Jaiv Vividhata संरक्षण की ये 5 तकनीकीयाँ ला सकती हैं क्रांति। जिनमें प्रमुख हैं, सैटेलाइट और ड्रोन द्वारा जैव विविधता की निगरानी, बायोरिमेडिएशन, सेंसर और डेटा एनालिटिक्स, सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा: नवीकरणीय ऊर्जा, स्मार्ट खेती, जैविक खेती और जल संरक्षण तकनीकियाँ आदि।
आलेख का सार: Summary of the article:
पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के जीवों की विविधता को ही Jaiv Vividhata कहते हैं। चाहे वह पेड़-पौधे हों, पशु-पक्षी, जानवर, कीड़े या माइक्रोऑर्गैनिज़्म। ये सभी जीवन प्रणालियाँ एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं और पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करती हैं। जैव विविधता का संरक्षण हमारे लिए न केवल पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन से निपटने, खाद्य सुरक्षा और जीवन स्तर को सुधारने के लिए भी महत्वपूर्ण है। यदि हम जैव-विविधता संरक्षण नहीं करते हैं, तो प्रकृति का कुछ नहीं बिगड़ेगा किंतु मानव सभ्यता धीरे-धीरे विनाश के कगार पर पहुँच जाएगी।
अब यह कहने की तो आवश्यकता नहीं है कि औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, जनसंख्या वृद्धि, प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध प्रयोग और उपभोक्तावादी प्रवृत्ति के कारण आज हमारे समक्ष जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, समुद्र जल स्तर में वृद्धि और असंख्य प्रजातियों का विलुप्तीकरण जैसे मुद्दे खड़े हैं। जब से मानव अपनी कभी कम न होनेवाली इच्छाओं की पूर्ति करने हेतु प्रकृति का अनुचित दोहन करने लगा है, तब से जैव विविधता पर विभिन्न खतरे बढ़ रहे हैं। इन विभिन्न संकट से निपटने के लिए ग्रीन टेक्नोलॉजी (Green Technology) एक वरदान बनकर उभरी है। जिसे Smith JK कहते हैं कि “हाल के वर्षों में जैव विविधता संरक्षण में प्रगति महत्वपूर्ण रही है, जिसमें जैव विविधता की निगरानी, सुरक्षा और संरक्षण में प्रौद्योगिकी का उपयोग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। सबसे आशाजनक प्रौद्योगिकियों में से कुछ में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), विशेष रूप से मशीन लर्निंग और कंप्यूटर विज़न, पर्यावरण डीएनए (ईडीएनए) और जीनोमिक्स और नेटवर्क सेंसर शामिल हैं। इन प्रौद्योगिकियों में संरक्षण प्रयासों में क्रांति लाने और सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने में मदद करने की क्षमता है।” (Smith JK 2018)
इन आधुनिक तकनीकियों का जो विकास हुआ है, यह वर्तमान मानव सभ्यता के लिए वरदान है। सभी प्रकार की ग्रीन तकनीकियाँ एक दूसरे को बल प्रदान करती है और एक सफल परिणाम हमें देती हैं। जैसे कि Johnson ML लिखते हैं “इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) सेंसर को एक दूसरे के साथ संवाद करने में सक्षम बनाता है, जिससे जैव विविधता के बारे में वास्तविक समय का डेटा और जानकारी मिलती है। ओपन-सोर्स इनोवेशन और अनुकूलन योग्य अनुप्रयोग विशेष रूप से संरक्षण उद्देश्यों के लिए तैयार प्रौद्योगिकी के विकास की अनुमति देते हैं।” (Johnson ML 2021)
ग्रीन तकनीकियों। द्वारा हम न केवल जैव-विविधता बल्कि संपूर्ण प्रकृति और मानव सभ्यता को बचा सकते हैं। ग्रीन टेक्नोलॉजी के माध्यम से हम जैव विविधता को बचाने के लिए न केवल पारंपरिक तरीकों को बदल सकते हैं बल्कि इसमें नई तकनीकों का भी सहारा ले सकते हैं।
Jaiv Vividhata जैव विविधता पर बढ़ते खतरे: Growing threats to biodiversity:
वनों की अंधाधुंध कटाई:
- जंगलों की निरंतर कटाई से न केवल पारिस्थितिकी तंत्र समाप्त रहा है बल्कि वन्य जीवन का भी अस्तित्व खतरे में है। खासकर, वन्य जीवों के आवास नष्ट हो रहे हैं, जिससे कई प्रजातियाँ विलुप्त हो रही हैं। कहना न होगा कि हमें वन और वन्यजीवों जा संरक्षण करना चाहिए।
प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन:
- जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन जैव विविधता के लिए संकट साबित हो रहे हैं। उच्च तापमान, समुद्र स्तर में वृद्धि और असामान्य मौसमी बदलाव के कारण आज विभिन्न प्रजातियों के आवास समाप्त हो रहे हैं परिणामस्वरूप अनेक प्रजातियों का विकास अवरुद्ध हो रहा है और उनपर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
अवैध शिकार और तस्करी:
- वन्य प्राणियों का अवैध शिकार और तस्करी आज विश्व के सामने एक नई चुनौती है। अवैध शिकार और तस्करी करनेवाले गिरोह अपनी मानवीयता को भूलकर ऐसे कार्य कर रहे हैं। उनके ऐसे कार्यों से कई प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं और यह समस्या वैश्विक स्तर पर बनी हुई है। भारत में हाथी, बाघ और गैंडे जैसी प्रजातियाँ इस समस्या का सामना कर रही हैं। लेकिन इस अवैध कार्य को ग्रीन तकनीकियों द्वारा कैसे रोका जा सकता है, इसका सटीक विवरण देते हुए Dr. Ashok K Rathoure लिखते हैं कि “स्मार्ट (स्थानिक निगरानी और रिपोर्टिंग उपकरण): एआई एल्गोरिदम कैमरा ट्रैप और रेंजर गश्ती से डेटा का विश्लेषण करते हैं ताकि शिकार के पैटर्न की पहचान की जा सके और यह अनुमान लगाया जा सके कि शिकारी अगला हमला कहां कर सकते हैं। इससे विभिन्न संरक्षित क्षेत्रों में शिकार की घटनाओं को कम करने में मदद मिली है। पीएडब्ल्यूएस (वन्यजीव सुरक्षा के लिए सुरक्षा सहायक): यूएससी के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित, पीएडब्ल्यूएस शिकार के हॉटस्पॉट की भविष्यवाणी करने के लिए मशीन लर्निंग का उपयोग करता है, जिससे रेंजर अपने प्रयासों को अधिक प्रभावी ढंग से केंद्रित कर सकते हैं।” ( Dr. Ashok K Rathoure and team 2024) अत: कहने की आवश्यकता नहीं हैं, कि तकनीकियाँ क्या क्या कर सकती है।
ग्रीन टेक्नोलॉजी: जैव विविधता के संरक्षण में एक उम्मीद: Green Technology: A Hope in Conservation of Biodiversity
ग्रीन टेक्नोलॉजी उन तकनीकों को कहा जाता है जो पर्यावरण और पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचाए बिना, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करती हुई मानव जीवन को सुधारने के लिए काम करती हैं। आज जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण में ग्रीन टेक्नोलॉजी का महत्व बढ़ता जा रहा है क्योंकि इन तकनीकियों की प्रकृति पारंपरिक तरीकों से कहीं अधिक प्रभावी और टिकाऊ है। आज AI हमारे समक्ष क्रांति का संदेश लेकर खड़ा है।, जो एक साथ कई स्तरों पर कई अधिक सटीकता से परिणाम प्रदान करता है। जैव- विविधता संरक्षण में इन नवीनतम तकनीकियों की भूमिका को समझते हुए Dr. Ashok K Rathoure और उनकी टीम लिखती है कि “कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), रिमोट सेंसिंग और आनुवंशिक प्रौद्योगिकियों जैसे तकनीकी चमत्कारिक कार्य करता है, जिन्होंने जैव विविधता संरक्षण में क्रांति ला दी है। एआई और बिग डेटा, जब एकीकृत होता है, तो वैज्ञानिकों को विशाल डेटासेट का कुशलतापूर्वक विश्लेषण करने, पारिस्थितिक पैटर्न की भविष्यवाणी करने और प्रभावी संरक्षण रणनीतियों की सिफारिश करने में सक्षम बनाता है। एआई, रिमोट सेंसिंग और आनुवंशिक प्रौद्योगिकियां जैव विविधता संरक्षण में क्रांति ला रही हैं।” (Dr. Ashok K Rathoure and team 2024)
जैव विविधता के संरक्षण तकनीकियाँ: Biodiversity conservation technology
सैटेलाइट और ड्रोन द्वारा जैव विविधता की निगरानी:
सैटेलाइट मॉनिटरिंग और ड्रोन टेक्नोलॉजी ने जैव विविधता के संरक्षण में क्रांतिकारी बदलाव किया है। इन तकनीकों के माध्यम से, जंगलों, वनों और अन्य पारिस्थितिकीय क्षेत्रों की नियमित निगरानी की जा सकती है। इससे जैव विविधता पर हो रहे नुकसान की पहचान समय रहते की जा सकती है और उसे रोकने के उपाय किए जा सकते हैं। मान लीजिए कि जंगल में कहीं आग लगती है तो हो सकता है कि उस आग तक आग बुझानेवाली गाड़ी पहुँच न पाए ऐसे में हम सैटेलाइट से देखकर ड्रोन द्वारा उस आग को बुझा सकते हैं। “फ़्यूज़न तकनीक इमेज की एक ऐसी तकनीक है, जिसका उपयोग कई छवियों को एक एकल छवि में संयोजित करने के लिए किया जाता है। जिसमें मूल छवियों की तुलना में अधिक पूर्ण और विस्तृत जानकारी होती है। उपग्रह और ड्रोन इमेजरी का फ़्यूज़न इसका सफल उदाहरण है।” (Dr. Ashok K Rathoure 2024)
सैटेलाइट और ड्रोन जैसी तकनीकियों की व्यापक भूमिका तथा इन तकनीकियों से हम जैव-विविधता संरक्षण हेतु क्या क्या कर सकते हैं, इसका विस्तृत विवरण Dr. Ashok K Rathoure अपने शोध आलेख में देते हैं कि “उपग्रहों और ड्रोन सहित रिमोट सेंसिंग तकनीकें पारिस्थितिकी तंत्रों पर वास्तविक समय के डेटा प्रदान करती हैं, जिससे आवास मानचित्रण, प्रजातियों के वितरण की निगरानी और अवैध गतिविधियों का पता लगाने में सहायता मिलती है। हालाँकि नैतिक विचारों के साथ CRISPR-Cas9 जैसी आनुवंशिक तकनीकें प्रजातियों के लचीलेपन के लिए आशाजनक हैं।” (Dr. Ashok K Rathoure 2024)
हम ड्रोन के माध्यम से जैव-विविधता की पहरेदारी कर सकते हैं और अवैध तस्करी को रोक सकते हैं। हम वन्य जीवों की देखभाल और संवृद्धि के लिए अनेक कार्य कर सकते हैं।
- उदाहरण: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने कई उपग्रह मिशन शुरू किए हैं जो देश भर में वन क्षेत्रों और जैव विविधता के लिए निगरानी कर रहे हैं।
बायोरिमेडिएशन: जैव विविधता को शुद्ध करने की तकनीक:
बायोरिमेडिएशन और Jaiv vividhata एक ऐसा विषय है, जिसमें एक विशिष्ट प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है अर्थात् बायोरिमेडिएशन (Bioremediation) एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसका उपयोग हम विभिन्न स्तरों और उद्देश्यों के लिए कर सकते हैं। आज के प्रदूषण युक्त समय में इस तकनीकी का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस तकनीकी के अन्तर्गत जैविक तत्वों, जैसे बैक्टीरिया, फंगस, या पौधों का इस्तेमाल करके प्रदूषित जल और मिट्टी को शुद्ध किया जाता है। कोई प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित झील, तालाब हो या कैनल यदि औद्योगीकरण या किसी शहरी प्रदूषित जल के कारण प्रदूषित हो गए हैं, उन्हें हम इस तकनीक के द्वारा शुद्ध कर सकते हैं।
आज झीलें जैव आवर्धन की समस्याओं से घिरी हैं, उन्हें हम शुद्ध कर सकते हैं क्योंकि तकनीकी हमारे पास है लेकिन इसके लिए करने की शुद्ध भावना की आवश्यकता है। यदि हम इस तकनीक का वास्तव में व्यावहारिक उपयोग करते हैं तो यह तकनीक न केवल पर्यावरण को शुद्ध कर सकती है बल्कि जैव विविधता को भी बचा सकती है क्योंकि इससे आवासीय क्षेत्र साफ होते हैं और प्रजातियों को पुनः फलने-फूलने का मौका मिलता है। बायोरिमेडिएशन के द्वारा समुद्री जैव विविधता और परतंत्र को साफ़ करते समय डायटम और हाइड्रोकार्बनोक्लास्टिक बैक्टीरिया की भूमिका पर J. Pani agua-Michel और Ibrahim M Banat प्रकाश डालते हैं कि “सबसे पहले, कुशल जैव-उपचार को प्राप्त करने के लिए, जब तेल समुद्री जल की सतह से अलग हो जाता है, तो सूक्ष्मजीव पायसीकृत अंशों पर कार्य करते हैं, जिन्हें निकालना अधिक कठिन होता है और जो समुद्री पर्यावरण के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा पैदा करते हैं। इसलिए, डायटम और हाइड्रोकार्बनोक्लास्टिक बैक्टीरिया के साथ उनका संभावित संयोजन समुद्री पर्यावरण में पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन के घटकों के जैव-अपघटन और जैव-उपचार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। बैक्टीरिया का उपयोग करके बायोरेमेडिएशन तेल हाइड्रोकार्बन का एक प्रभावी उपचार रहा है; हालाँकि, इस प्रक्रिया द्वारा उत्पादित बायोमास में कोई महत्वपूर्ण लाभदायक मूल्य नहीं है। इसके अलावा, कई अध्ययनों ने पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन को हटाने में चुनिंदा सूक्ष्म शैवाल और डायटम प्रजातियों की क्षमता को प्रदर्शित किया है, जिसे शैवाल-जीवाणु संघ की संभावित कार्रवाई द्वारा अनुकूलित किया जा सकता है।” (J. Pani agua-Michel, Ibrahim M Banat 2024)
- उदाहरण: भारत में कई बायोरिमेडिएशन परियोजनाएं चल रही हैं, जिनमें कृषि भूमि के पुनर्निर्माण के लिए यह तकनीक अपनाई जा रही है।
स्मार्ट सेंसर और डेटा एनालिटिक्स:
स्मार्ट सेंसर जैव विविधता के अन्तर्गत स्मार्ट सेंसर और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग जैव विविधता के संरक्षण के लिए किया जा रहा है। इन उपकरणों के माध्यम से जंगलों में चल रही गतिविधियों का सटीक आकलन किया जा सकता है। यह सेंसर विभिन्न पर्यावरणीय स्थितियों की निगरानी करते हैं और तुरंत डेटा एकत्र करते हैं, जिससे वन्य जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है और उन्हें बचाने के लिए उचित कदम उठाए जाते हैं। यह विचार Brown C, et al के निम्नलिखित अनुभवों से सिद्ध होता है कि “उपग्रह इमेजरी और ड्रोन जैसी अत्याधुनिक तकनीकें जैव विविधता की निगरानी करने के हमारे तरीके को बदल रही हैं। ये उपकरण पारिस्थितिकी तंत्रों पर वास्तविक समय के डेटा प्रदान करते हैं, जिससे संरक्षणवादियों को आवास परिवर्तन, प्रजातियों के वितरण और अवैध शिकार जैसी अवैध गतिविधियों पर नज़र रखने में मदद मिलती है। रिमोट सेंसिंग सुरक्षा की तत्काल आवश्यकता वाले क्षेत्रों की पहचान करके अधिक कुशल संरक्षण रणनीतियों को सक्षम बनाता है।” (Brown C, et al. 2023)
उदाहरण: नेशनल पार्क और रिजर्व क्षेत्रों में लगे स्मार्ट सेंसर जंगलों के भीतर मांसाहारी और शाकाहारी प्रजातियों की गतिविधियों का ट्रैक रखते हैं।
सौर ऊर्जा और जैव विविधता विषय के अंतर्गत जैव-विविधता संरक्षण में सौर ऊर्जा की भूमिका का अध्ययन किया जाता है। न केवल सौर ऊर्जा बल्कि विभिन्न प्रकार की ग्रीन ऊर्जा तकनीकियाँ चाहे वह सौर ऊर्जा हो, हाइड्रोजन ऊर्जा हो, बायोऊर्जा हो या फिर पवन ऊर्जा ही ये सभी तकनीकियाँ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जैव विविधता के संरक्षण के लिए एक दीर्घकालिक समाधान प्रदान करती हैं। इन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग से जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटती है, जिससे पर्यावरण में प्रदूषण कम होता है और पारिस्थितिकी तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- उदाहरण: भारत सरकार ने सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं का विस्तार किया है, जो वन क्षेत्रों के आसपास स्थापित किए जा रहे हैं, जिससे जैव विविधता को नुकसान नहीं पहुँचता।
स्मार्ट खेती, जैविक खेती और जल संरक्षण तकनीकियाँ:
जैव-विविधता संरक्षण की एक और महत्वपूर्ण तकनीक है जिसे स्मार्ट खेती कहा जाता है। स्मार्ट खेती के लिए कोई एक तकनीक नहीं है बल्कि यह विभिन्न तकनीकियों पर निर्भर करती हैं। स्मार्ट कृषि के साथ-साथ यदि हम जल संरक्षण तकनीकियों का उपयोग करते हैं, तो जैव विविधता को संरक्षित करने में और बल प्राप्त होता है और हम इस दिशा में तेजी से बढ़ सकते हैं।
इस प्रकार की एक और कृषि पद्धति है, जिसे जैविक खेतीजैविक खेती कहते हैं। यह कृषि प्रणाली तो अपने आप में पर्यावरण हितैषी और जैव-विविधता को बढ़ावा देती है। इस प्रणाली के अन्तर्गत खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करते हुए जैव-विविधता को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है।
इन इन तकनीकियों के माध्यम से कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग कम किया जाता है, जिससे मिट्टी और जल स्रोतों की गुणवत्ता बनी रहती है और कृषि भूमि पर जैव विविधता का संरक्षण होता है। हम इन तकनीकियों द्वारा आनुवांशिकता को बढ़ा सकते हैं और उनका संरक्षण भी कर सकते हैं, इस संदर्भ में Mackill DJ, Ismail AM, Singh US, et al. चावल अनुसंधान संस्थान के हवाले से लिखते हैं कि “अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) ने अपने जीनबैंक में 140,000 से अधिक चावल किस्मों से आनुवंशिक विविधता का उपयोग करके ऐसी किस्में विकसित की हैं जो बाढ़, सूखे और लवणता को झेल सकती हैं। उदाहरण के लिए, बाढ़ को सहन करने वाली स्वर्ण-सब1 किस्म ने बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में पैदावार में 45% तक की वृद्धि की है।” (Mackill DJ, Ismail AM, Singh US, et al. 2012) बायोबैकिंग, जीनोम अनुक्रमण, सहायक प्रजनन तकनीक आदि अनेक जीनोम संरक्षण तकनीकियों का विकास हुआ है, जिनके द्वारा हम इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। इन सभी तकनीकियों का परिणाम यह हुआ है कि आज कृषि पद्धतियों में बदलाव आ रहा है।
उदाहरण: वर्टिकल फार्मिंग और एग्रोफॉरेस्ट्री जैसी तकनीकों ने पारंपरिक खेती के तरीकों को बदल दिया है, जिससे जैव विविधता में सुधार हो रहा है।
भारत में ग्रीन तकनीकियाँ: Green Technologies in India
भारत सरकार ने जैव विविधता संरक्षण की दिशा में सोचते हुए कई पर्यावरण हितैषी योजनाएं शुरू की हैं, जो विभिन्न ग्रीन टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देती हैं। इन ग्रीन तकनीकियों का प्रयोग बहुउओगी सिद्ध हो रहा है।
- राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) और भारत जैव विविधता अधिनियम (BDA) जैव विविधता संरक्षण के लिए अहम कदम हैं।
- PM-KUSUM योजना ने किसानों को सौर ऊर्जा आधारित पंपों का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया, जिससे पारिस्थितिकी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
निष्कर्ष: Conclusion:
Jaiv Vividhata और ग्रीन टेक्नोलॉजी का संबंध अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों एक-दूसरे को सुदृढ़ करते हैं। ग्रीन टेक्नोलॉजी ने न केवल पारंपरिक तरीकों को सुधारने में मदद की है बल्कि नई संभावनाएं भी उत्पन्न की हैं जो भविष्य में Jaiv Vividhata के संरक्षण में सहायक होंगी। यदि हम तकनीकी दृष्टिकोण से जैव विविधता का संरक्षण करना चाहते हैं, तो हमें ग्रीन टेक्नोलॉजी का उपयोग बढ़ाने की आवश्यकता है।
संदर्भ: Reference:
Brown C, et al. (2023). Drones in conservation: enhancing biodiversity monitoring and protection efforts. Environ Sci Technol. 2023;28(4):567–590.
CASAGLI, N.; FRODELLA, W.; MORELLI, S. et al. (2017). Spaceborne, UAV and ground-based remote sensing tech- niques for environmental monitoring, urban planning and disaster detection. Geoenviron Disasters, v. 4, n. 1, 2017.Available at:⟨https://doi.org/10.1186/s40677-017-0073-1
Dr. Ashok K Rathoure, Bindurani Laxmibai, GP Ram. (2024). Unveiling the marvels of biodiversity: recent advancements in conservation efforts. Biodiversity International Journal. July 2024. DOI: 10.15406/bij.2024.07.00211
- Pani agua-Michel, Ibrahim M Banat. (2024). Unravelling Diatoms’ Potential for the Bioremediation of Oil Hydrocarbons in Marine Environments. Clean Technologies. January 2024 DOI: 10.3390/cleantechnol6010007
Johnson ML, Anderson RS. (2021). Remote sensing applications in biodiversity monitoring: a review. Int J Environ Res. 2021;30(2):189–210.
Smith JK, et al. (2018). Genetic interventions for biodiversity conservation: a CRISPR-Cas9 perspective. J Conservation Genetics. 2018;25(3):123–145.