Ozone Parat ka Vighatan सावधान! टूट रहा है; धरती का कवच Attention is breaking down; Earth’s Shield

मित्रों, हम इंसानों ने हमारी उपभोक्तावादी इच्छाओं, आकांक्षाओं तथा अपने ऐशो-आराम के लिए हमने एक गैस बनाया जिसका नाम है, क्लोरोफ्लोरोकार्बन इस गैस से Ozone Parat ka Vighatan होता है। यह गैस क्लोरीन तथा कार्बन को मिलाकर बनती है। इस गैस का उपयोग हम लोग तरल और गैस दोनों रूप में करते हैं। सौंदर्य प्रसाधनों, फ्रिज, वातानुकुलित यंत्र, वीडियो, रिकॉर्डर के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, टेलीविजन, कंप्यूटर, कपड़ा साफ करने वाले घोलकों, अग्निशामक, फ्रोजन फूड आदि बनाने में किया जाता है किंतु आज यही गैस हमारे मानव सभ्यता के समक्ष एक अभिशाप के रूप में खड़ी है।
क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस वायुमंडल में उत्सर्जित होने के पश्चात किसी पदार्थ से प्रतिक्रिया नहीं करती है। हवा से हल्की होती है, इसलिए ऊपर उठती जाती है और वायुमंडल के ऊपरी भाग में स्थित ओजोन परत तक पहुंच जाती है। वहाँ ओजोन परत से प्रतिक्रिया करती हुई ओजोन की मात्रा में कमी लाती है। 

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ओज़ोन परत का परिचय: Introduction to Ozone Layer

ओज़ोन परत क्या होती है? ओज़ोन परत पृथ्वी का एक कंबल है। जिस प्रकार हम ठंड से बचने के लिए कंबल का प्रयोग करते हैं और कंबल ठंडी से हमारी रक्षा करता है। ठीक उसी प्रकार सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों से यह ओज़ोन परत पृथ्वी पर जीवों की रक्षा करती है। पृथ्वी पर जीवन हेतु अति महत्वपूर्ण इस ओज़ोन परत का निर्माण समतापमंडल में होता है। U.S. Environmental Protection Agency  के अनुसार “स्ट्रेटोस्फेरिक ओजोन प्राकृतिक रूप से सौर पराबैंगनी (यूवी) विकिरण और आणविक ऑक्सीजन (O2) के संपर्क से बनता है। पृथ्वी की सतह से लगभग 6 से 30 मील ऊपर “ओजोन परत” पृथ्वी की सतह तक पहुँचने वाले हानिकारक (यूवी) विकिरण की मात्रा को कम करती है।” www.eve.gov

ओज़ोन गैस निर्माण की प्रक्रिया: Process of ozone gas production

सूर्य किरने वायुमंडल के ऊपरी भाग में स्थित ऑक्सीजन के अंगों को परमाणुओं में तोड़ती है और ऑक्सीजन के तीन परमाणु मिलकर ओजोन का उत्पादन करते हैं। यह प्रक्रिया वायुमंडल के समतापमंडल में होती है। ओजोन गैस निम्नलिखित सूत्र के अनुसार निर्मित होती है।
O2 +फोटांन (सौर प्रकाश) -2O पुन: O+O2 – O3

निर्माण होती हुई ओजोन गैस साथ-साथ इस मंडल में ऑक्सीजन परमाणु के साथ प्रतिक्रिया करती हुई निम्नलिखित सूत्र के अनुसार नष्ट भी होती जाती है; O3 +O- 2O

आप यहाँ थार मरुस्थल के विस्तार का दिल्ली पर प्रभाव के संदर्भ में पढ़ सकते हैं।

ओज़ोन गैस का विघटन: Depletion of Ozone gas. Ozone Parat ka Vighatan

ओजोन एक अस्थिर गैस है, यह एक तरफ निर्माण होती जाती है, तो दूसरी तरफ समाप्त भी जाती है। यह निरंतर होने वाली एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। किंतु यह प्राकृतिक प्रक्रिया एक संतुलन की स्थिति में रहती है लेकिन आज यह विघटन की प्रक्रिया का संतुलन बिगड़ चुका है। इस संतुलन को बिगाड़ने का सबसे बड़ा कारण मानव जनित प्रक्रिया  है। 

ओज़ोन गैस विघटन की दो प्रमुख प्रक्रियाएँ: Two major processes of ozone gas decomposition

वायुमंडल के ऊपरी भाग समतापमंडल में ओज़ोन विघटन दो प्रकार की सुव्यवस्थित प्रक्रियाओं के माध्यम से होती है।

ओज़ोन गैस विघटन की प्राकृतिक प्रक्रिया: Natural process of ozone gas decomposition

  • सौर कलंक चक्र (Sunspots) सूर्य का 11 वर्षीय एक चक्र होता है, उस चक्र के अंत में सौर कलंक में वृद्धि हो जाती है, जिसके कारण सूर्य क्रिया में वृद्धि होती है। फलत: आवेशित कण (Charged particles) मुक्त होते हैं। जब ये कण पृथ्वी से टकराते हैं, तब ‘नाइट्रोजन’ गैस N2 एवं ‘जलवाष्प’ का विघटन होता है। जब ‘नाइट्रोजन’ गैस विघटित हो जाती है, तब उससे परमाणु मुक्त होते हैं, जो ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करके ‘नाइट्रोजन ऑक्साइड’ का निर्माण करते हैं। जलवाष्प के विघटन से ‘हाइड्रांक्साइड’ अणु (OH) एवं ‘हाइड्रोजन’ के अनु का निर्माण होता है। नाइट्रोजन, ऑक्साइड और हाइड्रोजन के अणु मिलकर ओज़ोन परत का विघटन करते हैं।
  • इसके अलावा सूर्य की पराबैंगनी विकिरणों के द्वारा भी ओज़ोन का विनाश होता है।

ओज़ोन गैस विघटन कि मानव जनित प्रक्रिया: Man-made process of ozone depletion

  • मानव द्वारा अपनाई जाने वाली विभिन्न प्रक्रियाओं के माध्यम से वायुमंडल में क्लोरीन, ब्रोमीन आदि परमाणुओं का उत्सर्जन होता है। इन परमाणुओं को धारण करने वाले पदार्थ को ओजोन विघटनकारी पदार्थ कहते हैं। इनमें क्लोरीन, कार्बन एवं ब्रोमीन विभिन्न मात्राओं में पाए जाते हैं। इन सब को मिलाकर ‘हैलोकार्बन’ Helocarbon की संज्ञा भी दी जाती है।
  • यह पदार्थ एक बार यदि वायुमंडल में उत्सर्जित हो जाते हैं, तो वह पृथ्वी पर वापस जल के साथ नहीं आते हैं और वायुमंडल में 20 से 120 वर्षों तक रह सकते हैं। इन पदार्थों का वायुमंडल में विघटन नहीं होता है।
  • जब ये पदार्थ समतापमंडल में पहुंच जाते हैं, तब सूर्य की पराबैंगनी विकिरणें इन अंगों को क्लोरीन एवं ब्रोमीन में तोड़ देती है, जो ओजोन विघटन के कारण बनते हैं। ओज़ोन विघटन के संदर्भ में U.S. Environmental Protection Agency लिखते हैं कि “जब क्लोरीन और ब्रोमीन परमाणु समतापमंडल में ओज़ोन के संपर्क में आते हैं, तो वे ओज़ोन अणुओं को नष्ट कर देते हैं। एक क्लोरीन परमाणु समताप मंडल से हटाए जाने से पहले 100,000 से अधिक ओज़ोन अणुओं को नष्ट कर सकता है। ओजोन प्राकृतिक रूप से बनने की तुलना में अधिक तेज़ी से नष्ट हो सकता है।” www.epa.gov

ओज़ोन विघटनकारी पदार्थों की सूची: List of Ozone Depleting Substances 

  • CFCs क्लोरोफ्लोरोकार्बन Chlorofluorocarbon
  • HCFCs हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन Hydrochlorofluorocarbon
  • हैलॉन Halon
  • HBFCs हाइड्रोब्रोमोफ्लुरोकार्बन Hydrobromofluorocarbons
  • CC14 कार्बन टेट्राक्लोराइड Carbon Tetrachloride
  • CH3CC13 मिथाइल क्लोरोफॉर्म Methyl Chloroform
  • CH3Br मिथाइल ब्रोमाइड Methyl Bromide
  • CH2BrC1 ब्रोमोक्लोरोमीथेन Bromochloromethane
  • NOX नाइट्रोजन ऑक्साइड Nitrogen Oxide 

ये सभी पदार्थ मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल द्वारा नियंत्रित हैं।

Ozone parat ka vighatan

क्लोरोफ्लोरोकार्बन: Chlorofluorocarbon (CFCs)

ओज़ोन विघटन प्रक्रिया को तेज करने में क्लोरोफ्लोरोकार्बन गैस की सबसे बड़ी भूमिका है। यह क्लोरीन एवं कार्बन से बना होता है। NOAA Global Monitoring Laboratory के अनुसार इस गैस की परिभाषा दी गई है कि “क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) गैर विषैले, गैर-ज्वलनशील रसायन हैं, जिनमें कार्बन, क्लोरीन और फ्लोरीन के परमाणु होते हैं। इनका उपयोग एरोसोल स्प्रे, फोम और पैकिंग सामग्री के लिए ब्लोइंग एजेंट, सॉल्वैंट्स और रेफ्रिजरेंट के निर्माण में किया जाता है।” gml.noaa.gov

यह गैस हवा से भी हल्की होती है, इसलिए समतापमंडल तक पहुंच जाती है। समतापमंडल में यह गैस 65 से 110 सालों तक ओज़ोन अणुओं का क्षरण करती रहती है।

क्लोरोफ्लोरोकार्बन द्वारा ओज़ोन विघटन के दो चरण: Two stages of ozone depletion by chlorofluorocarbons

मानव प्रक्रिया द्वारा उत्सर्जित सीएफसी जब कई वर्षों के बाद समतापमंडल में पहुंचती है, तब वह पराबैंगनी किरणों की उपस्थिति में इसका विघटन होता है एवं क्लोरीन का एक परमाणु निम्नलिखित सूत्र के अनुसार मुक्त होता है। CFC+सूर्यप्रकाश (<लगभग 260 nm) – C1+CFCL

क्लोरीन का जो मुक्त हुआ परमाणु है, वह ओज़ोन गैस के साथ प्रतिक्रिया करता है और ‘क्लोरीन मोनोऑक्साइड’ का निर्माण करता है। आगे चलकर यही ‘क्लोरीन मोनोऑक्साइड’ का अनु ‘ऑक्सीजन’ के एक परमाणु से संयुक्त हो जाता है। एक ‘क्लोरीन’ तत्व कई वर्षों तक ओज़ोन को नष्ट करता रहता है। 

क्लोरोफ्लोरोकार्बन का मुख्य उपयोग: Main uses of chlorofluorocarbons

  • रेफ्रिजरेटर एवं एयर कंडीशनर में प्रशीतक Coolant
  • प्रणोदक के रूप में एरोसांल स्प्रे Aerosol spray
  • फोमिंग एजेंट (Foaming agent) के रूप में प्लास्टिक निर्माण
  • मशीन तथा धात्विक वस्तुओं की सफाई करने वाले विलायक के रूप में
  • आग बुझाने में

ओज़ोन परत विघटन के दुष्प्रभाव: Side effects of ozone layer depletion

ओज़ोन परत ह्रास का समुद्री पारितंत्र, वनस्पति, जीव-जंतुओं, जैव भू-रासायनिक चक्रों आदि पृथ्वी के सभी जड़ एवं चेतन तत्वों पर नकारात्मक रूप से पड़ता है।

वनस्पतियों पर प्रभाव: Effect on vegetation

जिन फसलों में रासायनिक उर्वरकों का अधिक प्रयोग होता है, वे फसले अधिक पराबैंगनी विकिरणों के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। जब पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पड़ेगी, तब धरती की सतह का तापमान भी बढ़ेगा, जिसके कारण मृदा की नमी कम होगी और अधिक वाष्पीकरण से फसले सूखने लगेगी।

पराबैंगनी विकिरणों द्वारा पौधों की शारीरिक विकास में बाधा आती है। पौधों की रोग प्रतिकारक शक्ति कम हो जाती है। पौधों के आकार में परिवर्तन होने लगता है। पौधों के पोषक तत्व कम होने लगते हैं और पौधों की विकास प्रक्रिया में परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन का परिणाम यह होता है कि पौधें या तो बहुत अधिक बढ़ने लगते हैं या बहुत कम बढ़ते हैं। 

इन सभी नकारात्मक प्रभावों के फलस्वरुप उत्पादकता में कमी आती है। फसल बीजों की क्षति होती है और फसल की गुणवत्ता कम होने लगती है, जिसका अंत में मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

जहाँ कहीं भी पराबैंगनी किरणें पड़ेगी, उस स्थान के सभी पेड़-पौधें और जीव-जंतु विनाश की और मुड़ जाते हैं।

मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव: Effects on Human Health

यदि ऊपरी समतापमंडल में स्थित यह ओज़ोन परत क्लोरोफ्लोरोकार्बन से प्रतिक्रिया करके पतली बन जाती है अथवा उसमें छिद्र बन जाता है, तो वहाँ से सूर्य की पराबैंगनी विकिरणें पृथ्वी तक पहुंच जाती हैं, जो जीवन के लिए हानिकारक होती हैं। 

पराबैंगनी विकिरणें इतनी हानिकारक होती है कि यह थोड़ी भी मात्रा में शरीर पर पहुंचती है, तो त्वचा का कैंसर हो जाता है। 

अधिक पराबैंगनी विकिरणों के कारण रासायनिक प्रक्रिया में वृद्धि होगी, जिसके कारण श्वसन तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। 

जब पराबैंगनीं विकिरणों का नकारात्मक प्रभाव फसलों पर पड़ेगा, तो मनुष्य के लिए खाद्य संकट उत्पन्न हो जाएगा।

पराबैंगनी विकिरणों से मनुष्य प्रजाति की अनुवांशिकता में परिवर्तन हो सकता है। आँखों से संबंधित रोग जैसे मोतियाबिंद एवं अन्य नेत्र रोगों में वृद्धि हो सकती है।

ओज़ोन क्षरण नियंत्रण हेतु अंतरराष्ट्रीय प्रयास: International efforts to control ozone depletion

सन् 1970 और 1980 के दशक में अंतर्राष्ट्रीय समुदायों में ओज़ोन परत ह्रास के संदर्भ में चिंता व्यक्त की गई। सन् 1985 में ओज़ोन परत की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग हेतु ‘वियना कन्वेंशन’ हुआ। इस प्रयास का परिणाम सन् 1987 में ओज़ोन ह्रास करने वाले पदार्थ को नियंत्रित करने के लिए ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ पर हस्ताक्षर किए गए।

ओज़ोन संरक्षण के प्रयास में ‘वियना कन्वेंशन’ vienna convention, ‘मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल’ Montreal protocol, की ‘किगाली समझौता’ आदि महत्वपूर्ण प्रयास हैं।

ओज़ोन परत संरक्षण के व्यक्तिगत उपाय: Personal measures for ozone layer protection

सर्वप्रथम हमें हमारे जीवन शैली को बदलना होगा। हमें बाजार से ऐसी  अस्तुएँ खरीदनी चाहिए जो जलवायु परिवर्तन में प्रदूषण न फैलाती हो। वह पर्यावरण हितैषी हो। पर्यावरणीय हानिकारक वस्तुओं की बिक्री कम होने पर कंपनियाँ स्वयं उन वस्तुओं का उत्पादन नहीं कर पाएगी। इन व्यक्तिगत उपायों में सरकारों की भी भूमिका होनी चाहिए। सरकारें यह सूचना प्रदान कराये कि कौन-कौन सी चीजें जलवायु को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं। इस प्रकार समय-समय पर उपभोक्ताओं को जानकारी मिलनी चाहिए।

वस्तुओं पर (EF) अर्थात एनवायरमेंट फ्रेंडली का निशान लगाया जाना चाहिए। इससे उपभोक्ताओं में चेतना जागृत होगी और वे पर्यावरण हितैषी वस्तुओं का अधिक से अधिक उपयोग करेंगे। 

डीजल और पेट्रोल से चलने वाले विभिन्न वाहनों का डिजाइन ऐसा बनाया जाए कि इस ईंधन का जहरीलापन वायुमंडल में मिलने से पहले ही समाप्त हो जाए। 

निष्कर्ष: Conclusion 

ओज़ोन एक विषैली गैस है किंतु यही गैस समतापमंडल में सूर्य की हानिकारक पराबैगनी विकिरणों से हमारी रक्षा करती है। यह गैस संपूर्ण पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में एक चादर के समान फैली हुई है। मानवजनित क्रियाओं के कारण क्लोरोफ़्लोरोकर्बन नामक गैस वायुमंडल में उत्सर्जित होती है। यह वैसे वायु से भी हलकी होने के कारण ऊपर उठती जाती है और समतापमंडल तक पहुँच जाती है। समतापमंडल में यह गैस ऑक्सीजन अणुओं से प्रतिक्रिया करके ओज़ोन परत को हानि पहुँचती है। Ozone Parat ka Vighatan होता है। जब ओज़ोन परत में छिद्र अथवा ओज़ोन परत पतली हो जाती है, तब सूर्य की पराबैंगनी विकिरणें पृथ्वी तक पहुँच जाती हैं और यहाँ न केवल मानव जीवन बल्कि पादप जीवन और प्राणी जीवन सबको नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं। सूर्य की पराबैंगनी विकिरणों के कारण त्वचा के रोग, आँखों के रोग, अनुवांशिकता में परिवर्तन जैसी अनेक समस्याओं को जन्म देती है। वनस्पति अथवा पादप जीवन अपना संतुलन खो देता है। वनस्पतियों का खाद्य उत्पादन एवं प्रजनन प्रक्रिया में परिवर्तन हो सकता है। फलत: पृथ्वी पर एक व्यापक उथल-पुथल मचेगी, जो महा विनाशकारी होगी। अत: कहना न होगा कि आज हम सबको ओज़ोन परत संरक्षण की दिशा में काम करने की आवश्यकता है। अन्यथा जब प्रकृति अपना हिसाब मांगेगी, तब न हम बचेंगे और न ही यह धरती बचेगी।     

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