Human rights in Hindi भारत में मानवाधिकारों की ऐतिहासिक और वर्तमान स्थिति: 

Human rights in Hindi मानवाधिकारों का परिचय और महत्व: 

मानव अधिकारों के अंतर्गत प्राकृतिक अधिकार तथा मानव द्वारा निर्धारित मानवाधिकार इन दो प्रकार के अधिकारों को शामिल किया जाता है।

मानव अधिकारों के अंतर्गत जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार, सम्मान पाने का अधिकार, गरिमा में जीवन जीने का अधिकार तथा राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं।

Human rights in Hindi विश्व में मानव सभ्यता को विकास के चरम लक्ष्य तक पहुंचाने हेतु संयुक्त राष्ट्र द्वारा सन 1948 को सार्वभौम मानवाधिकार घोषणा पत्र को स्वीकार किया गया। मानव अधिकार घोषणा पत्र में कहा गया है कि मानव के मौलिक अधिकार किसी भी जाति, धर्म, लिंग, समुदाय, भाषा, समाज आदि सीमाओं से ऊपर हैं।”1 इस घोषणा पत्र में निर्धारित मानव अधिकारों की बहाली हेतु अधिकांश सभी विश्व सरकारों द्वारा विभिन्न प्रयास किए गए हैं। भारत द्वारा भी अपने संविधान में विभिन्न प्रकार के मानव अधिकारों को मौलिक अधिकारों का दर्जा दिया गया है। जैसे जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता का अधिकार। 

Human rights in Hindi वर्तमान भारत में मानव अधिकारों के समक्ष विभिन्न प्रकार की चुनौतियाँ खड़ी हैं। जिन उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु संविधान सभा द्वारा मानव अधिकारों को संविधान में स्थापित किया गया था, आज उन सारे मानव कल्याण के उद्देश्यों को ताक पर रख दिया गया है। इसलिए आज भारत में मानव अधिकारों की वर्तमान स्थिति पर विचार विमर्श करने की आवश्यकता है। 

वैश्विक स्तर पर मानवाधिकार अवधारणा का क्रमिक विकास आप विस्तार से यहाँ पढ़ सकते हैं

भारत में मानवाधिकारों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:

Human rights in Hindi भारत में मानवाधिकारों की अवधारणा प्राचीन काल से विभिन्न रूपों में विद्यमान रही है। भारतीय समाज मानव के समग्र विकास के संदर्भ में सचेत रहा है और मानवाधिकारों के विभिन्न पहलुओं को विकसित भी किया है किंतु भारत के इतिहास में उत्तर वैदिक काल में मानवाधिकारों के समक्ष व्यापक संकट खड़े हुए और दलित तथा महिलाओं के विभिन्न मानवाधिकारों को छीन लिया गया। कालांतर में मानवाधिकारों की अवधारणा और सदृढ़ बनती गई और अनेक साधु-संतों तथा आधुनिक काल में समाजसुधारकों द्वारा इस दिशा में क्रांतिकारी कार्य किये गए। 

प्राचीन भारत में मानवाधिकारों की स्थिति: 

Human rights in Hindi भारतीय दर्शन के अनुसार व्यक्ति समाज का अभिन्न अंग है और उसके प्रत्येक अधिकार उसे समाज के प्रति दायित्व से जुड़ा है। भारतीय दर्शन में व्यक्ति के ऊपर कुछ दायित्व सौपे गए, मातृऋण, पितृऋण, ऋषिऋण, मित्र ऋण आदि कर्तव्य पालन इन सबका अधिकार भी था। इसके साथ व्यक्ति के चार पुरूषार्थ बनाएँ गए धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष जो जीवन जीने हेतु मार्गदर्शक सिद्धान्त हैं। अर्थात गरिमापूर्णजीवन की भावना भी विद्यमान थी। वैदिक काल में सामाजिक कल्याण में ही व्यक्ति का कल्याण माना गया।

“चंद्रमा मनसो जातश्वक्षेः सूर्यो अजायत।

मुखादिन्ड श्वाग्निश्च प्राणा द्वायुरजायता।।”2

अर्थात मनुष्य के कर्तव्य निर्धारित किए गए कि वह समाज के अधिकाधिक कल्याण की भावना से युक्त होकर अपने अधिकारों का स्वेच्छा से त्याग करता हुआ दूसरे के अधिकारों के संरक्षण को सुनिश्चित करे। इस प्रकार की विचारधारा एक ऐसी सामाजिक पृष्ठभूमि का निर्माण करती है जिसमें मानवीय गरिमा एवं मानवता को पूर्ण विकसित होने का अवसर प्राप्त होता है।

इतना ही नहीं वैदिक काल में संपूर्ण मानवजाति के विकास के साथ-साथ संपूर्ण पर्यावरण एवं प्रक्रति के साथ संन्तुलन स्थापित करने की शिक्षा भी दी जाती थी। प्राणीमात्र के प्रति दया एवं सहिष्णुता का भाव तथा संर्वमंगल की भावना से अपने कर्तव्य का पालन आदि ऐसे बिंदू हैं जिनसे सहज ही मानवाधिकार का अत्यंत व्यापक पहलू का उद्घाटन होता है।

सामान्यतः मानवाधिकारों का सवाल तभी उभरता है जब सबल पक्ष निर्बल पक्ष का शोषण करता है किन्तु जब वहीं सबल पक्ष अपने दायित्वों का निर्वहण उपर्युक्त बताएँ गए आदर्शों के अनुरूप करने लगता है तब मानवाधिकारों की रक्षा अपने आप होने लगती है।

भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र रहा है ‘‘वसुधैव कुट्ठम्बकम्’ (संपूर्ण ब्रम्हाण्ड परिवार सदृश्य है) या ‘यत्र विश्वं भवत्येकनीड्म’ (संपूर्ण विश्व एक घोंसला है) कहने का तात्पर्य यह कि भारतीय संस्कृति में मानवाधिकार की व्यापकता न केवल मनुष्य बल्कि प्राणिमात्र तक थी।

‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामय’ सबके सुख की कामना और मानवाधिकारों की रक्षा की कामना संस्कृति का मौलिक भाव जो मानवाधिकारों की रक्षा तथा सामाजिक विकास हेतु व्यापक संभावना से आतप्रोत है। हमारी संस्कृति में जन्म से ही मानवाधिकारों की शिक्षा देने की व्यवस्था है बच्चों को बालपन से ही अभिभावकों द्वारा पूरे आदर्श की शिक्षा दी जाती है।

ऋग्वेद में तीन नागरिक आधिकारों की चर्चा आती है, तन, स्क्रधि और जीभासी, महाभारत में व्यक्ति की स्वतंत्रता की बात की गई है और हमारे शास्त्रों एवं पुराणों में व्यक्ति, वर्ग, समुदाय एवं धार्मिक अधिकारों के संदर्भ में कई स्थानों पर चर्चाएँ हैं। भारतीय संस्कृति का ‘सर्व धर्म समभाव’ एक मार्गदर्शी सिद्धान्त है। ऋग्वेद में एक ऐसे समाज की कल्पना की गई जिसमें मनुष्य की समानता, प्रतिष्ठा, भाईचारे और सभी के सुख प्राप्ति के प्रयासों का वर्णन है।

“अज्येष्ठासों अकनिष्ठासएले

संभ्रातरो वाबृधुः सौभगाय।”3

ऋग्वेद में कहीं सामाजिक विभेद का प्रमाण प्राप्त नहीं होता समाज की उत्पति एक विराट पुरूष के विभिन्न अंगों से हुयी है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि चार वर्णो की उत्पति हुयी किन्तु ऋग्वेद काल में इन चार वर्णों का निर्धारण जन्म से नहीं बल्कि कर्म से होता है। किसी भी वर्ग को किसी कार्य विशेष के लिए निषिद्ध नहीं किया गया है। सबका समाज में समान महत्व स्वीकार किया गया। अतः यह कर्म पर आधारित एक प्रगतिशील समाज था।

प्रगतिशील समाज के कई अनेक प्रमाण हैं। जैसे नियोग प्रथा, दहेज प्रथा का न होना, पुनर्विवाह, समान शिक्षा प्रणाली, राजा को चुनने में नागरिकों का महत्व आदि ऐसी विशेषताएँ थी। ये सारे प्रमाण ऋग्वेदिक मानवाधिकार की स्थिति को स्पष्ट करते हैं।

प्राचीन श्रृति और स्मृति ग्रन्थों में कर्तव्यों का ही अधिक वर्णन किया गया है न कि अधिकारों का क्योंकि एक व्यक्ति का समाज के प्रति कर्तव्य से ही अन्य के अधिकारों की रक्षा होती है। यम-नियम द्वारा सामाजिक समन्वय स्थापित किया गया।

Human rights in Hindi प्राचीन काल में हिन्दू विधि नियम भी प्रगतिशील थे। ग्रामीणों, व्यापारियों और संघों की अपनी न्यायिक प्रणाली थी। जिसे स्वयं वे ही संचालित करते थे। न्यायालय के अध्यक्ष का चुनाव होता था या उत्तराधिकार की प्रथा द्वारा होता था। गंभीर अपराधों के लिए मामला न्यायालय में ले जाया जाता था। यदि व्यक्ति न्यायालय के निर्णय से संतुष्ट नहीं होता तो वह राजा की अध्यक्षतावाली न्यायालय में जा सकता था। सलाहकारों की सहायता से राजा निर्णय देता था। इस प्रकार समाज में न्यायाधीश एवं दण्डाधिकारी जैसे पदों का निर्धारण किया जाता था। अर्थात समाज में सामाजिक न्याय व्यवस्था विद्यमान थी।

ऋग्वेदिक काल में महिलाओं की स्थिति भी गौरवपूर्ण थी। समाज में पितृसत्तात्मक व्यवस्था थी। पुत्र हेतु विशेष कामना की जाती थी किन्तु पुत्री के जन्म पर भी कोई दुःख नहीं बल्कि विशेष स्थान था ‘‘यद्पि वेदों में कन्या प्राप्ति के लिए कामनाएँ दृष्टिगत नहीं होती हैं तथापि साथ ही उनके प्रति निन्दा के भाव भी परिलक्षित नहीं होते हैं। अत: यह कह सकते हैं कि वैदिक युग में पुत्री की दशा शोचनीय नहीं थी किन्तु उनकी प्राप्ति उतनी प्रिय नहीं होती थी जितनी कि पुत्र की।’’4  उस समय महिला को शिक्षा का भी अधिकार प्राप्त था। वैदिक साहित्य में महिलाएँ कुछ ऋचाओं की लेखिका हैं। जैसे घोषा, अपाला, लोपामुहा आदि प्रसिद्ध महिलाएँ हैं। महिलाएँ विभिन्न क्षेत्र में शिक्षा ग्रहण करती थी। कला, शास्त्र, पाक दर्शन आदि विषयों पर अध्ययन करती थी। रामायण की कौशल्या, कैकेयी, सीता, महाभारत में द्रौपदी आदि महिलाएँ शिक्षित थीं। ’’पुत्र के समान पुत्रियाँ भी शिक्षा ग्रहण करती थीं। शिक्षा ग्रहण कर स्त्रियों को वेद और शास्त्रों में पारंगत होने के अतिरिक्त उन्हें मंत्र पढ़ने और यज्ञ पाठ करने का भी पूर्ण अधिकार प्राप्त था।’’5 अतः शिक्षा का अधिकार स्त्रियों को प्राप्त था।

Human rights in Hindi वैदिक काल में महिलाओं का विवाह पूर्ण युवा होने पर ही होता था। बहुविवाह का प्रचलन नहीं था तथा विधवा महिलाओं की स्थिति भी सुविधाजन थी। विधवाओं को मृत पति के साथ सति होने का अधिकार नहीं था। अतः सति प्रथा भी नहीं थी। महिलाओं को अपनी पैतृक संपति में हिस्सा मिलता था, यदि उसका विवाह नहीं होता। एक व्यवस्था यह भी थी कि पुत्र प्राप्ति न होने पर पुत्री को संपूर्ण संपति प्राप्त होती थी। ऋग्वेद में कहा गया है कि “जो कन्या विवाह नहीं करती, अपने माता-पिता के साथ ही रहती है, उसको पैतृक अंश में से उचित हिस्सा मिलना चाहिए, इस प्रकार कन्या के संपति के अधिकार को स्पष्ट किया गया था।’’6 इस प्रकार महिलाओं की सम्मानजन स्थिति वैदिककालीन समाज में मानवाधिकारों की स्थिति को स्पष्ट करती है। महिला परिवार के सभी कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी।

Human rights in Hindi भारतीय सामाजिक इतिहास में मानवाधिकारों का हनन उत्तर वैदिक काल में  प्रारंभ हुआ। अनेक ब्राह्मण ग्रन्थों में वर्णव्यवस्था को कर्म के आधार से जन्म के आधार पर स्वीकार किया गया और वर्णव्यवस्था एक जाति व्यवस्था में परिवर्तित हो गई। फलतः समाज के अनेक वर्ग एवं समुदायों के मानवाधिकारों का हनन होने लगा। जाति व्यवस्था में ब्राह्मण सबसे श्रेष्ट तथा शूद्र सबसे अश्रेष्ट घोषित किया गया। महिलाओं के भी अनेक अधिकार छीन लिए गए। इस प्रकार मानवाधिकारों का दमन होने लगा। कई प्रकार के ब्रह्मण ग्रंन्थ तथा स्मृर्ति ग्रन्थ लिखे गए। जिनमें मनुस्मृर्ति महत्वपूर्ण है। यह उस समय का एक प्रकार से कानूनी पुस्तक थी।

उत्तरवैदिक काल में विधवा विवाह निषेध कर दिया गया। शूद्रो को केवल सेवा का कार्य सौपा गया। महिलाओं से भी विभिन्न आधिकार छीन लिए गए।

Human rights in Hindi दक्षिण भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय रचना तिरूकुरल जो तिरूवलुवर द्वारा रची गई है। जिसमें मानवाधिकारों की प्रगतिशील स्थिति दृष्टिगोचर होती है। इस रचना में 133 अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में 10 श्लोक हैं। पहले 380 श्लोक स्त्री-पुरूष के नैतिक कर्तव्य पर आधारित हैं। अध्याय 39 से 108 तक में नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक सामाजिक ओर सांस्कृतिक अधिकारों का वर्णन किया गया है। इन श्लोकों में व्यक्ति के अधिकारों के साथ-साथ राजा के लिए भी अनिवार्य किया गया है कि वह नागरिकों के अधिकारों की पूर्ति करें।

तिरूवलुवर का यह तिरूकुरल ग्रन्थ 2000 वर्ष पहले लिखा गया था। जिसमें स्वतंत्रता संबंधी पाठ्यक्रम, भ्रष्टाचार से स्वतंत्रता, विदेशी विशेषज्ञता से राय लेना, राजा का शरणार्थियों के प्रति कर्तव्य तथा समाजवादी व्यवस्था की स्थापना की चर्चा है। अतः यह समाज एवं समय प्रगतिशील था।

Human rights in Hindi जब ब्राहमणवादी साहित्य रचे जाने लगे (उत्तरवैदिक काल के समय) उस समय मानवाधिकारों का हनन, जाति प्रथा, ब्राह्याड़ंम्बर, कर्मकाड़ आदि नकारात्मक तत्वों से समाज जकड़ने लगा था। इसी परिस्थिति के विरोध में प्रतिक्रिया स्वरूप जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म का उदय हुआ। ये दोनों धर्म समानता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व की भावना को केन्द्र में लेकर उभरे। इन धर्मों में एक ओर मानवाधिकारों की बहाली थी तो दूसरी ओर उन मानवाधिकारों की रक्षा हेतु पूर्ण प्रबंधन व्यवस्था थी। ये दोनों धर्म मानवाधिकार रक्षा हेतु कर्तव्य तथा समाज के उत्तरदायित्व पर अधिक बल देते हैं।

जैन धर्म के प्रमुख महावीर द्वारा धर्म के तीन रत्न प्रदान किए गए।

(1) सम्यक दर्शन  (2) सम्यक ज्ञान  (3) सम्यक आचरण (सुख-दुःख के प्रति समभाव का आचरण) यही नहीं महावीर स्वामी ने स्त्रियों को पुरूषों के समान समानता का अधिकार  दिया जो तत्कालीन प्रगतिशील विचारधारा थी। महावीर अपने अनुयायियों को पाँच महावृत पालन करने का निर्देश भी दिया।

  1. अहिंसा – हिंसा न करना।
  2. शत्य वचन – सत्य बोलना, क्रोध न करना।
  3. अस्तेय – बिना अनुमति वस्तु या संपति ग्रहण न करना।
  4. अपरिग्रह – भिक्षुओं द्वारा किसी भी प्रकार का संग्रह न करना, धन, धान्य, वस्तु आदि।
  5. ब्रह्मचर्य– ब्रह्मचर्य पालन पर विशेष ध्यान।

Human rights in Hindi जैन धर्म के उपर्युक्त सारे सिद्धान्त एवं नियम समाज में मानवाधिकार को बल प्रदान करने हैं। यदि समाज में हिंसा न हो तो मानवता के प्रति अपराध नहीं होंगे। यदि अपरिग्रह वृत का पालन हो तो आर्थिक दृष्टि से किसी का शोषण ही नहीं होगा। यदि बह्मचर्य को महत्व दिया जाय तो समाज में बलात्कार की समस्या ही समाप्त हो जाएगी। इस प्रकार जैन धर्म तत्कालीन समय में प्रगतिशील एवं मानवाधिकार की रक्षा करनेवाली विचारधारा थी।

जैन धर्म के समान बौध धर्म में भी मानवाधिकार हनन के विरोध में कई सिद्धान्त एवं विचार नियमों का प्रतिपादन किया गया। जाति व्यवस्था, उच्च नीच, आड़ंबर आदि पर कठोर प्रहार किया गया तथा ब्राह्मणवादी व्यवस्था को चुनौति दी गई। बौध धर्म तत्कालीन कुरीतियों के विरूद्ध एक विद्रोह था। ‘‘समाज के सभी वर्गों को अपने अधिकार दिलाने के लिए बौध धर्म का उद्भव एक सार्थक घटना थी समकालीन समाज में समानता एवं भातृत्व स्थापित करना बौद्ध धर्म का लक्ष्य था।’’7 भगवान बुद्ध माता-पिता गुरू तथा बडों का आदर सम्मान करेन की शिक्षा दी मानवता की स्थापना तथा शोषण विहीन समाज की स्थापना बौध धर्म का प्रमुख संदेश था। चार आर्य सत्य तथा मानव हेतु अष्टांगमार्ग की शिक्षा आज भी प्रासंगिक है।

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी मानवाधिकारों की व्यापक चर्चा है। जिसमें राजनीतिक, सामाजिक, तथा आर्थिक मानवाधिकारों की रक्षा करना राजा का कर्तव्य घोषित किया गया है।‘‘कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में जाति को जन्म आधार पर नियमित करने को निषिध करते हुए कर्म के आधार पर विभाजित करने का निर्देश दिया है जिसके तहत प्रशासन करने के लिए हर एक व्यक्ति को योग्यतानुसार पद प्राप्त होते थे।’’8 इस प्रकार प्राचीन भारत में मानवाधिकारों की स्थिति कुछ समय सदृढ़ कुछ समय हनन तथा कुछ समय प्रगतिशील रही है।

मध्यकालीन भारत में मानवाधिकार की स्थिति: 

Human rights in Hindi मध्यकालीन राजनीति का प्रांरभिक समय काफी अस्थिर था। राजनीतिक परिवर्तन तीवृता से हो रहे थे। स्थिर व्यवस्था का अभाव था, राजा, शासक प्रायः क्रूर एवं अशिक्षित थे। उनका ध्यान जनकल्याण की ओर नहीं बल्कि शासन पर अधिकार करने पर था। अकबर के पूर्ववर्ती राजाओं के अस्त-व्यस्त और अव्यवस्थित शासनकाल में कोई भी सामाजिक या सांस्कृतिक उन्नति नहीं हुयी थी। किन्तु अकबर के समय शासन स्थिर हुआ और एक सामासिक संस्कृति का विकास हुआ। राजा मुस्लिम थे जो कुरान के अनुसार अपना दृष्टिकोण रखते थे किन्तु कुरान में मानवाधिकारों का प्रगतिशील स्वरूप प्राप्त होता है। कुरान में कहा गया है कि जिसका जो अधिकार है वह उसे मिलना चाहिए ‘‘बेशक अल्लाहताला तुमको इस बात का हुक्म देते हैं कि जिसका जितना हक बनता है उसको उतना पहुचा दिया करों और जब लोगों का हिस्सा लगाओं तो न्याय के साथ हिस्सा लगाओं।’’9 कुरान शोषित दमित तथा उपेक्षित व्यक्ति के पक्ष में खड़ा होता है। वह मानवता का पक्षधर है। स्त्री-पुरूष के बीच वह लिंग भेद को स्वीकृति देता है और दोनों को अपनी प्रकृति के अनुसार महत्व देता है। मध्यकालीन राजाओं की रणनीतियों में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। उदाः अकबर की माँ। कहना न होगा कि मध्यकाल में राजा कुरान के अनुसार शासन करते थे। अकबर जैसे राजा भारत में समन्वय संबंधी कार्य किए वे इस्लाम के समान अन्य धर्म को भी विशेष महत्व दिया और भारतीय समाज में धर्म के अनुरूप मानवाधिकारों की स्थिति बनी रही।

Human rights in Hindi मध्यकालीन समाज में सूफी संत धारा द्वारा समाज सेवा, प्रेम, दया, सदव्यवहार, पर पीर जानना, क्षमा शांति जैसे सामाजिक मूल्यों का प्रचार प्रसार किया गया। फलतः मानवाधिकारों की रक्षा हुयी। पर पीर को जानना अन्य के अधिकारों की रक्षा ही है।

सूफी कवियों, संतों के साथ-साथ मध्यकालीन भारत में व्यापक रूप से भक्ति आंदोलन का प्रभाव रहा जो मानवाधिकारों की पुनः बहाली तथा मानवाधिकारों की रक्षा हेतु व्यापक संदेश इन कवियों द्वारा दिया गया। अतः कवियों द्वारा मानवाधिकारों के हनन पर प्रभावकारी विरोध किया गया। संत कवि समन्वयवादी दृष्टि, मानवतावादी विचारधारा, कर्मकांण्ड का विरोध, उच्चनीच, छुआ-छूत का विरोध, असमानता का विरोध तथा सर्व अधिकार संपन्न समतामूलक समाज की कल्पना की। संत कवि महान समाज सुधारक एवं मानवाधिकारों के पक्षधर थे। संत कवि कबीर जीवन भर समानता के सिद्धान्त लोगों को समझाते रहे कि मनुष्य जन्म से समान है।

‘‘एक बूँद एकै मल-मूतर, एक चाम एक गूदा।

एक ज्योति से सब उत्पन्ना, को बामन को सूदा।।’’10

इसी प्रकार अन्य सन्त गुरू नानक, कवि रैदास, धना, पीपा, मीराबाई, रहिम जैसे कवि मानवाधिकार की वकालक करते रहे।

Human rights in Hindi भाक्तिकालीन समाज में सगुण भक्ति धारा भी मानवाधिकार की पक्षधर है। महाकवि तुलसीदास के रामराज्य में मानवाधिकार की पूर्ण प्रतिष्ठा विद्यमान है। तुलसी का काव्य समन्वयता, समरसता, समानता, स्वतंत्रता तथा सामाजिक न्याय जैसे अधिकारों का पक्षधर है। ‘‘तुलसी की सामाजिक समानता केवल राजनीतिक समानता मात्र नहीं है वरण वह आध्यात्मिक समता पर आधारित है क्योंकि राजनीतिक और आर्थिक समता ऊपर से आरोपित समताएँ हैं जिनसे सभी लोगों के मन में समानता का भाव होता हो ऐसा नहीं कहा जा सकता।’’11 कहना न होगा कि तुलसी ऊपरी समानता को नहीं बल्कि मूलभूत समानता के सिद्धान्त को लेकर चल रहे थे।उसी समय अकबर द्वारा प्रतिपादित धर्म ‘दीन-ए-इलाही’ में सर्वधर्म समभाव का मौलिक लक्षण विद्यमान है। यह धर्म समन्वय को विशेष महत्व देता है जिससे मानवाधिकारों की रक्षा होती  है।

इस प्रकार मध्यकालीन समय में मानवाधिकारों की स्थिति पूर्णतः भौतिकवादी या पूर्णतः अभौतिक भी नहीं थी। मध्यकालीन मानवाधिकार धर्म, दर्शन के साथ वास्तविक यथार्थ के लेक्षण अपने में समेटे हुए थें।

आधुनिक भारत में मानवाधिकारों का विकास:

Human rights in Hindi भारतीय समाज में प्राचीन काल से ही मानवाधिकारों की रक्षा हेतु अनेक प्रयास हुए हैं तथा कई नायक मानवाधिकारों की स्थापना भी किए हैं । भारत में राम, कृष्ण, महात्मा बुद्ध, महावीर, कौटिल्य, कबीर, सूर, तुलसी से लेकर महात्मा गांधी, टैगोर, डॉ. बाबा साहेब आम्बेडकर तक अनेक दार्शिनिक, विचारक, समाज सुधारक हुए जो मानवाधिकारों की बहाली एवं उनकी रक्षा को केन्द्र में रखा।

Human rights in Hindi आधुनिक काल में भारत पर ब्रिटिश सत्ता स्थापित हुयी तथा ब्रिटिश शासक द्वारा हमेशा भारतीय संस्कृति एवं समाज को पिछड़ा हुआ बताया गया। तथा भारतीय समाज के मनोबल को तोड़ा गया इस पर गाँधी अपने मुखपत्र हरिजन में लिख रहे थे कि ‘‘अंग्रेजों द्वारा भारत पर उनकी नैतिक और सांस्कृतिक महानता को स्थापित करने के लिए भारतीय समाज को सामाजिक, सांस्कृतिक दृष्टि से पिछडा हुआ स्वीकार किया गया तथा यह वर्णन किया गया कि यह एक पतनोन्मुख समाज था।’’12 अंग्रेजों के इस दृष्टिकोण के प्रतिक्रिया स्वरूप भारतीय संस्कृति को पुनः स्थापित करने हेतु पुनर्जागरण आन्दोलन शुरू हुआ। यह राष्ट्रीय सांस्कृतिक अस्मिता को पुनः स्थापित करने का एक व्यापक प्रयास था।

Human rights in Hindi आधुनिक काल में पुनर्जागरण आन्दोलन द्वारा मानवाधिकारों को यथार्थ रूप में उपलब्ध कराने हेतु सार्थक प्रयास हुए। इन प्रयासों में राजा राम मोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना कर मानवमात्र के कल्याण की अवधारणा को जन्म दिया। इस अवधारणा को आगे चलकर आचार्य केशवचंद्र सेन, स्वामी दयानंद सरस्वति, महादेव गोविंद रानाडे, दादाभाई नौरोजी, अहमद खान, मोहम्मद लतिफ़ खाँ, रवीन्द्रनाथ टैंगोर, स्वीमी विवेकानंद, राम कृष्ण परमहंस, एनी बीसेंट, पेरीयार, साहुजी महाराज, बहरामजी मालाबारी, डॉ. बी.आर. आम्बेडकर, गांधी आदि द्वारा आगे बढ़ाया गया।

इन सुधारों के फलस्वरूप ब्रिटिश शासन द्वारा मानवाधिकारों को कानूनी मान्यता देने का कार्य शुरू हुआ। सति प्रथा समाप्ति 1827, दास प्रथा की समाप्ति 1843, विधवा विवाह आन्दोलन 1872, शारदा अधिनियम 1927 के साथ-साथ कई अनेक भारतीय अधिनियम रेग्यूलेटिंग एक्ट से लेकर 1935 का भारत अधिनियम तक मानवाधिकारों को वास्तविक रूप दिया गया।

Human rights in Hindi सांस्कृतिक पुर्नजार्गरण आन्दोलनों के साथ-साथ इसी के समानान्तर राजनीतिक स्वतंत्रता का आन्दोलन भी चल रहा था। स्वतंत्रता आन्दोलन सामाजिक, राजनीतिक नागरिक अधिकारों की प्राप्ति हेतु लगातार संघर्ष जारी रहा। ब्रिटिश सरकार भी आन्दोलन के प्रभाव स्वरूप कई नागरिक अधिकार धीरे-धीरे भारतीय समाज को देती रही। मतदान का अधिकार, संघ बनाने का अधिकार, राजनीतिक स्वतंत्रता हेतु शान्तिपूर्ण जन आन्दोलन करने का अधिकार आदि।

Human rights in Hindi भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन में वास्तविक रूप से मानवाधिकारों की मांग तथा उसे वास्तविक तथा व्यावहारिकता में लागू करने की प्रभावी मांग 1928 में नहेरू रिपोर्ट में की गई नेहरू रिपोर्ट में कई मौलिक एवं नागरिक अधिकारों की मांग की गई आगे चलकर ये ही अधिकार भारतीय संविधान के मौलिक अधिकार बने। नेहरू रिपोर्ट प्रस्तावित मानवाधिकार निम्नलिखित हैं।

नेहरू रिपोर्ट में पहलीबार नागरिको हेतु स्पष्ट रूप से अधिकारों की मांग की गई। नेहरू रिपोर्ट के पश्चात मानवाधिकारों की प्रभावी मांग सन् 1931 में कांग्रेस के कराची अधिवेशन के अन्तर्गत हुयी। इस अधिवेशन के अध्यक्ष वल्लभभाई पटेल थे। कांग्रेस द्वारा इस अधिवेशन में दो प्रमुख प्रस्तावों को पारित किया गया। एक मौलिक अधिकारों से संबंधित तथा दूसरा राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रमों से संबंधित था। मौलिक अधिकारों से संबंधित प्रस्ताव में निम्नलिखित प्रावधानों को सुनिश्चित किया गया था।

  • ‘‘अभिव्यक्ति एवं प्रेस की स्वतंत्रता।
  • संगठन बनाने की स्वतंत्रता।
  • सार्वभौम वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनावों की स्वतंत्रता।
  • सभा एवं सम्मेलन आयोजित करने की स्वतंत्रता।
  • जाति, धर्म, लिंग इत्यादि से हटकर कानून के समक्ष समानता का अधिकार।
  • सभी धर्मों के प्रति राज्य का तटस्थ भाव।
  • निःशुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की गारंटी।
  • अल्पसंख्यकों तथा विभिन्न भाषाई क्षेत्रों की संस्कृति भाषा एवं लिपि की सुरक्षा की गारेटी।’13

मानवाधिकार की दृष्टि से यह अधिवेशन भारत में क्रांन्तिकारी था। ये सारे अधिकार आगे चलकर भारतीय संविधान में अपनाएँ गए तथा लोगों को बहाल किए गए।

Human rights in Hindi कहना न होगा कि भारतीय संविधान में प्राथम मौलिक अधिकार जो मूलतः मानवाधिकार हैं। वे किसी आकस्मिक घटना का परिणाम नहीं बल्कि तत्कालीन भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में दिए गए आश्वासन, समकालीन विश्व में मानवाधिकारों की मांग तथा 1948 में सार्वभौम मानवाधिकारों की घोषणा का परिणाम है।

भारतीय संविधान में मानवाधिकारों की घोषणा:

Human rights in Hindi भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित एवं प्रगतिशील संविधान है। कारण यह संविधान विश्व के अनेक प्रसिद्ध संविधानों का अध्ययन, मनन, चिन्तन एवं भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में उभरे विभिन्न मुद्दों का परिणाम है। भारतीय संविधान में विश्व की सारी प्रगतिशील विशेषताओं को स्वीकार एवं शामिल किया गया है। 

भारतीय संविधान का उद्धेश्य भारत के लोगों को या भारत के नागरिकों को ‘‘सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए।’’14 आदि मानवाधिकार  प्रदान करता है।

भारतीय संविधान में भाग-3 अनुच्छेद – 12 से लेकर अनुच्छेद – 35 तक मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं। इन अधिकारों में मूलतः सात अधिकार थे किन्तु संपत्ति का अधिकार बाद में हटा दिया गया अब संविधान में छः प्रकार के मौलिक अधिकार प्राप्त हैं ।

Human rights in Hindi भारत में मानवाधिकारों की संवैधानिक गारंटी का इसलिए महत्व हैं क्योंकि इन अधिकारों का हनन कोई शक्तिशाली वर्ग, समूह अथवा सरकार भी नहीं कर सकती है। यदि इन अधिकारों का हनन होता है तो व्यक्ति सीधे अनु-32 तथा अनु-226 के तहत क्रमशः सर्वोच्य न्यायालय एवं उच्च न्यायालय जा सकता है।

भारतीय संविधान में प्राप्त मानवाधिकार निम्नलिखित हैं।

‘‘समानता का अधिकार अनु – 14 – 18

  • अनु – 14 विधि के समक्ष समता एवं विधियों का समान संरक्षाण।
  • अनु – 15 धर्म, मूल, वंश, लिंग और जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध।
  • अनु – 16 लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता।
  • अनु – 17 अस्पृश्यता का अंन्त और उसका आचरण निषेध।
  • अनु – 18 सेना या विद्या संबंधी सम्मान के सिवाय सभी उपाधियों पर रोक।

स्वतंत्रता का अधिकार अनु – 19 – 22

  • अनु – 19 छः अधिकारों की सुरक्षा (1) वाक् एवं अभिव्यक्ति   (2) सम्मेलन   (3) संघ बनाने   (4) संचरण    (5) निवास    (6) वृति अपनाने की स्वतंत्रता
  • अनु – 20 अपराधों के लिए दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण।
  • अनु – 21 प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण, 21 (क) प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार।
  • अनु – 22 कुछ दशाओं में गिरफ्तारी एवं निरोध से संरक्षण। 

शोषण के विरूद्ध अधिकार अनु – 23 – 24

  • अनु – 23 बलात् श्रृम का पतिषेध
  • अनु – 24 कारखानों आदि में बच्चों के नियोजन का प्रतिषेध।

धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार अनु – 25 – 28

  • अनु – 25 अंतकरण की और धर्म को आबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता
  • अनु – 26 धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता।
  • अनु – 27 किसी धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता।
  • अनु – 28 कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता।

संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार अनु – 29 – 30

  • अनु – 29 अल्पसंख्यंको की भाषा, लिपि और संस्कृति की सुरक्षा।
  • अनु – 30 शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यंक वर्गों का अधिकार।

संवैधानिक उपचारों का अधिकार अनु – 32

  • अनु – 32 मूल अधिकारों के लिए उच्चतम न्यायालय जाने का अधिकार इसमें शामिल याचिकाए है   (1) बंदी प्रत्यक्षीकरण   (2) परमादेश  (3) प्रतिषेध  (4) उत्प्रेषण   (5) अधिकार प्रच्छा।”15

इस प्रकार भारतीय संविधान भारतीय नागरिकों को मानवाधिकारों की गारंटी देता है। अधिकार हनन पर हम न्यायालय के समक्ष अधिकारों की मांग कर सकते हैं। भारत की सरकार भी इन मौलिक अधिकारों की व्यावहारिक बहाली हेतु अनेक अधिनियम पारित कर कानून बनाए है। जिनसे अधिकारों को लागू किया जा सके। इस प्रकार भारत में मानवाधिकारों का इतिहास प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक लगातार चलता रहा है। 

मानवाधिकार संरक्षण की दिशा में उठाएँ गए कदम:

संवैधानिक मानवाधिकारों को लागू करने हेतु सरकार द्वारा अनेक कानून बनाएँ गए हैं।

  • अस्पृश्मता (अपराध) अधिनियम 1976
  • नागरिक अधिकारों की रक्षा अधिनियम 1955
  • जन अधिकार सुरक्षा अधिनियम 1955
  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2002
  • सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 आदि।

इन अधिनियमों द्वारा सरकार मानवाधिकार को लागू करती है। मानवाधिकार हनन पर दृष्टि रखने हेतु 1992 में मानवाधिकार आयोग की स्थापना की गई है जो मानवाधिकारों की रक्षा करता है।

मानवाधिकार आयोग:

आयोग के कार्य आयोग निम्नलिखित सभी या किन्हीं कृत्यों का पालन करेगा, अर्थात:

  • स्वप्रेरणा से या किसी पिड़त व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा। या उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के निदेश पर। उसको प्रस्तुत की गई अर्जी पर -(1) मानव अधिकारों का किसी लोग सेवक द्वारा अतिक्रमण या दुष्प्रेरण किए जाने की, या (2) ऐसे अतिक्रमण के निवारण में किसी लोक सेवक द्वारा उपेक्षा की शिकायत के बारे में जाच करना किसी न्यायालय के समक्ष लबित किसी कार्यवाही में जिसमें मानव अधिकारों के अतिक्रमण का कोई अभिकथन अंतर्वलित है, उस न्यायालय के अनुमोदन से मध्यक्षेप करना।
  • तत्समय प्रवृत किसी विधि में किसी बात के होते हुए भी राज्य सरकार के नियंत्रण के अधीन किसी जेल या किसी अन्य संस्था का, जहां व्यक्ति उपचार, सुधार या संरक्षण के प्रयोजनों के लिए निरूद्ध या दाखिल किए जाते है, वहां के निवासियों के जीवन की परिस्थितियों का अध्ययन करने के लिए, निरीक्षण करना और उन पर सरकार को सिफारिश करना।
  • संविधान या मानव अधिकारों के सरक्षण के लिए तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन उपबंधित रक्षोपायों का पुनर्विलोकन करना और उनके प्रभावपूर्ण कार्यन्वयन के लिए उपायों की सिफारिश करना।
  • ऐसी बातों का, जिनके अंतर्गत आतंकवाद के कार्य हैं, और जो मानव अधिकारों के उपभोग में विध्न डालती हैं, पुनर्विलोकन करना और समुचित उपचारी उपायों की सिफ़ारिश करना।
  • मानव अधिकारों से संबंधित और अन्य अन्तरराष्ट्रीय लिखतों का अध्ययन करना और उनके प्रभावपूर्ण कार्यान्वयन के लिए सिफारिशें करना।
  • मानव अधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान करना और उसका संवर्धन करना।
  • समाज के विभिन्न वर्गों के बीच मानव अधिकारों संबंधी जानकारी का प्रसार करना और प्रकाशनों, संचार विचार, माध्यमों गोष्ठियों और अन्य उपलब्ध साधनों के माध्यम से इन अधिकारों के संरक्षण के लिए उपलब्ध रक्षोपायों के प्रति जागरूकता का संवर्धन करना।
  • मानव अधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत गैर-सरकारी संगठनों और संस्थाओं के प्रयासों को उत्साहित करना।
  • ऐसे अन्य कृत्य करना, जो मानव अधिकारों के संवर्धन के लिए आवश्यक समझे जाए।

Human rights in Hindi भारत में सभी प्रकार के मानवाधिकारों की गारंटी एवं व्यवस्था बनायी गई है। फिर भी भारतीय समाज का एक बड़ा समुदाय इन अधिकारों से कोसों दूर है। कुछ समुदायों को इन अधिकारों के संबंध में जानकारी भी प्राप्त नहीं है। मानवाधिकार के संबंध में तथा उन्हें वास्तविक रूप में लागू करने हेतु सरकार एवं समाज को अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।

Human rights in Hindi

भारत में मानव अधिकारों की वर्तमान स्थिति:

Human rights in Hindi भारतीय मानवाधिकारों का इतिहास शायद ही कभी इतने संकट के दौर से गुजारा होगा, जिस प्रकार के संकट के दौर से आज गुजर रहा है। वर्तमान समय के देश का माहौल इस तरह बना दिया गया है जिसमें आए दिन विभिन्न प्रकार की घटनाओं में मानव अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। जैसे  मांब लिंचिंग की घटनाएँ हो, बिहार के मुजफ्फरपुर की घटना हो, मणिपुर का मुद्दा हो, आदिवासियों के संदर्भ में विभिन्न प्रकार के मुद्दे हो, दलितों, अल्पसंख्यकों के संदर्भ में हो रही विभिन्न घटनाएँ मानव अधिकारों को तार तार करती हुई नजर आती हैं।

Human rights in Hindi भारत में शाहबानो मामला हो, विभिन्न प्रकार की मस्जिदों के संदर्भ के मामले हो, सांप्रदायिक दंगे हो, सांप्रदायिक दंगों जैसी तनावपूर्ण स्थिति हो, मणिपुर में मानवाधिकारों की स्थिति हो या धार्मिक उन्माद की स्थिति हो आदि विभिन्न प्रकार की विवादास्पद घटनाएँ जारी हैं।

Human rights in Hindi आज भारत में जबान पर ताला और लेखनी को फांसी देने की अनेक घटनाएँ हमारे समक्ष आती रहती हैं। भारत में स्वतंत्र व्यक्ति, अल्पसंख्यक एवं आदिवासी समुदायों, सामाजिक संगठनों अथवा स्वतंत्र पत्रकारिता के समक्ष जो संकट खड़ा है, इस प्रकार की स्थिति स्वतंत्र भारत के इतिहास में केवल एक बार बनी थी। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को विभिन्न प्रकार के शिकंजों में कसा जा रहा है। 

Human rights in Hindi अल्पसंख्यक, दलित एवं आदिवासी समुदायों के अधिकारों का हनन हमेशा होता आया है किंतु इस दौर में इन अधिकारों का हनन और बढ़ गया है। इन समुदायों को राजसत्ता केवल वोट बैंक समझती है और जब इन समुदायों के मानव अधिकारों की बहाली का संदर्भ आता है तब सरकार आंखें बंद कर लेती है। जैसे की छत्तीसगढ़ में हसदेव अभयारण्य के संदर्भ में आदिवासी समुदायों के अधिकारों का संदर्भ हो या मणिपुर की अमानवीय घटना हो। 

Human rights in Hindi भारत में लैंगिक समानता को स्थापित करने हेतु विभिन्न प्रयास हुए हैं फिर भी भारतीय महिलाएँ आज सुरक्षित नहीं हैं। आए दिन महिलाओं के साथ बलात्कार, अपहरण, घरेलू हिंसा, कार्य स्थल पर मानसिक एवं शारीरिक शोषण और उत्पीड़न की अमानवीय घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं। आज महिलाएँ न ही कार्यस्थलों पर सुरक्षित हैं और न ही विश्वविद्यालयों में ऐसी स्थिति में मानव अधिकारों का पुनः विश्लेषण करना आवश्यक हो जाता है। 

Human rights in Hindi सार्वभौम मानवाधिकार घोषणा पत्र का एक उद्देश्य यह भी है कि प्राकृतिक, मानव निर्मित और देश के विभिन्न संसाधनों पर अपनी प्रतिभा के अनुसार सभी का समान अधिकार सुनिश्चित हो। लेकिन भारत में इन संसाधनों पर एक विशेष वर्ग का नियंत्रण बढ़ता जा रहा है। सीमांत, उपेक्षित, गरीब वर्ग इन संसाधनों के लाभ से वंचित हो रहे हैं।

Human rights in Hindi वर्तमान भारत में युवा पीढ़ी के समक्ष रोजगार चयन में विकल्पहीनता की स्थिति गंभीर बनती जा रही है। या यूं कहे कि रोजगार के कोई विकल्प ही नहीं बचे हैं। यदि रोजगार ही नहीं होगा तो सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार कैसे प्राप्त हो पाएगा।

Human rights in Hindi इन तमाम समसामयिक मुद्दों के अलावा गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, पेयजल तथा पोषक तत्वों की कमी आदि मूलभूत प्राकृतिक मानव अधिकारों के संदर्भ में भारत की स्थिति गंभीर बनी हुई है। भारत में आज करीबन 80 करोड़ जनसंख्या 5 किलो मुफ्त अनाज हेतु लंबी-लंबी पंक्तियों में खड़ी है।

आप किसान आंदोलन के संदर्भ में यहाँ पढ़ सकते हैं

निष्कर्ष: 

Human rights in Hindi भारत में मानव अधिकारों का इतिहास वैदिक काल से विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हुए वर्तमान समय तक पहुंचा है। इतिहास के विभिन्न समय में मानवाधिकारों को विभिन्न संकटों का सामना करना पड़ा है। स्वतंत्र भारत में मानव अधिकारों को संविधान में मौलिक अधिकारों का दर्जा दिया गया है। इन अधिकारों की बहाली हेतु सरकारों एवं विभिन्न संगठनों द्वारा सराहनीय कदम उठाए गए हैं। जिसके फलस्वरुप भारत में मानव अधिकारों की कुछ सकारात्मक स्थिति बनी है। 

Human rights in Hindi वर्तमान समय में मानवाधिकारों के समक्ष पुन: विभिन्न प्रकार की नई-नई चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं। आज विभिन्न स्तरों पर मानव अधिकारों का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हनन हो रहा है और यह बड़े पैमाने पर हो रहा है। आज भारत में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी एक विशेष मोह के दौर से गुजर रहा है और स्वतंत्र पत्रकारिता के समक्ष अनेक संकट खड़े हैं। 

Human rights in Hindi भारत का मानवाधिकार आयोग एक स्वतंत्र संस्था है किंतु उसके पास नाम मात्र की शक्तियाँ भी नहीं है। वह मानव अधिकारों की रक्षा करने में असमर्थ रहा है। इसलिए भारत में मानव अधिकारों के संदर्भ में संगठित रूप से क्रांतिकारी परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। 

संदर्भ ग्रंथ: 

  1. https://www-un-org. 
  2. ऋग्वेद पुरूष सूक्त 10/90
  3. ऋग्वेद 5/60/5
  4. Shastree Shakuntala, Women in Vaidik Age, भारतीय विद्या भवन, मुंबई प्र. सं. 1952 पृ. 20
  5. पांडेय विमलचंद्र, प्राचीन भारत का राजनीतिक तथा सांस्कृतिक इतिहास, सेट्रल पब्लिकेशन हाउस इलाहाबाद  भाग-1 1994 प्र120
  6. डॉ. कपिल देव द्विवेदी, वेदामृतमवेदो में नारी, शान्ति निकेतन ज्ञानपुर, वाराणसी प्र-111
  7. सत्यनारायण साबत, भारत में मानवाधिकार, राधाकृष्ण प्रकाशन, प्र. सं. 2015 प्र-30
  8. सत्यनारायण साबत, भारत में मानवाधिकार राधाकृष्णन प्रकाशन, प्र. सं. 2015 प्र-30
  9. कुरान-आयत 58, पारा 5
  10. शामसुंदर दास, कबीर ग्रन्थावली-प्र-56
  11. सत्यनारायण साबत, भारत में मानवाधिकार, राधाकृष्ण प्रकाशन, प्र. सं. 2015 प्र-73
  12. हरिजन महात्मा गांधी, अहमदाबाद मई 27 1939 प्रष्ठ 143
  13. आधुनिक भारत का इतिहास, स्पेक्ट्रम संपादक कल्पना राजाराम सफत सी 2005 दिल्ली प्र-221
  14. भारतीय संविधान प्र-1
  15. एम. लक्ष्मीकांत, भारत की राज्यव्यवस्था, एम.सी.ग्रो हिल् एजुकेशन चेन्नाई-2010, पंचम सं-प्र-7.4 

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