Human rights in Hindi मानवाधिकारों से तात्पर्य उन न्यूनतम अधिकारोंसे हैं जो प्रत्येक व्यक्ति को आवश्य प्राण्त होने चाहिए क्योंकि वह मानव अपने जीवन को उन्नत एवं गरिमापूर्ण बना सके।
मानवाधिकारों का संबंध मानव की स्वतंत्रता समानता एवं गरिमा के साथ जीवन जीने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न करने से होता है। मानव अधिकार से ही व्यक्ति अपनी पूर्ण प्रतिभा के अनुरूप जीवन को सरल एवं गरिमापूर्ण बनाकर निर्भिकता से स्थापित कर पाता है।
अधिकार सामाजिक जीवन को सुलभ एवं स्वस्थ्य बनाने हेतु आवश्यक शर्त है। जिनसे व्यक्ति अपना व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर पाता है। अतः मानवाधिकारों के अभाव में स्वस्थ्य समाज की कल्पना नहीं की जा सकती।
Human rights in Hindi मानव प्रकृति में अपनी बुद्धि के कारण एक विशिष्ट प्राणी है। वह अपनी बुद्धि का प्रयोग करके मानव सभ्यता को वर्तमान स्थिति तक उन्नत कर लिया है। डार्विन के ऐतिहासिक विकासवादी सिंधान्त के अनुरूप मनुष्य अपना विकास करता गया। मानव अधिकार की अवधारणा उतनी ही पुरानी है जितनी मनुष्य की विकास यात्रा। मनुष्य जब जन्म लेता है, तो उसे प्रकृतिक रूप से कुछ अधिकार प्राप्त हो जाते हैं उदाहरणः स्वास लेने का अधिकार भोजन का अधिकर, पेयजल का अधिकार, स्वतंत्रता का संधाणीय दोहन करते हुए अपने जीवन को उन्नत एवं गरिमा पूर्ण बनाने की चेष्ठा करें।
Human rights in Hindi ऐतिहासिक मानव विकास के क्रम में मनुष्य का ही शोषण कर्ता बन गया तब मानव अधिकार की अवधारणा का जन्म हुआ। विभिन्न सभ्यताओं में विभिन्न धर्मिक ग्रंथ तथा दार्शणिक विचार धाराओं में मानव अधिकार के अनुरूप मानव अधिकारों की व्यापकता एवं सीमाएँ थीं। जैसे-जैसे मानव सभ्यता अधुनिकता की ओर बढ़ी वैसे-वैसे मानव अधिकार की अवधारणा भी व्यापक होती चली गयी।
माना जाता है कि आधुनिक मानव अधिकारों की प्रष्ठभूमि सन् 1215 में इग्लैण्ड के शासक राजा जैने के शासन काल में निर्मित हुई किंतु ‘‘मानवा अधिकार हमारे साथ शुरू से ही सभ्यता के प्रथम प्रकाश के समय से ही है।’’1 फिर भी 1215 में मानवाअधिकार हेतु औपचारिक आंदोलन शुरू हुआ फलतः 15 जून 1215 को मेग्ना कार्टा नामक एक घोषणा पत्र जाहिर किया गया।
इंग्लैण्ड का यह मानव अधिकार आंदोलन कुछ पूंजीपतियों और सामंतों द्वारा अपने स्वयं के हित में चलाया गया था। यह वर्ग शक्तिशाली था। जो अपने कुछ अधिकारो की मांग की थी। इस मेग्ना कार्टा में ‘‘व्यक्ति को अदालत में मुकदमा चलाएँ बीना जेल की सज़ा नहीं दी जाने, लोगों को जमीन का स्वामि होने तथा स्वामित्व अधिकार मिलने और सरकारी कोष की आए के लिए शासक जो प्रस्ताव रखेगा उसपर पहले संसद के सदस्यों से स्वीकृति लेनी की बात थी।’’2 इस प्रकार कानून के समक्ष समानता का यह विश्व में पहला कदम था।
Human rights in Hindi इस मेग्ना कार्टा के पश्चात धीरे-धीरे विश्व के अनेक देशो में मानव अधिकारों पर विचार विमर्श होने लगें तथा मानव अधिकार की अवधारणा और व्यापक और सूक्ष्म होती गई। वर्तमान समय में मानव, बन्धूत्व जैसे विभिन्न मूल्यों के साथ मानव जीवन को गरीमापूर्ण बनाने हेतु व्यापक मानव अधिकारों को सम्मिलित करती है।
मानव अधिकार प्रकृतिक और मानव द्वारा स्वीकृत दोनों हो सकते हैं। प्राकृतिक मानवाअधिकार, जन्म लेते ही सभी चेतन जीवों को अनायास प्राप्त हो जाते हैं। किंतु मानव द्वारा स्वीकृत अधिकार समाज में आपसी संबंध तथा अधिकारों के साथ कुछ कर्तव्य भी निर्धारित करते हैं।
लास्की के अनुसार ‘‘अधिकार सामाजिक जीवन की वे परिस्थितियाँ हैं जिनके अभाव में सामान्यतः कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर पाता है।’’
वाइल्क के अनुसार ‘‘अधिकार कुछ विशेष कार्यों को करने की स्वाधीनता की उचित मांग है।’’
हॉलैण्ड के शब्दों में ‘‘व्यक्ति द्वारा अन्य व्यक्तियों के कार्यों को स्वयं अपनी शक्ति से नहीं वरन् समाज के बल पर प्रभावित करने की समता को अधिकार कहते है।’’
बोसांले के अनुसार ‘‘अधिकार वह माग है जिसे समाज स्वीकार करता है और राज्य लागू करता है।’’
भारतीय वैज्ञानिक श्रीनिवास शास्त्री के अनुसार ‘‘अधिकार समुदाय के कानून द्वारा स्वीकृत वह व्यवस्था नियम अथवा रीति है जो नागरिकों के सर्वोच्च नैतिक कल्याण में सहायक हो।’’ (यहाँ उल्लिखित सभी परिभाषाएँ संदर्भ तीन से हैं)3
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर मानवाधिकार की प्रक्रति बहुत व्यापक है जो मनुष्य को उचित परिस्थिति में अपने व्यक्तित्व का विकास एवं अपने जीवन को सर्वोच्च कल्याण के स्तर तक पहुचाने हेतु समाज द्वारा मान्यता प्राप्त ऐसे कार्य करने की स्वतंत्रता है। जिन्हें सरकार द्वारा समर्थन प्राण्त होता है।
अंग्रेज विचारक जेरेमी बेंथम का विचार है कि ‘‘प्राकृतिक अधिकार जैसी कोई चीज नहीं है। पर हमारा कर्तव्य है कि हम सभी लोगों के साथ समानता एवं आदर का व्यवहार करें।’’
इसी प्रकार जॉन स्टुअर्ट मिल का विचार था कि ‘‘हम दूसरों के साथ जिस प्रकार रहते हैं यह उसी बात पर निर्भर करता है कि हमारे लिए क्या सही है और दूसरों के लिए क्या सही है इसमें सन्तुलन रखे।’’ (दोनों विचार संदर्भ चार से हैं)4
Human rights in Hindi कहने का तात्पर्य यह है कि मानवाधिकार तभी सफल हो सकते हैं जब एक व्यक्ति अपने अधिकारों का उपयोग करते समय दूसरे व्यक्तियों के अधिकारों का भी सम्मान करें। दूसरों के अधिकारों का सम्मान हमारा कर्तव्य भी है।
Human rights in Hindi मानवाधिकार के संबंध में सबसे लोकप्रिय विचार थॉमस पेन ने अपनी पुस्तक ‘राइट्स ऑफ मेन’ (मनुष्य के अधिकार) के माध्यम से रखा जिसे विश्व में गंभरिता से लिया गया उन्होंने कहाँ कि ‘‘मानवाधिकार का संबंध वास्तव में लोगों की अपनी सवतंत्रता से है तथा यह कि किसी भी प्रकार का निर्णय करने में उनकी भी हिस्सेदारी होनी चाहिए। यदि प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित हो और सरकार में जिम्मेदारी की भूमिका निभा सके तो इससे उन्हें स्वतंत्रता, गरिमा, आत्मसम्मान और शक्ति से रहने का अवसर मिलेगा।”5 पेन के इस विचार को विश्व के अनेक देशों ने अपनाया तथा शासन में जनभागीदारी का रास्ता तय हुआ।
थॉमस पेन के विचारों को और आगे बढ़ाते हुए जॉन स्टुअर्ट मिल का समकालीन अमेरिकी विचार हेनरी थेरो ने जनभागीदारी के साथ-साथ कम से कम शासन (सरकार द्वारा) अधिक से अधिक सुशासन का विचार रखा अर्थात शासन में सरकार की दखलंदाजी न्यूनतम हो तथा व्यक्ति को अपने विकास के अधिकार से अधिक अवसर प्राप्त हो सके। उनका कहना था कि ‘‘जो सरकार कम से कम शासन करती है, वही सबसे अच्छा शासन करती है तथा यह कि सरकार का काम व्यक्ति की स्वतंत्रता की अर्थात दूसरों की दखलंदाजी के बिना उसको अपने ढ़ंग से जीने के अधिकार की रहान करना है।’’6 थोरा ने सरकार को यह दायित्व सौपा कि वह व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करें।
Human rights in Hindi इस प्रकार मानवाधिकार की अवधारणा स्पष्ट एवं व्यापक होती गई तथा जीवन के विभिन्न आयामों के संदर्भ में विभिन्न मानवधिकारों को स्वीकार किया गया।
Human rights in Hindi वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों का इतिहास प्राचीन काल से है किन्तु मानवाधिकारों का व्यवहारिक रूप तथा मान्यताएँ आधुनिक काल में ही सपष्ट हो सकी। इग्लैण्ड के मानवाधिकारों के मेग्ना कार्टा के बाद विश्व में मानवाधिकारों की आवधारणा और स्पष्ट होती गई अनेक विचारक एवं दार्शनिकों द्वारा इस अवधारणा को बल मिला।
Human rights in Hindi अठारहवी सदी में मानवाधिकारों का क्रमिक विकास के संबंध में चिन्तन को नई दिशा मिली यूरोपीय लोगों का संपर्क अन्य महाद्वीपीय लोगों से हुआ। पुनः उनकी धारणाओं में कई परिवर्तन आए। इस सदी के उत्तरार्ध में अफ्रीका के कई क्षेत्रों में अधिकारों की मांग शुरू हुयी।
1776 में अमेरिका द्वारा स्वतंत्रता का घोषणापत्र में घोषित किया गया कि सभी लोग समामान है, इस घोषणा से मानवाधिकारों को और बल मिला। आगे चलकर 1865 में गुलाम प्रथा का उनन्मुलन हुआ।
1789 में फ्रांन्स की संसद ने ‘डिक्लरेशन ऑफ द राइट्स ऑफ एंण्ड ओफ द सिटीजन’ (मानव और नागरिक के अधिकारों के संबंध में घोषणा) को अपने संविधान के भाग के रूप में स्वीकार किया। इसी प्रकार अमेरिकी सरकार ने भी अपने संविधान संशोधनों द्वारा बिल ऑफ राइट्स के माध्यम से कई मानवाधिकारों को मान्यता दी। अमेरिका के इन बदलाव का परिणाम यह हुआ कि विश्व के अनेक देश इस दिशा में सोचने हेतु उत्साहित हुए।
अमेरिका की संवैधानिक घोषणा में “पूजा-अर्चना की स्वतंत्रता, शस्त्रास्त्र रखने की स्वतंत्रता और स्वयं को अपराध से बचाने के लिए मौन रहने की भी स्वतंत्रता दी गई।’’7 इन अधिकारों के रूप में उभरे अवसरों के माध्यम से लोग अपने जीवन को उन्नत बना सकते थे।
Human rights in Hindi मानवाधिकार की अवधारणा आगे चलकर व्यापक बनती गई तथा इसे विभिन्न लोगों के लिए विभिन्न अर्थ की परिभाषाएँ दी गई और इन मानवाधिकारों को बहुसंख्यंको द्वारा अल्पसंख्यंकों के प्रति की जानेवाली निरंकुशता से रक्षा के रूप में लिया जाने लगा और आगे चलकर प्रताड़ना से रक्षा के अर्थ में भी लिया गया। अमेरिका में श्वेत-अश्वेत का मुद्दा इसी आधार पर मानवाधिकार आन्दोलन के आरंभ में विकसित हुआ।
विश्व में मानवाधिकार के संदर्भ में मेरी वोल्सहोनकाफ्र ने विंडीकेशन ऑफ राइट्स ऑफ वोमेन द्वारा महिलाओं के अधिकार की बात उठाई और कहा कि महिलाओं के लिए क्या उचित है। उन्होंने कहा कि ‘‘स्त्रियों के संदर्भ में निर्णय केवल पुरूषों द्वारा नहीं किया जा सकता। स्त्रियों को अधिकार न देकर उन्हें एक प्रकार से परिवार तक सीमित कर दिया जाता है।’’8 इस प्रकार मानवाधिकार में महिला अधिकारों की भी मांग उठने लगी कालान्तर में बीजिंग घोषणा पत्र, वियना घोषणा पत्र आदि कई प्रयासों से महिलाओं को भी मानवाधिकार प्राप्त हुए।
Human rights in Hindi वास्तव में मानवाधिकार का सिद्धान्त एक समग्र अवधारणा है जो जीवन के सभी पहलुओं को अपने में समेटती है। आज यह मानवाधिकार का विचार समग्र कानून व्यवस्था को बदलने की शक्ति रखता है। कारण इस विचार के साथ विश्व का स्पष्ट रूप से नैतिक समर्थन प्राप्त है। किन्तु इसका इतिहास भी विभिन्न मोड लेते हुए आगे बढ़ा है।
बीसवी सदी में मानवाधिकारों का विचार और व्यापक होता गया 1915 में शुरू हुआ प्रथम विश्व युद्ध में व्यापक रूप से मानवाधिकारों का हनन हुआ फलतः फ्रांन्स के विचारक यंग हसबेंउ ने बिटेन में ‘फाइट फॉर राइट’ नामक आन्दोलन की शुरूआत की जिसका उद्वेश्य था कि ‘‘हम स्वयं की सुरक्षा के अतिरिक्त कुछ और यानी मानवता यानी मानवाधिकार के लिए लड रहे हैं।’’9 इस आन्दोलन ने वैश्विक स्तर पर विश्व मानवता की एक विशिष्ट छवी को स्पष्ट किया। विश्व के देश मानवाधिकार के संबंध में भिन्न एवं उचित दृष्टि से सोचने पर मजबूर हुए। सन् 1918 में अमेरिकी राष्ट्रपति विलसन ने 14 बिंदु शीर्षक से एक कार्यक्रम प्रस्तुत करके विश्व में न्याय पर आधारित व्यवहारिक व्यवस्था स्थापित करने की इच्छा व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि जो देश स्वतंत्र होना चाहते हैं उन्हें अपना अधिकार मिलना चाहिए वे स्वतंत्र और अपने भविष्य का मार्ग वे स्वयं तय करें।
अमेरिका राष्ट्रपाति विलसन के बिदुओं के आधार पर 1919 में वर्सायी की संधि हुयी (फ्रान्स में) जिसके फलस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का प्रारंभिक रूप सामने आया। इसी संगठन के साथ-साथ लीग ऑफ नेशन की भी स्थापना हुयी। जो विश्व शान्ति बनाए रखने में अपनी भूमिका निभाता था।
विश्व युद्ध के दोनों गुटों के मध्य विभिन्न संधियाँ एवं घोषणाएँ हुयी जिनमें जीवन की स्वतंत्रता की रक्षा के साथ नागरिकों के राष्ट्रीय और राजनीतिक अधिकारों की सुरक्षा पर भी बल दिया गया।
सन् 1919 में पेरिस पीस कान्फ्रेन्स हुआ जिसमें लोगों ने मांग रखी कि लीग ऑफ नेशन के घोषणापत्र में मानाधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता तथा जाति एवं राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव न करने आदि अधिकारों को शामिल करने की बात उठायी गई। मानवाधिकारों के हनन पर लीग ऑफ नेशन को विश्व के किसी भी देश में हस्तक्षेप का भी प्रस्ताव रखा गया किन्तु इन प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया गया और मानवाधिकारों की बात लीग ऑफ नेशन के सदस्य देशों के नागरिकों की सुरक्षा तक ही सीमित रही।
आगे चलकर गुलामी के विरूद्ध संघर्ष चलते रहे तथा कई मानवाधिकारों की मांग की जाती रही। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय प्रसिद्ध विचारक एच. जी. वेल्स द्वारा लंदन के समाचार पत्र ‘द टाइम्स’ में एक लेख लिखा गया जिसमें में ‘वल्ड डिक्लेरेशन ऑफ द राइट्स ऑफ मेन’ का उन्होंने प्रस्ताव रखा जिसका प्रचार विश्व के अनेक देशों में किया गया और यह लेख विश्व को व्यापक रूप में प्रभावित किया।
इस प्रस्ताव में कुछ दस अनुच्छेंदों में ‘‘प्राथमिक संसाधन, स्वास्थ्य, रोजगार, शिक्षा संपत्ति का क्रय-विक्रय, दुनिया के किसी भी देश में निर्बाध आने-जाने की स्वतंत्रता, बिना अभियोग पत्र दाखिल किए छह से अधिक दिन कारागार में न रखना, किसी भी कारण अंग-भंग न करना, बंद्याकरण और प्रताड़ना पर रोक तथा पब्लिक रिकार्ड को देख पाने की सुविधा आदि।’’10 आगे चलकर ये ही मानवाधिकार उनके द्वारा रचित ‘द राइट्स ऑफ मेन’ पुस्तक में भी प्रकाशित हुए।
वास्तव में यह लेख आधुनिक समय में मानवाधिकारों के संदर्भ में एक क्रांन्तिकारी लेख था। मानवाधिकारों की मांग का वास्तविक आन्दोलन यही से प्रारंभ हुआ। कालान्तर में 1941 में अमेरिका राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी. रूजवेल्ट ने ब्रिटिश प्राधानमंत्री पिरूटन चर्चिल के साथ एक सयुक्त घोषणा पत्र ‘अटलांटिक’ जारी किया जिसमें कहा गया कि नाजी नरसंहार की समाप्ति के बाद विश्व में शान्ति स्थापित हो जाएगी। कुछ समय बाद 1942 में राष्ट्रसंघ के 26 मित्रराष्ट्रों द्वारा ‘अटलांटिक’ घोषणा पत्र को स्वीकार किया गया तथा कुछ अन्य देशों ने भी समर्थन दिया। इसी ‘अटलांटिक चार्टर’ के माध्यम से ‘युद्ध अपराध’ तथा मानवता के विरूद्ध अपराध’ जैसी अवधारणाएँ सामने आयी। इन अपराधों से निपटने हेतु नूरेम्बर्ग इटरनेशनल ट्रिब्यूनल्स और टोक्यो ट्रिब्यूनल्स की स्थापना हुयी।
सन 1945 में नूरेम्बर्ग चार्टर में ‘मानवता के ‘विरूद्ध अपराध’ की नई श्रेणी बनी जिसमें दुर्व्यवहार तथा देश अपने नागरिकों के प्रति किस प्रकार व्यवहार करता है आदि के आधार पर मुकदमा चलाने का विचार सामने आया।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद मित्र राष्ट्रों के सदस्यों का मानना था कि मानवता के विरूद्ध अपराध की श्रेणी में केवल युद्ध अपराध ही शामिल किए जाए जिसका मुख्य कारण था कि मित्र देश उन लोगों के प्रति किए अपराधों को शामिल नहीं करना चाहते थे जो उन देशों के औपनिवेश में रहते थे जिनके साथ वे अनेक प्रकार से दुर्व्यवहार किए थे। इसी कमी को दूर करने हेतु दिसंबर सन् 1948 में सयुक्त राष्ट्र जनरल असेम्बली में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें ‘‘जूरेम्बर्ग ट्रिब्यूनल की यह सीमा हटा दी गईं इसमें कहा गया कि जनसंहार अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अन्तर्गत एक अपराध है। भले ही शांतिकाल या युद्ध काल में किया गया हो।’’11 इसी प्रस्ताव में जनसंहार की व्याख्या भी की गई तथा उन्हें स्पष्ट भी किया गया।
इसी वर्ष सन् 1948 में विश्व मानवाधिकार घोषणा पत्र भी जारी किया गया जेा विश्व इतिहास में मानवाधिकार का एक मौलिक संविधान है। जिसमें कुल 30 अनुच्छेद हैं। जिसे विश्व के समस्थ देशों ने अपनाया है।
Human rights in Hindi मानव परिवार के सभी सदस्यों के जन्मजात गौरव और सम्मान तथा अविच्छिन्न अधिकार की स्वीकृति ही विश्व शांति, न्याय और स्वतंत्रता की बुनियाद है। मानवाधिकारों के प्रति उपेक्षा और घृणा के फलस्वरूप ही ऐसे बर्बर कार्य हुए जिनसे मनुष्य की आत्मा पर अनाचार किया गया और एक ऐसी विश्व व्यवस्था को (जिसमें लोगों के भाषण और धर्म की आजादी तथा भय और अभाव से मुक्ति मिलेगी) सर्वसाधारण के लिए सर्वोच्च आकांक्षा घोषित की गई है।
अगर अन्याय युक्त शासक और जुल्म के विरूद्ध लोगों को विद्रोह करने के लिए उसे ही अंतिम उपाय समझकर-मजबूर नहीं हो जाना है, तो कानून द्वारा नियम बनाकर मानव अधिकारों की रक्षा करना अनिवार्य है। राष्ट्र के बीच मैत्रीपूर्ण संबंन्धों को बढ़ाना जरूरी है। चूंकि सयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की जनता ने बुनियादी मानव अधिकारों में मानव व्यक्तित्व के गौरव और योग्यता में और नर-नारियों के समान अधिकारों में अपने विश्वास को अधिकार पत्र में दोहराया है और यह निश्चय किया है कि अधिक व्यापक स्वतंत्रता के अन्तर्गत सामाजिक प्रगति एवं जीवन के बेहतर स्तर को ऊँचा किया जाए। चूंकि सदस्य देशों ने यह प्रतिज्ञा की है कि वे सयुक्त राष्ट्र के सहयोग से मानवाधिकारों और बुनियादी आज़ादी के प्रति सार्वभौम साम्मान की वृधि करेंगे इस प्रतिज्ञा को पूरी तरह से निभाने के लिए इन अधिकारों और आज़ादियों का स्वरूप ठीक-ठीक समझना सबसे अधिक जरूरी है।
“इसलिए अब,
सामान्य सभा घोषित करती है कि मानवाधिकारों की यह सार्वभौम घोषणा सभी देशों और सभी लोगों की समान सफलता है। इसका उद्धेश्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति और समाज का प्रत्येक भाग इस घोषणा को लगातार दृष्टि में रखते हुए अध्यापन और शिक्षा के द्वारा यह प्रयत्न करेगा कि इन अधिकारों और आजादियों के प्रति सम्मान की भावना जागृत हो और उनपर ऐसे राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय उपाय किए जाएँ जिनसे सदस्य देशों की जनता तथा उनके द्वारा अधिकृत प्रदेशों की जनता इन अधिकारों की सार्वभौम और प्रभावोत्पादक स्वीकृति दे और उनका पालन कराए।
- अनुच्छेद – 01 सभी मनुष्यों को गौरव और अधिकार के मामले में जन्मजात स्वतंत्रता और समानता प्राप्त् है। उन्हें बुद्धि और अन्तराक्त्मा की देन प्राप्त है और परस्पर उन्हें भाइचारे के भाव से व्यवहार करना चाहिए।
- अनुच्छेद – 02 सभी मनुष्यों को इस घोषणा में सन्निहित सभी अधिकारों और आजादियों को प्राण्त करने का अधिकार है और इस मामले में जाति, वर्ण, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीति या अन्य विचार प्रणाली किसी देश या समाज विशेष में जन्म, संपत्ति या किसी प्रकार की अन्य मर्यादा आदि के कारण भेदभाव का विचार नहीं किया जाएगा।इसके अतिरिक्त चाहे कोई देश या प्रदेश स्वतंत्र हो, अंतर्रक्षित हो, या स्वशासन रहित हो या परिमित वाला हो उस देश या प्रदेश की राजनीतिक क्षेत्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति के आधार पर वहाँ के निवासियों के प्रति कोई फर्क नहीं रखा जाएगा।
- अनुच्छेद – 03 प्रत्येक व्यक्ति को जीवन, स्वाधीनता एवं सुरक्षा का अधिकार है।
- अनुच्छेद – 04 कोई भी गुलामी या दासता की हालत में न रखा जाएगा। गुलामी प्रथा और गुलामों का व्यापार अपने सभी रूपों में निषिध होगा।
- अनुच्छेद – 05 किसी को भी शारीरिक यातना नहीं दी जाएगी और न ही किसी के प्रति निर्दय अमानुषिक या अपमान जनक व्यवहार होगा।
- अनुच्छेद – 06 हर किसी को हर जगह कानून की निगाह में व्यक्ति के रूप में स्वीकृति प्राप्ति का अधिकार है।
- अनुच्छेद – 07 कानून की निगाह में सभी समान हैं और सभी बिना भेदभाव के समान कानूनी सुरक्षा के अधिकारी हैं। यदि इस घोषणा का अतिक्रमन कर कोई भी भेदभाव किया जाए या उस प्रकार के भेदभाव को उकसाया जाए तो उसके विरूद्ध समान संरक्षण का अधिकार सभी को प्राप्त है।
- अनुच्छेद – 08 सभी को संविधान या कानून द्वारा प्राप्त बुनियादी अधिकारों का अतिक्रमण करनेवाले कार्यों के विरूछ समुचित राष्ट्रीय आदलतों की कारगर सहायता पाने का हक है।
- अनुच्छेद – 09 किसी को भी मनमाने ढंग से गिरफ्तार, नजरबंद या देश-निष्काषित नहीं किया जाएगा।
- अनुच्छेद – 10 सभी को पूर्णतः समान रूप से हक है कि उनके अधिकारों और कर्तव्यों के निश्चय करने के मामले में और उन पर आरोपित फौजदारी के किसी मामले में उनकी सुनवाई व्यायोम्चित और सार्वजनिक रूप से निरपेक्ष और निष्पक्ष आदालन द्वारा हो।
- अनुच्छेद – 11 (1) प्रत्येक व्यक्ति जिसपर दण्डनीय अपराध का आरोप लगाया गया हो, तब तक निरपराध माना जाएगा जब तक उसे खुली आदालन में जहाँ उसे अपनी सफाई की सभी आवश्यक सुविधाएँ प्राप्त हों, कानून के अनुसार अपराधी न सिद्ध कर दिया जाए।(2) कोई भी व्यक्ति किसी भी ऐसे कार्य या अकृत (अपराध) के कारण उस दण्डनीय अपराध का अपराधी नहीं माना जाएगा, जिसे तत्कालीन प्रचलित राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार दण्डनीय अपराध न माना जाए और न उससे अधिक भारी दंड दिया जा सकेगा, जो उस समय दिया जाता जिस समय वह अपराध किया गया था।
- अनुच्छेद – 12 किसी व्यक्ति की एकात्मता, परिवार, घर या पत्र-व्यवहार के प्रति कोई मानवीय हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा, न किसी के सम्मान और ख्याति पर कोई आक्षेप हो सकेगा। ऐसे हस्तक्षेप या आक्षेपों के विरूद्ध पीड़ित व्यक्ति को कानूनी रक्षा का अधिकार है।
- अनुच्छेद – 13 (1) प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक देश की सीमाओं के भीतर स्वतंत्रतापूर्वक आने, जाने और बसने का अधिकार है।(2) प्रत्येक व्यक्ति को अपने या पराए किसी भी देश को छोड़ने और अपने देश को वापस आने का अधिकार है।
- अनुच्छेद – 14 (1) प्रत्येक व्यक्ति को सताएँ जाने पर दूसरे देशों में शरण लेने और रहने का अधिकार है। (2) इस अधिकार का लाभ ऐसे मामलों में नहीं मिलेगा जो वास्तव में गैर-राजनैतिक अपराधों से संबंधित हैं, या जो संयुक्त राष्ट्रों के उद्धेश्य और सिद्धान्तों के विरूध कार्य हैं।
- अनुच्छेद – 15 (1) प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी राष्ट्र विशेष की नागरिकता प्राप्त करने का अधिकार है।(2) किसी को भी मनमानो ढ़ंग से अपने राष्ट्र की नागरिकता से वंचित नहीं किया जाएगा या नागरिकता का परिवर्तन करने से मना भी नहीं किया जाएगा।
- अनुच्छेद – 16 (1) बालिग स्त्री-पुरूषों को बिना किसी जाति राष्ट्रीयता या धर्म की रूकावटों के आपस में विवाह करने और परिवार को स्थापित करने का अधिकार है। उन्हें विवाह के विषय में वैवाहिक जीवन में तथा विवाह विच्छेदन में समान अधिकार है।(2) विवाह की इच्छा रखनेवाले स्त्री-पुरूषों की पूर्ण एवं स्वतंत्र सहमति पर ही विवाह होगा।(3) परिवार समाज की स्वाभाविक और बुनियादी सामूहिक इकाई है और उसे समाज तथा राज्य द्वारा सहारा पाने का अधिकार है।
- अनुच्छेद – 17 (1) प्रत्येक व्यक्ति को अकेले और दूसरों के साथ मिलकर संपत्ति रखने का अधिकार है।(2) किसी को भी मनमाने ढ़ंग से अपने संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।
- अनुच्छेद – 18 प्रत्येक व्यक्ति को विचार, अंतर्रात्मा और धर्म की आजादी का अधिकार है। इस अधिकार के अन्तर्गत अपना धर्म या विश्वास बदलने और अकेले या दूसरों के साथ मिलकर या सार्वजनिक रूप से अथवा निजी तौर पर अपने धर्म या विश्वास को शिक्षा, क्रिया, उपासना आदि व्यवहार के द्वारा प्रकट करने की स्वतंत्रता है।
- अनुच्छेद – 19 प्रत्येक व्यक्ति को विचार और उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। इसके अन्तर्गत बिना हस्तक्षेप के कोई राय रखना और किसी भी माध्यम के जरिये तथा सीमाओं की परवाह न कर किसी की सूचना और धारणा का अन्वेषण ग्रहण तथा प्रदान शामिल है।
- अनुच्छेद – 20 (1) प्रत्येक व्यक्ति को शांन्तिपूर्ण सभा करने या समिति बनाने की स्वतंत्रता का अधिकार है।(2) किसी को भी किसी संस्था का सदस्य बनने हेतु मजबूर नहीं किया जा सकता।
- अनुच्छेद – 21 (1) प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश के शासन में प्रत्यक्ष रूप से या स्वतंत्र रूप से चुने गए प्रतिनिधियों के जरिए हिस्सा लेने का अधिकार है।(2) प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश की सरकारी नौकरियों को प्राण्त करने का समान अधिकार है।(3) सरकार की स्वतंत्रता का आधार जनता की इच्छा होगी इस इच्छा का प्रकटन समय-समय पर और असली चुनाओं द्वारा होगा। ये चुनाव सार्वभौमिक और समान मताधिकार द्वारा होंगे और गुफ्त मतदान द्वारा या किसी अन्य समाज स्वतः पद्धति से कराए जाएंगे।
- अनुच्छेद – 22 समाज के एक सदस्य के रूप में प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक सुविधा का अधिकार है और प्रत्येक व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के उस स्वतंत्र विकास तथा गौरव के लिए जो राष्ट्रीय प्रयत्न या अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग तथा प्रत्येक राज्य के संगठन एवं साधनों के अनुकूल हो अनिवार्यतः आवश्यक आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की प्राप्ति का हक है।
- अनुच्छेद – 23 (1) प्रत्येक व्यक्ति को काम करने, इच्छानुसार रोजगार के चुनाव, काम की उचित एवं सुविधाजनक परिस्थितियों को प्राप्त करने और बेरोजगारी से संरक्षण पाने का अधिकार है।(2) प्रत्येक व्यक्ति को समान कार्य के लिए बिना किसी भेदभाव के समान मजदूरी पाने का अधिकार है।(3) प्रत्येक व्यक्ति को, जो काम करता है, अधिकार है कि वह इतनी उचित अनुकूल मजदूरी पाए जिससे वह अपने लिए और अपने परिवार के लिए ऐसी आजीविका का प्रबंध कर सके जो मानवीय गौरव के योग्य हो तथा आवश्यकता होने पर उसकी पूर्ति अन्य प्रकार के सामाजिक संरक्षण द्वारा हो सके।(4) प्रत्येक व्यक्ति को अपने हितों की रक्षा के लिए श्रमजीवी संघ बनाने और उनमें भाग लेने का अधिकार है।
- अनुच्छेद – 24 प्रत्येक व्यक्ति को विश्र्राम एवं अवकाश का अधिकार है इसके अन्तर्गत काम के घण्टों की उचित हदबंदी और समय-समय पर मजदूरी छुट्टियाँ साम्मिलित हैं।
- अनुच्छेद – 25 (1) प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे जीवन स्तर को प्राप्त करने का अधिकार है जो उसे और उसके परिवार के स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए पर्याप्त हो। इसके अन्तर्गत भोजन, कपडा, मकान, चिकित्सा-संबंधी सुविधाएँ और आवश्यक सामाजिक सेवाएँ सम्मिलित हैं। सभी को बेरोजगारी, बीमारी, असमर्थता, वैधव्य, बुढ़ापे या अन्य किसी ऐसी परिस्थिति में आजीविका का साधन न होने पर जो उसके काबू के बाहर हो, सुरक्षा का अधिकार प्राप्त है।(2) जच्चा और बच्चा को विशेष सहायता और सुविधा का हक है। प्रत्येक बच्चे को, चाहे वह विवाहिता मात्र से जन्मा हो या अविवाहिता से समान सामाजिक संरक्षण प्राप्त होगा।
- अनुच्छेद – 26 (1) प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा का अधिकार है। शिक्षा कम से कम प्रारंभिक और बुनियादी अवस्था में निःशुल्क होगी। प्रारंभिक शिक्षा अनिवार्य होगी। टेक्निकल, यांत्रिक और पेशों संबंधी शिक्षा साधारण रूप से प्राप्त होगी और उच्चतर शिक्षा सभी को योग्यता के आधार पर समान रूप से जेउपलब्ध होगी।(2) शिक्षा का उद्धेश्य होगा मानव व्यक्ति का पूर्ण विकास और मानवाधिकारों तथा बुनियादी स्वतंत्रताओं के प्रति सम्मान की पुष्टि। शिक्षा द्वारा राष्ट्रों, जातियों अथवा धार्मिक समूहों के बीच आपसी सद्भावना, सहिष्णुता और मैत्री का विकास होगा और शांति बनाए रखने के लिए सयुक्त राष्ट्र के प्रयत्नों को आगे बढ़ाया जाएगा।(3) माता-पिता को सबसे पहले इस बात का अधिका है कि वे चुनाव कर सके कि किस किस्म की शिक्षा उनके बच्चों को दी जाएगी।
- अनुच्छेद – 27 (1) प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रतापूर्वक समाज के सांस्कृतिक जीवन में हिस्सा लेने, कलाओं का आनंद लेने तथा वैवाहिक उन्नति और उसकी सुविधाओं में भाग लेने का अधिकार है।(2) प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी ऐसी वैज्ञानिक साहित्यिक या कलात्मक कृति से उत्पन्न नैतिक और आर्थिक हितों की रक्षा का अधिकार है जिसका रचयिता वह स्वयं हो।
- अनुच्छेद – 2 प्रत्येक व्यक्ति को ऐसी सामाजिक और अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की प्राप्ति का अधिकार है जिसमें इस घोषणा में उल्लेखित अधिकारों और स्वतंत्रताओं को पूर्णतः प्राप्त किया जा सके।
- अनुच्छेद – 29 (1) प्रत्येक व्यक्ति का उसी समाज के प्रति कर्तव्य है जिसमें रहकर उसके व्यक्तित्व का स्वतंत्र और पूर्ण विकास संभव हो।(2) अपने अधिकारों और स्वतंत्रताओं का उपयोग करते हुए प्रत्येक व्यक्ति केवल ऐसी ही सीमाओं द्वारा बंद होगा, जो कानून द्वारा निश्चित की जाएंगी और जिनका एकमात्र उद्धेश्य दूसरों के अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं के आदर और समुचित स्वीकृति की प्राप्ति होगा तथा जिनकी आवश्यकता एक प्रजातंत्रात्मक समाज में नैतिकता, सार्वजनिक व्यवस्था और समाज कल्याण की उचित आवश्यकताओं को पूरा करना होगा।(3) इन अधिकारों और स्वतंत्रताओं का उपयोग किसी प्रकार से भी संयुक्त राष्ट्रों के सिद्धान्तों और विरूद्ध के विरूध नहीं किया जाएगा।
- अनुच्छेद – 30 इस घोषणा में उल्लिखित किसी भी काम का यह अर्थ नहीं लगाना चाहिए जिससे यह प्रगति हो कि किसी भी राज्य, समूह या व्यक्ति को किसी ऐसे प्रयत्न में संलग्न होने या ऐसा कार्य करने का अधिकार है, जिसका उद्धेश्य यहाँ बनाए गए अधिकारों और स्वतंत्रताओं में से किसी का भी विनाश करना हो।”12 स्त्रोत – https://www-un-org.
Human rights in Hindi इस घोषणा पत्र में व्यक्त मानवाधिकारों के अलावा 1948 से लेकर आज तक कुछ अन्य मानवाधिकारों को भी स्वीकार किया गया है। ये निम्न मानवाधिकार वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के संदर्भ में किए गए विभिन्न प्रयासों के परिणाम स्वरूप स्वीकार किए गए हैं। इन अधिकारों में मानव जीवन को गरिमापूर्ण बनाने हेतु विभिन्न अधिकारों की स्वीकृति जीवन को समग्रता में देखने की दृष्टि प्रदान करते हैं।
इन अधिकारों की सूची निम्नलिखित है।
- मानवाधिकार उल्लंघन के मामले से निपटने के लिए कानूनी सहायता।
- मानवाधिकारों के लिए सामाजिक एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था।
- सभी की शिक्षा तक पहुँच।
- बिना किसी पक्षपात के समानता का अधिकार।
- कानून के समक्ष समानता।
- आवास एवं निवास यानी एक स्थान से दूसरे स्थान पर यात्रा करने एवं बस जाने का अधिकार।
- किसी प्रश्न पर अपनी राय देने, व्यक्त करने एवं प्रेस की स्वतंत्रता।
- विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
- धर्म मानने तथा न मानने की स्वतंत्रता।
- आहार, भोजन तथा वस्त्र, रूचि के अनुरूप पहनने की स्वतंत्रता।
- संगठन या संघ बनाने की स्वतंत्रता।
- स्वास्थ्य संबंधी स्वतंत्रता- देखभाल आदि।
- कैदी के मानवीय अधिकार।
- व्यक्ति की स्वतंत्रता (निजता का अधिकार)
- संपत्ति का मालिकाना अधिकार।
- संस्कृति की रक्षा एवं प्रचार-प्रसार का अधिकार।
- राजनीतिक भागीदारी का अधिकार।
- व्यक्ति को एक व्यक्ति के रूप में मान्यता चाहे वह स्त्री हो, पुरूष हो, या एल.जी.बी.टी में से कोई भी हो।
- नस्लीय एवं धार्मिक द्वेष से सुरक्षा।
- निर्दोषता की परिकल्पना।
- निरंकुश गिरफ्तारी से सुरक्षा।
- गुलामी एवं बंधुआ मजदूरी से सुरक्षा।
- निजता, परिवार एवं आवास की सुरक्षा।
- प्रताड़ना से बचने हेतु पनाह (आश्रयग्रह)
- सामाजिक सुरक्षा।
- बच्चों हेतु विशेष सुरक्षा।
- कार्यस्थल पर संतोषजनक स्थिति।
- समलैगिता का अधिकार।
Human rights in Hindi आदि सभी मान्य अधिकार सावेभौमिक मानवाधिकार घोषणा पत्र में व्यक्त भावनाओं को ही व्यक्त करते हैं। ये सभी अधिकार सयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्तों एवं लक्ष्यों के साथ-साथ संधारणीय विकास तथा गरिमापूर्ण जीवन के लक्ष्य प्राप्ति में सहायक हैं।
ये मानवाधिकार मनुष्य को विभिन्न बंधनों एवं जंजीरों से मुक्त करते हैं। मनुष्य के बंधनों के संदर्भ में फ्रांन्सिसी दार्शनिक जैक्स ने 200 वर्ष पूर्व कहा था कि ‘‘मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है, पर हर जगह जंजीरों में जकडा हुआ है।’’13 सयुक्त राष्ट्र संघ का उद्धेश्य भी यही है कि मनुष्य को मुक्त किया जाय, विश्व में युद्ध रोकना मानवाधिकारों की रक्षा करना तथा गरिमापूर्ण जीवन की स्थिति उपलब्ध कराना, अन्तर्राष्ट्रीय कानून को निभाने की प्रक्रिया जुटाना, सामाजिक एवं आर्थिक विकास को गति प्रदान करना, जीवन स्तर के विभिन्न पहलुओं को सुधारना, इन उद्धेश्यों की अकांक्षा इस घोषणा पत्र में व्यक्त हुयी है।
Human rights in Hindi इस घोषणा पत्र का महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसमें मनुष्य के संर्वागिन विकास में बाधक तत्वों को समाप्त किया गया है। इन अधिकारों की पृष्ठभूमि इतनी सदृढ़ है कि विश्व के सभी देश इनका समर्थन करते हैं।
Human rights in Hindi आज संपूर्ण विश्व में मानवाधिकारों के समक्ष विभिन्न चुनौतियाँ खड़ी हैं। चाहे वे प्राकृतिक मानव अधिकार अथवा संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रदान किए गए मानव अधिकार ही क्यों न हो। वर्तमान समय में इन मानव अधिकारों का हनन विभिन्न स्तरों पर हो रहा है।
Freedom in the world report 2021 की रिपोर्ट कहती है कि “पिछले 15 वर्षों में वैश्विक लोकतंत्र में लगातार गिरावट हुई है। 2006 में नकारात्मक प्रवृत्ति शुरू होने के बाद से सबसे बड़े अंतर से गिरावट का सामना करने वाले देशों की संख्या सुधार करने वाले देशों से अधिक है और एक लंबी लोकतांत्रिक मंदी गहराती जा रही है।”14
Freedom in the world report 2021 में राजनीतिक एवं नागरिक अधिकारों के संदर्भ में विशेष अध्ययन करते हुए चुनावी प्रक्रिया, राजनीतिक बहुलवाद, लोकतंत्र में नागरिकों की भागीदारी, अभिव्यक्ति का अधिकार, विश्वास की स्वतंत्रता, संगठनात्मक अधिकार, व्यक्तिगत अधिकार तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता आदि प्राकृतिक एवं मानवाधिकारों को शामिल किया है।
उपर्युक्त सभी अधिकारों के समक्ष विश्व में व्यापक चुनौतियाँ विद्यमान हैं।
- Human rights in Hindi विभिन्न देशों में चुनावी प्रक्रिया को किसी एक राजनीतिक दल द्वारा नियंत्रित कर लिया गया है और चुनाव मात्र एक दिखावा बनकर रह गया है। लोकतंत्र में सामान्य नागरिकों की भागीदारी मात्र नाममात्र की रह गई है। नागरिक अपने चुनावी अधिकारों का प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं।
- Human rights in Hindi विभिन्न देशों में अभिव्यक्ति के अधिकारों पर विभिन्न प्रकार से शिकंजा कसा जा रहा है। नागरिकों की आवाज तथा उनकी लेखनी को मौन रखने हेतु प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से दबाव डाला जा रहा है। इस संदर्भ में freedom in the world report 2021 कहती है कि “मौजूद नेताओं ने कभी-कभी सार्वजनिक स्वास्थ्य के नाम पर विरोधियों को कुचलना और हिसाब किताब बराबर करने के लिए तेजी से बाल का इस्तेमाल किया जबकि प्रभावी अंतरराष्ट्रीय समर्थन की कमी वाले संकटग्रस्त कार्यकर्ताओं को कई स्थितियों में भारी जेल की सजा यातना या हत्या का सामना करना पड़ा।”15 कहने का तात्पर्य यह है कि कुछ मुट्ठी भर लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति बनाने में लगे हुए हैं और अपनी निनमस्तरीय मानसिकता का प्रदर्शन करते हुए समाज में तनाव का माहौल बनाने का प्रयास करते रहते हैं। लेकिन जो लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता काउचित और वास्तव में प्रयोग करना चाहते हैं उन पर विभिन्न प्रकार के दबाव डाले जाते हैं और सरकारी टैटो के माध्यम से उनकी आवाज को समाप्त करने के विभिन्न हथकंडे अपनाए जाते हैं।
- Human rights in Hindi विश्वास की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण मानव अधिकार है किंतु आज विडंबना यह बनती जा रही है कि इस अधिकार को भी चीन का प्रयास हो रहा है और एक विशिष्ट विश्वास को मानने हेतु अनुचित रूप से माहौल बनाया जा रहा है।
- Human rights in Hindi वैश्विक स्तर पर विभिन्न देश युद्ध की विभीषिका में फंसे हुए हैं। और इतिहास गवाह है कि जब युद्ध होता है तब मानव अधिकारों का व्यापक रूप से हनन होता है। जैसे सीरिया, यूक्रेन, मध्य एशिया आदि क्षेत्रों में चल रहे हैं युद्ध तथा विभिन्न देशों में युद्ध जैसी तनावपूर्ण स्थिति मानव अधिकारों के समक्ष गंभीर चुनौतियां हैं।
- Human rights in Hindi मानव अधिकारों में सम्मान से जीने का अधिकार एक महत्वपूर्ण अधिकार है किंतु इस अधिकार के समक्ष भी विभिन्न प्रकार की चुनौतियां हैं महिलाओं के मानवाधिकारों का हनान होता रहता है। महिलाओं को कमजोर समझना महिलाओं का हिंसा का शिकार होना महिलाओं का विभिन्न स्तरों पर शारीरिक मानसिक बलात्कार की स्थिति तथा कार्य के स्थान पर विभिन्न प्रकार की आपत्तिजनक स्थिति या उत्पन्न करना और अर्थव्यवस्था एवं मानव विकास में उन्हें आगे बढ़ने से रोकना अधिक कई प्रकार की चुनौतियां विद्यमान हैं।
- Human rights in Hindi वैश्विक स्तर पर कैदियों के मानव अधिकारों का हनान भी हमें देखने को मिलते हैं। जेल में जबरन श्रम करवाना शारीरिक शोषण करना यातना देना पुलिस द्वारा अपनी शक्ति का दुरुपयोग करना हिरासत में महिलाओं के साथ बलात्कारी जैसे मामले तथा भोजन के गुणवत्ता में कमी जैसी अनिवार्य मानवाधिकारों के समक्ष भी चुनौतियां खड़ी हैं।
- Human rights in Hindi सामाजिक न्याय के क्षेत्र में जो मानव अधिकार व्यक्ति अथवा समूह को प्राप्त हैं उनके समक्ष भी आज चुनौतियां खड़ी हैं सुशासन सामाजिक न्याय को कमजोर करना तथा प्रतिस्पर्धा को विकृत करना और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर अनुचित रूप से नियंत्रित करने के प्रयास करना उसके साथ-साथ आदिवासी समुदायों, दलित, अल्पसंख्यक, महिलाओं के मानव अधिकारों के प्रति सरकार की उदासीनता आदि प्रमुख चिंताएं विद्यमान हैं।
अंतर्राष्ट्रीय संगठनों एवं सम्मेलनों की भूमिका:
Human rights in Hindi सभी पक्षों पर विचार करने पर भी मानवाधिकार घोषणा पत्र उचित एवं महान उद्धेश्य से युक्त है किन्तु समस्या यह है कि क्या इस घोषणा पत्र का क्रियान्वयन वैश्विक स्तर पर व्यावहारिक रूप में हो रहा है?
Human rights in Hindi विश्व के अधिकांश देशों द्वारा मान्यता प्रदान करने के बाद भी आज विश्व के कई क्षेत्र, कई समुदाय इन मूलभूत अधिकारों से वंचित हैं। इसके पीछे प्रमुख कारण यही है कि केवल कानून बनाने या देशों द्वारा मान्यता दे देने मात्र से लक्ष्य की प्रप्ति नहीं हो सकती बल्कि व्यावहारिक स्तर पर इन अधिकारों को लागू करना भी आवश्यक है किन्तु कभी-कभी देखा जाता है कि ‘‘कुछ सरकारों घोषणा पत्र का पूरी तरह अनुपालन नहीं कर पाती हैं जैसे की कुछ देशों में गरीबी ऐसी है कि वहाँ की सरकार देश के सभी लोगों को खाने-रहने के बुनियादी अधिकार को पूरा नहीं कर सकी।’’16 फिर भी घोषणा पत्र का सकारात्मक प्रभाव भी पड़ा है।
Human rights in Hindi सयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषणापत्र को व्यवहारिक धरातल पर उतारने हेतु अनेक प्रयास भी किए गए हैं। मानवधिकारों संबंधी कई प्रस्ताव पारित किए हैं, कई संधि-पत्र तैयार किए गए है, तथा कई देश अपने-अपने तरीके से मानवाधिकार कानून भी बनाएँ हैं।
सयुक्त राष्ट्र की कुछ संधियों में प्रावधान हैं कि व्यक्ति अपने अधिकारों का हनन होने पर वह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सरकार के विरूद्ध मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायत कर सकता है। इस बात का प्रमाण यह है कि ‘‘2005 में यूरोपीयन कोर्ट ऑफ हयूमन राइट्स ने 1000 से अधिक शिकायतों पर अपने निर्णय दिए हैं।’’17 जिस प्रकार यूरोप में यूरोपीय कोर्ट आफ हयूमन राइट्स है उसी प्रकार अफ्रीका में भी ‘अफ्रीकन कमीशन ऑफ हयूमन एण्ड पीपुल्स राइट्स’ इस क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
Human rights in Hindi मानवाधिकारों का घोषणा पत्र विश्व के देशों के समक्ष एक नैतिक दबाव उत्पन्न करता है। किसी समुदाय विशेष के मानवाधिकार उल्लंघन पर वैश्विक स्तर पर उस देश की आलोचना होती है। फलतः वह देश विभिन्न प्रयासों के माध्यम से इन उल्लंघन को रोकता है। उदाहरण के रूप में आफ्रीकी देशों में रंगभेद की नीति समाप्त होना, वैश्विक स्तर पर आंतकवादी घटनाओं की आलोचना तथा म्यानमार के रोहिग्या मुस्लिम समुदाय पर सयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट, उइगर मुस्लिम समुदाय के मानवाधिकार उल्लंघन पर चीन पर बढ़ता वैश्विक दबाव आदि अनेक उदाहरण हैं।
फलतः कहना न होगा कि विभिन्न देश इन मानवाधिकारों की रक्षा हेतु अपने स्तर पर आयोग, समिति तथा कानूनों का निर्माण किए हैं।
Human rights in Hindi कुछ समय बाद इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट का गठन हुआ यह कोर्ट उन व्यक्तियों द्वारा किए गए अपराधों पर विचार करता है जो या तो राष्ट्रसंघ के किसी ऐसे सदस्य देश के नागरिक हैं। जिसने कोर्ट को मान्यता प्रदान किया है या उन्होंने ऐसे किसी देश में अपराध किया है। वर्तमान में लगभग 100 देश इसे मान्यता दे चुके हैं।
इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट द्वारा जिन अपराधों को मानवाधिकार उल्लंघन माना गया है। उसमें हत्या, विनाश, दासता, इच्छा के विरूद्ध लोगों का स्थानांन्तरण कराना या ऐसे कत्लों के लिए उकसाना, भोजन, अकारण नजबंद रखना, उत्पीडन, बलात्कार, यौन दुर्व्यवहार, जबरन वेश्यावृति कराना, जबरन गर्भ धारण करवाना, जबरन बंद्याकरण या अन्य किसी प्रकार का यौन हिंसात्मक कृत्य, जाति, धर्म, लिंग, नस्ल आदि किसी आधार पर उत्पीड़न, रंगभेद, जबरन गायब करा देना, किसी भी प्रकार की शारीरिक या मानसिक क्षति आदि सभी कृत्य मानवाधिकार उल्लंघन के अन्तर्गत आते हैं।
Human rights in Hindi मानवाधिकारों का विकास कालान्तर में अनवरत रूप से होता रहा वैश्विक स्तर पर प्रयास होते रहे। सन् 1985 में नैरोबी में सम्मेलन, 1990 में न्यूयार्क में बच्चों पर, रियो डी जेनेरों में 1992 पर्यावरण और विकास पर पृथ्वी समेल्लन, 1994 में जनसंख्या वृद्धि पर सम्मेलन, 1993 में वियना में मानवाधिकार पर महत्वपूर्ण सम्मेलन, 1995 में सामाजिक विकास पर कोपेनहेग सम्मेलन में समानता एवं विकास का दृष्टिकोण को रखा गया। इस प्रकार मानवाधिकारों की ऐतिहासिक यात्रा आगे बढ़ती रही। 21वीं सदी के प्रांरभिक दशक तथा दूसरे दशक में भी मानव विकास तथा मानवाधिकारों पर प्रगति होती रही है। 2015 में पेरिस सम्मेलन, संधाणीय विकास लक्ष्य आदि प्रयास मानवाधिकार विकास में महत्वपूर्ण हैं।
आप वन और वन्यजीवों के संरक्षण के संदर्भ में यहाँ से पढ़ सकते हैं
निष्कर्ष:
Human rights in Hindi कहना न होगा कि व्यक्ति के विकास एवं उसके जीवन को सम्मानजनक बनाने तथा उसे आदर्श जीवन के लक्ष्य तक पहुंचने में मानव अधिकारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि मानवाधिकार व्यक्ति के समक्ष विभिन्न संभावनाओं को खोलते हैं। वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों का इतिहास बहुत लंबा एवं संघर्षमय रहा है। सन 1215 में इंग्लैंड के मैग्ना कार्टा से लेकर आज तक विश्व समुदाय इन मानव अधिकारों को प्राप्त करने तथा इसे आदर्श स्थिति तक पहुंचाने का प्रयास करता आ रहा है।
Human rights in Hindi मानव अधिकारों की बहाली में विभिन्न प्रयासों के कारण सकारात्मक परिणाम हमारे समक्ष आए हैं। इन प्रयासों में महत्वपूर्ण है संयुक्त राष्ट्र द्वारा सार्वभौम मानवाधिकार घोषणा पत्र। इस घोषणा पत्र के पश्चात विश्व में अनेक सरकारों द्वारा मानवाधिकार बहाली की दिशा में विभिन्न कदम उठाए गए हैं। विचारणीय मुद्दा यह भी है कि विभिन्न सरकारों द्वारा मानव अधिकार बहाली हेतु अनेक कदम उठाने के बावजूद मानवाधिकारों के समक्ष विभिन्न चुनौतियाँ हमेशा खड़ी रहती हैं क्योंकि कुछ निरंकुश एवं समाज पर नियंत्रण स्थापित करने की मानसिकता वाले व्यक्तियों या वर्गों द्वारा विभिन्न चुनौतियाँ खड़ी की जाती रही है।
Human rights in Hindi आज वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के समक्ष नई-नई चुनौतियाँ खड़ी हैं। फिर भी विभिन्न वैश्विक संगठनों, समुदायों तथा बुद्धिजीवियों द्वारा मानवाधिकार की दिशा में किए गए कार्य सराहनीय है। इन कार्यों के परिणाम स्वरुप मानवाधिकार बहाली में सकारात्मक परिणाम हमारे समक्ष आए हैं। लेकिन यह कहना भी अनुचित नहीं होगा कि आज भी वैश्विक स्तर पर अनेक समुदाय मानवाधिकारों से वंचित हैं। इस दिशा में भी हमें ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
आप किसान आंदोलन के संदर्भ में इसे पढ़ सकते हैं
संदर्भ ग्रंथ:
- उर्मिला जैन, मानवाधिकार और हम, परमेश्वरी प्रकाशन नयी दिल्ली, प्र. सं. 2014 प्र.7
- उर्मिला जैन, मानवाधिकार और हम, परमेश्वरी प्रकाशन नयी दिल्ली, प्र. सं. 2014 प्र.8
- मानवाधिकार और सामाजिक न्याय –सं. डाँ. महेंद्र चौधरी – राजस्थानी ग्रंथागार जोधपुर प्र. सं. 2017 प्र. 121-122
- उर्मिला जैन, मानवाधिकार और हम, परमेश्वरी प्रकाशन नयी दिल्ली, प्र. सं. 2014 प्र.10
- उर्मिला जैन, मानवाधिकार और हम, परमेश्वरी प्रकाशन नयी दिल्ली, प्र. सं. 2014 प्र.9-10
- उर्मिला जैन, मानवाधिकार और हम, परमेश्वरी प्रकाशन नयी दिल्ली, प्र. सं. 2014 प्र.12
- उर्मिला जैन, मानवाधिकार और हम, परमेश्वरी प्रकाशन नयी दिल्ली, प्र. सं. 2014 प्र.18
- उर्मिला जैन, मानवाधिकार और हम, परमेश्वरी प्रकाशन नयी दिल्ली, प्र. सं. 2014 प्र.23
- उर्मिला जैन, मानवाधिकार और हम, परमेश्वरी प्रकाशन नयी दिल्ली, प्र. सं. 2014 प्र.27
- उर्मिला जैन, मानवाधिकार और हम, परमेश्वरी प्रकाशन नयी दिल्ली, प्र. सं. 2014 प्र.29
- उर्मिला जैन, मानवाधिकार और हम, परमेश्वरी प्रकाशन नयी दिल्ली, प्र. सं. 2014 प्र.31
- स्त्रोत – https://www-un-org.
- सत्यनारायण साबत, भारत में मानवाधिकार, राधाकृष्ण प्रकाशन , प्र. सं. 2015, प्र.106
- https://freedomhouse.org/
- https://freedomhouse.org/
- उर्मिला जैन, मानवाधिकार और हम, परमेश्वरी प्रकाशन नयी दिल्ली, प्र. सं. 2014 प्र.40
- उर्मिला जैन, मानवाधिकार और हम, परमेश्वरी प्रकाशन नयी दिल्ली, प्र. सं. 2014 प्र.38