आलेख का सार: Summary of the article:
आज भारत में ही नहीं बल्कि E Kachara की समस्या संपूर्ण विश्व के समक्ष खड़ी है। दुनिया भर में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उपयोग में वृद्धि, इस समस्या का सबसे बड़ा कारण है। ई-कचरे E Kachara की समस्या विश्व के अधिकांश देशों के लिए एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या के रूप में उभरी है। कई अध्ययनों से पता चलता है कि ई-कचरे E Kachara की समस्या उपयुक्त रीसाइक्लिंग विधियों की कमी, विभिन्न खतरनाक तत्वों की उपस्थिति के कारण मनुष्यों, पौधों और जानवरों के लिए खतरनाक और पर्यावरणीय आपदाओं और स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का कारण बन सकती है। अत: आज ई-कचरा प्रबंधन की वर्तमान स्थिति और उसके निपटान की परंपरागत विधियों की समीक्षा करना आवश्यक हो जाता है। भारत, एशिया और प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते ई-कचरा उत्पादन और ई-कचरा प्रबंधन की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ई-कचरा उत्पादन और उसके प्रबंधन की विधियों पर प्रस्तुत आलेख में प्रकाश डाला गया है।
E Kachara ई-कचरे का परिचय: Introduction to E-waste:
20 वीं सदी में सूचना और संचार के क्षेत्र में एक क्रांति देखी गई। जिससे हमारे जीवन, अर्थव्यवस्था, उद्योगों आदि को पूर्ण रूप से परिवर्तित कर दिया हैं। सूचना क्रांति के असंख्य फायदों के अलावा, हमने ई-कचरे सहित उत्पादन अपशिष्ट उत्पादों के कारण विभिन्न समस्याएं भी देखी हैं।
कचरा वह वस्तु है जो अवांछित या अनुपयोगी हो गया हो। नागरिकों के रूप में यह सुनिश्चित करना हमारा कर्तव्य है कि खतरनाक घरेलू इलेक्ट्रॉनिक कचरे आदि अपशिष्ट सहित पदार्थों का उचित तरीके से निपटान किया जाए। प्रौद्योगिकी का बढ़ता विकास, तकनीकी नवाचार और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग में अनुपयोगी उत्पादन जो विश्व में तेजी से बढ़ रहा है। अनुपयोगी इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद और अपशिष्ट जिसमें एंड ऑफ लाइफ (जिसकी आयु समाप्त हो गई है) इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण उत्पाद शामिल है जैसे- फ्रिज, टीवी, फोन, रेडियो, ओवन, स्पीकर आदि। ई-कचरे की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालते हुए संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक रिपोर्ट जारी की गई जिसमे कहा गया कि “बेकार पड़े बिजली के उपकरणों से निकलने वाला ई-कचरा इकट्ठा होता जा रहा है और पुनर्चक्रण गति नहीं पकड़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि इलेक्ट्रॉनिक्स से निकलने वाला कचरा दुनिया भर में जमा हो रहा है जबकि रीसाइक्लिंग दरें कम बनी हुई हैं और इसके और भी गिरने की संभावना है।”1 इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में उपयोग किए जाने वाले उत्पादों की विस्तृत श्रृंखला के कारण ई-कचरे की संरचना जटिल होती जा रही है। ई-कचरे में प्लास्टिक और स्टील, काँपर, सीसा, आर्सेनिक, क्रोमियम आदि जैसी धातुएं शामिल हैं जो जीवित प्राणियों और पर्यावरण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। ई-कचरे के कुछ प्रमुख सूत्रों में उपभोक्ताओं द्वारा फेंके गए इलेक्ट्रॉनिक्स मशीनें जैसे- टीवी, फोन, रेडियो, स्पीकर आदि शामिल हैं, जिन्हें नए मॉडलों से बदल दिया गया है। प्रयोग, उपचार और निदान के लिए उपयोग किए जाने वाले विभिन्न चिकित्सा उपकरण। बैटरी, नेटवर्किंग केबल, बची हुई सामग्री, पुराने हिस्से आदि भी ई-कचरे के अंतर्गत आते हैं।
The Economic Times द्वारा भारत में इस समस्या पर प्रकाश डालते हुए लिखा गया कि “भारत में ई-कचरे की समस्या बढ़ती जा रही है। पांच वर्षों में ई-कचरा 72% बढ़ गया है, जो हाल ही में 17.51 लाख टन तक पहुंच गया है। स्मार्टफोन और रेफ्रिजरेटर जैसे बेकार इलेक्ट्रॉनिक्स का ढेर लग रहा है।”2
ई-कचरे की खतरनाक प्रकृति के कारण, अनुचित निपटान या रीसाइक्लिंग से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और साथ ही मनुष्यों और विभिन्न जानवरों में विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं। इस कचरे के अनुचित प्रबंधन से पारा, कैडमियम, सीसा, आर्सेनिक आदि जैसी भारी धातुओं का रिसाव जल निकायों और मिट्टी में होता है, जिससे वे प्रदूषित होते जा रहें हैं। ये विषाक्त पदार्थ फिर खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करते हैं और मानव स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं। मानव और अन्य जीवित प्राणी जब ऐसे विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आते हैं तब विभिन्न न्यूरोलॉजिकल, कार्डियो-श्वसन और प्रजनन संबंधी समस्याएं होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। ई कचरे का मानव और पर्यावरण पर पढ़नेववाल नकारात्मक प्रभाव पर विचार करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा गंभीर समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित कराया गया है। “लाखों टन ई-कचरे का गलत गतिविधियों का उपयोग करके पुनर्चक्रित किया जाता है, साथ ही इसे घरों और गोदामों में संग्रहीत किया जाता है, डंप किया जाता है और अवैध रूप से निर्यात किया जाता है। जब ई-कचरे को अस्वस्थ गतिविधियों का उपयोग करके पुनर्चक्रित किया जाता है, तो यह पर्यावरण में 1000 विभिन्न रासायनिक पदार्थों को छोड़ सकता है, जिसमें सीसा जैसे ज्ञात न्यूरोटॉक्सिकेंट्स भी शामिल हैं। गर्भवती महिलाएं और बच्चे अपने संपर्क के रास्ते और विकासात्मक स्थिति के कारण विशेष रूप से असुरक्षित होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का अनुमान है कि 2020 में 16.5 मिलियन बच्चे औद्योगिक क्षेत्र में काम कर रहे थे, जिनमें से अपशिष्ट प्रसंस्करण एक उपक्षेत्र है।”3 ई-कचरे को जलाने से वातावरण में हानिकारक विषाक्त पदार्थ निकलते हैं जिससे हवा प्रदूषित होती है। इससे वायु प्रदूषण और श्वसन संबंधी बीमारियाँ होती हैं। इस कचरे के कुप्रबंधन के दीर्घकालिक प्रभाव से कृषि को नुकसान भी हो सकता है और विभिन्न प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि हम ई-कचरे का पुनर्चक्रण करें और उसका उचित निपटान करें।
ई कचरे का फायदा: Advantages of e-waste:
ई-कचरे के रीसाइक्लिंग के बहुत सारे फायदे हैं। इन लाभों को पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक लाभों में वर्गीकृत किया जा सकता है। पर्यावरणीय लाभों की बात करें तो ये कई हैं और इन्हें इस प्रकार समझाया गया है। ई-कचरे का उचित पुनर्चक्रण विषाक्त पदार्थों को कम करता है और इसलिए पौधों, जानवरों और मनुष्यों को इन विषाक्त पदार्थों से सुरक्षित रखता है। यह न केवल वायु, जल और मिट्टी प्रदूषण को कम करता है बल्कि लैंडफिल को भी रोकता है। ई-कचरे के पुनर्चक्रण से संसाधनों को बचाने और अन्य उद्देश्यों के लिए इन सामग्रियों के पुन: उपयोग को प्रोत्साहित करने में मदद मिल सकती है। इससे प्राकृतिक संसाधनों पर बोझ कम होता है।
पर्यावरणीय लाभों के अलावा, आर्थिक लाभ भी हैं जैसे पुनर्चक्रण से नौकरी के अवसर बढ़ते हैं, लागत कम होती है क्योंकि पुनर्चक्रित सामग्री नए तत्वों के खनन की तुलना में कम महंगी होती है। ई-कचरे के पुनर्चक्रण से आर्थिक लाभ भी होता है क्योंकि पुनर्चक्रित भागों का उपयोग करने में किसी उपकरण के लिए नए हिस्से बनाने की तुलना में कम लागत आती है। चूंकि धातुओं का खनन कठिन, जोखिम भरा और महंगा है, इसलिए ई-कचरे से पुनर्नवीनीकृत धातुओं को दोबारा बेचा जा सकता है।
सामाजिक लाभों में बेहतर स्वास्थ्य शामिल है, रीसाइक्लिंग के बारे में जागरूकता फैलाने से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग इन पुराने उपकरणों का पुन: उपयोग कर सकता है और भविष्य की पीढ़ियों के लिए संसाधनों को बचाने में भी मदद मिल सकती है।
प्रभावी ई कचरा प्रबंधन रणनीतियाँ: Effective E Waste Management Strategies:
आज समय की मांग है कि हमें प्रभावी ई-कचरा प्रबंधन की रणनीतियों को अपनाते हुए इस अनुपयुक्त कचरे को पुन उपयोग में लाया जाय। इन रणनीतियों को विभिन्न स्तरों यानी उपभोक्ता, नीति और औद्योगिक स्तर में विभाजित किया जा सकता है।
उपभोक्ता स्तर की रणनीतियाँ: Consumer Level Strategies:
उपभोक्ता स्तर की रणनीतियों में जागरूकता बढ़ाना और जिम्मेदार निपटान को प्रोत्साहित करना शामिल है क्योंकि बहुत से लोग ई-कचरे के हानिकारक प्रभावों और इसके अनुचित निपटान के बारे में नहीं जानते हैं। हम अभियान, स्कूल कार्यक्रम, कार्यशालाएं आदि आयोजित करके जागरूकता फैला सकते हैं और लोगों को उन तरीकों के बारे में सिखा सकते हैं जिनसे ई-कचरे का निपटान, पुनर्चक्रण और प्रबंधन किया जा सकता है। जागरूकता फैलाने के अलावा, हम बड़ी विनिर्माण कंपनियों और उद्योगों को नए उपकरण खरीदने पर उपभोक्ताओं से पुराने उपकरण वापस लेने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं और ये कंपनियां सामग्रियों का पुन: उपयोग या पुनर्चक्रण कर सकती हैं।
सरकारी नीतियों के स्तर की रणनीतियाँ: Strategies at the level of government policies:
सरकारी रणनीति के स्तर पर सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए कठोर ई-कचरा प्रबंधन नियमों को लागू करने की आवश्यकता है ताकि कि ई-कचरे का निपटान या पुनर्चक्रण सही तरीके से किया जाए। सरकार कर प्रोत्साहन या वित्तीय सहायता प्रदान करके भी व्यवसायों को रीसाइक्लिंग में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।
औद्योगिक स्तर की रणनीतियाँ: Industrial Level Strategies:
औद्योगिक स्तर पर रणनीतियों में उत्पादों को उनकी रीसाइक्लिंग क्षमता को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, कंपनियाँ ऐसे उत्पाद बना सकती हैं जो ऐसी सामग्रियों का उपयोग करते हैं जिनका आसानी से पुनर्चक्रण किया जा सकता हो और हानिकारक घटकों से बचा जा सके। इसके अलावा उद्योग सरकार के साथ मिलकर रीसाइक्लिंग सिस्टम स्थापित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए सरकार पुनर्चक्रण के लिए कुछ सुविधाएं प्रदान कर सकती है जबकि उद्योग प्रौद्योगिकी प्रदान कर सकते हैं।
विभिन्न केस अध्ययनों में ई कचरा: E-waste in different case studies:
ई-कचरा रीसाइक्लिंग के संबंध में केस अध्ययनों में से एक बेंगलुरु ई-कचरा प्रबंधन केस अध्ययन है जो इस बात का विस्तृत विश्लेषण प्रदान करता है कि बेंगलुरु में ई-कचरा कैसे संभाला जाता है। इस केस स्टडी में ई-कचरे के उत्पादन, उपयोग, निपटान और पुनर्चक्रण के बाद अंतिम पुनर्प्राप्ति से लेकर उसके जीवन चक्र का मानचित्रण किया गया। कुछ चुनौतियाँ थीं जिनकी पहचान की गई थी। सबसे पहले संग्रहण प्रणाली में समस्या थी। कई लोगों ने या तो पुराने उपकरणों को संग्रहीत कर लिया या उन्हें कबाड़ीवालों को सौंप दिया, जिससे रीसाइक्लिंग उद्योगों की सामग्री तक पहुंच कम हो गई। दूसरे, पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ हैं क्योंकि कचरे को जलाने जैसी अनौपचारिक रीसाइक्लिंग विधियाँ हानिकारक विषाक्त पदार्थों का उत्सर्जन करते हैं। अंततः पुनर्चक्रण दक्षता सीमित है।
विभिन्न केस स्टडी के परिणाम कहते हैं कि सबसे पहले हमें नीतियों और व्यवस्था में सुधार करना होगा। यह जागरूकता फैलाकर कड़े नियम लागू करके और नागरिकों को रीसाइक्लिंग कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करके किया जा सकता है। दूसरे, रीसाइक्लिंग उद्योग ई-कचरे से सोना, तांबा आदि जैसी कीमती सामग्री निकालने में सक्षम था, लेकिन इसने उत्पादित कुल ई-कचरे का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही संसाधित किया गया। निष्कर्ष में इस केस स्टडी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बेंगलुरु की ई-कचरे की समस्या को सरकार, उद्योगों, उपभोक्ताओं और रिसाइक्लर्स के बीच बेहतर सहयोग के माध्यम से हल किया जा सकता है। ई-कचरे के उचित निपटान, प्रबंधन और रीसाइक्लिंग को सुनिश्चित करने के लिए उचित नीतियों और सुविधाओं की सिफारिश की गई।
ई कचरे पर इलेक्ट्रॉनिक और सूचना मंत्रालय द्वारा भारत के प्रमुख शहरों के संदर्भ कहा गया जिसमें ई कचरे का उत्पादन करने में बेंगलुरु को तीसरा स्थान प्रदान किया गया है।
“इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार, मुंबई और दिल्ली पहले और दूसरे स्थान पर हैं, बेंगलुरु भारत में तीसरा सबसे बड़ा ई-कचरा पैदा करने वाला शहर है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी क्षेत्र के तेजी से विस्तार से इलेक्ट्रॉनिक कचरे (ई-कचरा) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे यह देश में, विशेष रूप से बेंगलुरु में तेजी से बढ़ती कचरा धाराओं में से एक बन गया है। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उपयोग में तेजी से वृद्धि, इन उत्पादों के त्वरित अप्रचलन और बाद में उन्नयन के साथ मिलकर, उपभोक्ताओं को अपनी पुरानी वस्तुओं का निपटान करने के लिए मजबूर करता है।”4 पृथ्वी के निवासियों के रूप में, यह सुनिश्चित करना हमारी साझा ज़िम्मेदारी है कि हम अपने ग्रह की रक्षा करें। सबसे आसान कदम जो हम उठा सकते हैं वह है कि कचरे का उचित तरीके से पुनर्चक्रण किया जाए, चाहे वह घरेलू, इलेक्ट्रॉनिक्स या औद्योगिक कचरा हो। पुराने फोन, लैपटॉप, स्पीकर, रेडियो आदि का पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण किया जा सकता है, जिससे पर्यावरण को अनुचित निपटान के कारण निकलने वाले हानिकारक विषाक्त पदार्थों से बचाया जा सकता है। ऐसे कदम उठाकर हम भावी पीढ़ियों के लिए वर्तमान और भविष्य के संसाधन को सुरक्षित भी रख सकते है।
निष्कर्ष: Conclusion:
संधारणीय भविष्य बनाने की दिशा में ई-कचरे का पुनर्चक्रण एक आवश्यक कदम है। प्रौद्योगिकी में बढ़ती प्रगति के साथ उत्पन्न ई-कचरे की मात्रा लगातार बढ़ रही है जिससे गंभीर स्वास्थ्य और पर्यावरणीय जोखिम पैदा हो रहे हैं। हालाँकि पुनर्चक्रण प्रथाएँ मूल्यवान सामग्रियों को पुनर्प्राप्त करने में मदद कर सकती हैं जिससे नई सामग्रियों के उत्पादन की आवश्यकता कम हो जाती है और प्रदूषण कम हो सकता है। ई-कचरे की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए हम सभी को मिलकर काम करने की जरूरत है। इसमें उचित अपशिष्ट निपटान और ई-कचरे के पुनर्चक्रण के लिए नई तकनीकियों को विकसित करने की आवश्यकता है। अपने देश और ग्रह के साथ-साथ संसाधनों की रक्षा करना हम सबका उत्तरदायित्व है क्योंकि आने वाली पीढ़ियाँ हम पर यह आरोप न लगा सके की हमने उनके संसाधनों का सर्वनाश कर दिया है।
संदर्भ: Reference:
- The Hindu, March 21, 2024 10:24 am IST
- The Economic Times, Dec 16, 2024, 11:25:00 PM IST
- World Health Organization https://www.who.int
- The Hindu, December 08, 2023 05:07 pm IST