Harit Praudyogiki Impact of Green Technology in Rural India ग्रामीण भारत में हरित प्रोद्योगिकी का प्रभाव

आलेख का सार: Summary of the article:

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हरित प्रौद्योगिकी Harit Praudyogiki या ग्रीन टेक्नोलॉजी ऐसे संसाधनों, उपकरणों व प्रक्रियाओं को कहते हैं जिनसे प्राकृतिक संपदाओं का उपयोग करके मानव जीवन की स्थिति को इस प्रकार विकसित करने का प्रयास किया जाता है जिसका पर्यावरण पर न्यूनतम नकारात्मक प्रभाव पड़े। ग्रामीण भारत में हरित प्रौद्योगिकी का तीव्रता से विकास व प्रचार हो रहा है। इसका सकारात्मक प्रभाव जीवन के अनेक वर्गों व देश की अर्थव्यवस्था पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकी, वायु ऊर्जा प्रौद्योगिकी और जैविक ऊर्जा प्रौद्योगिकी के विकास ने ग्रामीण क्षेत्रों को ऊर्जा की आवश्यकताओं को पूरा करने में सशक्त बनाया है और पर्यावरण के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऊर्जा की आवश्यकताओं को पूरा करने में ग्रामीण क्षेत्रों को पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बनाने हेतु अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। सरकार की सहायता से ही यह संभव हो पाएगा।

परिचय: Introductions: 

भारत एक ऐसा देश है जिसकी अधिकतम आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। वर्ष 2023 में भारत की ग्रामीण आबादी कुल आबादी का 63.64% थी। फलस्वरुप, देश की वैज्ञानिक उन्नति व आर्थिक प्रगति में ग्रामीण अर्थव्यवस्था और विकास का महत्वपूर्ण योगदान है। किसी भी देश के लिए विकास का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य उस देश के नागरिकों की जीवन शैली में सुधार लाना और उस देश की आर्थिक स्थिति को सशक्त बनाना होता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की सहायता ली जाती है। 

विगत कुछ वर्षों में मनुष्य विकास की अंधी दौड़ में पर्यावरण की उपेक्षा करता जा रहा है। जलवायु प्रदूषण पर्यावरण के प्रति मनुष्य की लापरवाही बर्ताव का ही परिणाम है। जल, वायु, भूमि आदि प्रदूषण का दुष्प्रभाव मनुष्य के स्वास्थ्य पर अधिक पड़ता है। मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ्य न होने के कारण देश के नागरिक देश की उन्नति में अपना पूर्ण योगदान नहीं दे पाते। 

विश्व के अन्य राष्ट्रों के इतिहास का विश्लेषण किया जाए तो यह स्पष्ट होता है कि विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु जो देश प्राकृतिक संपदाओं का अनादर करता है, वह उस लक्ष्य को प्राप्त करने में कभी सफल नहीं हो पाता। दूसरे राष्ट्रों की विकास यात्रा की समीक्षा से यह भी स्पष्ट होता है कि देश की प्रगति की कीमत यदि पर्यावरण के दमन से चुकाई जाए तो मनुष्य की जीवन शैली में सुधार होने के बजाए उसका पतन होता है। जिसके परिणाम स्वरुप देश की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है।

अतः विकास के निर्धारित व इच्छित फल के विपरीत फल प्राप्त होता है। इसलिए यह अनिवार्य है कि विकास प्राप्ति के संघर्ष से पर्यावरण व प्रकृति को हानि न पहुँचे ताकि विकास के निर्धारित उद्देश्य को प्राप्त किया जा सके। इसी लक्ष्य को केंद्र पर रखकर जिन प्रोद्योगिकियों का निर्माण किया गया है वही हरित प्रौद्योगिकी Harit Praudyogiki कहलाती है। 

आप यहाँ वायु प्रदूषण के संदर्भ में विस्तार से पढ़ सकते हैं

आलेख का उद्देश्य: Objective of the Article:

  • ग्रामीण भारत में हरित प्रौद्योगिकी Harit Praudyogiki के विकास पर प्रकाश डालना।
  • हरित प्रौद्योगिकी के उपकरण व प्रक्रियाएँ जो ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित हैं, उनका विश्लेषण करना।
  • हरित प्रौद्योगिकी Harit Praudyogiki के विकास के परिणाम स्वरूप हुए सामाजिक बदलाव पर विचार करना और देश की आर्थिक उन्नति में इसके योगदान को प्रकाशित करना।
  • पर्यावरण संरक्षण के अतिरिक्त हरित संसाधनों के अन्य सकारात्मक प्रभावों पर प्रकाश डालना।
  • हरित संसाधनों व प्रक्रियाओं के विकास व प्रयोग में विद्यमान चुनौतियों को उजागर करना।
  • चुनौतियों के निवारण हेतु सुझाव प्रस्तुत करना।

Harit Praudyogiki हरित प्रोद्योगिकी की परिभाषा:

“हरित प्रौद्योगिकी Harit Praudyogiki या ग्रीन टेक्नोलॉजी का अर्थ ऐसे संसाधनों, उपकरणों व प्रक्रियाओं से है जिनके द्वारा प्राकृतिक संपदाओं का उपयोग कर मानव के जीवन में विकास को इस प्रकार संभव बनाने का प्रयास किया जाता है जिसका पर्यावरण व प्रकृति पर कम से कम दुष्प्रभाव हो।”

पर्यावरण के संरक्षण एवं विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु Harit Praudyogiki को ग्रामीण क्षेत्रों में विकसित किया जा रहा है। इसका सकारात्मक प्रभाव लोगों की जीवन शैली व देश की उन्नति पर निर्भर है। इसी सकारात्मक प्रभाव को दृष्टिगत रखते हुए भारत सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में हरित उपकरणों व प्रक्रियाओं का विकास सबलता से किया जा रहा है। इस यात्रा में भारत सरकार एवं अनेक वर्गों के लोगों को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और भविष्य में भी करना पड़ेगा। 

ग्रामीण भारत में हरित प्रौद्योगिकी के उदाहरण: Examples of Green Technology in Rural India:

सौर ऊर्जा: Solar Energy  

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा का विकास तीव्रता से हो रहा है। सौर ऊर्जा का प्रयोग विभिन्न कार्यों के लिए किया जाता है। जैसे घरों में, स्वास्थ्य केद्रों और विद्यालयों का विद्युतीकरण, खेतों की सिंचाई, खाना बनाना आदि।
The Sunday guardian के एक लेख में भारत में हरित प्रोद्योगिकी पर प्रकाश डालते हुए लिखा गया है कि “भारत में हर साल औसतन 300 दिन धूप खिली रहती है, इसलिए इसे सूर्य से भरपूर ऊर्जा मिलती है, जो सालाना 5000 ट्रिलियन किलोवाट घंटे के बराबर है। सौर ऊर्जा की यह प्रचुरता देश में सौर ऊर्जा के भविष्य के लिए एक आशाजनक तस्वीर पेश करती है। राष्ट्रीय विद्युत योजना 2024 (एनईपी14) के तहत भारत सरकार द्वारा निर्धारित महत्वाकांक्षी लक्ष्यों का उद्देश्य 2032 तक कुल उत्पादन में कोयले पर निर्भरता को 70% से घटाकर 50% करना है, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा, विशेष रूप से सौर ऊर्जा इस कमी को पूरा करेगी। बिजली मिश्रण में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2022 में 5% से बढ़कर 2032 तक 25% होने की उम्मीद है, जो वित्त वर्ष 2031-32 तक 364.6 गीगावॉट सौर क्षमता हासिल करने के लक्ष्य से प्रेरित है। सौर ऊर्जा उत्पादन में यह उछाल “तेजी से विकास” चरण की ओर एक कदम दर्शाता है, जो अकेले वित्त वर्ष 2023 में 12.9 गीगावॉट सौर क्षमता के मजबूत जोड़ से समर्थित है। दिसंबर 2023 तक, भारत ने 73.31 गीगावाट की उल्लेखनीय स्थापित सौर क्षमता हासिल कर ली है, जो 180.79 गीगावाट की व्यापक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का हिस्सा है। 2030 के लिए देश के व्यापक नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों में 500 गीगावाट की स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करना, कार्बन तीव्रता में कमी लाने में योगदान देना और 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन की ओर बढ़ना शामिल है। भारत सरकार ने सौर ऊर्जा के माध्यम से ग्रामीण विद्युतीकरण में तेजी लाने के लिए कई प्रमुख कार्यक्रम शुरू किए हैं। इस वृद्धि को और मजबूत करने में सरकार की व्यापक नीतियाँ और पहल शामिल हैं, खास तौर पर सौर पीवी मॉड्यूल के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई), जिसका लक्ष्य उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल का गीगावाट-स्केल विनिर्माण करना है। सोलर पार्क योजना और पीएम-कुसुम जैसी पहलों के साथ-साथ यह योजना न केवल सौर क्षमता बढ़ाने के बारे में है, बल्कि घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने 1 लाख से अधिक नौकरियाँ पैदा करने और सौर ऊर्जा को अधिक सुलभ और किफ़ायती बनाने के बारे में भी है। इसके अतिरिक्त, सरकार ग्रामीण घरों और समुदायों में सौर पैनल और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों की स्थापना को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी और प्रोत्साहन प्रदान कर रही है। विश्वसनीय बिजली आपूर्ति के साथ छोटे व्यवसाय फल-फूल सकते हैं, छात्र सूर्यास्त के बाद भी पढ़ाई कर सकते हैं, और स्वास्थ्य सुविधाएँ कुशलता से काम कर सकती हैं, इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार हो रहा है।”¹  

हरित प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में गुजरात तेजी से आगे बढ़ा है “गुजरात राज्य ने ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा के विकास में सक्रिय भूमिका निभाई है। राज्य ने चराका गाँव में एशिया का सबसे बड़ा सौर पार्क स्थापित किया है। इस पार्क की उत्पादन क्षमता 214 मेगावाट है, जबकि इसकी योजना कुल 500 मेगावाट की क्षमता की है। राज्य ने नर्मदा नहर की शाखाओं पर सौर पैनल लगाकर बिजली उत्पादन करने का भी प्रस्ताव रखा है। भारत का सबसे सूर्यपूर्ण राज्य राजस्थान गुजरात के बाद है और वहाँ भी कई सौर परियोजनाओं के प्रस्ताव हैं।”²

वायु ऊर्जा: Wind Energy:

ग्रामीण भारत में वायु ऊर्जा प्रौद्योगिकी का विकास हो रहा है। पवन ऊर्जा एक प्रमुख ऊर्जा स्रोत के रूप में उभर रही है जिसका उपयोग बिजली की कमी को दूर करने, कृषि गतिविधियों में सुधार लाने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में किया जा रहा है। “भारत सरकार और कई निजी कंपनियाँ ग्रामीण क्षेत्रों में पवन ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा दे रही हैं। वायु ऊर्जा प्रौद्योगिकी के निर्माण व विकास ने पर्यावरण प्रदूषण की जटिल समस्या को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । पवन ऊर्जा एक अस्थायी और स्थान-विशिष्ट ऊर्जा संसाधन है और इसलिए संभावित स्थलों के चयन के लिए एक व्यापक पवन संसाधन मूल्यांकन आवश्यक है। सरकार ने राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (NIWE) के माध्यम से पूरे देश में 900 से अधिक पवन-निगरानी स्टेशन स्थापित किए हैं और जमीन से 50 मीटर, 80 मीटर, 100 मीटर, 120 मीटर और 150 मीटर की ऊंचाई पर पवन क्षमता मानचित्र जारी किए हैं। हाल ही में किए गए मूल्यांकन से पता चलता है कि 120 मीटर की ऊंचाई पर 695.50 गीगावाट और जमीन से 150 मीटर की ऊंचाई पर 1163.9 गीगावाट की सकल पवन ऊर्जा क्षमता है। इस क्षमता के अधिकांश क्षेत्र आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु व तेलंगाना में स्थित हैं।”³

 “पवन ऊर्जा को सभी नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में सबसे अधिक निवेश प्राप्त हुआ है। भारत में कुल 445 पवन फार्म स्थापित किए गए हैं, जो विभिन्न राज्यों में फैले हुए हैं। भारत का सबसे बड़ा पवन फार्म, येरमाला पवन फार्म, महाराष्ट्र में स्थापित किया गया है। इस पवन फार्म का स्वामित्व CLP के पास है, जिसमें 250 एनरकॉन E 53 800 KW पवन टर्बाइनों का उपयोग किया गया है।”⁴

जैविक कृषि: Organic Agriculture:

जैविक खेती, खेती करने की वह विधि होती है, जिसमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों एवं अन्य कृत्रिम रसायनों का उपयोग न्यूनतम रूप से किया जाता है तथा भूमि की उर्वरता और उत्पादकता को बनाए रखने के लिए फसल चक्र, हरी खाद, कंपोस्ट आदि का प्रयोग किया जाता है। कारखानों में निर्मित रसायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, खरपतवारनाशी तथा वृद्धि नियंत्रकों आदि कृत्रिम रसायनों के अनियंत्रित प्रयोग से मिट्टी की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और भूमि और जल संसाधन प्रदूषित भी होते हैं। मिट्टी में उपस्थिति इन हानिकारक रसायनों को फसलें पानी के साथ सोख लेती हैं और इसके पश्चात यह मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर लेते हैं। परंपरागत कृषि से जुड़े इन्हीं दोषों के कारण जैविक कृषि ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से प्रचलित हो रही है और जैविक उत्पादों का बाजार विस्तृत हो रहा है। “मध्य प्रदेश भारत की जैविक खेती के हिस्से में 40% योगदान देता है और यहाँ 100,000 से अधिक पंजीकृत जैविक किसान हैं। राजस्थान में लगभग 60,000 हेक्टर भूमि पर जैविक खेती की जा रही है, जिसमें 97.3% किसान इस कृषि पद्धति को अपनाने के लिए सहमत हैं। राज्य सरकार ने 11 जिलों के ब्लॉकों की पहचान करना शुरू कर दिया है, ताकि उन्हें पूरी तरह से जैविक खेती वाले क्षेत्र में परिवर्तित किया जा सके। महाराष्ट्र में लगभग 8-10 लाख हेक्टर भूमि पर जैविक खेती की जा रही है, जो 84 गांवों में प्रोत्साहित की गई है। राज्य में लगभग 4 मिलियन जैविक किसान एक साथ आकर महाराष्ट्र ऑर्गेनिक फार्मिंग फेडरेशन (MOFF) नामक एक स्वयंसेवी संगठन का गठन कर चुके हैं। यह संगठन महाराष्ट्र में जैविक कृषि प्रथाओं को सुधारने के लिए समर्पित है।”⁵

हरित प्रौद्योगिकी का प्रभाव: Impact of Green Technology:

पर्यावरण संरक्षण: Environmental protection:

वर्षों से हो रहे परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के अनियंत्रित उपयोग ने पर्यावरण व प्रकृति को अत्यधिक हानि पहुँचाई है। जल वायु प्रदूषण के दुष्परिणाम के रूप में अनेक बीमारियाँ सक्रिय रूप से फैलने लगीं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह जागरूकता तेजी से फैल रही है कि शुद्ध हवा, वायु व भूमि अच्छे स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। लोग पर्यावरण संरक्षण के अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक हुए हैं जिसके चलते हरित प्रौद्योगिकी का विकास और प्रचार ग्रामीण भारत में सक्रिय रूप से हो रहा है। इसके अनेक सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। जैसे कि प्रदूषण में कमी, जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण।

ऊर्जा दक्षता: Energy Efficiency: 

ऊर्जा की आवश्यकताओं को पूर्ण करने हेतु हरित प्रौद्योगिकी के उपयोग ने पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता को कम किया है जिससे कार्बन उत्सर्जन में काफी कमी हुई है। सौर ऊर्जा व वायु ऊर्जा का प्रयोग घरों के विद्युतीकरण, खेतों की सिंचाई, खाना पकाना और वाहनों को चलाने में अधिक से अधिक किया जाने लगा है। इसके फलस्वरूप वायु की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।

नवाचार और रोजगार: Innovation and Employment:

हरित प्रौद्योगिकी में नए तकनीकी नवाचारों और उत्पादों की आवश्यकता ने रोजगार का निर्माण किया है। युवक वर्ग इस क्षेत्र में विकास की संभावनाओं को देखकर इस क्षेत्र में नौकरी प्राप्त करने के लिए उत्सुक हैं।

हरित प्रोद्योगिकी विकास की चुनौतियाँ और समाधान: Challenges and Solutions of Green Technology Development:

प्रारंभिक लागत: Initial Cost:

हरित प्रौद्योगिकी के संसाधनों के निर्माण व स्थापना हेतु शुरुआती लागत उच्च होती है। जैसे सौर पैनल या पवन टर्बाइन की स्थापना। यह छोटे व्यवसायों और विकासशील देशों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। सरकार द्वारा उचित वित्त पोषण से ही हरित प्रौद्योगिकी का प्रचार और विकास संभव हो पाएगा।

तकनीकी चुनौतियाँ: Technical Challenges:

कई हरित संसाधनों के निर्माण हेतु उच्च प्रौद्योगिकी की अनिवार्यता होती है जिसका विकास या उत्पादन स्थानिक एवं वैश्विक स्तर पर समान रूप से उपलब्ध नहीं हो पाता। ऐसी उच्च प्रौद्योगिकी के निर्माण हेतु गुणी वैज्ञानिकों और अभियंताओं की आवश्यकता है। सरकार द्वारा शोध कार्यों व अभियांत्रिकी और विज्ञान की पढ़ाई को बढ़ावा देने से ही इस समस्या का समाधान संभव हो सकता है।

सामाजिक बदलाव: Social Change:

पारंपरिक उद्योगों में काम करने वाले लोगों को नए क्षेत्रों में प्रशिक्षित करना एक बड़ी चुनौती है। अभी भी कुछ स्थानों में लोग हरित संसाधनों के प्रयोग से अपरिचित है। लोगों में हरित प्रौद्योगिकी के प्रति जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है ताकि वे उससे जुड़े और लाभ से अवगत हो सकें।

निष्कर्ष: Conclusion:

ग्रामीण भारत में हरित प्रौद्योगिकी के उदय ने ऊर्जा के संसाधनों को पूर्ण रूप से परिवर्तित कर दिया है। ऊर्जा की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को सरकार द्वारा प्रोत्साहन और लोगों द्वारा स्वीकृति प्राप्त हुई है। पर्यावरण पर हरित संसाधनों के सकारात्मक प्रभाव के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में हरित प्रौद्योगिकी का तेजी से विकास किया जा रहा है। खाना पकाना, पानी गर्म करना, खेतों की सिंचाई और वाहन चलाने जैसे दैनिक कार्यों में भी हरित प्रौद्योगिकी का आगमन हो चुका है। इसके फलत: जल, वायु और भूमि की गुणवत्ता में सुधार स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है जिसके कारण मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य में भी सुधार हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में हरित उपकरणों के उपयोग के बारे में जानकारी और इस क्षेत्र में रोजगार प्राप्त करने हेतु लोगों में उत्सुक्ता है। सही जानकारी के प्रचार व प्रसार हेतु सरकार द्वारा आवश्यक योजनाओं को निर्मित करने की अनिवार्यता है। हरित प्रौद्योगिकी के विकास में अन्य बाधाओं को पहचानने व इनके निवारण करने की भी आवश्यकता है, जैसे अपर्याप्त वित्त, उचित संसाधनों का अभाव, हरित उपकरणों के बारे में अनुचित या अपूर्ण जानकारी आदि। ग्रामीण क्षेत्रों में हरित प्रौद्योगिकी ने पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने में देश को सशक्त बनाया है।

संदर्भ सूची:

  1. https://sundayguardianlive.com/business/role-of-solar-energy-in-rural-electrification-in-india
  2. Renuka Prasad, Dr. Sumer Singh, Dr. Harish Nagar, “Importance of Solar Energy Technologies for Development of Rural Area in India”, 2017, International Journal of Scientific Research in Science and Technology, Volume 3, Issue 6.
  3. https://mnre.gov.in/en/wind-overview/
  4. Deepak Sangroya, Dr. Jogendra Kumar Nayak, “Development of Wind Energy in India”, 2015, International Journal of Renewable Energy Research, Volume 5, No.1.
  5. https://www.gallantintl.com/blogs/india-organic-farming

 

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