Shaival शैवाल: महासागरों का हरित खजाना, जानिए इसके बहुउपयोग Algae: Green treasure of the oceans, know its multiple uses

आलेख का सार: Abstract: 

This research article covers the following topics यह शोध आलेख निम्नलिखित विषयों को कवर करता है hide

Shaival हरा सोना है क्योंकि मित्रों हम सब जानते हैं कि आज हमारे समक्ष ऊर्जा संकट खड़ा है। हम जिन जीवाश्म ईंधनों जैसे कि कोयला, पेट्रोल और डीजल का अत्यधिक दोहन कर रहे हैं, इससे कई समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। एक तो ये संसाधन तेजी से कम होते जा रहे हैं और दूसरा इससे  आयु प्रदूषण तथा जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियाँ हमारे समक्ष हैं। इस समग्र स्थिति को देखते हुए यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि हमें ऊर्जा उत्पादन के नए संसाधन खोजने की आवश्यकता है। इसी स्थिति में बायोफ्यूल्स (जैव ईंधनईंधन) एक आशाजनक विकल्प है। इस विकल्प में एल्गी (Shaival) आधारित बायोफ्यूल भविष्य की दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। यह एक टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा स्रोत है। एल्गी की ऊर्जा उत्पादन क्षमता भी अन्य बायोफ्यूल्स की तुलना में अधिक है। Shaival की ऊर्जा उत्पादन दक्षता पर Rismen Sinambela, Iiham Samanlangi अपने शोध आलेख में लिखते हैं कि “शैवाल में सोयाबीन के पौधों की तुलना में पाँच गुना अधिक ऊर्जा दक्षता के साथ जैव ईंधन का उत्पादन करने की क्षमता है, जो इसे अक्षय ईंधन के लिए एक अत्यधिक कुशल और टिकाऊ विकल्प बनाता है।” (Rismen Sinambela, Iiham Samanlangi. 2024). भारत का ऊर्जा और खनिज संसाधन मंत्रालय ने अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी का हवाला देते हुए भविष्य में ऊर्जा मांग में व्यापक वृद्धि की संभावना बताते हुए कहता है कि “अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के अनुसार, 2050 तक वैश्विक ऊर्जा मांग वर्तमान मांग से लगभग 30% बढ़ने की उम्मीद है, जिससे जीवाश्म ईंधन भंडार के घटने की दर में और तेज़ी आएगी। (ऊर्जा और खनिज संसाधन मंत्रालय, 2020)” जब हम मंत्रालय की इस संभावना पर विचार करते हैं, तो पाते हैं कि हमें पर्यावरण हितैषी ऊर्जा संसाधनों की खोज और नवाचार को अपनाने की अत्यंत आवश्यकता है। प्रस्तुत आलेख में एल्गी और अन्य प्रमुख जैव ईंधनों की कार्यप्रणाली, उनके लाभ-हानि, वैश्विक नीति परिदृश्य और भविष्य की संभावनाओं पर व्यापक विचार किया गया है।

जैव ईंधन का परिचय Introduction to Biofuels:

बायोफ़्यूल ऐसे ईंधन होते हैं, जिसे हम जैविक स्रोतों से प्राप्त कर सकते हैं। Shaival नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत हैं। इस जैव ईंधन से हम न केवल जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता को कम कर सकते हैं बल्कि पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को भी कम कर सकते है। बायोफ़्यूल कई प्रकार के होते है और उनका उपयोग भी हम कई उद्देश्य प्राप्ति के लिए कर सकते हैं। जैसे कि बायोएथेनॉल मुख्य रूप से गन्ना और मकई से उत्पादित होता है और पेट्रोल के साथ मिश्रण कर ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है। बायोडीजल का उत्पादन वनस्पति तेल और पशु वसा से होता है और उसका उपयोग डीजल इंजनों में किया जाता है। ईंधन का और एक प्रकार है बायोगैस जो जैविक कचरे से उत्पन्न होती है। जिसका उपयोग हम घरेलू और औद्योगिक ऊर्जा के लिए कर सकते हैं। सिंथेटिक बायोफ्यूल्स भी आज के समय महत्वपूर्ण बनाता जा रहा है। इसका विकास कृत्रिम रूप किया जाता है , जो अपने आप में अधिक कुशल होते हैं।

Shaival शैवाल का परिचय Introduction to Algae:

Shaival को अपशिष्ट जल में उगाया जा सकता है और इस Shaival से ईंधन का उत्पादन किया जाता है। शैवाल जैव प्रोद्योगिकी ऊर्जा का साधन है और पर्यावरण हितैषी के साथ-साथ संधारणीय विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। Shaival विभिन्न प्रकार की भूमि और वातावरण में उत्पादित होने की क्षमता रखता है और इसे हम आनुवंशिक तकनीकियों द्वारा और उत्पादक बना सकते हैं। इसलिए Shaival को एक कुशल जैव ईंधन स्त्रोत के रूप में पहचाना जाता है। बायोफ्यूल्स को आमतौर पर तीन पीढ़ियों (Generations) में विभक्त किया जाता है। प्रथम पीढ़ी (First Generation Biofuels) प्रथम पीढ़ी के बायोफ़्यूल फसलों से उत्पादित होते हैं। जैसे कि गन्ना, सोयाबीन और ताड आदि। इस प्रथम पीढ़ी से बायोडिजल का उत्पादन किया जाता है। जैसे कि गन्ने से बायोएथेनॉल और सोयाबीन या ताड़ के तेल से बायोडीजल का उत्पादन, जो पर्यावरण हितैषी है। लेकिन प्रथम पीढ़ी के बायोफ़्यूल खाद्य सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं और इनके उत्पादन के लिए कृषि भूमि की आवश्यकता होती है। द्वितीय पीढ़ी (Second Generation Biofuels) इसका उत्पादन गैर खाद्य बायोमास से किया जाता है। जैसे कि लकड़ी, घांस और विभिन्न प्रकार के कृषि अपशिष्ट इसके अन्तर्गत आते हैं। इनका लाभ यह है कि ये कृषि भूमि की आवश्यकता को कम करते हैं और जीवाश्म ईंधनों का विकल्प बनते हैं। 

तृतीय पीढ़ी Third Generation Biofuels:

तृतीय पीढ़ी के अन्तर्गत एल्गी और आनुवंशिक रूप से संशोधित सूक्ष्मजीवों से प्राप्त बायोफ्यूल्स को शामिल किया जाता है। इन बायोफ़्यूल से कम से कम भूमि में अधिक से अधिक उत्पादन किया जा सकता है। शैवाल को अपशिष्ट जल में उगाया जा सकता है। Shaival की एक और विशेषता यह है कि नाइट्रोजन और फास्फोरस जैसे प्रदूषकों से प्रदूषित जल को स्वच्छ बनाता है। कहना न होगा की Shaival से जैव ईंधन उत्पादन के अनेक लाभ हैं। शैवाल के पर्यावरणीय लाभ के संदर्भ में Hanafi, AG लिखते हैं कि “शैवाल में प्रकाश संश्लेषण के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) को उच्च दक्षता के साथ अवशोषित करने की अनूठी क्षमता भी होती है। क्योटो विश्वविद्यालय द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि शैवाल भूमि पौधों की तुलना में CO₂ को 50 गुना अधिक प्रभावी ढंग से अवशोषित कर सकते हैं, इस प्रकार ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के खिलाफ शमन के रूप में कार्य करते हैं। शैवाल से ईंधन का उत्पादन न केवल वैकल्पिक ऊर्जा प्रदान करता है बल्कि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने में भी योगदान देता है।” (Hanafi AG 2015)

यह तो हुई शैवाल के पर्यावरणीय हितैषी विशेषताओं का विश्लेषण किंतु शैवाल आर्थिक रूप से भी लाभदायक है। Shaival ऊर्जा क्षेत्र में व्यापक भूमिका के साथ अर्थव्यवस्था को सकारात्मक गति प्रदान कर सकता है। Shaival की आर्थिक भूमिका पर शोधपरक विश्लेषण करते हुए Gyanendra Tripathi और उनकी टीम लिखती है कि “शैवाल, जिन्हें अक्सर तीसरी पीढ़ी के जैव ईंधन के रूप में माना जाता है, अपने उच्च बायोमास उत्पादन दरों के कारण कई लाभ प्रदान करते हैं। जबकि शैवाल का उपयोग उनके जैव सक्रिय यौगिकों के लिए किया गया है, जैव ईंधन के उत्पादन के लिए बायोमास के रूप में उनकी क्षमता ने शोधकर्ताओं के बीच आकर्षण प्राप्त किया है। जैव-हाइड्रोजन, जैव-मीथेन, जैव-इथेनॉल, जैव-तेल और जैव-ब्यूटेनॉल जैसे विभिन्न जैव ईंधन किण्वन, फोटोलिसिस, पायरोलिसिस और ट्रांसएस्टरीफिकेशन जैसी विविध प्रक्रियाओं के माध्यम से शैवाल से प्राप्त किए जा सकते हैं।” (Gyanendra Tripathi and team 2024) कहने की आवश्यकता नहीं है कि Shaival आज के समय के लिए ही नहीं बल्कि हमारी भविष्य की पीढ़ी के लिए भी अनेक दृष्टिकोण से लाभदायक हो सकता है।

कम से कम भूमि में शैवाल की खेती संभव Algae cultivation possible in minimal land:

Shaival एक ऐसा संसाधन है, जिसका उत्पादन हम ऐसी भूमि और ऐसे स्थान पर कर सकते है, जो अनुपयोगी है। जहाँ अपशिष्ट जल जमाव होता हो, जहाँ हम अन्य कोई कृषि कार्य अथवा अन्य आर्थिक गतिविधि नहीं की जाती हो, उस भूमि को हम Shaival खेती के रूप में उपयोग कर सकते हैं। इस अपशिष्ट जल को शैवाल न केवल स्वच्छ करता है बल्कि अन्य विभिन्न लाभ प्राप्त होते हैं। Shaival के प्रकार और खेती के संदर्भ में  Dabaya John Paul Joseph, M. और उनकी टीम ने विस्तार से लिखा है कि  “शैवाल की खेती, जिसमें विविध सूक्ष्म शैवाल और वृहद शैवाल प्रजातियाँ शामिल हैं, ने जैव ईंधन उत्पादन, खाद्य और फ़ीड सप्लीमेंट्स, अपशिष्ट जल उपचार और फार्मास्यूटिकल्स में इसके संभावित अनुप्रयोगों के कारण महत्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया है। जैव प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग में आधुनिक प्रगति ने इस क्षेत्र में क्रांति ला दी है, जिससे बढ़ती आबादी की माँगों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर शैवाल उत्पादन संभव हो गया है।” (Dabaya John Paul Joseph and team 2025) जब हम पर्यावरणीय समस्याओं और आर्थिक विकास की चुनौतियों के बीच खड़े है, तब Shaival अनेक समाधान लेकर हमारे समक्ष खड़ा है। बस हमें Shaival का उपयोग बहुआयामी संसाधन के रूप में करने की आवश्यकता है। 

Shaival की खेती में हाल ही में प्रयोग की जाने वाली तकनीकियों और Shaival खेती के भविष्य पर विचार करते हुए Dabaya John Paul Joseph, M. और उनकी टीम आगे लिखती है कि “ओमिक्स प्रौद्योगिकियों का एकीकरण शैवाल विकास को नियंत्रित करने वाले आणविक तंत्रों में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, जो अनुकूलित खेती रणनीतियों के विकास में सहायता करता है। उत्पादन दक्षता, पर्यावरणीय स्थिरता और आर्थिक व्यवहार्यता को बढ़ाने के लिए चल रहे प्रयासों के साथ शैवाल की खेती का भविष्य आशाजनक है। शैवाल की बड़े पैमाने पर खेती ऊर्जा, खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण से संबंधित वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है।” (Dabaya John Paul Joseph, M. 2025) इन अध्ययनों से इतना तो सिद्ध हो ही जाता है कि Shaival की खेती और उसका उत्पादन बहुमुखी लाभ प्रदान करता है। इसलिए सरकार को इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता है।

Shaival आधारित बायोफ्यूल उत्पादन के चरण Steps of Shaival based biofuel production:

एल्गी आधारित बायोफ़्यूल उत्पादन का एक नवीनतम प्रक्रिया और अनंत संभावनाओं से युक्त ऐसा क्षेत्र है, जिससे हम अनेक समस्याओं का समाधान पा सकते हैं। एल्गी पानी में पाई जाने वाली सूक्ष्म वनस्पति है, जो तेज़ी से बढ़ती है और बड़े पैमाने पर जैव ईंधन उत्पादन के लिए उपयुक्त है। एल्गी से बायोफ़्यूल बनाने की प्रक्रिया को हम तीन चरणों में विभक्त कर सकते हैं। प्रथम चरण के अंर्तगत Shaival का उत्पादन है, जिसे संवर्धन कहते हैं। संवर्धन (Cultivation): इस चरण में एल्गी को बड़े तालाबों या बायोरिएक्टरों में उगाया जाता है। एल्गी की खेती के संदर्भ में हम ऊपर चर्चा कर चुके हैं। इस चरण के पश्चात उत्पादित Shaival को तेल निष्कर्षण चरण से गुजरना पड़ता है। तेल निष्कर्षण (Oil Extraction): इस चरण में एल्गी की कोशिकाओं से तेल निकाला जाता है। शैवाल में तेल निष्कर्षण की क्षमता अन्य दो पीढ़ियोंसे अधिक है। दूसरे चरण में जब तेल निष्कर्षण कर लिया जाता है, उसके पश्चात तीसरे चरण की शुरुआत होती है। इसे परिष्करण कहते हैं। परिष्करण (Refining): इस चरण में निकाले गए तेल को बायोडीजल, बायोएथेनॉल या बायोगैस में परिवर्तित किया जाता है। इस चरण के पश्चात उपयोग करने योग्य बायोफ़्यूल बन जाता है। Shaival से तेल निष्कर्षण और परिष्करण की प्रक्रिया में विभिन्न तकनीकियों की विशेष भूमिका है। यदि हम उच्च दक्षता वाली तकनीकियों का उपयोग करते है, तो परिणाम भी अधिक दक्षता युक्त प्राप्त होते हैं। Rismen Sinambela, Iiham Samanlangi ने शैवाल लिपिड को जैव ईंधन में बदलने के लिए ट्रांसएस्टरीफिकेशन विधि का उल्लेख करते हुए लिखते हैं कि “लिपिड को जैव ईंधन में बदलने की दक्षता 85.5% तक पहुँच गई, जो दर्शाता है कि इस अध्ययन में इस्तेमाल की गई ट्रांसएस्टरीफिकेशन विधि शैवाल लिपिड को बायोडीज़ल में बदलने में बहुत प्रभावी है। शैवाल से जैव ईंधन के उत्पादन में जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग में एक कुशल और टिकाऊ अक्षय ऊर्जा स्रोत के रूप में बहुत संभावना है।” (Rismen Sinambela, Iiham Samanlangi 2024) अत: Shaival एक बहुमुखी उपयोगी संसाधन है। इसका उपयोग हम अनेक क्षेत्र में कर सकते है। एक शैवाल का उत्पादन अर्थव्यवस्था के अनेक क्षेत्रों को बल प्रदान करने की क्षमता रखाता है। 

एल्गी (शैवाल) आधारित बायोफ्यूल के लाभ Advantages of algae-based biofuel:

एल्गी और एल्गी आधारित बायोफ़्यूल व्यापक लाभ हैं। एल्गी आधारित बायोफ़्यूल का लाभ प्रारंभिक चरण से ही प्राप्त होने लगता है और अंतिम चरण में जब उपयोग करने योग्य तेल बन जाता है तब तक वह कई क्षेत्र को लाभ पहुँचा चुका होता है। अंतिम तेल रूप में भी पर्यावरण हितैषी परिवहन और स्वच्छ ऊर्जा के रूप में भूमिका निभाता है।

पर्यावरण अनुकूल Environmental friendly:

एल्गी आधारित बायोफ़्यूल पर्यावरण हितैषी है। यह कार्बन फुटप्रिंट को कम करता है और खेती और भूमि उपयोग में सकारात्मक प्रभाव डालता है। पर्यावरण के संदर्भ में एल्गी पूर्ण दक्षता के साथ कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) अवशोषित करता है, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी आती है। प्रारंभिक चरण में जब शैवाल खेती की जाती है, तब इस प्रक्रिया में जो पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ प्राप्त होते हैं, इस संदर्भ में Gyanendra Tripathi और उनकी टीम ने विस्तार से लिखा है। “शैवाल प्रकाश संश्लेषण के दौरान CO2 को कैप्चर करके कार्बन पृथक्करण में योगदान करते हैं, जिससे जैव ईंधन उत्पादन पर्यावरणीय लाभों के साथ एकीकृत होता है।” (Gyanendra Tripathi and team 2024) शैवाल एक साथ कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र में सकारात्मक रूप से बल प्रदान करता है। Shaival में अनेक विशेषताएँ विद्यमान होती हैं, जो विभिन्न प्रकार से लाभदायक है। शैवाल की प्रकाश संश्लेषण दक्षता और औद्योगिक क्षेत्र में उसकी भूमिका पर Dabaya John Paul Joseph, M. और उनकी टीम लिखती है कि “शैवाल प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से सौर ऊर्जा को कार्बनिक अणुओं में परिवर्तित करने में अत्यधिक कुशल हैं, जिससे वे कई उद्योगों में स्थायी समाधान के लिए एक आशाजनक संसाधन बन जाते हैं।” (Dabaya John Paul Joseph and team 2025) कहना न होगा कि शैवाल केवल प्रकाश संश्लेषण और कार्बन कैप्चर में ही दक्षता नहीं दिखाते बल्कि अनेक स्तरों पर पर्यावरण हितैषी है। 

उच्च उत्पादकता High productivity:

बहुत सारे शोध अध्ययनों के निष्कर्ष कहते हैं कि एल्गी अन्य जैव ईंधन स्रोतों की तुलना में 10-100 गुना अधिक दक्षता के साथ जैव ईंधन उत्पन्न कर सकता है। Rismen Sinambela, Iiham Samanlangi. द्वारा शैवाल के इसी उच्च उत्पादकता को सिद्ध किया गया। वे लिखते हैं कि “जनसंख्या: माइक्रोएल्गी या हरे Shaival जिनमें लिपिड उत्पादन की उच्च क्षमता होती है, जैसे क्लोरेला वल्गेरिस या स्पिरुलिना प्लैटेंसिस, जिनका उपयोग आमतौर पर जैव ईंधन अनुसंधान में किया जाता है। नमूना: शैवाल की कई प्रजातियों को जैव ईंधन के रूप में उनकी प्रभावशीलता का परीक्षण करने के लिए चुना गया था, जिसमें आनुवंशिक रूप से इंजीनियर प्रजातियां और तुलना के रूप में प्राकृतिक प्रजातियां शामिल थीं। एनोवा विश्लेषण के परिणामों ने उपचार समूहों के बीच लिपिड स्तरों में महत्वपूर्ण अंतर दिखाया। टी/पोस्ट-हॉक परीक्षण के परिणामों ने पुष्टि की कि आनुवंशिक रूप से इंजीनियर प्रजातियों में उच्च लिपिड स्तर थे, जो जैव ईंधन की दक्षता का समर्थन करते हैं। प्रतिगमन परिणामों ने एक मजबूत सकारात्मक सहसंबंध (R² = 0.68) दिखाया, जो अन्य अध्ययनों का समर्थन करता है जिसमें पाया गया कि माइक्रोएल्गी एक नियंत्रित वातावरण के साथ अपेक्षाकृत कम समय में बायोमास का उत्पादन कर सकता है, जो इसे बड़े पैमाने पर जैव ईंधन उत्पादन के लिए कुशल बनाता है।” (Rismen Sinambela, Iiham Samanlangi 2024) अत: हमें शैवाल कृषि और शैवाल से ईंधन उत्पादन की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। 

तेजी से वृद्धि Rapid rise:

एल्गी पारंपरिक फसलों की तुलना में बहुत तेजी से बढ़ता है और इसे बार-बार उगाया जा सकता है। एक वर्ष में दो अथवा तीन बार इसे उगाया जा सकता है इस वृद्धि को प्राप्त करने के लिए कुछ तकनीकियों को अपनाने की आवश्यकता होती है। अधिक उत्पादन क्षमता, बढ़ने की तेज गति, उत्पादन दक्षता, पर्यावरण हितैषी आदि विशेषताओं के कारण शैवाल अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को लाभ पहुँचाता है। 

शैवाल आधारित जैव ईंधन की चुनौतियाँ: Challenges of Algae Biofuel:

Shaival बायोफ़्यूल के जितने अधिक लाभ हैं, उतनी ही चुनौतियाँ भी विद्यमान हैं। यदि सरकारों द्वारा व्यापक रूप से प्रोत्साहन दिया जाता है, तो इन चुनौतियों का समाधान किया जा सकता है। उत्पादन लागत की अधिकता, तकनीकियों का विकास जैसी चुनौतियाँ आज भी इस दिशा में खड़ी हैं।

उत्पादन लागत की अधिकता Overrun of Production Cost:

Shaival खेती से लेकर तेल परिष्करण तक की प्रक्रियाएँ उच्च लागत की मांग करती हैं। Shaival से जैव ईंधन प्राप्त करने की प्रक्रियाएँ विशेषकर नवाचारों और तकनीकियों पर निर्भर करती हैं। फलत: लागत में अनायास वृद्धि हो जाती है। इस संदर्भ में Gyanendra Tripathi और उनकी टीम लिखती है कि “शैवाल से प्राप्त जैव ईंधन की विशाल व्यावसायिक क्षमता के बावजूद, उच्च खेती लागत जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। हालाँकि, शैवाल उपोत्पादों के उपयोग का लाभ उठाने से जैव ईंधन उत्पादन की आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार हो सकता है। इसके अलावा, शैवाल से प्राप्त जैव ईंधन पर्यावरणीय स्थिरता, लागत-प्रभावशीलता और अपशिष्ट में कमी के लाभ प्रदान करते हैं, जो अधिक टिकाऊ ऊर्जा भविष्य के लिए नए अवसरों का वादा करते हैं।” (Gyanendra Tripathi and team 2024) अब समस्या उत्पन्न होती है कि भारतीय किसान Shaival कृषि करने के प्रति निरुत्साहित होते हैं क्योंकि लागत इतनी अधिक है की भारतीय किसानों की आर्थिक स्थिति इसकी अनुमति नहीं देती है। इसी कारण Shaival कृषि क्षेत्र का विकास नहीं हो रहा है। अत इस दिशा में कुछ भिन्न दृष्टिकोण से सोचने की आवश्यकता है।

तकनीकी सुधार की आवश्यकता Need for Technical Improvement:

कहना न होगा कि शैवाल से बायोफ़्यूल उत्पादन के सारे चरण नवाचार और तकनीकियों पर निर्भर हैं। अत: व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन तकनीकों में सुधार की आवश्यकता है। Dabaya John Paul Joseph और उनकी टीम इन चरणों में प्रयुक्त होनेवाली तकनीकियों का परिचय दिया है कि “बायोप्रोस्पेक्टिंग, हाई-थ्रूपुट स्क्रीनिंग, जेनेटिक और मेटाबोलिक इंजीनियरिंग जैसी तकनीकों का उपयोग शैवाल प्रजातियों में वांछनीय गुणों को बढ़ाने के लिए किया जाता है, जिससे बायोमास उपज और मूल्यवान यौगिकों के उत्पादन में सुधार होता है।” (Dabaya John Paul Joseph and team 2025) यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि Shaival को हम बहुआयामी संसाधन के रूप में तभी उपयोग कर सकते हैं जब हमारे पास ऐसी विभिन्न तकनीकियाँ हो अन्यथा हम शैवाल से कम ही लाभ प्राप्त कर पाएँगे। औद्योगिक उत्सर्जन, कार्बन कैप्चर जैसे विषयों पर शैवाल के संदर्भ में नवाचार पर हमें नई-नई तकनीकियों का शोध करने की आवश्यकता है।

वैश्विक परिदृश्य और नीति Global Scenario & Policies:

शैवाल आधारित ईंधन मानव सभ्यता के लिए एक वरदान के सामान है। Shaival उत्पादन से लेकर ईंधन बनाने तक यह लाभ ही लाभ प्रदान करता है। यह व्यापक बहुउपयोगी संसाधन है, इसलिए शैवाल ईंधन की दिशा में वैश्विक स्तर पर अनेक प्रयास हो रहे हैं। Ministry of Energy and Mineral Resources कहता है कि “कई देशों में, जैव ईंधन का समर्थन करने वाली ऊर्जा नीतियों ने इस क्षेत्र में निवेश और अनुसंधान को बढ़ावा दिया है। इंडोनेशिया में, जैव ईंधन विकास नीति को राष्ट्रीय ऊर्जा नीति से संबंधित 2006 के राष्ट्रपति विनियमन संख्या 5 में विनियमित किया गया है, जो 2025 तक 23% तक नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित करता है। (Ministry of Energy and Mineral Resources 2021) यही नहीं अमेरिका ने भी नवीकरणीय ईंधन मानक (RFS) के तहत बायोफ्यूल्स को बढ़ावा दे रहा है। ब्राज़ील द्वारा बायोएथेनॉल उत्पादन में अग्रणी भूमिका निभाई जा रही है। भारत ने भी राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति 2018 के तहत बायोफ्यूल विकास को प्रोत्साहन देने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

निष्कर्ष Conclusion:

Shaival आधारित जैव ईंधन विशेष रूप से बहुउपयोगी संसाधन है, जो विभिन्न क्षेत्र को लाभ पहुँचता है। एल्गी आधारित जैव ईंधन का विकास भविष्य के ऊर्जा संकट का एक स्थायी समाधान प्रदान कर सकता है। लेकिन हमें यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि इसके व्यावसायिक उत्पादन में अभी भी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। निरंतर अनुसंधान और नवाचार हम इन चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं। वैश्विक स्तर पर सरकारों और उद्योगों को बायोफ्यूल्स के उपयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। यदि हम इस दिशा में आगे बढ़ते है, तो एक हरित और ऊर्जा-संपन्न भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।

संदर्भ Reference: 

Dabaya John Paul Joseph, M. Lakshmi Priyaa, Manjupriya Ayyanar, S. Nagaraj. (2025). Methods for Mass Cultivation of Algae for Various Application.In book: Industrial and Biotechnological Applications of Alga.  2025. P- Abstract DOI: 10.1007/978-981-96-1844-6_2

Rismen Sinambela, Iiham Samanlangi. (2024). Using Biotechnology to Make Biofuels from Algae as Renewable Energy. Science Gate Journal. November 2024 DOI: 10.69855/science.v1i3.80 Vol. 01,No.3,October 2024, 1-8

Gyanendra Tripathi, Akhtar Hussain, Irum Fatima, Alvina Frooqui. (2024). Current Scenario and Global Perspective of Sustainable Algal Biofuel Production. Recent Patents on Biotechnology. 10(4). October 2024. P- Abstract DOI: 10.2174/0118722083322399240927051315

Hanafi, AG. (2015). Microalgae Biomass Processing as an Initial Step for Indonesia to be Energy Independent-. Bandung Institute of Technology. https://itb.ac.id/berita/pengolahan- biomassa – mikroalga-sebagai-langkah-awal-indonesia-mandiri-energi/4743

Ministry of Energy and Mineral Resources. (2021, July 27). Government Optimistic EBT 23% in 2025 Will Be Achieved. ESDM. https://www.esdm.go.id/id/berita-unit/direktorat- jenderal-ketenagalistrikan/pemerintah-optimistis-ebt-23-tahun-2025-tercapai

Rismen Sinambela, Iiham Samanlangi. (2024). Using Biotechnology to Make Biofuels from Algae as Renewable Energy. Science Gate Journal. November 2024 DOI: 10.69855/science.v1i3.80 Vol. 01,No.3,October 2024, 1-8




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