Summary of article आलेख का सार:
Jaivik kheti kya hai एक पारिस्थितिकी आधारित कृषि पद्धति है, जो रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को कम या पूरी तरह से समाप्त करती है। यह प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हुए मृदा स्वास्थ्य, जल और जैव-विविधता पर सकारात्मक प्रभाव डालती है। जैविक खेती से उत्पादित खाद्य पदार्थ स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। साथ-साथ यह कृषि पद्धति पर्यावरण के अनुकूल होती हैं। इस आलेख में जैविक खेती के सिद्धांतों, प्रकारों, लाभों, चुनौतियों के साथ-साथ इस कृषि पद्धति का भारत में विकास और विभिन्न संभावनाओं पर चर्चा की गई है।
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Jaivik kheti kise kahate hain: जैविक खेती का परिचय:
Jaivik kheti kya hai एक कृषि प्रणाली है, जो पारिस्थितिक सिद्धांतों पर आधारित होती है। इस कृषि पद्धति में सिंथेटिक उर्वरकों, कीटनाशकों, आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (जीएमओ) और अन्य हानिकारक रसायनों का प्रयोग नहीं किया जाता है। यह मिट्टी के स्वास्थ्य, पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक प्रक्रियाओं पर निर्भर करती है। जैविक खेती का उद्देश्य न केवल खाद्य उत्पादन को बढ़ाना है बल्कि एक टिकाऊ और पर्यावरण हितैषी कृषि प्रणाली का निर्माण करना भी है।
Jaivik kheti ki paribhasha: जैविक खेती की परिभाषाएँ:
नीरजा शर्मा के अनुसार “जैविक खेती वह प्रक्रिया है जिसमें केवल प्राकृतिक तत्वों का उपयोग करके खेती की जाती है। इसका उद्देश्य भूमि की पुनर्जीवन, पर्यावरण की सुरक्षा, उर्वरता का संरक्षण, और स्वस्थ खाद्य उत्पादन है।”
पूर्णिमा गुप्ता के अनुसार “एक ऐसी प्रक्रिया जो जमीन की उर्वरता बनाए रखने और पर्यावरण को सुरक्षित बनाए रखने में सहायक हो, जो सिर्फ जैविक तत्वों का प्रयोग कर उत्पादन करती है। जैविक कृषि के माध्यम से कीमती खाद्य उत्पाद निर्माण किए जाते हैं, जो भी स्वास्थ्य के लिए शुद्ध और उपयुक्त हैं।”
Jaivik kheti ke prakar: जैविक खेती के प्रकार:
भारत में विभिन्न प्रकार की जैविक खेती प्रचलित है, जिनमें शामिल हैं:
- समेकित जैविक खेती: इस प्रणाली के अन्तर्गत फसलों के साथ-साथ पशुधन और पेड़ों को भी शामिल किया जाता है। इस प्रणाली में अधिकतम संसाधन उपयोग और न्यूनतम अपशिष्ट उत्पादन किया जाता है। यह प्रणाली जैव विविधता को बढ़ावा देती है और पारिस्थितिक तंत्र को बल प्रदान करती है।
- सजीव खेती: यह प्रणाली मिट्टी के स्वास्थ्य को बढ़ाने और जैव विविधता को संरक्षित करने पर जोर देती है। इस पद्धति के अन्तर्गत मृदा के सूक्ष्मजीवों की गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाता है और रासायनिक आगतों का कम प्रयोग किया जाता है।
- प्राकृतिक खेती: जैविक कृषि की यह एक ऐसी प्रणाली है, जो न्यूनतम जुताई और बाहरी आगतों के उपयोग पर आधारित है। यह प्रणाली मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने और कीटों और रोगों को नियंत्रित करने के लिए प्राकृतिक प्रक्रियाओं पर विशेष ज़ोर देती है।
- पुनर्योजी कृषि: यह प्रणाली मिट्टी के स्वास्थ्य को बहाल करने और पारिस्थितिक तंत्र को पुनर्जीवित करने पर केंद्रित है। इस प्रणाली के अन्तर्गत कार्बन पृथक्करण को बढ़ावा दिया जाता है। जैविक कृषि की इस प्रणाली से जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद मिलती है।
Jaivik kheti ke siddhant जैविक खेती के सिद्धांत:
Jaivik kheti kya hai यह पर्यावरण हितैषी अनेक सिद्धांतों पर आधारित प्रगतिशील कृषि प्रणाली है। इस कृषि प्रणाली के सिद्धांतों के संदर्भ में IFOAM – Organics International द्वारा कई सिद्धांतों की पहचान की गई है।
- मृदा और मानव स्वास्थ्य: IFOAM के अनुसार “जैविक खेती मिट्टी, पौधों, जानवरों, मनुष्यों और पर्यावरण के स्वास्थ्य को समग्र रूप से बढ़ावा देती है। यह ‘एक स्वास्थ्य’ दृष्टिकोण को अपनाती है, जिसमें सभी जीवित चीजों के अंतर्संबंध को मान्यता दी जाती है।”1 जैविक कृषि प्रणालियाँ मृदा की गुणवत्ता को हानि पहुँचाए बिना की जाती है। यह कृषि की एक ऐसी प्रणाली है, जो पेड़, पौधों, जानवरों और अंततः मानव स्वास्थ्य के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण रखती है।
- पारिस्थितिकी के अनुकूल: Jaivik kheti kya hai प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों और प्रक्रियाओं पर आधारित एक पर्यावरण अनुकूल कृषि पद्धति है। यह मिट्टी की उर्वरता, जल संरक्षण और जैव-विविधता को बढ़ावा देती हुई प्राकृतिक प्रक्रियाओं का उपयोग करती है। इस संदर्भ में Northeast Organic Farming Association (NOFA) कहता है कि “जैविक कृषि प्रणालियाँ प्राकृतिक पारिस्थितिक प्रक्रियाओं के साथ सद्भाव में काम करती हैं।”2 यह एक ऐसी प्राणाली है जो पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखने और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देती है।
- सभी हितधारकों को न्याय: जैविक खेती Jaivik kheti kya hai यह एक ऐसी कृषि पद्धति है जो सभी हितधारकों के साथ न्यायपूर्ण और सम्मानजनक व्यवहार करती है। इन हितधारकों में किसान, श्रमिक, उपभोक्ता और पर्यावरण शामिल हैं। यह सामाजिक और आर्थिक न्याय को बढ़ावा देने का प्रयास करती है।
- कृषि पद्धति में आगतों के प्रभावों की जाँच: जैविक खेती में विभिन्न आगतों के संदर्भ में निर्णय लेते समय सावधानी बरती जाती है। कोई नई तकनीक या अन्य आगत हो उन्हें अपनाने से पहले मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर उनके संभावित प्रभावों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाता है। अत: Jaivik kheti kya hai यह एक ऐसी कृषि प्रक्रिया है, जो अनिश्चितता और संभावित जोखिमों के प्रति एक सतर्क दृष्टिकोण अपनाती है।
Jaivik kheti ke labh: जैविक खेती के लाभ:
जैविक खेती मानव स्वास्थ्य, मृदा स्वास्थ्य, पर्यावरण और पारिस्थितिकी अनुकूलन के संदर्भ में विशेष रूप से लाभदायक होती है। इस कृषि प्रणाली के कई लाभ हैं:
- मृदा स्वास्थ्य और स्वस्थ मिट्टी: जैविक खेती मिट्टी की उर्वरता और संरचना को बढ़ाती है, जिससे पानी धारण करने की क्षमता और पोषक तत्वों की उपलब्धता में सुधार होता है। इस संदर्भ में USDA National Organic Program द्वारा कहा गया कि “जैविक खेती मिट्टी के स्वास्थ्य को बढ़ाती है, जो टिकाऊ कृषि का आधार है।”3 यह कृषि प्रणाली मिट्टी के सूक्ष्मजीवों के लिए अनुकूल होती है। इस कृषि से मृदा में जो सूक्ष्मजीव पाए जाते हैं, उनकी आबादी में बढ़ोतरी होने लगती है, जो पोषक तत्वों के चक्रण और पौधों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
- पर्यावरण संरक्षण: Jaivik kheti kya hai यह एक ऐसी कृषि करने की प्रक्रिया है जो पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा को भी सुनिश्चित करती है। यह रासायनिक प्रदूषण को कम करती है, जिससे जल प्रदूषण और मिट्टी के दूषित होने का खतरा कम होता है। यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को भी कम करती है। इन सभी सकारात्मक लाभों के कारण यह कृषि प्रणाली जलवायु परिवर्तन को कम करने में सहायक सिद्ध होती है। यह कीटनाशकों और अन्य हानिकारक रसायनों का उपयोग नहीं करती है। फलत: अनायास वन्यजीवों और पर्यावरण की रक्षा होती है।
- पौष्टिक खाद्य पदार्थ: Jaivik kheti kya hai यह एक ऐसी संधारणीय कृषि प्रणाली है, जो पौष्टिक खाद्य पदार्थों का उत्पादन करती है। जैविक खाद्य पदार्थों में आमतौर पर अधिक पोषक तत्व होते हैं और वे रासायनिक अवशेषों से मुक्त होते हैं। कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि जैविक खाद्य पदार्थों में एंटीऑक्सिडेंट का स्तर अधिक होता है। यह उपभोक्ताओं को सुरक्षित और पौष्टिक भोजन प्रदान करता है।
- जैव-विविधता का संरक्षण: Jaivik kheti kya hai यह एक ऐसी कृषि गतिविधि है, जो फसल विविधता को बढ़ावा देती है और वन्यजीवों के लिए आवास प्रदान करती है, जिससे जैव विविधता को संरक्षित करने में मदद मिलती है। यह देशी फसलों और जानवरों की नस्लों के संरक्षण में भी मदद करती है।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: यदि हम जैविक खेती प्रणाली का सफल प्रचार प्रसार करते हैं और किसान इस प्रणाली को अपनाता है तो यह ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन में क्रांति ला सकती सकती है और किसानों की आय में वृद्धि कर सकती है। यह स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने और टिकाऊ आजीविका प्रदान करने में सकारात्मक भूमिका निभा सकती है।
- जल संरक्षण: जैविक खेती मिट्टी की जल धारण क्षमता को बढ़ाती है, जिससे सिंचाई की आवश्यकता कम होती है और कम से कम जल स्रोतों से भी अधिक से अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। यह जल स्रोतों के संरक्षण और संवर्धन में भी मदद करती है।
- पशु कल्याण: जैविक खेती के अन्तर्गत न केवल खाद्यानों का उत्पादन किया जाता है बल्कि इस प्रणाली में जैविक पशुपालन भी किया जाता है। इस प्रणाली में पशुओं को अधिक जगह और प्राकृतिक वातावरण प्रदान किया जाता है, जिससे पशु संवर्धन में सुधार होता है।
जैविक खेती की चुनौतियाँ:
कोई भी लाभदायक विचार हो या तकनीकी उसे व्यावहारिक रूप से लागू करने में अनेक चुनौतियाँ सामने आती है। उसी प्रकार जैविक खेती अनेक रूपों में लाभदायक और संधारणीय कृषि प्रणाली है लेकिन इस प्रणाली की कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जैसे कि
- उच्च लागत: जैविक खेती में पारंपरिक खेती की तुलना में शुरुआत में अधिक लागत की आवश्यकता होती है क्योंकि विशेष श्रम और जैविक आगतों की प्रारंभिक लागत उच्च होती है। इसके साथ-साथ जैविक खाद और जैव उर्वरकों का मूल्य पारंपरिक रासायनिक उर्वरकों की तुलना में अधिक होता है।
- कम उत्पादन: जैविक खेती की प्रक्रिया और परिणाम धीरे होता है। कुछ फसलों में जैविक खेती से शुरुआत में पारंपरिक खेती की तुलना में कम उत्पादन हो सकता है। लेकिन धीरे-धीरे जब उत्पादन बढ़ने लगता है तब यह बढ़ता ही जाता है और पारंपरिक उत्पादन को पीछे छोड़ देता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि समय के साथ मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार के साथ उत्पादन में वृद्धि होती है। अत: दीर्घकालिक रूप में जैविक खेती पारंपरिक खेती से अधिक उत्पादन देने लगती है।
- बाजार की सीमित पहुंच: दूरदराज के क्षेत्रों ऐसे ही बाजार की पहुँच कम होती है। ऐसी स्थिति में जैविक उत्पादों को अधिक चौनैतियों का सामना करना पड़ता है। अत: बाजार की सीमित पहुंच इस प्रणाली के लिए एक प्रमुख चुनौती है। जैविक उत्पादों के लिए विपणन और वितरण नेटवर्क का विकास अभी नहीं हो पाया है इसलिए किसानों को अपने उत्पादों के लिए उचित मूल्य प्राप्त करने में कठिनाई होती है।
- प्रमाणन की लागत: जैविक उत्पादों का प्रमाणन एक और समस्या है। अपने उत्पादों को प्रमाणित कराने के लिए किसानों को अलग से खर्च करना पड़ता है, जो छोटे किसानों की दृष्टि से एक बाधा है। अत: प्रमाणन प्रक्रिया को सरल और सुलभ बनाना आवश्यक है।
- कुशल श्रम की कमी: जैविक खेती की गतिविधियों में खरपतवार नियंत्रण और कीट प्रबंधन के लिए कुशल श्रम की आवश्यकता होती है। इस दिशा में किसानों को जैविक खेती की तकनीकों और गतिविधियों में प्रशिक्षित करना आवश्यक है।
- ज्ञान और जागरूकता की कमी: जैविक कृषि कई मायने में लाभदायक और संधारणीय है फिर भी आज अधिकांश किसानों को जैविक खेती की तकनीकों और लाभों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है। अत: किसानों के बीच जागरूकता बढ़ाना और ज्ञान का प्रसार करना आवश्यक है।
- अनुसंधान और विकास की कमी: जैविक खेती के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना आवश्यक है ताकि नई तकनीकों और प्रक्रियाओं का विकास किया जा सके।
Bharat mein jaivik kheti ki sthiti: भारत में जैविक खेती की स्थिति:
भारत में प्राचीन काल से ही जैविक खेती की जाती रही है और उसका एक समृद्ध इतिहास रहा है। कालांतर में जब हरित क्रांति हुई तब इस जैविक प्राणाली की उपेक्षा होती रही। हरित क्रांति अर्थात् परंपरागत कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग किया जाता है। अत: कृषि उत्पादन में क्रांतिक वृद्धि हुई और किसान इस कृषि को अपनाने लगे। इस प्रक्रिया ने जैविक खेती को हाशिए पर ला दिया।
हाल के वर्षों में जैविक खेती के प्रति जागरूकता बढ़ने के साथ-साथ भारत में जैविक खेती का तेजी से विकास हो रहा है। भारत सरकार द्वारा जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई नीतियां और कार्यक्रम लागू किए जा रहे हैं। Ministry of Agriculture & Farmers Welfare, Government of India द्वारा “भारत सरकार जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है और किसानों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है।”4 इस दिशा में कार्य करने हेतु सरकार ने राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र (NCOF) और परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) आदि का क्रियान्वयन कर रही है। सरकारी प्रयासों के साथ-साथ अनेक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) और निजी कंपनियां भी जैविक खेती को बढ़ावा देने में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं। जैविक कृषि विकास के संदर्भ में केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने 7 फरवरी, 2025 को राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में बताया कि “जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार के चल रहे प्रयासों के तहत कुल 6.22 लाख किसानों ने जैविक खेती पोर्टल के तहत पंजीकरण कराया है। उन्होंने आगे बताया कि राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (एनपीओपी) और भागीदारी गारंटी प्रणाली (पीजीएस-इंडिया) के तहत प्रमाणित कुल जैविक खेती क्षेत्र विभिन्न राज्यों में 59.74 लाख हेक्टेयर है।”5 कहना न होगा कि भारत के किसान जैविक कृषि के संदर्भ में सकारात्मक रुझान दिखा रहे हैं।
जैविक उत्पादों का बाजार:
भारत में जैविक उत्पादों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। उपभोक्ता अब स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति अधिक जागरूक हो रहे हैं। पर्यावरण के प्रति जागरूकता जैविक उत्पादों की मांग को बढ़ा रही है। फिर भी हमें यह भी विचार करना होगा कि जैविक उत्पादों की कीमतें अभी भी पारंपरिक उत्पादों की तुलना में अधिक हैं। जैविक उत्पादों का अधिक मूल्य बाजार के विकास को सीमित करता है। अत: हमें जैविक उत्पादों की उपलब्धता और पहुंच में सुधार करने की आवश्यकता है।
जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सुझाव:
Jaivik kheti kya hai यह अनेक दृष्टिकोण से लाभदायक और पर्यावरण हितैषी कृषि प्रणाली है लेकिन आज भी इस प्रणाली के विकास हेतु हमें बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। अत: जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं:
- किसानों को शिक्षित और प्रशिक्षित करना: आज हमें अपने किसानों को जैविक खेती की तकनीकों और लाभों के बारे में शिक्षित और प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से किसानों को जैविक खेती के बारे में जानकारी प्रदान की जानी चाहिए ताकि किसान यह संधारणीय प्रक्रिया अपना सके। किसानों को जैविक खेती के सफल उदाहरणों से अवगत कराना भी महत्वपूर्ण है।
- जैविक उत्पादों के लिए बाजार विकसित करना: जैविक उत्पादों के लिए बाजार विकसित करना आवश्यक है ताकि किसानों को अपने उत्पादों के लिए उचित मूल्य मिल सके। इसके लिए जैविक उत्पादों के विपणन और वितरण के लिए बुनियादी ढांचे का विकास करना होगा। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और खुदरा दुकानों के माध्यम से जैविक उत्पादों की पहुंच बढ़ाई जा सकती है।
- प्रमाणन प्रक्रिया को सरल बनाना: जैविक उत्पादों को प्रमाणित करने की प्रक्रिया को सरल और सुलभ बनाना चाहिए क्योंकि छोटे किसानों के लिए यह एक अटपटी सी प्रक्रिया लगती है। इस प्रक्रिया के कारण किसान अनुत्साहित होते हैं। अत: प्रमाणन लागत को कम करना और प्रमाणन प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाना आवश्यक है।
- अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना: जैविक खेती के विकास और संवर्धन हेतु अनुसंधान पर ध्यान देने की सर्वाधिक आवश्यक है ताकि नई तकनीकों और नई प्रक्रियाओं का विकास किया जा सके। जैविक खेती में उपज और कीट प्रबंधन से संबंधित अनुसंधान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
- वित्तीय सहायता प्रदान करना: किसानों को जैविक खेती के लिए एक सरल, टिकाऊ और सुगम वित्तीय सहायता प्रणाली की स्थापना करना चाहिए ताकि वे जैविक आगतों और उपकरणों को किसान खरीद सकें। किसानों को जैविक खेती के लिए सब्सिडी और कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है।
- जागरूकता बढ़ाना: उपभोक्ताओं के बीच जैविक उत्पादों के लाभों के बारे में जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। इसके लिए विज्ञापन और जनसंपर्क कार्यक्रमों का आयोजन किया जा सकता है। उपभोक्ताओं को जैविक उत्पादों के बारे में सही जानकारी प्रदान करना और उनके मिथकों को दूर करना और जैविक उत्पादों के स्वास्थ्य लाभों के संदर्भ में बताना आवश्यक है।
- नीतिगत समर्थन: सरकार को जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल नीतियां बनानी चाहिए। जैसे कि जैविक उत्पादों के लिए सब्सिडी और बाजार प्रोत्साहन। ग्राहकों को जैविक उत्पादन ख़रीदने पर कुछ रियायतें आदि। इन प्रयासों के अलावा जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए एक राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना तैयार करने की अत्यंत आवश्यक है।
- किसानों के समूहों को बढ़ावा देना: किसानों को जैविक खेती के लिए समूहों का गठन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। किसानों समूहों को जैविक आगतों की खरीद, उत्पादों के विपणन जैसी विभिन्न जानकारियाँ देना आवश्यक है।
- जैविक आगतों की उपलब्धता सुनिश्चित करना: जैविक खेती के लिए आवश्यक जैविक आगतों जैसे कि जैविक खाद और जैव उर्वरक की सरल, सुलभ उपलब्धता सुनिश्चित करना आवश्यक है। जैविक आगतों के उत्पादन और वितरण को विभिन्न प्रकार से बढ़ावा भी दिया जाना चाहिए।
- जैविक खेती में नवाचार को बढ़ावा देना: जैविक खेती में नवाचार को बढ़ावा देना इसलिए आवश्यक है क्योंकि नई तकनीकों और तरीकों का विकास किया जा सके और कम लागत में अधिक उत्पादन किया जा सके। यदि हम ऐसा करते हैं तो किसान अनायास जैविक खेती की ओर मुड़ेंगे। किसानों को जैविक खेती में नए विचारों और तकनीकों को अपनाने के लिए अनेक प्रोत्साहन राशि भी दी जा सकती है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए हमें अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने की भी आवश्यक है। इस सहयोग से हम अन्य देशों के अनुभवों और सर्वोत्तम प्रथाओं से कुछ नया सीख सकते हैं जिससे जैविक खेती के विकास में मदद मिल सकती है।
जैविक खेती और जलवायु परिवर्तन:
Jaivik kheti kya hai यह एक ऐसी कृषि प्रणाली है, जो जलवायु परिवर्तन को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने हेतु मृदा में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा को बढ़ाती है। फलत: कार्बन का पृथक्करण होता है। यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को भी कम करती है और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति कृषि के लचीलेपन को बढ़ाती है। जैविक खेती जलवायु परिवर्तन के अनुकूल कृषि प्रणालियों को विकसित करने में मदद करती है।
Jaivik kheti ka mahatva: जैविक खेती का भविष्य:
भारत में जैविक खेती की व्यापक संभावनाएँ हैं। उपभोक्ताओं के बीच स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति बढ़ती जागरूकता के साथ-साथ जैविक उत्पादों की मांग में वृद्धि होने की उम्मीद है। यदि किसानों को सरकार के समर्थन मिले तो किसान इस संधारणीय कृषि पद्धति को अपना सकते हैं। जब किसान प्रोत्साहित होंगे तब भारत में जैविक खेती एक प्रमुख कृषि प्रणाली के रूप में उभर सकती है। जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान, शिक्षा, बाजार विकास और नीतिगत समर्थन की आवश्यकता है। जैविक खेती न केवल खाद्य सुरक्षा को बढ़ा सकती है बल्कि पर्यावरण को संरक्षित करने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में भी मदद कर सकती है। यह एक टिकाऊ और समावेशी कृषि प्रणाली के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
जैविक खेती किसानों के समक्ष अनेक अवसर उपलब्ध कराती है। जैसे कि बढ़ती उपभोक्ता मांग, सरकारी समर्थन, तकनीकी विकास और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग। इन अवसरों का लाभ उठाकर जैविक खेती को भारत में एक सफल और टिकाऊ कृषि प्रणाली के रूप में स्थापित किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
Jaivik kheti kya hai यह एक टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल कृषि प्रणाली है जो भारत के लिए महत्वपूर्ण है। यह न केवल खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देती है बल्कि पर्यावरण को संरक्षित करने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में भी मदद कर सकती है। सरकार, किसानों और उपभोक्ताओं के संयुक्त प्रयासों से जैविक खेती को भारत में एक सफल और टिकाऊ कृषि प्रणाली के रूप में स्थापित किया जा सकता है। जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान, शिक्षा, बाजार विकास और नीतिगत समर्थन की आवश्यकता है। जैविक खेती भारत के कृषि क्षेत्र के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। Jaivik kheti kya hai यह एक ऐसी कृषि प्रणाली है जो न केवल वर्तमान पीढ़ी की जरूरतों को पूरा करती है बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी संसाधनों को संरक्षित करती है।
संदर्भ सूची:
- IFOAM – Organics International: https://ifoam.bio
- Northeast Organic Farming Association (NOFA): https://www.nofa.org
- USDA – National Organic Program: https://www.usda.gov/organic
- राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र (NCOF): https://nconf.dac.gov.in/
- राज्यसभा में राज्यमंत्री द्वारा दिया गया उत्तर, 07/02/2025
- कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार: https://ag