दिल्ली को निगलने निकल पड़ा है; थार का रेगिस्तान Has set out to swallow Delhi; Thar Desert: about thar desert

वर्तमान में पर्यावरण निम्निकरण तथा जलवायु परिवर्तन की ऐसी स्थिति बन चुकी है कि राजस्थान का थार रेगिस्तान दिल्ली की ओर लगातार बढ़ रहा है। about thar desert

थार रेगिस्तान का परिचय: Introduction to Thar Desert: about thar desert

थार रेगिस्तान, जिसे महान भारतीय रेगिस्तान के रूप में भी जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में एक शुष्क क्षेत्र है, जो भारत और पाकिस्तान में 200000 किमी (77,000 वर्ग मील) के क्षेत्र को कवर करता है। यह दुनिया का 18वां सबसे बड़ा रेगिस्तान है और दुनिया का 9वां सबसे बड़ा गर्म उपोष्णकटिबंधीय रेगिस्तान है।” About Thar desert

इस थार रेगिस्तान के पूर्व में प्राचीन पर्वत श्रेणी अरावली स्थित है। यह पर्वत श्रेणी थार रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रुकते आयी है, किंतु आज अरावली पर्वत श्रेणी के वृक्षों को समाप्त कर दिया गया है। इसलिए यह श्रेणी अब थार रेगिस्तान को बढ़ने से रोक नहीं पा रही है। 

अरावली पर्वत श्रेणी का परिचय: Introduction to Aravalli Mountain Range

अरावली पर्वत श्रेणी विश्व की प्राचीनतम पर्वतमालाओं में से एक है, जो गुजरात से लेकर दिल्ली तक पहुंचती है। इसकी लंबाई 692 किलोमीटर है। इस पर्वतमाला का महत्व आज ही नहीं बल्कि प्राचीन काल से रहा है। उत्तर मध्य भारत के भौगोलिक और प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में अरावली पर्वत श्रेणी की महत्वपूर्ण भूमिका है।

अरावली पर्वत श्रेणी राजस्थान को दो भागों में विभक्त करती है। इस श्रेणी के उत्तर पश्चिम में थार का रेगिस्तान है, जिसमें राजस्थान के कुल 11 जिले सम्मिलित हैं। इस पर्वतमाला के दक्षिण पूर्व में राजस्थान के कुल 16 जिले स्थित हैं।

अरावली पर्वत श्रेणी के दक्षिण पूर्व में स्थित राजस्थान के 11 जिले थार जिलों की तुलना में अधिक वर्षा वाले एवं विभिन्न दृष्टिकोण से समृद्ध हैं, किंतु पिछले कुछ वर्षों से उदयपुर, बांसवाड़ा, कोटा, बूंदी, झालावाड़, भरतपुर और अलवर आदि जिलों में लगातार अकाल और सूखा जैसी स्थिति बनती रही है। अकाल और सूखे जैसी स्थिति न केवल राजस्थान के इन जिलों में है बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मथुरा, इटावा, आगरा, मध्य प्रदेश के मालवा के कुछ क्षेत्र और गुजरात के कच्छ और सौराष्ट्र जिलों तक फैल रही है। 

पिछले कुछ सालों से गुजरात के करीबन 19 जिलों, राजस्थान के करीबन 27-28 जिलों व उत्तर प्रदेश के करीबन 46000 गांव में अकाल व सूखे जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है। राजस्थान के करीबन 32000 गांव आज सुख की चपेट में हैं।

जब तक अरावली की पहाड़ियाँ हरे-भरे वृक्षों से ढकी हुई थी और उन पहाड़ियों पर वृक्षों का परितंत्र प्राकृतिक रूप से समृद्ध था, तब तक इन पहाड़ियों द्वारा थार के रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोका गया था। लेकिन अब इन पहाड़ियों की स्थिति गंभीर रूप से चिंताजनक हो गई है क्योंकि अब इन पहाड़ियों पर वह प्राकृतिक वनावरण नहीं रहे हैं। फलत: इन पहाड़ियों में अब वह शक्ति नहीं बची है कि वह थार के रेगिस्तान को रोक सके। 

अरावली पहाड़ियों के प्राकृतिक वनों को पिछले 30-40 वर्षों से निरंतर अंधाधुंध काटा जा रहा है। इन वनों की कटाई के परिणाम स्वरूप रेगिस्तान अरावली पर्वत श्रृंखला का अतिक्रमण करते हुए करीब 5500 वर्ग किलोमीटर पूर्व की ओर फैल चुका है। थार का यह रेगिस्तान अरावली पर्वत श्रेणियों के बीच जो अंतराल हैं, उन अंतरालों से आगे बढ़ रहा है। अरावली श्रेणियों में ऐसी कुल 12 अंतराल हैं। इन 12 अंतरालों से थार का रेगिस्तान अपना आकार बढ़ता जा रहा है। जादूगोड़ा क्षेत्र में यूरेनियम विकिरण की भयावह स्थित के बारे में आप यहाँ पढ़ सकते हैं।

थार रेगिस्तान के विस्तार की प्रक्रिया: Process of expansion of thar desert

अरावली पर्वत श्रेणियों पर जो प्राकृतिक वन विद्यमान थे, उन्हें समाप्त कर दिया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि वृक्ष विहीन पहाड़ियों पर जब तेजी से वर्षा होती है, तो मृदा अपरदन और प्राकृतिक भूमि क्षरण होता है। ‌ प्राकृतिक भूमि मृदा के रूप में वर्षा जल में गाद के रूप में झीलों में जमा हो जाती है। जो झीलें प्राचीन काल से राजस्थान के जीवन का मुख्य आधार हुआ करती थीं। वर्षा जल के साथ मिट्ठी गाद के रूप में प्राकृतिक और कृत्रिम झीलों में जमा हो रही है। जैसे उदयपुर की प्रसिद्ध ‘पिछोला झील’, ‘उदय सागर’, ‘राजसमंद’, जयपुर की रामगढ़, अजमेर की ‘आना सागर झील’ आदि प्रमुख झीलों में करीबन आधे से अधिक गाद भराव हो चुका है। इसी कारण पिछले कुछ वर्षों से जिलों की नगरी उदयपुर में तथा राज्य की राजधानी जयपुर में भीषण पेयजल संकट उत्पन्न हुआ है। सदा जल से भरी रहने वाली ‘आना सागर झील’ तो कई बार पूर्णतया सूख रही है। 

भूमि क्षरण के संदर्भ में Ministry of environment forest and climate change के forest and wildlife division के desertification cell के अनुसार “भारत जिसकी लगभग 32% भूमि क्षरण के अधीन है और 25% मरुस्थलीकरण के दौर से गुजर रही है, को भूमि शरण तटस्थता की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए निवारक और उपचारात्मक दोनों रणनीतियों को अपनाकर स्थाई भूमि प्रबंधन के साथ-साथ भोजन, पानी और आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करना एक बड़ा काम है।” mope.gov.in  भूमि क्षरण की इसी प्रक्रिया के द्वारा थार मरुस्थल का विस्तार हो रहा है। 

राजस्थान में बारिश की कुल अवधि में तेजी से परिवर्तन हुआ है, कहीं अधिक वर्षा तो कहीं सूखे की स्थिति बन रही है।  Down to Earth के अनुसार….  “जलवायु परिवर्तन का प्रभाव विशेष रूप से राजस्थान में दिखाई दे रहा है, जहाँ पिछले कुछ वर्षों में इस रेगिस्तानी राज्य में औसत से अधिक वर्षा दर्ज की गई है। मार्च-मई के प्री-मानसून सीज़न में आमतौर पर 23.2 मिलीमीटर वर्षा होती है। इस साल यह औसत से 312 प्रतिशत अधिक थी।” dowtoearth.org.in

इसके अलावा यहाँ रेतीली आंधियों व तूफानों की बारंबारता में वृद्धि और इन तूफानों की गति में व्यापक वृद्धि हुई है। आज से 15-20 वर्ष पूर्व तूफानों की गति 40 से 50 किलोमीटर प्रति घंटा हुआ करती थी, लेकिन आज इन आंधियों की गति करीबन 150 से 170 किलोमीटर प्रति घंटा हो गई है। संपूर्ण राजस्थान में औसत वार्षिक वर्षा में व्यापक परिवर्तन आया है। वहीं औसत तापमान दर में वृद्धि हो रही है। यही स्थिति थार के रेगिस्तान का विस्तार करने में अनुकूलता प्रदान करती है। 

अकाल व सूखे के कारण खाद्यान्न बहुल क्षेत्र भी नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार…. “इस साल की शुरुआत में इसी तरह के गेहूं संकट के बाद भारत को चावल की कमी का सामना करना पड़ सकता है। सरकार द्वारा लगातार आश्वासन दिए जाने के बावजूद गेहूं और धान के घटते स्टॉक ने खरीफ धान खरीद को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं।” downtoearth.org.in

2021 दिसंबर में मोहम्मद इकबाल का एक लेख ‘द हिंदू’ में प्रकाशित हुआ, उस लेख में थार के रेगिस्तान पर केंद्रीय विश्वविद्यालय राजस्थान द्वारा किए गए अध्ययनों के निष्कर्षों के साथ विश्लेषण किया गया है कि “अरावली पर्वतमाला के क्रमिक विनाश के साथ-साथ, पश्चिमी राजस्थान में शक्तिशाली थार रेगिस्तान लोगों के पलायन, वर्षा पैटर्न में बदलाव, रेत के टीलों के फैलाव और अवैज्ञानिक वृक्षारोपण अभियान के कारण तेजी से फैल रहा है। भूमि क्षरण रेगिस्तान की पारिस्थितिकी के लिए खतरा पैदा कर रहा है, जबकि जलवायु परिवर्तन ने शुष्क क्षेत्र के प्रसार में योगदान दिया है।….विश्वविद्यालय ने भविष्यवाणी की है कि आने वाले वर्षों में रेगिस्तान से रेत के तूफ़ान राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) तक पहुँचेंगे। अरावली पहाड़ियों के कटाव के साथ रेत के तूफ़ान तीव्र हो जाएंगे, जो रेगिस्तान और मैदानों के बीच ‘प्राकृतिक हरित दीवार’ के रूप में कार्य करते हैं।” thehindu.com  थार रेगिस्तान अरावली पर्वत श्रेणियों के बीच अवस्थित अंतरालों से होते हुए आगे बढ़ रहा है।

अरावली पर्वत श्रेणियों के बीच विद्यमान  लूणी, सांभर, रेवासा-रानोली, सिंघाना-डिग्रोटा, गुढ़ा, घटवा-रूपगढ़, घाट की ढाणी- मोहना, भूणी, डागोर, मोरेड, उपीलवा, अजवा आदि अंतरालों से होते हुए पूर्व की ओर बढ़ रहा है। इन अंतरालों की कुल लंबाई करीबन 93 किलोमीटर है तथा वीरान पहाड़ियों को मिलाकर लगभग 300 किलोमीटर है। अन्य अंतरालों से अब तक थार रेगिस्तान का 5680 वर्ग किलोमीटर अतिरिक्त क्षेत्र के रूप में पूर्व की ओर बढ़ चुका है।

पश्चिम से पूरब की ओर बहने वाली हवाओं द्वारा रेत को उड़ा कर लाया जाता है और इन रेत के टीले अथवा गड्ढे बन जाते हैं। रेत के इन टीलों का बढ़ना पूर्व की ओर लगातार क्रियाशील है। थार रेगिस्तान के ये रेत के टीले पूर्व में सांभर, फुलेरा, जोबनेर से आसलपुर और वेगास होते हुए जयपुर जिले में गोविंदगढ़, पुष्कर से अजमेर के उत्तर पूर्व में खाचरियावास से रेनवाल, बेगावास से सीकर जिले में दक्षिण पूर्व की ओर झालाणा, डूंगर, नाहरगढ़ एवं अंबागढ़ की पहाड़ियों की ओर बढ़ रहे हैं। 

प्राचीन काल से एक निश्चित औसत वर्षा इस क्षेत्र में होती रही और प्राकृतिक वन परितंत्र सुरक्षित रहा और यही वन परितंत्र इन रेत के टीलों को आगे बढ़ने से रोकता रहा लेकिन आज जब वृक्ष ही नहीं रहें, तो इन टीलों को कौन रोक पाएगा।

पर्यावरण संतुलन के लिए भूभाग के एक तिहाई भाग पर वृक्षों का आवरण होना अत्यंत आवश्यक होता है। राजस्थान के वन विभाग के अनुसार “राजस्थान राज्य अपने अधिकांश भाग में शुष्क राज्य है। इसमें कुल भौगोलिक क्षेत्र का केवल 9.5% भाग ही वन के रूप में दर्जहै।” forest.rajasthan.gov.in वास्तविक वन आज करीबन 2% भूभाग पर ही है, बाकी घोषित वन क्षेत्र या तो बंजर भूमि है, या फिर नंगी पहाड़ियों के रूप में विद्यमान हैं, वहाँ वृक्ष नहीं हैं।

About Thar desert

थार रेगिस्तान विस्तार के कारण: Due to Thar Desert expansion

थार का रेगिस्तान पर्यावरण असंतुलन के कारण अपना विस्तार बढ़ा रहा है। इस पर्यावरण असंतुलन का प्रमुख कारण है, अरावली पर्वत श्रेणियों के वनों का अंधाधुन दोहन करना। सीकर, झुंझुनू, नागौर, जयपुर, टोंक, अजमेर आदि जिले अरावली क्षेत्र के मध्य में हैं। यहाँ की पर्वत श्रेणियों के प्राकृतिक वनों का पूर्णत: सफाया हो चुका है।

वनों की अंधाधुंध कटाई का प्रमाण इस बात से मिल जाता है कि राजस्थान में वन क्षेत्र तेजी से घट रहा है। Global Forest Watch संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार “ 2001 से 2023 तक, राजस्थान में आग से 75 हेक्टेयर वृक्षावरण नष्ट हुआ और अन्य सभी कारणों से 179 हेक्टेयर वृक्षावरण नष्ट हुआ। इस अवधि के दौरान आग के कारण सबसे अधिक वृक्षावरण का नुकसान 2004 में हुआ था, जिसमें आग के कारण 11 हेक्टेयर वृक्षावरण नष्ट हुआ था – जो उस वर्ष के सभी वृक्षावरण नुकसान का 44% था।” globalforestwatch.org

वनों की दिन प्रतिदिन घटती हुई सघनता का मुख्य कारण बढ़ती हुई वन उपज की मांग और वनों पर पशुधन की चढ़ाई तथा वृक्ष काटकर अवैध रूप से लकड़ी की चोरी आदि कई कारण गिनाये जा सकते हैं।

प्राकृतिक पर्यावरण और जीवन को बल प्रदान करने वाले इस प्रकार के प्राकृतिक तत्वों को समाप्त करने का कार्य किसने किया? इस प्रश्न का उत्तर बहुत साधारण और स्पष्ट है। 

रेगिस्तान के विस्तार को रोकने के उपाय: Measures to stop the expansion of desert

हमें रेगिस्तान के बढ़ते प्रभाव को रोकना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि रेगिस्तान का बढ़ना न केवल पर्यावरण को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा बल्कि इससे हमारी खाद्य सुरक्षा संकट में पढ़ने की पूर्ण संभावना है क्योंकि यह विस्तार पश्चिमी उत्तर उत्तर प्रदेश और हरियाणा तक फैल रहा है, जो देश के खाद्यान्न उत्पादन में अग्रणी प्रदेश हैं। यह रेगिस्तान भविष्य में पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश को अपनी चपेट में ले लेगा।

समय रहते हमें अरावली पर्वत श्रृंखला के विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता है। अरावली पर्वत श्रृंखला को पुनः प्राकृतिक वन के रूप में स्थापित करने की आवश्यकता है। अरावली पर्वत श्रृंखला पर आज करोड़ वृक्ष लगाने की आवश्यकता है और यह कार्य केवल राज्य सरकार के बस की बात नहीं है। इस कार्य में केंद्र सरकार को भी अपना योगदान देने की आवश्यकता है। 

केंद्र सरकार ‘हिमालय और पश्चिमी पर्वतीय विकास योजना’ को सफलतापूर्वक लागू कर सकती है। ऐसी और भी परियोजनाओं की योजना बनाई जा सकती है क्योंकि यह केवल राजस्थान की समस्या नहीं है बल्कि इस समस्या के अंतर्गत पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश, दिल्ली और गुजरात आदि राज्य सम्मिलित हैं। 

केंद्र सरकार को विभिन्न परियोजनाओं का सफल क्रियान्वयन करने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है। साथ ही साथ राज्य सरकार अंधाधुंध होती वृक्षों की कटाई को शक्ति से रोकने का प्रयास करें। क्योंकि अब तक राज्य सरकारें अपने वृक्षों को बचाने में असफल रही है। राज्य सरकारें वन एवं पर्यावरण के प्रति गैर जिम्मेदार रही हैं।

राज्य के वन विभाग द्वारा हर साल करोड़ों वृक्ष लगाने का दावा किया जाता है। लेकिन यह दावा केवल फाइलों और कागजों पर सफल रूप से क्रियान्वित हो जाता है। व्यावहारिकता में इन दावों का स्वरूप कहीं दिखाई नहीं देता है। यह भी एक विडंबना है कि जंगलों की अवैध कटाई में ‘वन विभाग’ के ही कुछ कर्मचारी लिप्त दृष्टिगोचर होते हैं। अवैध रूप से वृक्षों की कटाई करने वाले माफिया और वन विभाग के अधिकारियों की बंदरबाँट का परिणाम यह है कि आज पर्यावरण पूर्ण रूप से समाप्त प्राय हो चुका है।

निष्कर्ष: Conclusion 

थार का रेगिस्तान अपने आप स्वयं विस्तार नहीं कर रहा है बल्कि मनुष्य की अनुचित अमानवीय क्रियाएँ उसे बढ़ाने में सहायता प्रदान कर रही है। जब मनुष्य व्यक्तिगत स्वार्थ भावनाओं का गुलाम बन जाता है, तब उसे न ही समाज की भलाई दिखाई देती है और न ही पर्यावरण का संरक्षण। आज का उपभोक्तावादी मानसिकता को बढ़ाने वाली राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा पर्यावरण को बेरहमी से समाप्त किया जा रहा है। इस पूँजीपति वर्ग को पर्यावरण संसाधनों का एक भंडार प्रतीत होता है। पूँजीपति वर्ग द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का अपने हित में अप्राकृतिक रूप से, अनुचित रूप से, अमानवीय रूप से उपयोग किया जाता है। राज्य सरकारें और केंद्र सरकार चुपचाप मौन रहकर इस सारी लूट को देखते रहती है।

कहना न होगा कि हमें बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण कार्यक्रम को सफल रूप से आगे बढ़ना होगा। मैदान, सड़क, रेलमार्गों के सहारे-सहारे ही नहीं बल्कि पहाड़ियों पर जहाँ कहीं भी हम वृक्ष लगा सकते हैं, वहाँ अवश्य वृक्ष लगाने की आज आवश्यकता है। हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि केवल वृक्ष लगा देने से हमारा कार्य पूर्ण नहीं हो जाता है बल्कि उन वृक्षों को दो-तीन वर्षों तक बड़ा करना भी हमारा कर्तव्य है। इस वृक्षारोपण कार्यक्रम में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है। प्रत्येक व्यक्ति को तन, मन और श्रद्धा भाव से इस कार्य में आगे बढ़ना होगा।

 

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