पर्यावरण चक्र का परिचय: Introduction to Environmental Cycle
paryavaran chakra पर्यावरण में क्रियाशील सभी चक्रों (कार्बन चक्र, नाइट्रोजन चक्र, जल चक्र आदि) का अन्तर्जाल रूपी एक चक्र है। प्रसिद्ध दार्शनिक फ्रेडरिक एंगेल्स ने कई वर्ष पहले कहा था कि ‘प्रकृति पर अपनी मानवीय विजय के कारण हमें आत्म प्रशंसा में विभोर नहीं हो जाना चाहिए क्योंकि वह हर ऐसी विजय का हमसे प्रतिशोध लेती है।’ फ्रेडरिक एंगेल्स का यह कथन आज हमारे समक्ष सत्य सिद्ध हो रहा है। आज हम जितना विकास कर पाए हैं, इस विकास के पीछे हमने पर्यावरण और प्रकृति को कितना लूटा है, इस प्रश्न का उत्तर आज कोई विचारक, दार्शनिक अथवा वैज्ञानिक नहीं दे सकता है।
आज हमारी मानव सभ्यता विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में इतना विकास कर चुकी है कि हम हमारे जीवन को उन्नत बनाने हेतु अनेक सकारात्मक अथवा नकारात्मक प्रयास कर सकते हैं। वर्तमान मानव सभ्यता द्वारा प्रकृति को जिस स्तर पर हानि पहुंचाई गई है, उसके परिणाम स्वरूप आज पर्यावरण चक्र ही बदल चुका है, जिसके कारण प्रतिवर्ष प्राकृतिक आपदाओं की बारंबारता रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ रही हैं।
यह पर्यावरण चक्र क्या होता है? paryavaran chakra इस संदर्भ में European health scientific committees ने अपनी वेबसाइट पर पर्यावरण चक्र की परिभाषा दी हुई है कि “एक प्राकृतिक प्रक्रिया जिसमें तत्व, पर्यावरण के विभिन्न हिस्सों (जैसे हवा, पानी, मिट्टी, जीव) के बीच विभिन्न रूपों में लगातार चक्रित होते रहते हैं।” ec.europa.eu पर्यावरण चक्र के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के और भी चक्र होते हैं, जैसे कार्बन चक्र, नाइट्रोजन चक्र, फास्फोरस चक्र और जल चक्र। जब मनुष्य अपनी वैज्ञानिक तकनीकियों के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों को अनुचित रूप से दोहन करता है, तब इन पर्यावरणीय चक्रों में बाधा उत्पन्न होती है और संपूर्ण पर्यावरण चक्र का ह्रास होता है।
पिछले कुछ 200-300 वर्षों में यह मानव सभ्यता इन पर्यावरणीय चक्रों में गंभीर रूप से बाधा उत्पन्न कर चुकी है, जिसके परिणाम स्वरूप आज संपूर्ण विश्व विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहा है। हमें पर्यावरण चक्र को बचाने के लिए क्या करना चाहिए आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
हमारी पृथ्वी के वर्तमान एवं भविष्य की स्थिति का अनुमान लगाते हुए WHO ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि “अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर हर साल 55 मिलियन लोग सूखे से प्रभावित होते हैं, और यह दुनिया के लगभग हर हिस्से में पशुधन और फसलों के लिए सबसे गंभीर खतरा है। सूखे से लोगों की आजीविका को खतरा है, बीमारी और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है और बड़े पैमाने पर प्रवासन को बढ़ावा मिलता है। पानी की कमी से दुनिया की 40% आबादी प्रभावित होती है और 2030 तक सूखे के परिणाम स्वरुप 700 मिलियन लोगों के विस्थापित होने का खतरा है।” www.who.int
वायुमंडल परिवर्तन की वर्तमान स्थिति: Current status of atmospheric change
पृथ्वी पर सभी चेतन प्राणियों का लगभग 95% हिस्सा कार्बन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फास्फोरस और गंधक आदि से मिलकर बनता है। और यह पर्यावरण के विभिन्न अवयव तथा विभिन्न चक्र की स्थिति पर निर्भर करता है। पिछली कुछ शताब्दियों से हमारी गतिविधियों के कारण इन पर्यावरणीय चक्रों में भारी बाधा उत्पन्न हुई है। इयान टिसेओ द्वारा प्रकाशित कार्बन डाइऑक्साइड का वार्षिक वैश्विक उत्सर्जन 1940-2023 के अंतर्गत कहा गया है कि “जीवाश्म ईंधन और उद्योग से वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 2022 में कुल 37.15 बिलियन मेट्रिक टन (GtCO2) था। उत्सर्जन 2023 में 1.1% बढ़कर 37.55 Gt CO2 के रिकॉर्ड उच्च स्तर तक पहुंचाने का अनुमान है। 1990 के बाद से वैश्विक CO2 उत्सर्जन में 60% से अधिक की वृद्धि हुई है।” www.statista.com
वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि 1860 से 1980 के बीच केवल जंगलों को काटने और उनमें आग लगाने के कारण वायुमंडल में 80 टन से ज्यादा कार्बन बड़ा है।
हमारे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बहुत ही काम है, फिर भी वह पृथ्वी के तापक्रम को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाती है। यह गैस सूर्य की गर्मी को पृथ्वी तक तो आने देती है किंतु पृथ्वी की गर्मी को अंतरिक्ष में वापस लौटने नहीं देती है, इसलिए पृथ्वी का तापमान धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। इस प्रक्रिया को ‘ग्रीन हाउस प्रभाव’ कहा जाता है अथवा पार्थिव उष्मन कहा जाता है।
हमें ग्रीन हाउस प्रभाव और वायुमंडल की संरचना के संदर्भ में बहुत पहले ही ज्ञात हो चुका था और यह तथ्य कि मानवीय क्रियाएँ ग्रीनहाउस प्रभाव में अभूतपूर्व तेजी ला सकती है। यह हमें करीब एक शताब्दी वर्ष पहले ही ज्ञात हो चुका था, फिर भी हमने उस दिशा में कोई ठोस कदम उठा नहीं पाए, इसके फलस्वरुप आज पूरा विश्व समुदाय इस ग्रीनहाउस प्रभाव से चिंतित है।
आज चिंता के प्रमुख विषय हैं, ओजोन परत का ह्रास के कारण भूमि तक पराबैंगनी किरणों का पहुंचना और वायुमंडल के औसत तापमान में वृद्धि जिसके कारण संपूर्ण जीवन प्रभावित हो रहा है।
इन सारे नकारात्मक प्रभाव की शुरुआत का मुख्य कारण है, औद्योगिक क्रांति। इस क्रांति ने जीवन को सुगम और सुविधामय अवश्य बनाया है, लेकिन इस प्रक्रिया में पर्यावरण का ऐसे स्तर पर दोहन किया गया कि अब पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व का ही संकट खड़ा हो गया है।
विश्व की अधिकांश ऊर्जा की मांग जीवाश्म ईंधन अथवा कोयला और प्राकृतिक गैस से पूरी होती है। यह आसानी से उपलब्ध भी होते हैं और इसके उपयोग में भी आसानी होती है। लेकिन इन औद्योगिक स्रोतों से करीब 320 प्रकार के प्रदूषण बढ़ाने वाले तत्वों का भी उत्सर्जन होता रहता है। इन तत्वों में मिथिलीन, क्लोराइड, कार्बन टेट्राक्लोराइड, बेंजीन, फार्मल्डिहाइड, ब्यूटाडीन और न्यूरोटॉक्सिंस आदि प्रमुख हैं। रसायन उद्योगों से भारी मात्रा में जहरीली गैसें उत्सर्जित होती हैं।
हरित गृह प्रभाव में कार्बन डाइऑक्साइड, मेथेन, नाइट्रोजन के ऑक्साइड और CFC समूह के रसायनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। नाइट्रोजन के ऑक्साइड की मात्रा बढ़ाने के पीछे नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों के बढ़ते उपयोग और जीवाश्म ईंधन की मुख्य भूमिका है। क्लोरोफ्लोरोकार्बन जो एक संश्लेषित रसायनों का समूह है। इसका उपयोग एरोसॉल फार्म, प्लास्टिक, रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर में किया जाता है।
विकिपीडिया के अनुसार “2023 तक हमारे वायुमंडल में एयरोसोल अर्थात (अणुओं की संख्या के अनुसार) हमारी शुष्क हवा में 78.08% होता है, नाइट्रोजन 20.95% ऑक्सीजन 0.93% अंग 0.04% कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य गैसों की थोड़ी सी मात्रा है।” en.m.Wikipedia.org
कहना न होगा कि हमारे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड बहुत ही अल्प मात्रा में है, फिर भी यह हमारे ग्रह के तापमान को निर्धारित करती है। क्योंकि यह सूर्य की ऊष्मा को पृथ्वी तक पहुंचने देती है किंतु पृथ्वी की उष्मा को वायुमंडल में जाने से रोकती है। फलत: पृथ्वी का तापमान बढ़ने लगता है। पुराने आंकड़ों के अनुसार 1860 से 1985 के बीच पृथ्वी के औसत तापमान में 0.5 सेल्सियस की वृद्धि हुई है। यदि कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा दोगुनी हो जाती है, तो पृथ्वी का तापमान 3 से 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा।
पृथ्वी के वायुमंडल का तापमान बढ़ जाने से पृथ्वी पर वर्षा चक्र में बाधा उत्पन्न होगी और वर्ष लगातार कम होती जाएगी, जिससे कृषि प्रभावित होगी। समुद्र का औसत तापमान बढ़ेगा इसके फलस्वरुप समुद्री तूफानों में बढ़ोतरी होगी।
पर्यावरण में सभी प्रकार के चक्रों की एक संतुलित प्रक्रिया होती है और वह सारे चक्र आपस में अंतर्संबंधित होते हैं। यदि एक चक्र में बाधा उत्पन्न होती है, तो सारे चक्र नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं। कार्बन चक्र में बाधा उत्पन्न होने के कारण पृथ्वी का औसत तापमान का संतुलन और अनियंत्रित हो रहा है। परिणाम स्वरूप हमारी पृथ्वी के मौसम तथा जलवायु में परिवर्तन हो रहा है।
पर्यावरण चक्रों का नकारात्मक रूप से प्रभावित होने के कारण: Due to negative impact of environmental cycles
पर्यावरण चक्र के अंतर्गत अनेक प्रकार के चक्र शामिल हैं। जैसे कार्बन चक्र, नाइट्रोजन चक्र, फास्फोरस चक्र, जल चक्र आदि प्रमुख हैं। आज इन सभी चक्रों में मानव की उपभोक्तावादी मानसिकता से बाधा उत्पन्न हो रही है। ये चक्र अपनी प्राकृतिक विशेषताओं के अनुरूप क्रियाशील नहीं हैं। इसीलिए प्राकृतिक आपदाओं की बारंबारता तथा जलवायु परिवर्तन आदि समस्याएँ हमारे समक्ष खड़ी हो गई हैं।
यदि मनुष्य अपनी स्वार्थ उपभोक्तावादी प्रवृत्ति का त्याग करता है और प्रकृति के संसाधनों को अपनी आवश्यकता के अनुसार उचित उपयोग करता है, तो प्रकृति अपना संतुलन भी बनाए रख सकती है। इस तथ्य का प्रमाण देते हुए इयान टिसेओ द्वारा प्रकाशित एक लेख में उन्होंने कहा है कि “कॉविड 19 के प्रकोप के कारण लॉकडाउन और अन्य प्रतिबंधों के परिणाम स्वरूप 2020 में वैश्विक CO2 उत्सर्जन में 5.5% की गिरावट आई। हालांकि हाल के इतिहास में यह एकमात्र मौका नहीं था, जब किसी बड़ी वैश्विक घटना के कारण उत्सर्जन में कटौती हुई। उदाहरण के लिए वैश्विक मंदी के परिणाम स्वरूप 2009 में CO2 के स्तर में लगभग 2% की गिरावट आई, जबकि 1980 के दशक की शुरुआत में मंदी का भी उत्सर्जन पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा।” www.statista.com कहने का तात्पर्य यह है कि राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ जब प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करना कम कर देती है, तब CO2 उत्सर्जन कम हो जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि हमें प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग नहीं करना चाहिए बल्कि अवश्य करना चाहिए किंतु आवश्यकता के अनुसार उचित प्रयोग होना चाहिए।
प्राकृतिक पर्यावरणीय चक्र में परिवर्तन के संदर्भ में यूनाइटेड नेशन द्वारा अध्ययन किया गया और कई प्रकार के कारण बताए गए हैं। जिनमें बिजली उत्पादन, वस्तु विनिर्माण, जंगलों को काटना, परिवहन का उपयोग करना, भोजन उत्पादन, विद्युत भवन आदि प्रमुख हैं। इन सारी प्रक्रियाओं में जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपभोक्तावादी दृष्टिकोण से अनुचित दोहन करने लगते हैं, तब पर्यावरणीय चक्रों में बाधा उत्पन्न होती है। परितंत्र में वन्यजीवों का आश्चर्यजनक व्यवहार आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
बिजली उत्पादन के संदर्भ में:
जीवाश्म ईंधन को जलाना, कोयले से बिजली उत्पादन करना, तेल और गैस जलना जो कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रस ऑक्साइड पैदा करती है। यह शक्तिशाली ग्रीन हाउस गैसे हैं, जो पृथ्वी पर सूरज की ऊष्मा आने से रोक देती है।
अतः हमें पवन बिजली, सौर ऊर्जा तथा अन्य नवीकरणीय स्रोतों की ओर बढ़ने की आवश्यकता है।
विनिर्माण और उद्योग उत्सर्जन:
इन उद्योगों में सीमेंट, लोहा, स्टील, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्लास्टिक, कपड़े और अन्य सामान बनाने के लिए जिस प्रक्रिया को अपनाया जाता है, उससे भी ग्रीनहाउस गैसों का व्यापक रूप से उत्सर्जन होता है। “विनिर्माण उद्योग दुनिया भर में ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में सबसे बड़े योगदान कर्ताओं में से एक है।” un.org
जंगलों को काटना:
राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने उद्योग लगाने तथा उद्योग चलाने और अपने उद्योगों के लिए सरकार को विभिन्न प्रकार के दावे समझाकर भूमि अधिग्रहित कर लेती हैं और उस भूमि पर हजारों सालों से विकसित प्राकृतिक वनों को बेरहमी से काट दिया जाता है। इसके कारण भी उत्सर्जन होता है। जब बड़े वृक्षों को काटा जाता है, तो वे वृक्ष अपने द्वारा संग्रहित कार्बन का उत्सर्जन करते हैं। इस संदर्भ में यूनाइटेड नेशन की वेबसाइट पर लिखा गया है कि “हर साल लगभग 12 मिलियन हेक्टेयर जंगल नष्ट हो जाते हैं। क्योंकि जंगल कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, इसलिए उन्हें नष्ट करने से प्रकृति की वायुमंडल से उत्सर्जन को दूर रखने की क्षमता भी सीमित हो जाती है।” un.org
परिवहन का उपयोग करना:
जीवाश्म ईंधन पर चलने वाले सभी प्रकार के परिवहन ग्रीन हाउस गैसें विशेष कर कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का एक प्रमुख कारक है। जीवाश्म ईंधन पर चलने वाले परिवहन वाहनों में आंतरिक दहन इंजन होती है, जिसमें गैसोलीन जैसे पेट्रोलियम आधारित उत्पादों के दहन के कारण सड़क वाहनों का योगदान इस संदर्भ में अधिक हो जाता है। “वैश्विक ऊर्जा संबंधित कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का लगभग एक चौथाई हिस्सा परिवहन से होता है और रुझान आने वाले वर्षों में परिवहन के लिए ऊर्जा के उपयोग में उल्लेखनीय वृद्धि की ओर इशारा करते हैं।” un.org
कहना न होगा कि भविष्य अभी अंधकारमय है। संसाधनों का दुरुपयोग, नगरीकरण एवं तीव्र औद्योगिकरण, ईंधन का ह्रास (जीवाश्म ईंधन का प्रयोग), बड़े पैमाने पर भू-उपयोग में बदलाव (निर्वनीकरण), वातावरण में CO2 आदि GHGs के उत्सर्जन में वृद्धि, , समतापमंडल में ओजोन ह्रास और तापमान वृद्धि आदि अनेक कारण विद्यमान हैं।
पर्यावरण चक्रों के नकारात्मक रूप से प्रभावित होने के संभावित परिणाम: Possible consequences of negatively affecting environmental cycles
मानव काफी समय से पर्यावरणीय चक्र की प्राकृतिक संतुलन में बाधा डालने वाली क्रियाएँ कर रहा है। इसका परिणाम यह है कि ग्लेशियरों का पिघलना शुरू हो गया है, ध्रुवीय बर्फ खंडित हो रही है, मानसून की प्रक्रिया में परिवर्तन हो रहा है, समुद्र के बढ़ते जलस्तर एक अलग समस्या है, बदलते पारिस्थितिक तंत्र एवं ताप लहर का रूप आज हम देख सकते हैं। कहना न होगा कि पर्यावरणीय चक्र यदि बाधित हुआ, तो आज की मानव सभ्यता गंभीर रूप से प्रभावित होगी।
पर्यावरणीय चक्र का नकारात्मक रूप से प्रभावित होने के अनेक प्रभाव हैं, जिन्हें प्रत्यक्ष प्रभाव और अप्रत्यक्ष प्रभाव के रूप में विभक्त किया जा सकता है।
उत्पादकता पर प्रभाव:
वैश्विक कृषि पर जलवायु चक्र का नकारात्मक प्रभाव होगा। फसलों के उत्पादन में कमी, मत्स्य पालन तथा पशुधन नष्ट हो सकता है। “समुद्र के अधिक अम्लीय होने से, अर्बन लोगों को भोजन देने वाले समुद्री संसाधन खतरे में हैं। कई आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ और बर्फ के आवरण में बदलाव ने पशुपालन, शिकार और मछली पकड़ने से खाद्य आपूर्ति को बाधित कर दिया है। गर्मी का तनाव चराई के लिए पानी और घास के मैदानों को कम कर सकता है, जिससे फसल की पैदावार घट सकती है और पशुधन भी प्रभावित हो सकता है।” un.org
गरीबी और विस्थापन:
जब प्राकृतिक आपदाओं की बारंबारता बढ़ेगी, तब गरीब लोगों के घर झुग्गी झोपड़ियाँ बाढ़ में बह जाएगी अथवा सूखा पड़ने पर गरीब अपनी रोजी-रोटी नहीं काम पाएगा। अतः बढ़ती भूख और खराब पोषण के माध्यम से उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचेगा। “बदलते मौसम के मिजाज से बीमारियाँ बढ़ जाती हैं, और चरम मौसमी घटनाओं से मौतें बढ़ जाती हैं और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के लिए इसे बनाए रखना मुश्किल हो जाता है।” un.org
स्वास्थ्य जोखिम में वृद्धि:
पर्यावरण के विभिन्न चक्र जब नकारात्मक रूप से बाधित होते हैं, तब वे पर्यावरणीय अनियमितता उत्पन्न करते हैं और जब पर्यावरणीय अनियमितता प्रारंभ होती है, तब स्वास्थ्य जोखिम बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में प्रदूषण का भारी प्रभाव बीमारियों को बढ़ा देता है। चरम मौसमी घटनाओं का नकारात्मक प्रभाव से जबरन विस्थापन, मानसिक स्वास्थ्य पर दबाव और बढ़ती भूख और खराब पोषण स्थिति के कारण व्यक्ति का स्वास्थ्य और भी खराब होते चला जाता है। इस संदर्भ में यूनाइटेड नेशन की वेबसाइट पर लिखा गया है कि “हर साल पर्यावरणीय कारक लगभग 13 मिलियन लोगों की जान ले लेते हैं। बदलते मौसम के मिजाज से बीमारियाँ बढ़ रही हैं।” un.org
प्रजातियों की हानि:
आज हम देखते हैं कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलचर, नभचर और स्थलचर की विभिन्न प्रजातियाँ संकट में हैं अथवा विलुप्तप्राय हैं। पृथ्वी पर संकटग्रस्त प्रजातियों एवं विलुप्तप्राय प्रजातियों की सूची बढ़ती ही जा रही है। प्रतिवर्ष इस लाल सूची में अनेक प्रजातियाँ सम्मिलित हो रही हैं। “अगले कुछ दशकों में 10 लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है। जंगल की आज चरम मौसम और आक्रामक कीट और बीमारियाँ जलवायु परिवर्तन से संबंधित कई खतरों में से हैं। कुछ प्रजातियाँ स्थानांतरित होने और जीवित रहने में सक्षम होंगी लेकिन सभी नहीं।” un.org
उबलता हुआ महासागर:
जब हरित गृह प्रभाव बढ़ेगा, तब सूर्य किरणें पृथ्वी पर तो आयेंगी लेकिन पृथ्वी की उष्मा वायुमंडल से अंतरिक्ष में नहीं जा पाएगी। ऐसी स्थिति में पृथ्वी गर्म होगी महासागर भी गर्म होंगे। पृथ्वी के ग्लेशियर पिगलेंगें, इससे महासागरों का जलस्तर बढ़ेगा और महासागर स्वयं गर्म होंगे। “जैसे-जैसे समुद्र गर्म होता है, उसका आयतन बढ़ता है क्योंकि गर्म होने पर पानी का विस्तार होता है। बर्फ की चादर पिघलने से समुद्र का स्तर भी बढ़ता है, जिससे तटीय और द्वीप समुदायों को खतरा उत्पन्न हो जाता है। इसके अलावा महासागर कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, इसे वायुमंडल से दूर रखते हैं। लेकिन अधिक कार्बन डाइऑक्साइड समुद्र को अधिक अम्लीय बनता है, जो समुद्री जीवन और मूँगा चट्टानों को खतरे में डालता है।” un.org
मौसमी घटनाओं में परिवर्तन:
पर्यावरण चक्र में यदि परिवर्तन होता है अथवा उनकी प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है, तब मौसमी घटनाओं में व्यापक परिवर्तन होगा। अनियमित गंभीर वर्षा होगी, जिससे कहीं महा भयानक बाढ़ का प्रकोप देखा जा सकता है, तो कहीं भयानक सूखा पड़ेगा, जहाँ पर जीव-जंतु और मनुष्य भूख से मरने की कगार पर आ जायेंगें। समुद्री तूफानों में भयंकर वृद्धि के साथ तूफान का विकराल रूप हमारी कल्पनाओं से अधिक हानि पहुँचा सकता है। तटीय समुदायों को व्यापक नुकसान ही नहीं बल्कि हो सकता है, द्वितीय देश समुद्र में ही डूब न जाए। “चक्रवात, तूफान और टाइफून समुद्र की सतह पर गर्म पानी पर फ़ीड करते हैं। ऐसे तूफान अक्सर घरों और समुदायों को नष्ट कर देते हैं, जिससे मौतें होती हैं और भारी आर्थिक नुकसान होता है।” un.org
अन्य संभावित परिणाम:
उपर्युक्त प्रभावों के अलावा अन्य कई सारे परिणाम हो सकते हैं। जैसे कि कृषि की स्थिति में बदलाव, विभिन्न फसलों पर मौसमी घटनाओं का नकारात्मक प्रभाव, समुद्री जलस्तर में वृद्धि से कृषि योग्य भूमि में कमी आना, अक्षांशीय प्रभाव, खरपतवार में वृद्धि, रोग एवं बीमारियों का फैलाव आदि व्यापक प्रभाव हो सकते हैं।
निष्कर्ष: Paryavaran chakra
paryavaran chakra ऐसा तंत्र है, जो प्राकृतिक रूप से स्वयं में संतुलित होता है। लेकिन आज का मानव उस संतुलन को बिगाड़ रहा है। परिणाम स्वरूप सारे पर्यावरण चक्र नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहें हैं। आज का मानव अपनी स्वार्थ भावना तथा उपभोक्तावादी दृष्टिकोण लेकर पर्यावरण को विभिन्न तरीकों से हानि पहुंचा रहा है। यह मानव यह नहीं समझ पा रहा है कि यदि पर्यावरण ही नहीं बचेगा, तो इसकी स्वार्थ भावना अथवा इसकी उपभोक्तावादी मानसिकता क्या बच पाएगी? जब प्रकृति मानव की इन अनुचित प्रक्रियाओं का हिसाब लेगी तब न ही मनुष्य बचेगा और न ही पर्यावरण बचेगादल इस पर आज विश्व समुदाय को गंभीर रूप से विचार करने की आवश्यकता है और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है न कि केवल सभा, संगोष्ठियों में बोल बजाने की।