Bharat me mangrove van हम भारतीयों के लिए प्रकृति से प्राप्त एक वरदान है। पर्यावरण की दृष्टि से मैंग्रोव वन पारितंत्र जैव-विविधता से समृद्ध होते हैं। समुद्री प्राकृतिक आपदाओं के समय संरक्षक की भूमिका निभाते हैं और तटीय जान माल की रक्षा करते हैं। मैंग्रोव वन कार्बन सिंक की भूमिका निभाते हैं तथा सूर्य की पराबैंगनी विकिरणों से हमारी रक्षा भी कर सकते हैं। भविष्य में ओज़ोन परत ह्रास की चुनौतियों से निपटने हेतु मैंग्रोव वन व्यापक संभावनाओं को दर्शाते हैं।
मैंग्रोव वनों का परिचय: Introduction to Mangrove Forests: Bharat me mangrove van
मैंग्रोव वृक्ष अथवा वन उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय ऐसे क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जो अंतर्ज्वारीय, दलदली भूमि, लवणीय जल, ज्वारीय उतार चढ़ाव से युक्त होते हैं। मैंग्रोव वृक्ष लवणीय जल, ऑक्सीजन रहित भूमि जैसी विपरीत स्थितियों में भी विकसित होने में सक्षम होते हैं।
मैंग्रोव वृक्ष प्रजनन की जीवंतता प्रदर्शित करते हैं अर्थात मैंग्रोव वर्षों के बीज भूमि पर गिरने से पहले ही वृक्ष पर ही अंकुरित होने लगते हैं। लवणीय जल में प्रकृति का यह एक अनुकूलन तंत्र है। मैंग्रोव वृक्ष अपनी पत्तियों द्वारा अतिरिक्त लवणीयता को अलग करते हैं। इन वृक्षों की श्वसन एवं न्यूमेटोफोर्स जैसी जड़ों की एक विशेष संरचना होती है। भारत राज्य वन रिपोर्ट 2021 के अनुसार “मैंग्रोव वन के अंतर्गत क्षेत्र में 17 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है, जिससे भारत का कुल मैंग्रोव कवर 4,992 वर्ग किमी हो गया है। मैंग्रोव आवरण में वृद्धि दर्शाने वाले शीर्ष 3 राज्य: ओडिशा (8 वर्ग किमी), महाराष्ट्र (4 वर्ग किमी), और कर्नाटक (3 वर्ग किमी)।” fai.nic.in
भारत में मैंग्रोव वनस्पति स्थलों की सूची (पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार) List of mangrove vegetation sites in India (as per Ministry of Environment, Forest and Climate Change)
- पश्चिम बंगाल: सुंदरवन
- ओड़िशा: भितरकनिका, महानदी, स्वर्णरेखा, देवी, धामरा, कच्छ वनस्पति अनुवांशिकी संसाधन केंद्र, चिल्का
- आंध्र प्रदेश: कोरिंगा, पूर्वी गोदावरी, कृष्णा
- तमिलनाडु: पिचवरम, मुथुपेट, रामनद, पुलीकट, कजूवेली
- अंडमान एवं निकोबार: उत्तरी अंडमान, निकोबार
- केरल: वैंबनाड़, कन्नूर (उत्तरी केरल)
- कर्नाटक: कुंडापुर, दक्षिण कन्नड़/होनावर, कारवार, मंगलौर वन प्रभाग
- गोवा: गोवा
- महाराष्ट्र: अचरा रत्नागिरी, देवगढ़, विजयदुर्ग, वेलदूर, कुंडालिका-रेवदानदा, मुंबई दिवा, विकरौली, श्रीवर्धन, वैतरणा वसई, मनोरी, मालवण
- गुजरात: कच्छ की खाड़ी, खंभात की खाड़ी
2021 वन रिपोर्ट के अनुसार भारत में मैंग्रोव वनों का क्षेत्रफल (वर्ग किमी. में) Area of mangrove forests in India as per 2021 Forest Report (in sq.km.)
Sl No.
क्र. |
State/UT
राज्य/ केन्द्रशासित प्रदेश |
Very Dense Mangrove सघन मैंग्रोव क्षेत्र | Moderately Dense Mangrove
मध्यम सघन मैंग्रोव क्षेत्र |
Open Mangrove
खुला मैंग्रोव क्षेत्र |
Total
कुल क्षेत्र |
Charge with respect to ISFR 2019
2019 की वन रिपोर्ट के अनुसार परिवर्तन |
1 | Andhra Pradesh | 0 | 213 | 192 | 405 | 1 |
2 | Goa | 0 | 21 | 6 | 27 | 1 |
3 | Gujarat | 0 | 169 | 1006 | 1175 | -2 |
4 | Karnataka | 0 | 2 | 11 | 13 | 3 |
5 | Kerala | 0 | 5 | 4 | 9 | 0 |
6 | Maharashtra | 0 | 90 | 234 | 324 | 4 |
7 | Odisa | 81 | 94 | 84 | 259 | 8 |
8 | Tamil Nadu | 1 | 27 | 17 | 45 | 0 |
9 | West Bengal | 994 | 692 | 428 | 2114 | 2 |
10 | A&N Island | 399 | 168 | 49 | 616 | 0 |
11 | D&NH and Daman & Diu | 0 | 0 | 3 | 3 | 0 |
12 | Puducherry | 0 | 0 | 2 | 2 | 0 |
Total | 1,475 | 1,481 | 2,036 | 4992 | 17 |
भारत में मैंग्रोव वन की जैव-विविधता: Biodiversity of Mangrove Forest in India
लवणीय जल और दलदली भूमि में विकसित होने के बावजूद मैंग्रोव वन में व्यापक जैव विविधता पाई जाती है। मैंग्रोव वनों में न केवल वनस्पतियों की विविधता बल्कि जीव-जंतुओं एवं प्राणियों की भी विविधता पाई जाती है। मैंग्रोव वन अन्य प्रजातियों की वनस्पतियों एवं जीव-जंतुओं तथा प्राणियों के लिए भोजन एवं आवास की सुविधा प्रदान करते हैं। इन वनों में वनस्पति विविधता के अतिरिक्त कवक, शैवाल और जीवाणु भी पाए जाते हैं। तमिलनाडु में स्थित अकेले पिचवरम मैंग्रोव वन में झींगे की 30 प्रजाति, केकड़ों की 30 प्रजाति, मोलस्क की 20 प्रजाति और मछलियों की 200 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि मैंग्रोव वन प्रजाति विविधता की दृष्टि से समृद्ध होते हैं।
मैंग्रोव वनों के आसपास घास भूमियों का विस्तार अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से होता है।
मैंग्रोव वनों की वनस्पति विविधता: Vegetation Diversity of Mangrove Forests
राइज़ोफोरा प्रजाति, एकेंन्थस, एक्रोस्टिकम, एजियनिटिज, ऐजिसिरस, ब्रूगेरिया, सेरिओरस, ऐक्सोकेरिया, नाइपा, पेम्किम, एविसिनिया, कैरलोप्स, लेगुनकुलेरिया आदि।
मैंग्रोव वनों की जीव जंतुओं एवं प्राणियों की विविधता: Diversity of animals and creatures of mangrove forests
केकड़े (कार्डिसोमा कार्निफैक्स, सिसर्मा विडेन्स) ऊका लैक्टेल, ऊका बोकान्स, मेंढ़क, मगरमच्छ, सांप, छिपकली, ग्रे हेरोन, इग्रेट, किंग फिशर, (क्लोरिस, हेल्सियेन), द्विलिंगी किलीफिस, बंदर लोमड़ी खाराई ऊंट, उदबिलाव, हिरण, जंगली सूअर।
मैंग्रोव वनों की विशेषताएँ: Characteristics of Mangrove Forests
विश्व में मैंग्रोव वन इसलिए प्रसिद्ध हैं क्योंकि मैंग्रोव वृक्षों की विशेषताएँ अन्य वृक्षों से भिन्न होती हैं। अपनी विशिष्टता, जल से समीपता, जैव-विविधता की दृष्टि से संमृद्धता और जीव-जंतुओं की विभिन्नता के कारण मैंग्रोव वन मनुष्य के लिए आकर्षक स्थान होते हैं। मैंग्रोव वनों की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं।
- विशेष श्वसन जड़ें- मैंग्रोव वृक्ष अधिकतर ऐसी भूमि पर विकसित होते हैं, जहाँ की भूमि अस्थिर होती है क्योंकि वहाँ समुद्री लहरों से भूमि का कटाव होता है। इस अस्थिर भूमि में मैंग्रोव वृक्ष की जड़े उस वृक्ष को स्थायित्व प्रदान करती हैं और श्वसन प्रक्रिया में सहायता करती हैं। ऐसी जड़ों को श्वसन जड़ें भी कहा जाता है। इन जड़ों के माध्यम से मैंग्रोव वृक्ष ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान करते हैं। इन जड़ों को ‘न्यूमेटोफोर्स’ भी कहा जाता है।
- नमक अथवा क्षारीयता सहन करने की क्षमता- सभी प्रकार के मैंग्रोव वृक्ष कम अधिक रूप से लवनीय जल में विकसित होने की क्षमता रखते हैं। ये वृक्ष पानी का अवशोषण करते समय नमक की कुछ मात्रा को अलग कर देते हैं। मैंग्रोव वृक्ष अपने उत्तकों में अन्य पौधों एवं वृक्षों की तुलना में नमक की अधिक मात्रा सहन करने की क्षमता रखते हैं।
- अत्यधिक सहनशीलता- मैंग्रोव वृक्ष अधिक सहनशील होते हैं क्योंकि इनकी जड़ों द्वारा इन्हें बल मिलता है, स्थिरता मिलती है। इनकी जड़ें व्यापक रूप से फैली होती हैं, इसलिए मैंग्रोव वृक्ष प्रतिदिन खारे पानी के बहाव को झेलते तो है ही, साथ-साथ ज्वार भाटा तथा तूफानी लहरों को भी झेलने की क्षमता रखते हैं।
- मोटी चिकनी पत्तियाँ- मैंग्रोव वनस्पतियों में विशेष प्रकार की मोटी चिकनी पत्तियाँ पाई जाती हैं। वाष्पोत्सर्जन से कम से कम जल का उत्सर्जन होने में इन पत्तियों की विशेष भूमिका होती है।
- जरायुजता- मैंग्रोव वृक्ष की कुछ प्रजातियाँ जैसे एविसी निया एल्बा (Avicennia alba) गुढ़जरायुजता दर्शाती हैं। इस प्रक्रिया के अंतर्गत वृक्ष के बीज नीचे गिरने से पहले ही उस बीज से भ्रूण का विकास होने लगता है। अर्थात पेड़ के ऊपर ही बीज से छोटे पौधे के भ्रूण का विकास होने लगता है।
- गुरुत्वाकर्षण के विपरीत जड़ें- सामान्यतः वृक्षों की जड़े नीचे जमीन में जाती हैं लेकिन मैंग्रोव वृक्ष की जड़ें गुरुत्वाकर्षण के विपरीत भूमि के अंदर से ऊपर सतह पर आने लगती हैं।
- अनुकूलन जड़ें- जहाँ भी मैंग्रोव वृक्षों का विकास होता है, उस क्षेत्र में ऑक्सीजन की कमी पाई जाती है। इसलिए मैंग्रोव वृक्षों की अनुकूलन जड़ें भी होती हैं। इन जड़ों के द्वारा मैंग्रोव वृक्ष ऑक्सीजन प्राप्त करते हैं।
- विशेष नव-अंकुरित पौधें- मैंग्रोव वृक्षों की बहुत सी प्रजातियों के नव-अंकुरित पौधों में पर्याप्त मात्रा में खाद्य सामग्री संचित होती हैं। इन नव-अंकुरित पौधों की विशेष संरचना होती है, जिसके कारण वे जल पर तैरते हैं और जीवित भी रहते हैं।
- वायवीय जड़ें- मैंग्रोव वृक्ष की वायवीय जड़ें होती हैं। इन जड़ों को श्वसन जड़ें भी कहते हैं। एक वृक्ष पर दस हजार श्वसन जड़ें हो सकती हैं।
भारत में मैंग्रोव वनों का महत्व: Significant of mangrove forest in India
- प्राकृतिक शरण स्थल: मैंग्रोव वन जहाँ पाए जाते हैं, वहाँ विभिन्न जीव-जंतुओं के लिए आवास प्रदान करते हैं। मैंग्रोव वृक्षों की गुंथी हुई जड़ें छोटे जीवों के लिए सुरक्षात्मक कवच का कार्य करती हैं।
- भोजन के स्रोत: मैंग्रोव वन विभिन्न जीव-जंतुओं और प्राणियों के लिए एक भोजन का स्रोत होता है। कई जीव-जंतु एवं प्राणी मैंग्रोव वृक्ष की पत्तियों को भोजन के रूप में खाते हैं। मैंग्रोव वनों द्वारा उत्सर्जित पदार्थों को जीवाणुओं द्वारा उपयोगी पदार्थ में अपघटित कर दिया जाता है।
- प्राकृतिक जल शोधन: पानी के अंदर मैंग्रोव वृक्षों की जालीनुमा जड़ें एक प्रकार का स्पंज बनती हैं तथा उन जड़ों से शंख मछली चिपकी रहती हैं। इन जीवों द्वारा पानियों को शुद्ध किया जाता है तथा जल से तलछट और पोषक तत्वों को अलग कर दिया जाता है। फलस्वरुप इस क्षेत्र में स्वच्छ जल उपलब्ध हो जाता है। इन जीवों और मैंग्रोव वृक्षों के द्वारा तटीय क्षेत्रों में भारी धातु जनित अथवा अन्य प्रदूषण को भी कम कर दिया जाता है। मैंग्रोव वन स्वयं एक समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र होता है लेकिन वह अन्य विभिन्न तंत्रों को समृद्ध बनाने में अपनी भूमिका निभाता है।
- सूर्य की पराबैंगनी-बी किरणों से सुरक्षा: मैंग्रोव वृक्षों की पत्तियों में ‘लेवोनाइड’ का उत्पादन होता है, जो पराबैंगनी विकिरणों को रोकने में सक्षम होता है। कहना न होगा कि ओजोन परत ह्रास की स्थिति में मैंग्रोव वन हमारी मानव सभ्यता के लिए कितना महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
- तटीय अपरदन अथवा क्षरण की सुरक्षा: मैंग्रोव वृक्ष समुद्र में उठने वाली लहरों की तीव्रता को कम कर देते हैं, फलस्वरुप तटों की रक्षा होती है। यही नहीं नदियों, नालों से आने वाली बाढ़ की गति को भी कम कर देते हैं, जिससे तट तथा तटीय समुदायों की रक्षा होती है।
- तलछट हटाने का कार्य: मैंग्रोव वृक्ष जल में जो तलछठ होते हैं, उन्हें अपनी जड़ों में अटका लेते हैं। मैंग्रोव वृक्ष तलछट के लिए एक कुंड के समान कार्य करते हैं। वह अपनी जटिल वायवीय जड़ों की सहायता से तलछट को रोक लेते हैं। इस प्रकार मैंग्रोव वृक्ष भूमि विस्तार करने में भी अपनी भूमिका निभाते हैं।
- विभिन्न आपदाओं में संरक्षक की भूमिका: मैंग्रोव वन विशाल समुद्र में विकसित होने वाले विभिन्न प्रकार के तूफान एवं चक्रवातों के फल स्वरुप उत्पन्न तीव्र लहरों को रोकने में सक्षम होते हैं। ज्वार तथा तीव्र जल धाराओं को रोक कर तटीय क्षेत्र के जान-माल एवं मछुआरों की रक्षा करते हैं।
- मैंग्रोव वृक्षों का औषधीय उपयोग: मैंग्रोव वन विभिन्न प्रकार के औषधीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। इन वनों में विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक और दुर्लभ औषधीय पौधें एवं वृक्ष पाए जाते हैं। मैंग्रोव वनस्पतियों का प्रयोग चर्म रोग, पेचिश तथा मूत्र संबंधी विभिन्न प्रकार के उपचार हेतु एवं रक्त शुद्धीकरण तथा गर्भनिरोधक के लिए उपयोग किए जाते हैं। भारत का आयुष विभाग यदि इन मैंग्रोव वनों में आयुर्वेदिक शोध कार्य करें, तो आश्चर्यजनक निष्कर्ष प्राप्त होने की व्यापक संभावना है।
- मैंग्रोव वनों का आर्थिक लाभ: मैंग्रोव वन विभिन्न आर्थिक लाभ की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। 1 टन मैंग्रोव लकड़ी के ईंधन क्षमता 5 टन कोयले के बराबर होती है। अनुमान है कि एक हेक्टर मैंग्रोव वनों से कुल 12000 डॉलर का आर्थिक लाभ हो सकता है।तटीय समुदायों द्वारा मछली उत्पादन तथा विभिन्न समुदायों की आजीविका इन मैंग्रोव वनों से चलती है। पर्यटन के क्षेत्र में मैंग्रोव पर्यावरण का दृश्य हर कोई देखना चाहेगा। पक्षियों को देखना, कायाकिंग और प्राकृतिक दृश्य का मनोरंजक अवसर यहाँ पर उपलब्ध होते हैं।
- कार्बन पृथक्करण में मैंग्रोव वनों की भूमिका: मैंग्रोव वन वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अलग करते हैं और अपने बायोमास तथा तलछट के अंदर संग्रहित करते हैं। इस दृष्टिकोण से मैंग्रोव वन अधिक सफल कार्बन सिंक होते हैं।
भारत के प्रमुख मैंग्रोव वन: Major Mangrove Forests of India
भारत में कुल नौ राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में मैंग्रोव वन पाए जाते हैं। इन राज्यों में सुंदरवन, भितरकनिका, कोरिंगा, पिचवरम, वैंबनाड़, कुंडापुर, अचरा रत्नागिरी, कच्छ की खाड़ी आदि महत्वपूर्ण मैंग्रोव वन हैं।
सुंदरवन-पश्चिम बंगाल: Sundarbans-West Bengal
- सुंदरवन भारत का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है। यह वन गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघाना नदियों के मुहानों पर फैला हुआ है। यह पश्चिम बंगाल तथा बांग्लादेश में 10000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इस वन का 40% भाग भारत में है। इस वन में करीबन 250 से अधिक प्रजातियों की विविधता पाई जाती हैं।
- इस वन को यूनेस्को द्वारा राष्ट्रीय उद्यान विश्व धरोहर का दर्जा प्रदान किया गया है।
- सुंदरवन के अंतर्गत रॉयल बंगाल टाइगर, मगरमच्छ, गंगा डॉल्फिन, ओलिव रिडले कछुआ, खारे पानी के मगरमच्छ, मैंग्रोव हार्सशू तथा विभिन्न प्रकार के केकड़ों की अनेक संकटाग्रस्त प्रजाति पाई जाती हैं।
- सुंदरवन विकिपीडिया के अनुसार “कनक सुधान्याखाली वॉच टावर, होलीडे आईलैंड, कटका सुंदरवन, कपिल मुनि मंदिर, सजनेखली पक्षी अभयारण्य, भारत सेवाश्रम संघा मंदिर, हिरण पांइ, क्रोकोडाइल सेंचुरी” hi.m.wikipedia.org आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।
भितरकनिका मैंग्रोव वन- ओडिशा: Bhitarakanika Mangrove Forest- Odisha
- भारत में भितरकनिका मैंग्रोव वन उड़ीसा राज्य में स्थित है। यह वन सुंदरवन के पश्चात भारत में दूसरा सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है। यह वन करीबन 250 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस वन में भीतरकनिका का वन्य जीव अभयारण्य और भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान भी शामिल हैं।
- यह वन डेढ़ हजार से अधिक खारे पानी के मगरमच्छ, ढाई सौ से अधिक पक्षी प्रजातियों तथा भारत में सर्वाधिक एस्टुरीन मगरमच्छों का आवास स्थान है।
- भितरकनिका मैंग्रोव वन में ग्रे हेरांन, लिटिल कांर्मोरेंट, ब्लैक-टेल्ड, गांडविट और ओरिएंटल व्हाइट आइबिस आदि पक्षियों को देखा जा सकता है।
गोदावरी कृष्णा मैंग्रोव वन- आंध्र प्रदेश Godavari Krishna Mangrove Forest- Andhra Pradesh
- गोदावरी नदी और कृष्णा नदी के मुहाने पर फैला यह आंध्र प्रदेश में स्थित प्रमुख मैंग्रोव वन है। आंध्र प्रदेश में करीबन 400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में यह फैला हुआ है। कृष्णा नदी के मुहाने पर कृष्णा वन्य जीव अभयारण्य और गोदावरी नदी के मुहाने पर ‘कोरिंगा वन्य जीव अभ्यारण्य’ प्रमुख दर्शनीय स्थल है। यह मैंग्रोव वन मोलस्क, झींगा मछलियाँ और केकड़ों की विभिन्न प्रजातियों से समृद्ध है। तालाब के बगुला, छोटा बगुला, रेड वेडल्ट, लैपविंग यहाँ के विशिष्ट पक्षियों में से हैं।
पिचावरम मैंग्रोव वन- तमिलनाडु: Pichavaram Mangrove Forest- Tamilanadu
- पिचावरम मैंग्रोव वन वीलर नदी और कोलेरू नदियों के मुहानों के बीच फैला हुआ है। इस मैंग्रोव वन की प्रमुख दो विशेषताएँ यह हैं कि यह वन एक विशाल रेत की पट्टी द्वारा समुद्र से अलग होता है। इस वन में विभिन्न प्रकार के कई द्वीप स्थित हैं। इस मैंग्रोव वन में कई प्रकार की जल गतिविधियाँ सैलानियों को आकर्षित करती हैं।
- लिटिल एग्रेट्स, तालाबी बगुलें, जल कौवे, ओपनबिल स्टार्क तथा विभिन्न जलीय एवं स्थलीय प्रजातियों से यह वन समृद्ध है।
कच्छ की खाड़ी मैंग्रोव वन- गुजरात: Gulf of Kutch Mangrove Forest- Gujarat
- 1177 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला यह वन भारत का प्रमुख मैंग्रोव वन है। इस मैंग्रोव वन में बौने मैंग्रोव वृक्ष (झाड़ियाँ) से लेकर लंबे सुंदरवन जैसे वृक्षों का सम्मिश्रण है।
- इस मैंग्रोव वन में एविसेनिया मरीना, वृक्ष पाए जाते हैं, जिन्हें आमतौर पर ‘ग्रे मैंग्रोव’ वृक्ष कहा जाता है। विभिन्न प्रकार के मूँगे, केकड़ों, मछलियों तथा झींगों की प्रजातियाँ यहां दर्शनीय हैं।
भारतीय मैंग्रोव वनों के समक्ष चुनौतियाँ: Challenges facing Indian mangrove forests
- भारत में जलीय कृषि, शहरीकरण, औद्योगिकरण, कृषि कार्य का विस्तार तथा विभिन्न अवसंरचनात्मक विकास हेतु मैंग्रोव वनों का सफाया किया जा रहा है। इन मानवीय गतिविधियों के कारण मैंग्रोव विविधता को नुकसान होता है तथा विभिन्न प्रकार की प्रजातियों का आवास विखंडित होता है। भारत में झींगा फार्म का विकास मैंग्रोव वनों में किया जा रहा है, जो प्रमुख चुनौती के रूप में खड़ी है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री जलस्तर में वृद्धि एक अन्य चुनौती के रूप में उभरी है। जलवायु परिवर्तन के परिणाम स्वरूप चक्रवातों तथा तूफानों की बारंबारता में वृद्धि देखी जा रही है, जिसके कारण मैंग्रोव परितंत्रों को भारी नुकसान होता है।
- अनुचित मानवीय गतिविधियों के परिणाम स्वरुप कृषि अपवाह, औद्योगिक कचरा, अनुचित अपशिष्ट निपटान के कारण मैंग्रोव वन क्षेत्र में भारी प्रदूषण हो रहा है।
- मैंग्रोव वन परितंत्रों का उचित एकीकृत प्रबंधन भारत में नहीं हो पा रहा है, जिसके परिणाम स्वरुप प्रवाल भित्तियों, समुद्री घासो तथा मैंग्रोव वनों को भारी नुकसान हो रहा है।
भारत सरकार द्वारा मैंग्रोव संरक्षण हेतु उठाए गए कदम: Steps taken by the Government of India for mangrove conservation
सन 1976 में भारत सरकार द्वारा मैंग्रोव संरक्षण हेतु ‘भारतीय मैंग्रोव समिति’ की स्थापना की गई। मैंग्रोव पारितंत्र का संरक्षण, विकास और इस संदर्भ में सरकार को सलाह देना, इस समिति का प्रमुख उद्देश्य है। इस समिति में वैज्ञानिकों, अनुसंधान कर्ताओं तथा मैंग्रोव विशेषज्ञों को शामिल किया गया।
चेन्नई में ‘MS स्वामीनाथन शोध संस्थान’ की स्थापना की गई। यह शोध संस्थान तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और ओड़िशा के राज्य सरकारों के सहयोग से मैंग्रोव वन प्रबंधन का कार्य किया।
UNDP और यूनेस्को द्वारा मैंग्रोव संरक्षण की दिशा में जागरूकता और संरक्षण के अनेक प्रयत्न किए जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल में स्थित सुंदरवन को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है। भारत सरकार के द्वारा मैंग्रोव वृक्षारोपण कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं।
निष्कर्ष: Conclusion
भारत के कुल नौ राज्यों तथा तीन केन्द्रशासित प्रदेशों में मैंग्रोव वन पाए जाते हैं। मैंग्रोव पारितंत्र जैव-विविधता की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। मैंग्रोव वन वनस्पति एवं जीव-जंतुओं का आवास स्थान होता है। भारत में सुंदरवन, भीतरकनिका, गोदावरी-कृष्णा, पिचावरम, कच्छ की खाड़ी आदि महत्वपूर्ण मैंग्रोव क्षेत्र हैं। प्राकृतिक शरण स्थल, भोजन के स्रोत, कार्बन सिंक, आपदाओं से रक्षा, तट रक्षक तथा औषधीय दृष्टि से इन मैंग्रोव वनों का व्यापक महत्व है। वर्तमान समय में मैंग्रोव पारितंत्र के समक्ष व्यापक चुनौतियाँ भी विद्यमान हैं। इन चुनौतियों को कम करने और मैंग्रोव वनों का संरक्षण करने का कर्तव्य सरकार के साथ-साथ हम सभी भारत के नागरिकों का भी है। हमें इस दिशा में आगे बढ़ना ही होगा। तभी यह संभव हो पाएगा।