Fire:
वनों में बड़े पैमाने पर लगने वाली आग भी वायु प्रदूषण का कारण बनती है क्योंकि इससे धुआं और राख के कण फैल जाते हैं। हाल ही में अमेजन वनों में लगी वनाग्नि वैश्विक स्तर पर संकट का कारण बनी थी। प्राकृतिक या मानव-निर्मित आग से निकलने वाला धुआं कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य प्रदूषक तत्व उत्सर्जित करता है।
पराग कण: Pollen grains:
फूलों और पेड़ों से निकलने वाले पराग कण भी वायु में प्रदूषण पैदा करते हैं, खासकर एलर्जी के मामले में।
वायु प्रदूषण रोकथाम के उपाय: Air pollution prevention measures:
वायु प्रदूषण की समस्या आज वैश्विक स्तर पर उत्पन्न हो गई है। औद्योगिक क्षेत्र एवं बड़े-बड़े शहरों में वायु प्रदूषण की समस्या भयंकर विकराल रूप ग्रहण करती जा रही है। एक और आर्थिक विकास की गति को नियमित रूप से चलना भी है और दूसरी ओर वायु प्रदूषण को नियंत्रित भी करना है। इन दोनों चुनौतियों के बीच हमें एक सकारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है।
- वायु प्रदूषण निवारण के लिए देश में अनेक शोध केंद्रों की स्थापना की जानी चाहिए।
- वायु प्रदूषण से संबंधित कानून का शक्ति से पालन किया जाना चाहिए। जिस उद्योग द्वारा वायु प्रदूषण फैलाया जाता है, उन उद्योग मालिकों से अलग से क्षतिपूर्ति किया जाना चाहिए।
- वैश्विक स्तर पर आज परमाणु हथियार बनाने की जो होड़ लगी हुई है, इसे तुरंत रोकने की आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं, सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वायु प्रदूषण रोकथाम की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
- जिस प्रकार अमेरिका में प्रबुद्ध युवकों द्वारा पर्यावरण बचाओ अभियान सफलतापूर्वक चलाया गया है। उसी प्रकार के अभियान समस्त विश्व में चलाये जाने की आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूप से वृक्षारोपण और वन संरक्षण का कार्यक्रम चलाए जाने की आवश्यकता है।
- हरित प्रभाव वाली गैस, ब्लीचिंग पाउडर, डीटी, क्लोरोफ्लोरोकार्बन आदि के उत्पादन एवं उपयोग पर नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
- नगरों एवं महानगरों में जल निकासी तथा मल मूत्र हटाने की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए। सेप्टिक प्रसाधन गृह तथा सार्वजनिक सुलभ शौचालय की व्यापक व्यवस्था की जानी चाहिए।
- वायुमंडल में जिन-जिन स्रोतों से विषैली गैसें उत्सर्जित होती हैं, उन्हें वहीं पर नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
- समाज में वायु प्रदूषण की गंभीरता एवं उनसे पढ़ने वाले शारीरिक, मानसिक और जैविक प्रभावों को समझना होगा और जन जागृति का कार्यक्रम चलाना होगा।
- समाज में सामान्यतः यह नैतिक दायित्व एवं भावना जागृत की जाए कि व्यक्ति अपने व्यक्तिगत स्तर पर प्रदूषण को नियंत्रित कर सके।
- ऐसे फिल्टर एवं साधनों का उपयोग हो जिसे कम से कम कणिकीय पदार्थ का उत्सर्जन हो सके।
- उद्योग से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए नव-नवीन तकनीकियों का उपयोग किया जाना चाहिए।
- मानव बस्तियों के समीप अथवा नगर, शहरों के समीप नए कल कारखानों को नहीं स्थापित किया जाना चाहिए।
- वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है, परिवहन साधनों द्वारा उत्सर्जित प्रदूषण। इसलिए परिवहन सुधार हेतु विशेष रूप से उपाय करने की आवश्यकता है।
- भारत में वाहनों की संरचना तथा उनके आकार को बदलने की जरूरत है ताकि वह कम से कम उत्सर्जन कर सके।
- नगरों और महानगरों में ट्रैफिक व्यवस्था को व्यवस्थित करने की आवश्यकता है क्योंकि जब ट्रैफिक रूकती है तब बिना चले ही वायु प्रदूषण होते रहता है।
- विभिन्न बड़े-बड़े नगरों के समीप बाह्य पास (बाईपास) बनाने की आवश्यकता है, जिससे वाहनों का शहर के भीतर से गुजरा बंद हो सके।
- स्वचालित मोटर वाहन और इलेक्ट्रिक वाहनों का आविष्कार किया जाना चाहिए और इस दिशा में गंभीर रूप से आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
- हमें ग्रीन ट्रांसपोर्टेशन अर्थात हरित परिवहन की स्थापना करने की आवश्यकता है।
- जो मोटर वाहन अधिक धुँआ उत्सर्जन करते हैं, उन्हें बदलकर उनके स्थान पर ऐसे इंजन लगाया जाए जो काम से कम उत्सर्जित कर सके। जैसे पश्चिम बंगाल में फुसेप Fusep इंजन के द्वारा कम से कम वायु प्रदूषण होता है।
- वायु प्रदूषण को कम करने के लिए हमें वाहनों का सीमित उपयोग, हरित ऊर्जा का उपयोग, पेड़ लगाना और पर्यावरण-अनुकूल तकनीकियों को अपनाना होगा।
वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए सरकार द्वारा की गई पहल:
आज भारत में सड़कों पर वाहनों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। वाहनों द्वारा उत्सर्जन शहरी वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण है। “अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छ परिवहन समिति (ICCT) के अनुसार, डीजल वाहन वायु प्रदूषण में बड़ी भूमिका निभाते हैं। डीजल से जुड़े कुल नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) उत्सर्जन का 70% भारी डीजल वाहन (जैसे ट्रक और बस) करते हैं, जबकि डीजल यात्री कारों का भी योगदान महत्वपूर्ण है। पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) और NOx उत्सर्जन के कारण स्वास्थ्य और पर्यावरणीय समस्याएं बढ़ती हैं, खासकर शहरी क्षेत्रों में”4
भारत में वर्ष 2000 में यूरोपीय उत्सर्जन एवं ईंधन नियमन को स्वीकार किया है। इस योजना के अंतर्गत मुख्य रूप से भारत के चार शहरों में स्टेज-II उत्सर्जन नियमन को लागू किया गया है। इसमें सल्फर की कम मात्रा वाला ईंधन तथा उच्च दक्षता युक्त ईंधन का प्रयोग किया जाता है।
“भारत सरकार ने वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से सीधे बीएस-4 (BS4) से बीएस-6 (BS6) मानकों को लागू करने का निर्णय लिया। बीएस-6 मानकों को 1 अप्रैल 2020 से पूरे देश में लागू कर दिया गया था। ये उत्सर्जन मानक वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए बनाए गए हैं, और बीएस-6 में सल्फर और नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन में बड़ी कमी आई है। बीएस-6 ईंधन में सल्फर की मात्रा केवल 10 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) होती है, जो बीएस-4 के 50 पीपीएम से काफी कम है ।”5
भारत की राजधानी दिल्ली वायु प्रदूषण से गंभीर रूप से प्रभावित है। इसलिए NGT द्वारा सभी वाणिज्यिक वाहनों पर दिल्ली में प्रवेश करने पर पर्यावरण लेवी कर लागू किया गया है। क्योंकि दिल्ली का वायु प्रदूषण मुख्य रूप से वाहनों द्वारा हो रहा है। इस प्रकार दिल्ली सरकार द्वारा आड़ व इवन नियम लागू किया गया। इसमें एक दिन विषम संख्या वाली गाड़ियाँ तथा दूसरे दिन सम संख्या वाली गाड़ियाँ चलती हैं।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2000 सीसी से ऊपर डीजल तथा लग्जरी एसयूवी गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है तथा 2005 से पुराने वाणिज्यिक वाहनों के एनसीआर क्षेत्र में घुसने पर रोक लगा दी गई है।
“नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण हितेषी एवं उच्च क्षमता वाले हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहन का निर्माण करना है जिससे 2020 तक 1.5% CO2 उत्सर्जन में कमी करने का लक्ष्य रखा गया था।”6
नेशनल अर्बन ट्रांसपोर्ट पॉलिसी के द्वारा शहरी क्षेत्र में पब्लिक परिवहन का अधिक प्रयोग करने के लिए इस योजना को 2006 में चलाया गया तथा 2014 में इसकी पह समीक्षा की गई है।
भारत में वायु गुणवत्ता की जांच करने वाली पहली मोबाइल एप सेवा है। System of air quality and weather forecasting and research ‘सफर’ को इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रॉपिकल मीटरोलॉजी पुणे द्वारा तैयार किया गया है। यह एप्लीकेशन उपयोग करने वाले को रंग कोड प्रणाली के माध्यम से रियल टाइम वायु गुणवत्ता बताता है।
इस सूचकांक का मुख्य उद्देश्य देश के बड़े शहरों में नगरों में रियल टाइम आधार पर वायु गुणवत्ता की निगरानी करना और जरूरी कार्यवाही करने के लिए जन जागरूकता में वृद्धि करते हुए वायु गुणवत्ता सुधारने की दिशा में कार्य करना है।
वायु गुणवत्ता की वर्तमान पैमाने के तहत वायु गुणवत्ता सूचकांक का आकलन करने के लिए कुल आठ मापदंडों को ध्यान में रखा जाता है। संपूर्ण देश में कुल 36 सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों को राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक से जोड़ा गया है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड:
यह एक संविधिक संगठन है जिसका गठन 1974 में ‘जल रोकथाम और नियंत्रण अधिनियम’ के तहत किया गया था। यह पर्यावरण एवं वन मंत्रालय तथा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को तकनीकी सेवाएं भी प्रदान करता है।
यह कार्यक्रम ‘केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ द्वारा देश भर में चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत देश के 26 राज्यों एवं चार केंद्र शासित प्रदेशों के 300 शहरों के 683 संचालन स्टेशन शामिल हैं। इस कार्यक्रम को निम्नलिखित दायित्व सौपे गए हैं।
- भारत में व्यापक वायु गुणवत्ता की स्थिति एवं प्रकृति तथा प्रवृत्ति के संबंध में निर्णय लेना।
- राष्ट्रीय व्यापक वायु गुणवत्ता मानदंड का अनुपालन सुनिश्चित करना।
- वातावरण को स्वच्छ करने के प्राकृतिक क्रियाविधि को समझना एवं निवारक तथा सुधारात्मक कदम उठाना।
इसके अतिरिक्त केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा विभिन्न प्रकार के दिशा निर्देश दिए गए हैं। लाल, नारंगी, हरित एवं श्वेत श्रेणी के तहत औद्योगिक क्षेत्र का वर्गीकरण किया गया है। व्यापक पर्यावरणीय प्रदूषण सूचकांक की शुरुआत 2019 के दौरान औद्योगिक समूह के व्यापक पर्यावरणीय मूल्यांकन के लिए की गई थी। भारत सरकार द्वारा वायु प्रदूषण एवं नियंत्रण अधिनियम 1981 बनाया गया है।
निष्कर्ष:
कहना न होगा कि पृथ्वी के वायुमंडल और धरातलीय vayu pradushan ke karan अनेक हैं। इन कारणों में प्राकृतिक कारण और मानव निर्मित कारण हैं। प्राकृतिक कारणों से जो वायु प्रदूषण होता है, वह प्रकृति की अपनी क्रियाओं द्वारा स्वयं नियंत्रित हो जाता है किंतु मानव द्वारा उत्सर्जित की जाने वाली गैसों की मात्रा इतनी अधिक हो गई है कि जिसे प्रकृति संतुलित नहीं कर पा रही है। यही कारण है कि आज वायु प्रदूषण की समस्या हम सब के समक्ष खड़ी है। वायु प्रदूषण की रोकथाम हेतु सरकार तथा गैर सरकारी संगठनों द्वारा विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। किंतु यह तब तक नियंत्रित नहीं हो पाएगा जब तक हम सभी वायु प्रदूषण के संदर्भ में जागरूक न हो। सरकारे वायु प्रदूषण को लेकर गंभीर कानून बनाए तथा समाज इस दिशा में व्यक्तिगत स्तर से नियंत्रण के उपाय शुरू करें तभी हम वायु समस्या से कुछ हद तक मुक्ति पा सकते हैं।
संदर्भ:
- आर. के. गुप्ता, पर्यावरण (भयावह भविष्य), युगबोध साहित्य दिल्ली, 2017, पृष्ठ-48-49
- डॉ. गंगा प्रसाद गुप्त, पर्यावरण विज्ञान, जन भारती प्रकाशन इलाहाबाद, 2014, पृष्ठ-105
- आर. के. गुप्ता, पर्यावरण (भयावह भविष्य), युगबोध साहित्य दिल्ली, 2017, पृष्ठ-50
- https://theicct.org/new-study-quantifies-global-health-environmental-impacts-of-excess-nitrogen-oxide-emissions-from-diesel-vehicles/
- https://theicct.org/sites/default/files/publications/India%20BS%20VI%20Policy%20Update%20vF.pdf
- https://pib.gov.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=191337