Paryavaran Shiksha ka mahatva विद्यालयों और महाविद्यालयों में पर्यावरण शिक्षा का महत्व Importance of Environmental Education in Schools and Colleges

आलेख का सारांश: Summary of the article:

This research article covers the following topics यह शोध आलेख निम्नलिखित विषयों को कवर करता है hide

Paryavaran Shiksha ka mahatva पर्यावरण के संदर्भ में जागरूकता, ज्ञान और उत्तरदायित्व को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। 

भारत में, पर्यावरण साक्षरता सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पश्चात पर्यावरण शिक्षा को स्कूल और कॉलेज दोनों स्तरों पर शैक्षिक ढांचे में व्यवस्थित रूप से शामिल किया है। इस आलेख में भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में पर्यावरण शिक्षा के कार्यान्वयन पर विचार किया गया है, जिसमें पाठ्यक्रम के एकीकरण, गतिविधियों और व्यावहारिक दृष्टिकोणों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। स्कूल में विज्ञान और भूगोल जैसे विषयों, अनिवार्य पर्यावरण अध्ययन (ईवीएस) पाठ्यक्रमों और सहपाठयक्रम गतिविधियों जैसे कि वृक्षारोपण अभियान और इकोक्लब के माध्यम से पर्यावरण शिक्षा को शामिल किया गया हैं। कॉलेज और विश्वविद्यालयों में पर्यावरण विज्ञान में अनिवार्य स्नातक पाठ्यक्रम, विशेष कार्यक्रम और अनुसंधान के अवसर प्रदान करके इस पहल को आगे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। जबकिग्रीन स्कूल प्रोग्राम’ औरनेशनल ग्रीन कोर्स’ जैसी पहलों ने सहभागिता को बढ़ावा दिया हैअपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण, सीमित व्यावहारिक अनुभव और संसाधन की कमी जैसी चुनौतियाँ प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा डालती हैं। प्रस्तुत आलेख भारत में पर्यावरण को मजबूत करने के लिए मौजूदा प्रथाओं, चुनौतियों और संभावित रणनीतियों पर प्रकाश डालता है, पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार व्यक्ति बनाने और इसकी भूमिका के महत्व पर प्रकाश डालता है। 

Paryavaran Shiksha ka mahatva पर्यावरण शिक्षा का महत्व: Importance of   Environmental Education:

यह शैक्षणिक क्षेत्र का एक ऐसा विषय है जो मनुष्य और प्राकृति के बीच संबंधों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह पर्यावरण प्रणालियों को समझने और जटिल पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र, जीव विज्ञान, भूगोल, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान और नैतिकता जैसे विभिन्न विषयों से ज्ञान को एकीकृत करता है। पर्यावरण अध्ययन का उद्देश्य जागरूकता पैदा करना और भविष्य की पीढ़ियों के लिए पर्यावरण की रक्षा और उसे बनाए रखने के लिए उचित निर्णय लेने को प्रोत्साहित करना है।

पर्यावरण शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्तियों और समुदायों को पर्यावरण संबंधी विषयों और समस्या को संबोधित करने और संधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता, ज्ञान, कौशल, दृष्टिकोण और प्रेरणा प्राप्त करने में मदद करती है। इसका उद्देश्य पर्यावरण की समझ को बढ़ावा देना और लोगों को सूचित और जिम्मेदारी से निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित करना है जो इसके संरक्षण और संरक्षण में योगदान करते हैं।

पर्यावरण शिक्षा आदतों को बढ़ावा देने और पारिस्थितिक पदचिह्नों को कम करने के व्यावहारिक तरीकों को बढ़ावा देती है। छात्र सीखते हैं कि कैसे छोटेछोटे कार्य जैसे पानी के संरक्षण और अपशिष्ट को कम करने जैसे इस ग्रह को स्वस्थ्य रखने में योगदान कर सकते हैं। छात्र ऐसी संधारणीय आदतों को अपनाकर प्रतिदिन पर्यावरण हितैषी जीवन जी सकते हैं। छात्र पर्यावरणीय कल्याण का समर्थन करने वाली जीवन शैली जी सकते हैं और उपभोग, संसाधन आवंटन, उपयोग और अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में उचित निर्णय ले सकते हैं।”1

पर्यावरण शिक्षा को आमतौर पर स्कूलों, कॉलेजों और सामुदायिक कार्यक्रमों में शामिल किया जाता है और यह जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जैव-विविधता हानि जैसी वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

भारतीय स्कूलों और कॉलेजों में पर्यावरण शिक्षा को छात्रों के बीच जागरूकता बढ़ाने, पर्यावरणीय मूल्यों को स्थापित करने और संधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में लागू किया जाता है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इसके कार्यान्वयन को अनिवार्य बनाया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रत्येक छात्र पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता के संदर्भ में जानकारी प्राप्त कर सके।

स्कूलों में पर्यावरण शिक्षा कार्यान्वयन: Environmental Education Implementation in Schools:

विषयों में एकीकरण: Integration across disciplines:

प्राथमिक से लेकर उच्चतर माध्यमिक स्तर तक विज्ञान, सामाजिक अध्ययन, भूगोल और भाषाओं में पर्यावरण संबंधी विषय शामिल किए गए हैं। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने छात्रों को प्रदूषण, जैव विविधता संरक्षण और जलवायु परिवर्तन जैसे विषयों के बारे में जागरूक करने के लिए पाठ्यपुस्तकों में पर्यावरण संबंधी मुद्दों को शामिल किया है।

अनिवार्य पर्यावरण अध्ययन (EVS): Compulsory Environmental Studies:

प्राथमिक कक्षाओं में छात्रों को प्रकृति और पारिस्थितिकी तंत्र से परिचित कराने के लिए EVS को एक पृथक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। मध्य और उच्चतर माध्यमिक स्तरों के लिए, पर्यावरण विषयों को मुख्य विषयों में शामिल किया जाता है।

पर्यावरण शिक्षा की गतिविधियाँ और परियोजनाएँ: Environmental Education Activities and Projects:

स्कूल वृक्षारोपण अभियान, अपशिष्ट प्रबंधन परियोजनाएँ, जल संरक्षण पहल और राष्ट्रीय उद्यानों या पर्यावरणसंवेदनशील क्षेत्रों की क्षेत्रीय यात्रा जैसी गतिविधियों के माध्यम से व्यावहारिक शिक्षा को प्रोत्साहित किया जाता हैं। छात्र अक्सर इकोक्लब और पर्यावरण से संबंधित प्रतियोगिताओं जैसे वादविवाद प्रतियोगिता, प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता और चित्रकला प्रतियोगिता में भाग लेते हैं।

व्यावहारिक दृष्टिकोण: Practical approach:

नागरिकों के विद्यार्थियों जीवन से ही पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी की भावना तैयार करने के लिए विभिन्न प्रकार के व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाएँ जाते हैं। जैसे खाद बनाना, हर्बल गार्डन बनाना या सफाई अभियान आयोजित करने जैसी व्यावहारिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाता है।

विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पर्यावरण शिक्षा का कार्यान्वयन: Implementation of environmental education in schools and universities:

  1. अनिवार्य पाठ्यक्रम: Compulsory courses:

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने सभी विषयों में स्नातक कार्यक्रमों के लिए पर्यावरण अध्ययन को अनिवार्य पाठ्यक्रम के रूप में स्वीकार किया है। यह पाठ्यक्रम आमतौर पर पर्यावरण कानून, वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दे, सतत विकास और प्रदूषण नियंत्रण जैसे विषयों को शामिल करता है।

  1. विशेष कार्यक्रम: Special events:

कई विश्वविद्यालयों द्वारा स्नातक, स्नातकोत्तर और शोध स्तरों पर पर्यावरण विज्ञान, पर्यावरण प्रबंधन और पर्यावरणीय स्थिरता अध्ययन के क्षेत्र में समर्पित कार्यक्रम प्रदान किया जाता हैं।

  1. जागरूकता अभियान और गतिविधियाँ: Awareness Campaigns and Activities:

कई विद्यालय जलवायु परिवर्तन और संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने के लिए कार्यशालाएँ, राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों और पर्यावरणविदों द्वारा अतिथि व्याख्यान आयोजित करते हैं। व्यावहारिक अनुभव प्रदान करने के लिए उद्योगों, जंगलों, वनों, पहाड़, झीलों और पर्यावरणसंवेदनशील क्षेत्रों का दौरा आयोजित किया जाता है।

  1. क्लब और सोसाइटी: Clubs and Societies:

विभिन्न विद्यालयों में इकोक्लब और पर्यावरण सोसाइटी, वृक्षारोपण अभियान, अपशिष्ट पृथक्करण पहल और ऊर्जाबचत अभियानों के माध्यम से छात्रों की भागीदारी को बढ़ावा देते हैं। पर्यावरण के मुद्दों को उजागर करने के लिए पृथ्वी दिवस और विश्व पर्यावरण दिवस जैसे वार्षिक कार्यक्रम मनाए जाते हैं।

  1. अनुसंधान और नवाचार: Research and Innovation:

अनेक विद्यालयों द्वारा छात्रों को संधारणीय प्रौद्योगिकियों, नवीकरणीय ऊर्जा और संरक्षण विधियों पर अनुसंधान करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। पर्यावरण विषयों से संबंधित परियोजनाएँ और शोध प्रबंध जैसे नवाचारों को पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनाया गया हैं।

  1. पर्यावरण शिक्षा और सामुदायिक जुड़ाव: Environmental Education and Community Engagement:

कक्षा से परे भारत सरकार देश में पर्यावरण शिक्षा पर्यावरण जागरूकता अभियान चलाने और पर्यावरण के संदर्भ में चेतना जगाने के लिए सामुदायिक भागीदारी पर जोर दे रही है। स्कूल और विद्यालय अक्सर सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रम आयोजित करते हैं, जैसे कि सफाई अभियान, जागरूकता रैलियाँ और जल संरक्षण, प्लास्टिक में कमी और ऊर्जा दक्षता पर अभियान आदि। इन कार्यक्रमों के संदर्भ में Environmental Education in Indian लेख में कहा गया है कि “समय के साथ, बच्चों और किशोरों के लिए पर्यावरण शैक्षिक कार्यक्रम औपचारिक, स्कूलआधारित कार्यक्रमों के साथसाथ अनौपचारिक कार्यक्रम भी लागू किए गए हैं, उदाहरण के लिए चिड़ियाघरों और प्रकृति केंद्रों में।”2

इस प्रकार के कार्यक्रमों के अन्तर्गत विद्यार्थी पृथ्वी दिवस और विश्व पर्यावरण दिवस जैसे वैश्विक पर्यावरणीय कार्यक्रमों को मनाने में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, जिससे शैक्षणिक संस्थानों और स्थानीय समुदायों के बीच सहयोग को बढ़ावा मिलता है। इन विभिन्न पहलों का उद्देश्य सैद्धांतिक ज्ञान और यथार्थ स्थिति व पर्यावरणीय कार्रवाइयों के बीच व्याप्त खाई को कम करना है, जिससे छात्रों को पर्यावरण स्थिरता के सन्दर्भ में सकारात्मक सोच विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। इसके अलावा, पर्यावरण एनजीओ और सरकारी निकायों के साथ साझेदारी अभिनव परियोजनाओं को लागू करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञता और संसाधन प्रदान करके प्रभाव को और बढ़ाया जा सकता है। यह समग्र दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है। पर्यावरण शिक्षा में स्थित पारंपरिक सीमाओं से ऊपर उठकर जिम्मेदारी की संस्कृति का विकास हो यह भी पर्यावरण शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य होना आवश्यक है।

पर्यावरण शिक्षा के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ: Challenges in Implementation of Environmental Education:

पर्यावरण शिक्षा, पर्यावरण के विभिन्न सिद्धांत और जलवायु परिवर्तन पर व्यापक शोध कार्य और वैश्विक स्तर पर जागरूकता में वृद्धि हुई है, फिर यह कहना अनुचित न होगा कि अभी भी हम इस क्षेत्र में उतना विकास नहीं किया है जितना करने की आवश्यकता है। आज भी भारत में जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा इन सिद्धांतों एवं जागरूकता अभियानों से अनभिज्ञ हैं। आज भी कुछ लोग यह भी नहीं जानते हैं कि मानव गतिविधियों के कारण हमारा ग्रह गर्म हो रहा है जिसका संभावित परिणाम अति भयानक हो सकता है। 

पर्यावरण शिक्षा, सिद्धांत और जागरूकता के संदर्भ में कार्यान्वय की वास्तविकता पर प्रकाश डालते हुए अल्सेवियर अपने लेख में लिखते हैं कि भले ही हमने पर्यावरण शिक्षा को लागू करने के सभी तौरतरीकों को सुनिश्चित करने में सफलता प्राप्त की हो, लेकिन इसके प्रभावी कार्यान्वयन में एक अंतर है जिसके परिणामस्वरूप समाज का एक बड़ा हिस्सा पारिस्थितिकी तंत्र और इसकी सेवाओं की कार्यात्मक भूमिका, पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों आदि के बारे में जागरूक नहीं है।3

कार्यान्वय की सीमित सफलता के कई कारण हैं 

  1. प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी: कई शिक्षकों के पास पर्यावरण शिक्षा को प्रभावी ढंग से पढ़ाने के लिए विशेष प्रशिक्षण की कमी है।
  2. अपर्याप्त व्यावहारिक प्रदर्शन: कुछ स्कूलों और विद्यालयों में, व्यावहारिक या अनुभवात्मक कार्य और क्रियाएं सीखाने के बजाय सिद्धांतों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  3. सीमित संसाधन: ग्रामीण और कम वित्तपोषित स्कूलों को अक्सर क्षेत्रीय यात्रा या व्यावहारिक परियोजनाओं के आयोजन में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  4. कम जागरूकता: छात्र पर्यावरण शिक्षा को मुख्य शैक्षणिक विषयों की तुलना में कम प्राथमिकता वाले विषय के रूप में देखते हैं।

भारत में पर्यावरण शिक्षा को मजबूत करने के लिए उठाए गए कदम: Steps taken to strengthen environmental education in India:

ग्रीन स्कूल कार्यक्रम: स्कूलों में संधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (CSE) द्वारा एक पहल।

नेशनल ग्रीन कॉर्प्स: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा एक कार्यक्रम जो स्कूली बच्चों को पर्यावरण गतिविधियों में शामिल करता है।

नीति समर्थन: जलवायु परिवर्तन और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे उभरते पर्यावरणीय मुद्दों को संबोधित करने के लिए पाठ्यक्रम को संशोधित करने के लिए सरकार द्वारा निरंतर प्रयास।

ये प्रयास धीरेधीरे पर्यावरण के प्रति जागरूकता को नया आकार दे रहे हैं जो सतत विकास में योगदान दे सकते हैं।

 निष्कर्ष: Conclusion: 

भारत में पर्यावरण शिक्षा छात्रों को पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करने के लिए आवश्यक ज्ञान, कौशल और मूल्यों से युक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में इसके एकीकरणके माध्यम से, इकोक्लब, क्षेत्रीय गतिविधि और सामुदायिक पहुंच जैसी व्यावहारिक पहलों के साथ, पर्यावरण शिक्षा विद्यार्थियों के बीच जिम्मेदारी और कार्रवाईउन्मुख मानसिकता की भावना को बढ़ावा देता है। सीमित संसाधनों और अपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण जैसी चुनौतियों के बावजूद, सरकार, शैक्षणिक संस्थानों और गैरसरकारी संगठनों द्वारा इसके कार्यान्वयन को मजबूत करने के लिए निरंतर प्रयास जारी हैं। इन कमियों को दूर कर और व्यावहारिक, अनुभवात्मक शिक्षा को बढ़ावा देकर, भारत की शिक्षा प्रणाली युवा पीढ़ी को सतत विकास में योगदान देने के लिए और अधिक सशक्त बना सकती है। अंततः, पर्यावरण शिक्षा एक ऐसी भावी पीढ़ी बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण आधार के रूप में कार्य करती है जो पर्यावरण संरक्षण और वैश्विक स्थिरता को प्राथमिकता देती है।

संदर्भ: Reference:

  1. Key benefits of including environmental education in schools, 2024, https://greenwoodhigh.edu.in/
  2. Environmental Education in India: Challenges and Opportunities, Tamil Nadu, 2024, https://www.researchgate.net/publication/
  3. Journal of Environmental Psychology Volume 81, June 2022, 101782, Elsevier, https://www.sciencedirect.com/science/article/pii/S0272494422000275
  4. Sylvia Almeida and Amy Cutter-Mackenzie, History, Present and Future of Environmental Education in India, Australian Journal of Environmental Education Vol. 27. No.2 (2011) pp. 322 Published By: Cambridge University Press.

 

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