Tapiya pradushan kya hai इस प्रश्न का उत्तर है संभावित जल प्रलय। तब धरती पर पानी ही पानी होगा। कहीं जमीन दिखाई नहीं देगी। मानव सहित जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों का समूह नाश हो जाएगा। इसे जल प्रलय कहा जाएगा और तापीय प्रदूषण इस जल प्रलय को बल प्रदान करने वाला एक कारक है।
Tapiya pradushan kya hai एक परिचय: Introduction to Thermal Pollution:
तापीय प्रदूषण तब होता है, जब किसी जल निकाय अथवा वायुमंडल की वायु का तापमान बढ़ जाता है अथवा घट जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि पर्यावरण में ताप बढ़ोतरी के कारक पदार्थ की वृद्धि होना ही तापीय प्रदूषण कहलाता है। वायु तापमान की अपेक्षा जल तापमान स्थिर होता है। अतः तापमान में एकाएक परिवर्तन के प्रति जलीय जीवों में अनुकूलन नहीं पाया जाता है। कुछ पदार्थ या अपशिष्ट की प्रकृति ऐसी होती है कि वह जल और वायु को गर्म कर देती है। तापमान में हुए इसी परिवर्तन को तापीय प्रदूषण कहा जाता है।
Tapiya pradushan kya hai इस प्रश्न को हम तापीय प्रदूषण के दो प्रकारों में विभक्त करते हुए समझ सकते हैं। एक वायुमंडलीय तापीय प्रदूषण और दूसरा जलीय तापीय प्रदूषण।
वैज्ञानिकों का मानना है कि धरती का तापमान बढ़ने से सागरीय जलस्तर में लगातार वृद्धि हो रही है। यदि हम इस प्रक्रिया पर नियंत्रण नहीं पाते हैं, तो वह दिन दूर नहीं है कि यह सारा संसार जलमय हो जाएगा। देखा गया है कि वर्तमान शताब्दी के आरंभ से ही सागरों का जलस्तर एक दो मिलीमीटर प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रहा है। कहने का तात्पर्य यह है कि समुद्री जलस्तर 10 सेंटीमीटर ऊपर उठ चुका है। यह पर्वतीय हिमनदों, ध्रुवीय ग्लेशियरों के पिघलने के कारण हुआ है, जो धरती के गर्म होने का एक परिणाम है। धरती का गर्म होना अर्थात Tapiya pradushan kya hai वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि होना है।
Tapiya pradushan kya hai इस सवाल के साथ अब सवाल है कि धरती क्यों गर्म हो रही है ? इसका कारण बताया जाता है कि यह ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण हो रहा है और ग्रीन हाउस प्रभाव कुछ विशिष्ट गैसों की देन है। जो धरती के चारों ओर एक कंबल की तरह आवरण प्रकृति द्वारा बनाया गया है। यह आवरण धरती पर उत्सर्जित कुछ गैसों को अंतरिक्ष में नहीं जाने देती है। इस तरह औसत तापमान में वृद्धि होने लगती है।
प्रकृति तापीय प्रदूषण को संतुलित करने में स्वयं सक्षम है किंतु जब मानव अपनी भोगवादी इच्छा लेकर अत्यधिक गैसों का उत्सर्जन करता है, तब प्रकृति भी इसको संतुलित करने में असमर्थ हो जाती है। आज यही स्थिति हमारे समक्ष खड़ी है।
आप यहाँ 21वीं सदी के संकट के संदर्भ में पढ़ सकते हैं।
तापीय प्रदूषण की परिभाषाएँ: Definitions of Thermal Pollution:
Tapiya pradushan kya hai इसको समझते हुए “Environmental Pollution Control Engineering” शीर्षक अपनी पुस्तक में C.S. Rao परिभाषित देते हैं कि “यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें जल निकायों का तापमान बढ़ जाता है, आमतौर पर औद्योगिक प्रक्रियाओं या बिजली संयंत्रों से गर्म पानी के निर्वहन के कारण। यह तापमान वृद्धि जल निकायों की गुणवत्ता को कम करती है, जिससे जलजीवों और पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह ऑक्सीजन के घुलनशीलता को कम करती है और जैविक संतुलन को बाधित करती है।”1
United nation economic and social commission for Western Asia (UNESCWA) अपनी वेबसाइट पर तापीय ऊर्जा की परिभाषा देते हुए लिखते हैं कि “तापीय प्रदूषण औद्योगिक प्रक्रियाओं जैसे विद्युत उत्पादन परमाणु ऊर्जा केंद्रों और अन्य कारखाने से निकलने वाले गरम अपशिष्टों को ऐसे तापमान पर छोड़ना है, जो जलीय जीवों की जीवन प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।।”2 इस परिभाषा से भी Tapiya pradushan kya hai प्रश्न का उत्तर स्पष्ट होता है।
आप इसे पढ़कर वायु प्रदूषण क्या है ? इस प्रश्न का उत्तर पा सकते हैं।
तापीय प्रदूषण के प्रकार: Types of thermal pollution:
मुख्य रूप से तापीय प्रदूषण के दो प्रकार हैं। प्रथम प्रकार वायुमंडलीय तापीय प्रदूषण और द्वितीय प्रकार है जल मंडलीय तापीय प्रदूषण। इन दोनों प्रकारों पर विचार किया गया है।
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वायुमंडलीय तापीय प्रदूषण: Atmosphere thermal pollution:
- वायुमंडलीय तापीय प्रदूषण विविध उद्योग और वाहनों आदि से निकलने वाले कार्बन डाइऑक्साइड नाइट्रस ऑक्साइड आदि गैसें ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण वायुमंडल के तापमान में बढ़ोतरी कर रही है।
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जल मंडलीय तापीय प्रदूषण: Hydrospheric thermal pollution:
- जल में तथा झील, तालाब आदि में बाहरी तत्वों के प्रवेश के कारण जब जल का तापमान बढ़ जाता है, तब उसे तापीय प्रदूषण कहा जाता है। उद्योग से निकलने वाला जल जब स्वच्छ जल में छोड़ा जाता है या विविध रिएक्टरों के अति तपन निवारण के लिए प्रयुक्त जल को स्रोतों में छोड़ने से उनके तापमान में वृद्धि हो जाती है। वर्तमान में विभिन्न देशों द्वारा सामरिक होड़ में परमाणु परीक्षण से भी जल प्रदूषण फैल रहा है।
तापीय प्रदूषण के कारण: Causes of thermal pollution:
Tapiya pradushan kya hai और इसकी गंभीरता को समझने के लिए हमें तापीय प्रदूषण के कारणों को भी समझना होगा। विभिन्न प्रकार के कारखाने से अथवा बिजली घरों से निकलने वाले गर्म अपशिष्ट को जब जल निकायों के भीतर छोड़ दिया जाता है, तब तापीय प्रदूषण बढ़ जाता है। वनाग्नि और ज्वालामुखी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के कारण भी तापीय प्रदूषण होता है। तापीय प्रदूषण के अनेक कारण हैं। यहां कुछ कारणों की पहचान की गई है।
- परमाणु ऊर्जा संयंत्र से निकली गैसें और गर्म जल।
- कोयला दहन बिजली संयंत्र से निकली गैसें वि जल।
- औद्योगिक कचरा अपशिष्टों का अपवाह जो जल निकायों के तापमान को बढ़ाता है।
- तटीय इलाकों में वनोन्मूलन, कृषि क्षेत्र से मृदा अपरदन।
- विभिन्न प्रकार की आवश्यकता पूर्ति हेतु वनों की कटाई।
- वाष्प युक्त जेनरेटरों से गर्म जल को बाहर छोड़ना।
- विभिन्न प्रकार की धातु प्रगलन क्रियाएँ।
- विभिन्न प्रकार के संसाधन व उत्पादन निर्माण फैक्ट्रियाँ।
- पेट्रोलियम शोध कारखाने।
- अनेक प्रकार की पेपर मीलें।
- विभिन्न प्रकार के रसायन संयंत्र।
इन सभी मानवीय गतिविधियों और उत्पादन में शीतलन हेतु जल का प्रयोग किया जाता है। फलस्वरुप वह जल अत्यंत गर्म हो जाता है और ऐसे जल को किसी जल निकायों में छोड़ दिया जाता है। फलत: तापीय प्रदूषण होता है।
जब यह गर्म जल उद्योग इकाइयों से बहता हुआ अनेक रूप में बाहर निकलता है, तो उससे जल निकाय का तापमान बढ़ जाता है। जल का तापमान बढ़ जाने से जल निकाय में खुली ऑक्सीजन का सांद्रन घट जाता है क्योंकि गर्म जल में ऑक्सीजन कम घुलनशील होती है।
तापीय प्रदूषण के प्रभाव: Effects of thermal pollution:
हम यह जानते हैं कि धरती पर प्रत्येक जीव-जंतु एवं प्रजातियाँ एक अनुकूल तापमान स्थिति में जीवित रह सकती है। कुछ प्रजाति के लिए आवश्यक होता है कि तापमान बहुत कम हो और कुछ प्रजातियों के लिए यह तापमान अधिक आवश्यक होता है। ऐसी स्थिति में जब तापीय प्रदूषण बढ़ता है तो वहां की प्रजातियों पर अस्तित्व का खतरा मंडराने लगता है। उदाहरण के लिए झीलों की मछलियाँ उस स्थान का त्याग कर देती है, जिस स्थान पर तापमान सामान्य से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है। मगर नदियों की मछलियाँ 3 डिग्री सेल्सियस की तापमान वृद्धि सहन कर सकती हैं। इस प्रकार समुद्र की प्रजातियों में भी तापमान संवेदनशीलता पाई जाती है। उष्ण जल में मछलियों पर संकट छा जाता है। इस स्थिति में पीरभक्षी जीवों द्वारा उन्हें पकड़ना आसान हो जाता है।
तापीय प्रदूषण में परिवर्तन से जलीय निकाय के भीतर अन्य जीव-जंतुओं के लिए भी दशाएं बदल जाती हैं। जिनके कारण इन जल निकायों के पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन आ जाता है। और कुछ ऐसी प्रजातियों का सफाया हो सकता है, जो हमारे लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए कई रूपों में महत्वपूर्ण हो। जल निकायों और छोटे समुद्री जंतुओं के महत्व पर प्रकाश डालते हुए न्यूयॉर्क नगर में समुद्री विज्ञान संबंधी ओसबर्ग प्रयोगशाला के निर्देशक डॉ. रोज नाइग्रेली ने पत्ता लगाया कि “सी क्यूंबर क्यूंबर नामक छोटे समुद्री जंतु का विष कैंसर के बढ़ाने को कम कर देता है और कभी-कभी उसे रोक भी देता है।”3 कहने का तात्पर्य यह है कि हम पृथ्वी पर किसी भी प्रजाति को समाप्त नहीं कर सकते क्योंकि वह प्रजातियाँ पता नहीं हमें कब कहाँ और किस रूप में सहायक हो। कहना न होगा कि तापीय प्रदूषण जल निकायों में सुपोषण क्रिया को भी बढ़ावा देता है।
- किसी स्थान विशेष अथवा जलीय निकायों के तापमान में परिवर्तन अथवा तापीय प्रदूषण में वृद्धि होने के कारण वहाँ की प्रजातियाँ जीव-जंतु संवेदनशील वनस्पतियाँ आदि का विस्थापन होने लगता है।
- जल निकायों में विभिन्न प्रकार की प्रजातियाँ और जीवों की क्रियाएँ बढ़ जाती हैं किंतु जल में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है।
- तापीय प्रदूषण के कारण विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के अंडों एवं नवजात शिशु को नुकसान पहुंचता है।
- जल में मिश्रित ऑक्सीजन की मात्रा कम होने के कारण उस निकाय में सुपोषण की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- तापमान में वृद्धि के कारण ऑक्सीजन कम हो जाता है और वह जल के निचली सतह तक नहीं पहुंच पाता है। परिणामत: विभिन्न प्रजातियों को नुकसान होता है।
- तापमान वृद्धि के कारण विभिन्न प्रकार के घातक रासायनिक कीटनाशकों और प्रदूषण गैसों की मारक क्षमता में वृद्धि हो जाती है।
तापीय प्रदूषण के प्रभाव के संदर्भ में जब हम जानते हैं तब ज्ञात होता है कि Tapiya pradushan kya hai यह प्रश्न कितना प्रासंगिक है और आज क्यो इस पर विचार करने की आवश्यकता है। वायुमंडलीय तापीय प्रदूषण की यदि बात की जाए तो इसमें ग्रीन हाउस प्रभाव सबसे बड़ा चिंताजनक विषय है। तापीय प्रदूषण में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की सबसे बड़ी भूमिका है। कार्बन डाइऑक्साइड केवल ग्रीनहाउस प्रभाव के जरिए ही तापीय प्रदूषण में वृद्धि नहीं करती है बल्कि यह और भी कई तरीकों से धरती के जीव-जंतुओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। कार्बन डाइऑक्साइड गैस के कारण ग्रीनहाउस प्रभाव होता है और उस प्रभाव के कारण धरती का तापमान बढ़ने लगता है। जब तापमान बढ़ने लगता है, तब बर्फ पिघलने लगती है। जिससे मिलो फैली बर्फ की सतह से होने वाला धूप का कुल परावर्तन घट जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि धरती द्वारा अब अधिक धूप सोखी जाएगी जो तापमान को और बढ़ा देगी। यह भी पाया गया है कि कार्बन डाइऑक्साइड ज्यादा होने से बादलों के बनने, बरसाने और उनकी गति पर भी प्रभाव पड़ता है, जो तापमान को और बढ़ावा देता है। इस संदर्भ में अनेक वैज्ञानिकों का मानना है कि “कार्बन डाइऑक्साइड से अगर सीधे ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण तापमान 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है, तो अन्य क्रम में यह तीन डिग्री सेल्सियस और बढ़ जाता है। इस तरह कुल बढ़त चार डिग्री सेल्सियस हो जाती है।”4
तापीय प्रदूषण नियंत्रण के उपाय: Measures to control thermal pollution:
जब हम Tapiya pradushan kya hai यह समझ जाते हैं, उसके पश्चात ज्ञात होता है कि इस समस्या का समाधान और उपाय की आज कितनी आवश्यकता है। प्रयत्न करने तापीय प्रदूषण को कम करने के लिए हमें अनुसंधान कार्य पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस प्रदूषण को नियंत्रित करने के जो उपाय सफल रूप से अपनाएँ गए हैं या अपनाया जा सकता है, उन सब पर कार्य करने की आवश्यकता है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर इस प्रदूषण को कम करने के जो उपाय बताए गए हैं, उन्हें व्यावहारिक रूप से लागू करने की आवश्यकता है।
भौतिकी में नोबेल पुरस्कार प्राप्त ’पुगवोस आंदोलन’ के अध्यक्ष प्रोफेसर एन्स एलफैन कहते हैं कि “यदि हम जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित कर सके तो तकनीक और संसाधन हमारी ऊर्जा संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं।”5 यहाँ प्रोफेसर यह समझना चाहते हैं कि यदि हम जनसंख्या वृद्धि को रोक लेते हैं, तो संसाधनों का कम और उचित प्रबंधन हो सकेगा और तापीय प्रदूषण नियंत्रण में भी हम सफल हो पाएंगे।
- विभिन्न प्रकार के कारखाने एवं उद्योगों से निकलने वाले गर्म अपशिष्ट जल को विभिन्न स्रोतों द्वारा अथवा विभिन्न तकनीकियों द्वारा ठंडा करने के पश्चात उसकी अलग प्रबंधन व्यवस्था करनी चाहिए।
- विभिन्न सम्मेलनों जैसे मोंट्रियल घोषणा पत्र, लंदन व बीजिंग सम्मेलन में तापीय प्रदूषण को रोकने के जो उपाय बताए गए हैं, उनका अनुपालन एवं नियमों को लागू करना चाहिए।
- हमें अधिक से अधिक जितना अधिक हो सके वृक्षारोपण करना चाहिए। वृक्षारोपण कार्यक्रम को एक आंदोलन के रूप में चलना चाहिए। जिसके कारण कार्बन डाइऑक्साइड का प्रतिशत कम हो सके।
- नाभिकीय संयंत्रों पर उचित नियंत्रण एवं प्रबंधन की शर्तें लागू की जानी चाहिए।
- क्षेत्र की विशिष्ट पारिस्थितिकी के अनुकूल वृक्षारोपण का कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए।
- हमें हर बिंदु पर तथा हर स्थान पर मृदा अपरदन को रोकने की आवश्यकता है। जिसके कारण जल को पर्याप्त सूर्य का प्रकाश व ऑक्सीजन प्राप्त हो सकेगी।
- हमें बड़े पैमाने पर कूलिंग टावर स्थापित करने की आवश्यकता है। ये टावर वेस्ट ऊर्जा को वायुमंडल में वाष्प के माध्यम से छोड़ते हैं।
- हम सह उत्पादन प्रक्रिया में औद्योगिक जल अपवाह को ठंडा करके उसे घरेलू उपयोग में भी ला सकते हैं।
- हमें बड़े पैमाने पर शीतलन तालाबों का निर्माण करने की आवश्यकता है और साथ-साथ कृत्रिम झीलों का भी निर्माण करना होगा।
तापीय प्रदूषण की रोकथाम के लिए विभिन्न प्रकार की तकनीकियों का विकास किया गया है। और कई प्रकार की विधियाँ भी अपनाई जाती हैं। तापीय प्रदूषण को कम करने हेतु महीप सिंह अपनी पुस्तक में विभिन्न प्रकार की पद्धतियों का वर्णन करते हैं कि “प्रशीतन टैंक, छिड़काव टैंक, प्रशीतन मीनार आदि पद्धतियाँ अपनाई जा सकती है।”6 महीप सिंह आगे इन पद्धतियों की प्रक्रिया को भी समझते हुए लिखते हैं कि “छिड़काव टैंक के माध्यम से गर्म जल को फव्वारों की मदद से टैंक में छिड़का जाता है। जल की बूंदे वायु के संपर्क में आकर जल्दी ठंडी हो जाती हैं।”7 इस प्रकार हम तापीय प्रदूषण को कम करने में कुछ हद तक सफल हो सकेंगे।
निष्कर्ष: Conclusion:
मैं समझता हूँ कि Tapiya pradushan kya hai इस प्रश्न का उत्तर इस आलेख में देने का प्रयास किया गया है। आज हमारे समक्ष यह प्रदूषण एक चुनौती के रूप में खड़ा है। इस प्रदूषण के विभिन्न कारण हैं। उन कारणों में प्राकृतिक और मानव निर्मित कारण भी हैं किंतु प्राकृतिक कारण उतने प्रभाव नहीं डालते हैं क्योंकि प्रकृति द्वारा उन्हें स्वयं नियंत्रित कर लिया जाता है। समस्या तब उत्पन्न होती है, जब मनुष्य अपने भोगवादी दृष्टिकोण से प्रकृति को लूटने लगता है। जब मनुष्य अपनी क्रियाओं द्वारा प्रकृति का अत्यधिक दोहन करने लगता है, तब प्रकृति का संतुलन बिगड़ने लगता है। फलत: इस प्रकार की चुनौतियाँ हमारे समक्ष खड़ी हो जाती हैं। अत: हमें तापीय प्रदूषण को कम करने हेतु एक साथ कई चरणों में गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है। यह कार्य न केवल सरकारें बल्कि देश के प्रत्येक नागरिक को करने की आवश्यकता है।
संदर्भ: Reference:
- C.S. Rao, Environmental Pollution Control Engineering, New Age International, 2007, page-273
- https://www.unescwa.org/sd-glossary/thermal-pollution
- गंगा प्रसाद गुप्त, पर्यावरण विज्ञान, जन भारती प्रकाशन इलाहाबाद, 2014, पृष्ठ- 146
- आर. के. गुप्ता, पर्यावरण (भयावह भविष्य), युगबोध साहित्य दिल्ली, 2017, पृष्ठ- 124
- गंगा प्रसाद गुप्त, पर्यावरण विज्ञान, जन भारती प्रकाशन इलाहाबाद, 2014, पृष्ठ- 43
- महीप सिंह, पर्यावरण प्रौद्योगिकी, शिवांक प्रकाशन दिल्ली,2008, पृष्ठ- 67
- महीप सिंह, पर्यावरण प्रौद्योगिकी, शिवांक प्रकाशन दिल्ली,2008, पृष्ठ- 67