हमें वन और वन्यजीवों का संरक्षण क्यों करना चाहिए? Hamein van aur vanya jeevan ka sanrakshan kyon karana chahie?

Hamein van aur vanya jeevan ka sanrakshan kyon karana chahie?  इस प्रश्न की आज अत्यधिक प्रासंगिकता है क्योंकि यह प्रश्न नहीं है बल्कि हमारा भविष्य है। वन और वन्यजीवों की रक्षा इसलिए करना आवश्यक है क्योंकि वन पारितंत्र मानव तथा जीव- जंतुओं के विकास में रीढ़ की हड्डी की भूमिका निभाते हैं। वन हमारे जीवन विकास में विभिन्न कार्य करते हैं। जैसे नियामक कार्य, रक्षात्मक कार्य तथा उत्पादक कार्य आदि। 

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नियामक कार्य के अंतर्गत वन कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों, खनिज तत्वों और विकिरण ऊर्जा का अवशोषण करते हैं, भंडारण करते हैं तथा मुक्त भी करते हैं। वनों के यह सारे कार्य वायुमंडल और पृथ्वी के तापमान की स्थिति में सुधार करते हैं। वन प्रभावी रूप से बाढ़ और सूखा जैसी विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं को नियमित करते हैं तथा वे जैव-भू-रासायनिक चक्र के नियामक भी होते हैं। 

रक्षात्मक कार्य के अंतर्गत वन विभिन्न जीवो, जंतुओं, प्राणियों, मृदा, जल आदि की रक्षा करते हैं। सूखा, आँधी, तूफ़ान, सर्दी, गर्मी आदि की तीव्रता को रोक कर जीवन को सुगम बनाते हैं। 

उत्पादक कार्य के अंतर्गत वन हमारे जीवन के विकास तथा अर्थव्यवस्था के स्थिर विकास में भूमिका निभाते हुए विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधों की विभिन्न प्रजातियों के आवास होते हैं। विभिन्न प्रकार की लड़कियों तथा अन्य वन उत्पादों को प्रदान करते हैं।

लेकिन मानव सभ्यता के लिए इतने महत्वपूर्ण वन अथवा वन्य पारितंत्र को आज समाप्त किया जा रहा है। अतः आज हमारे समक्ष वन एवं वन्य जीवों की रक्षा क्यों करनी चाहिए जैसे प्रश्न खड़े हो रहे हैं। 

पारितंत्र का परिचय: Introduction to Ecosystem:

पारितंत्र एक विशेष अथवा विशिष्ट क्षेत्र होता है। जैसे वन, चारागाह, रेगिस्तान या तटीय क्षेत्र। “पारितंत्र में जैविक और अजैविक घटकों के कार्मिक संतुलन की आवश्यकता होती है।”1 

पारितंत्र को जलीय अथवा स्थलीय श्रेणी में विभाजित किया जा सकता है किंतु यहाँ हमारे लिए वन्य परतंत्र महत्वपूर्ण है। किसी क्षेत्र के सभी प्राणी, पक्षियों और पेड़-पौधें आदि समुदाय में रहते हैं। वे अलग-अलग समय पर भिन्न-भिन्न कर्म से अपने अजैविक पर्यावरण के साथ-साथ आपस में भी अंत: क्रिया करते रहते हैं। 

भारत में अनेक जैव-भौगोलिक क्षेत्र और पारितंत्र हैं। मध्य भारत का पठार, पश्चिमी एवं पूर्वी घाट, पश्चिम का अर्ध शुष्क रेगिस्तान, दक्षिण का पठार, तटीय पट्टियाँ तथा अंडमान निकोबार दीप समूह आदि। भौगोलिक रूप से स्पष्ट इन क्षेत्रों में प्रत्येक में ऐसे पौधे और प्राणी हैं जो क्षेत्र विशेष की परिस्थितियों के अनुकूल अपने को ढाल चुके हैं। 

हिमालय में चीड़ की अधिकता, मध्य भारत में साल वनों की अधिकता यह एक पारिस्थितिकी के अनुकूल ढलना ही है। यदि स्थानीय स्तर की बात करें तो हर क्षेत्र में ढांचागत और प्रकार्यात्मक दृष्टि से पहचानने योग्य पारितंत्र भी होते हैं। जैसे विभिन्न प्रकार के वन, चारागाह, नदियों का जल ग्रहण क्षेत्र, डेल्टा, मैंग्रोव, दलदली सागर तट तथा द्वीप आदि। इन सभी पारितंत्र में विशेष पौधे एवं प्राणियों का आवास होता है। 

कुछ पारितंत्र खास समृद्ध होते हैं और एक सीमा तक मानव कार्यकलापों से कम ही प्रभावित होते हैं। कुछ अन्य पारितंत्र नाजुक होते हैं जो मानव क्रियाकलापों से शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। इसमें पर्वतीय पारितंत्र बहुत नाजुक होते हैं। 

वन अथवा वन्य पारितंत्र का परिचय:

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि वन पौधों का समुदाय होते हैं। इनकी संरचना मुख्यतः पेड़ों, लताओं, झाड़ियों और भू-आवरणों से निर्धारित होती है। प्राकृतिक वनस्पति सुव्यवस्थित कतारों में लगाए गए पौधों से बहुत भिन्न होती है। अधिकांश अछूते प्राकृतिक वन हमारे राष्ट्रीय पार्कों एवं अभयारण्य में स्थित हैं। विभिन्न प्रकार के वन विभिन्न प्रकार के जैविक समुदायों के आवास होते हैं। जो उनमें रहने के लिए अनुकूलित होते हैं। 

वन्य पारितंत्र के दो भाग होते हैं। वन के अजैविक पक्ष पहाड़, पहाड़ियों के वन, नदी घाटियों के वनों से भिन्न होते हैं। वहाँ की वनस्पति वर्षा और स्थानीय तापमान पर निर्भर होती है। यह निर्भरता अक्षांश, ऊंचाई और मिट्टी के प्रकार के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकती है। जैविक पक्ष जीवन युक्त अथवा जैविक पक्ष पौधों और पशुओं के समुदाय वन के सभी प्रकार के लिए अलग-अलग होते हैं। अतः बर्फ का तेंदुआ हिमालय में रहता है जबकि चीते और बाघ शेष भारत के जंगलों में पाए जाते हैं। 

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि इन वन्य जीवों का अपना एक अलग और विशिष्ट संसार होता है और उन प्राणियों की क्रियाएँ तथा नियम भी अलिखित होते हैं किंतु सारे प्राणी अपने प्राकृतिक नियमों का पालन करते हैं। 

वन अथवा वन्य पारितंत्र के प्रकार: Types of forest or wild ecosystem

प्राकृतिक पारितंत्र के अंतर्गत स्थलीय पारितंत्र एवं जलीय पारितंत्र होते हैं। वन्य पारितंत्र को स्थलीय पारितंत्र के अंतर्गत अध्ययन किया जाता है। 

वन्य पारितंत्र को उष्णकटिबंधीय वन, शीतोष्ण कटिबंधीय या मध्य अक्षांशीय वन, शंकु धारी वन या टैगा वन में विभाजित किया जाता है। 

उष्णकटिबंधीय वन के अंतर्गत उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन, उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन या मानसूनी वन को रखा जाता है।

शीतोष्ण कटिबंधीय या मध्य अक्षांशीय वन के अंतर्गत मध्य अक्षांशीय सदाबहार वन, मध्य अक्षांशीय पर्णपाती वन, भूमध्य सागरीय वन आदि होते हैं। 

शंकु धारी वन या टाइगर वन के अंतर्गत कोण धारी वन या शंकु धारी वनों के रूप में अध्ययन किया जाता है।

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि इन सभी वन्य पारितंत्रों की अपनी-अपनी विशेषताएँ तथा जलवायु स्थिति होती हैं। जिनके अनुसार इनका एक विशिष्ट स्वरूप होता है। इन सभी वन्य पारितंत्रों का पृथ्वी, मानव तथा जीव-जंतु समुदायों के लिए विशेष महत्व होता है।

वनों का महत्व एवं उपयोग: Importance and use of forests

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि प्राकृतिक वनों का यदि सावधानी पूर्वक उपयोग किया जाए तो वे अनेक प्रकार से उपयोगी हो सकते हैं। जलावन या इमारती लकड़ी के लिए उनका अति दोहन और इमारत की लकड़ी को या दूसरी पैदावारों के लिए एक ही प्रजाति वाले बागानों में उनका परिवर्तन करना स्थानीय जनता एवं जलवायु पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि प्राकृतिक वनों को काट कर उसे समाप्त करने तथा उस स्थान पर एक दूसरी प्रजाति के वृक्ष कतार में लगाए जाने पर स्थानीय जलवायु और वन्य पारितंत्र को अपूरणीय हानि होती है। जिसका एक उदाहरण महुआ माजी द्वारा रचित उपन्यास ‘मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ में दिखाई देता है “विश्व बैंक के सहयोग से वन विकास निगम Forest Development Corporation की स्थापना कर दी गई। कॉर्पोरेशन ने करीब 182000 हेक्टेयर जमीन को लीज पर लेकर जमीन पर लगे साल, महुआ, कुसुम, करंज, इमली जैसे हम आदिवासियों के घरेलू उपयोग के पेड़ों को काटना आरंभ किया। …. साफ किए गए जंगल में हुए व्यावसायिक दृष्टिकोण ज्यादा लाभदायक और जल्द बढ़ने वाले पेड़ जैसे सागवान, यूकेलिप्टस आदि लगाने लगे। इन पेड़ों से न तो हम आदिवासियों का कोई सांस्कृतिक जुड़ाव है और नहीं कोई आर्थिक लाभ।”2 

अर्थात वह वन विकास निगम नहीं बल्कि वन भक्षक निगम है। हम जानते हैं कि मध्य भारत के साल वन मानसून को किस प्रकार सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं और मानसूनी धाराओं को आकर्षित करते हैं तथा मध्य भारत में वर्षा करवाते हैं। फिर भी इस महत्व को नजर अंदाज करके नए वृक्षों को लगाना एक प्रकार का नकारात्मक कदम है। 

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि प्राकृतिक वन्य पारितंत्र स्थानीय जलवायु और जल प्रवाह के नियंत्रण में अहम भूमिका निभाते हैं क्योंकि प्राकृतिक वन की छतरी के नीचे अधिक ठंडक रहती है। मानसून में वन नमी को सोखकर सुरक्षित रखता है और बाकी साल बारहमासी नदियों में यह नमी धीरे-धीरे पहुंचती रहती है। व्यावसायिक बागान यह काम सही ढंग से नहीं कर पाते हैं। एक नदी जल ग्रहण क्षेत्र में वनावरण का विनाश इस तरह के स्थाई परिवर्तन उत्पन्न करता है। जैसे मिट्टी का अत्यधिक कटाव, अपरदन, मानसून में भूजल का भारी अभाव जिसके कारण आकस्मिक बाढ़ आती है और मानसून समाप्ति के बाद जल की कमी तथा भूजल में कमी के कारण कृषि सिंचाई पर भी विपरीत प्रभाव डालता है। 

Hamein van aur vanya jeevan ka sanrakshan kyon karana chahie? क्योंकि वनों का व्यापक  आर्थिक महत्व होता है 

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि वन अथवा वन्य पैदावारों के प्रत्यक्ष प्रयोग में फल, आम, जामुन, आवला, जडे-डायोर कोरिया, दवाई ग्लोरियोसा, फक्सग्लव, जलावन पेड़ों और झाड़ियों की अनेक प्रजातियाँ, झोपड़ी व घर बनाने की मामूली लकड़ी, खेती औजार बनाने हेतु लकड़ी, टोकरी बनाने हेतु बांस और बेंत, चराई के लिए घास और पशुधन के लिए घास आदि विभिन्न प्रकार से वन हमारे लिए उपयोगी हैं। 

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि वन्य पैदावारों के अप्रत्यक्ष प्रयोग में नगरों में निर्माण एवं फर्नीचर की सामग्री जड़ी बूटियाँ जिनको जमा करके और कूट-पीस कर दवाई बनाई जाती है। इसके अलावा हम नई-नई दवाइयाँ और बीमारियों के उपचार हेतु अनुसंधान कार्य करके नए सकारात्मक निष्कर्ष निकाल सकते हैं। भारतीय आदिवासी समाज में इस प्रकार के प्राकृतिक औषधीय प्रक्रिया की व्यापक ज्ञान परंपरा प्रचलित हैं। उसका एक उदाहरण “उसे पेड़ के रस से हम ऐसा तेल बना सकते हैं जिससे बिना दर्द के बिना खून निकले लोगों के कीड़े लगे हुए दातों को आसानी से हम निकाल सकते हैं।”3 इन प्राकृतिक जड़ी-बूटियों तथा आयु विज्ञान में आदिवासी समाज निपुण होता है। जिनकी सहायता से भारतीय आयुष उपचार विधि का विकास किया जा सकता है। इसके अलावा उन वनों से हम औद्योगिक पैदावारों और रसायनों के लिए कच्चे माल बाँस और नरम लड़कियों से कागज का निर्माण भी कर सकते हैं।

इस प्रकार वनों का यदि हम उचित उपयोग करेंगे तो यह संधारणीय विकास होगा किंतु विडंबना यह है कि हमारी सरकारें प्राकृतिक वनों को काटकर व्यावसायिक वन लगाने की अनुचित प्रक्रिया को विकास मानती है। यह विकास नहीं बल्कि संभावित प्राकृतिक आपदाओं को निमंत्रण देना है। 

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि वन जल संग्रह एवं जल संरक्षण में भूमिका निभाते हैं 

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि एक अध्ययन के अनुसार “पृथ्वी पर 71% भाग जल का है। इस जल का 97% समुद्रों में है जो सिंचाई अथवा पीने के योग्य नहीं है। बल्कि 30% ताजा जल है। इसमें से 2.997% ध्रुव की बर्फ में या हिमानियों के रूप में है। इस पृथ्वी के कुल जल को केवल 0.003% ही हमें मिट्टी की नमी, भूजल, वाष्प तथा झीलों, नदियों, नालों और नम भूमियों के रूप में उपलब्ध है।”4 जल के अभाव में जीवन असंभव है। एक अध्ययन के अनुसार “ इस तथ्य से हम समझ सकते हैं कि जल हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण और दुर्लभ है। Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि वन मानसूनी धाराओं को आकर्षित करने और वर्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जहाँ वन आवरण सघन होता है उस क्षेत्र में वातावरण ठंडा होता है। वृक्ष अपनी ठंडक से बादलों को पिघलाकर वर्षा कराते हैं।

Why should we conserve forest and wildlife इसलिए संरक्षण करना चाहिए कि जब वर्षा होती है तब वन वर्षा जल को बहने नहीं देते हैं तथा उनकी जड़े इस वर्षा जल को भौमजल के रूप में संग्रहित करती हैं। भौमजल मानव सभ्यता के विकास में कितना महत्वपूर्ण है, इसे लिखने की आवश्यकता नहीं है। 

जब भौमजल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है तो कृषि सिंचाई को बल मिलता है। कृषि सिंचाई से फसल उत्पादकता बढ़ती है और हमें भोजन प्राप्त होता है।

वनों द्वारा वर्षा जल को जब रोका जाता है तब मृदा अपरदन काम होता है। फलत: मृदा के पोषक तत्व संरक्षित होते हैं। मृदा संरक्षण से कृषि उत्पादकता में वृद्धि होती है। भौमजल संग्रह के माध्यम से वन हमें स्थिर जलापूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि वनों में वर्षा जल जब रिस-रिस कर भौमजल बनता है तब वह वनों में विद्यमान अनेक जड़ी-बूटियों के संपर्क में आकर शुद्ध एवं रोग प्रतिकारक बनता है। जिससे हमारा स्वास्थ्य ठीक रहता है किंतु आज वन कटाई तथा वन विनाश के परिणाम स्वरुप भौमजल भी प्रदूषित हो रहा है। भौमजल का प्रवाह धीमा और हलचल रहित होता है। अतः भौमजल प्रदूषण का फैलाव भी धीमा होता है किंतु एक बार यह प्रदूषित हो जाने पर इसे शुद्ध करना बहुत ही कठिन कार्य है। कहना न होगा कि भारत में वन विनाश तथा वनों में खनिज उत्पादन के कारण भौमजल प्रदूषित हो रहा है।

“आपका मतलब है कि यह खनिज यूरेनियम अपने साथ खतरनाक रेडियो धर्मी पदार्थों को बाहर लाते हैं? …इसके पश्चात गिरने वाली बारिश का पानी रिसकर जमीन के अंदर जाता है तो भूमिगत जल स्रोतों को दूषित करता है और कुछ बाहर आकर आसपास के तालाबों और नदी नालों के पानी को भी जहरीला बनता है।”5  

Hamein van aur vanya jeevan ka sanrakshan kyon karana chahie?

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि वन विभिन्न वन्य प्राणियों एवं जीव-जंतुओं के आवास होते हैं

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि वृक्ष के महत्व तथा उसकी उपस्थिति कितने जीव-जंतुओं एवं कीड़ों-मकोड़ों के लिए प्रासंगिक है। इस पर हरिश्चंद्र व्यास लिखते हैं कि “पेड़ों के पास में पहुंचकर कान लगाकर सुनो तो लगेगा कि जीव-जंतुओं का भरा पूरा परिवार वहाँ पर वास करता है। वहाँ गिलहरी की चक-चक है तो लंगूरों की डूप-डूप भी है, कठफोडवों की टौंक-टौंक है तो चिड़ियों की चहचहाट और मधुमक्खियां की भिनभिनाहट भी है। हो सकता है सांप की फूंकार भी हो। यह सब उस वृक्ष के वासी हो यह जरूरी नहीं, अतिथि भी हो सकते हैं, नवागंतुक भी हो सकते हैं, अपरिचित भी हो सकते हैं, पर पेड़ तो उन्हें परिवार की सी आत्मीयता ही देते हैं।”6 यही नहीं वृक्ष अथवा वन बड़े-बड़े वन्य प्राणियों के भी आवास, मित्र तथा जीवनसाथी होते हैं। लेकिन आज इन वन्य प्राणियों के आवास को व्यापक खतरों का सामना करना पड़ रहा है। 

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि वनों की अंधाधुंध कटाई तथा मनुष्य वनों को केवल अपनी आवश्यकता पूर्ति का साधन मान बैठा है। इसलिए वह वनों का विनाश करता जा रहा है। वह अपने विकास हेतु औद्योगिक विकास, सड़क निर्माण, भवन निर्माण, कृषि के लिए घास के मैदान की जुताई, कृषि क्षेत्र को बढ़ाने की प्रक्रिया में जंगल की कटाई तथा उत्खनन हेतु जंगल की कटाई और वनाग्नि आदि अनेक मानव क्रियाएँ हैं। जिनके कारण वन आवास नष्ट हो रहे हैं।

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि वन आवास समाप्त हो जाने के कारण मजबूरन विभिन्न प्रजातियाँ आवास छोड़ रही हैं। तथा मानव वन्य प्राणी संघर्ष उत्पन्न हो रहे हैं। प्राकृतिक आवास बदल जाने पर वे नये आवासीय क्षेत्र में प्रजातियों से टकराने के कारण अनेक प्रजातियों का अस्तित्व संकट में पड़ गया है। यही कारण है कि भारत ही नहीं बल्कि विश्व में हजारों प्रजातियाँ या तो संकटग्रस्त सूची में शामिल हो गई है या विलुप्त होने के कगार पर हैं। 

इस दृष्टिकोण से भी वनों का संरक्षण एवं संवर्धन आवश्यक है। 

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि जलवायु परिवर्तन शमन में वन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं 

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि आज ग्रीन हाउस प्रभाव पृथ्वी पर सबसे बड़ा संकट बनकर हमारे सामने खड़ा है। इस संकट के मूल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस की प्रमुख भूमिका है। धरती के वायुमंडल में इसकी मात्रा बहुत ही कम होती है। फिर भी यह धरती के 15 डिग्री सेल्सियस तापमान को बनाए रखती है किंतु जब यह वायुमंडल में बढ़ने लगती है तब धरती का तापमान भी बढ़ने लगता है। 

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि धरती के तापमान में वृद्धि होने से धरती की जलवायु संरचना में परिवर्तन होता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि- “वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की बड़ी हुई मात्र से दुनिया का औसत तापमान 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा जबकि पिछले 100 वर्षों में दुनिया का औसत तापमान आधा डिग्री सेल्सियस से भी काम बढ़ा है।”7 यदि विश्व का औसत तापमान 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है तो जापान का पूर्वी क्षेत्र तथा अनेक द्वितीय देश जलमग्न हो जाने की संभावना है। 

वायुमंडल में व्याप्त कार्बन डाइऑक्साइड का सर्वाधिक अवशोषण समुद्र करते हैं। Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि पृथ्वी पर पाए जाने वाले पेड़-पौधे वनस्पतियाँ भी कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण करती हैं और मानव जीवन हेतु महत्वपूर्ण प्राण वायु ऑक्सीजन को छोड़ती हैं। अतः पृथ्वी को मानव सभ्यता के अनुकूल यदि बनाए रखना है तो वनों का संरक्षण एवं संवर्धन अनिवार्य है। 

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि वनों की कटाई विश्व को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचती है क्योंकि वन कई स्तरों पर धरती को मानव अनुकूल बनाते हैं। सूर्य से प्राप्त ऊर्जा का कुछ भाग वायुमंडल अवशोषित करता है, कुछ भाग धरती अवशोषित करती है और कुछ भाग पन: अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है। 

Why should we conserve forest and wildlife इसलिए करना चाहिए कि यदि वन समाप्त हो गए तब धरती एक सपाट जगह बन जाएगी। परिणामत: सूर्य की ऊर्जा का अधिक परावर्तन होगा और बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड इस परावर्तित ऊर्जा को अंतरिक्ष में जाने से रोकेगी। इसका परिणाम यह होगा की धरती और गर्म होती चली जाएगी और धरती का आवश्यकता से अधिक गर्म होने से हिम पिघलेगा जिसके कारण समुद्री जल स्तर में बढ़ोतरी होगी। संपूर्ण जलवायु नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी। 

अतः वनों की रक्षा आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। 

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि विभिन्न समुदायों का वनों से सांस्कृतिक संबंध होते हैं 

भारत में कुल 550 से भी अधिक आदिवासी समुदाय निवास करते हैं तथा विश्व में जहाँ कहीं भी आदिवासी समुदाय हैं। Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि आदिवासी समुदाय वहाँ के स्थानीय वनों से अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं धार्मिक संबंध बनाए हुए हैं। उनका जीवन वनों के अभाव में अधूरा है। वन उनके जीवन साथी हैं और वे इन वन्य पारितंत्रों का हजारों वर्षों से रक्षा करते आए हैं। वनों में विद्यमान आर्थिक और पारिस्थितिकीय दृष्टि से महत्वपूर्ण वृक्षों एवं वन्य प्राणियों को वे कभी हानि नहीं पहुंचते हैं बल्कि उनकी रक्षा करते हैं। 

मध्य भारत में महुआ वृक्ष इन आदिवासी समुदायों के जीवन निर्वाह का महत्वपूर्ण हिस्सा है। अतः मध्य भारत ही नहीं बल्कि समस्त भारतीय आदिवासी समुदायों में इस वृक्ष को पवित्र माना जाता है। इस संदर्भ में देवेंद्र सत्यार्थी अपने उपन्यास ‘रथ के पहिए’ में लिखते हैं कि- “महुआ खूब जानता है कि लोग उनके फूलों को खाना पसंद करते हैं। इसलिए सांवली-सलोनी कुल  अधूएँ और कुमारियाँ हाथ में अपनी-अपनी डालियाँ उठाएँ महुआ के फूल चुनने चली आती हैं।”8 महुआ का वृक्ष इस समुदाय की जीवन प्रक्रिया में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। उनकी सारी सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक क्रियाएँ भी महुआ के अलावा अधूरी होती हैं। इस प्रकार पूर्वी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड में साल वनों का बहुत महत्व है। इसलिए वहाँ निवासित जनजातीय समुदायों के देवता साल वृक्षों पर वास करते हैं। इस धारणा से वनों में पाए जाने वाले महत्वपूर्ण वृक्षों की रक्षा हो जाती है। इस प्रकार आदिवासी समुदायों का वनों के साथ गहरा संबंध होता है। 

वन एवं वन्यजीवों के साथ केवल आदिवासी समुदायों का ही सांस्कृतिक संबंध नहीं है बल्कि गैर-आदिवासी या ग्रामीण समुदायों का भी संबंध होता है। जैसे धार्मिक वन, उपवन, अमराई आदि। जब वर्षा नहीं होती है तब ग्रामीण समुदाय वनों में जाकर इंद्रदेव की पूजा, अर्चना करते हैं। कई धार्मिक वन भारतीय समुदायों के लिए आदरणीय हैं। 

वन्य पारितंत्र से आदिवासी समुदायों का गहरा अंतर्संबंध होता है

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि जैव विविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान करने में वनों की भूमिका होती है 

वन जैव विविधता के आगार होते हैं जहाँ पारिस्थितिकी तंत्र के सारे घटक उपस्थित होते हैं। जैव-अजैव, जीव-जंतु, प्राणी, पेड़-पौधों आदि का एक विशाल समुदाय वनों में निवास करता है। वनों के भीतर विभिन्न प्रजातियाँ एवं जैव-अजैव घटकों के मध्य खाद्य श्रृंखलाओं एवं खाद्य-जालों की व्यापकता होती है। जिसके कारण पारिस्थितिकी संतुलन बना रहता है। 

पारिस्थितिकी तंत्र पृथ्वी पर पाए जाने वाले मनुष्य, जीव-जंतु सभी के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि परिस्थितिकीय संतुलन ही हमारे जीवन को संतुलित रखते हुए विकास के मार्ग खोलते है। 

यदि पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो गया तो पृथ्वी की जलवायु का संतुलन बिगड़ जाएगा और मानव सभ्यता ही नहीं बल्कि संपूर्ण जीव-जगत को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। 

अतः पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने के लिए विश्व के वन्य पारितंत्र अथवा वनों की रक्षा करना आवश्यक है। 

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि वन्य पारितंत्र के समक्ष  वर्तमान में अनेक संकट हैं 

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि जंगल बहुत धीमी गति से बढ़ते हैं। फलत: किसी एक मौसम में वह अपनी वृद्धि के दौरान जितना संसाधन उत्पन्न कर सकते हैं। उससे अधिक संसाधनों का इस्तेमाल हम नहीं कर सकते हैं। 

एक सीमा से अधिक इमारती लकड़ी ले ली जाए तो जंगल का पुनर्जन्म हो सकता है। वन में खालीपन आने से वन्य प्राणियों के आवास की गुणवत्ता बदल जाती है और इस परिवर्तित दशा में अधिक नाजुक प्रजातियाँ जीवित नहीं रह सकती हैं। 

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि वन्य संसाधनों का अति दोहन एक अनुचित व्यवहार है। वनों का ह्रास होने पर पारितंत्र एक बंजर क्षेत्र में बदल जाता है। विकास के कार्य, तीव्र जनसंख्या वृद्धि, नगरीकरण, औद्योगिकरण उपभोक्ता वस्तुओं के बढ़ते प्रयोग तथा सरकार की अधारणीय नीतियों द्वारा वन्य संसाधनों का अनियंत्रित दोहन हो रहा है। 

खनन कार्य बांधों का निर्माण भी जंगल विनाश के प्रमुख कारक हैं। अत्यधिक प्रयोग से वनों की छतरी टूट जाती है, पारितंत्र का ह्रास होता है और वन्य जीवन के लिए खतरे उत्पन्न होते हैं। वन जब छोटे-छोटे टुकड़ों में बट जाते हैं तब उसके पौधों और प्राणियों की वन्य प्रजातियाँ नष्ट हो जाती हैं। यदि एक बार प्राकृतिक वन तथा वन्य प्रजातियाँ नष्ट हो जाती है तो फिर उनको कभी वापस प्राप्त नहीं किया जा सकता है। 

आज भारत में कई पौधों एवं वन्य प्राणियों की प्रजातियाँ संकटग्रस्त श्रेणियों में हैं जिसका प्रमुख कारण सरकार की नीतियाँ ही रही है और सरकार जनता को यह कहती है कि संकटग्रस्त प्रजाति हेतु कई आरक्षित अभयारण्य, प्रयोगशालाएँ विकसित की गई है किंतु इन प्रयासों का क्रियान्वयन नहीं हो पता है। अतः सरकार वन और वन्य प्राणी तथा जनजातीय समाज के संबंध में केवल दिखावा करती रहती है। 

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि वन्य परितंत्र समाप्त हो जाने पर मानव सभ्यता के समक्ष अनेक संकट खड़े हो जाएँगे

Why should we conserve forest and wildlife इसलिए करना चाहिए कि यदि वन पारितंत्र समाप्त हो गया तो सर्वप्रथम आदिवासी समुदाय ही नष्ट हो जाएंगे। कृषि व्यवस्था चरमरा जाएगी। नगरीय लोगों को पर्याप्त खाद्य सामग्री उपलब्ध नहीं हो पाएगी। कीड़े-मकोड़े भी वनों में पहले बड़े होते हैं जैसे मधुमक्खियाँ, तितलियाँ, वनों के साथ समाप्त हो जाएंगे। जब ये प्रजातियाँ समाप्त हो जायेंगी तो कृषि फसलों और वृक्ष फलों के कारगर पराकाष्ठा में असमर्थ हो जाएंगे। फलत: कृषि उत्पादकता में कमी आएगी।

वन रहित भूमि पर होने वाली वर्षा का जल बहकर सीधे नदियों में चला जाएगा। इसका प्रभाव भी अभी दिखने लगा है। वनों में अभी वर्षा होने की प्रक्रिया में परिवर्तन होने लगा है। “जंगल की बारिश…अचानक जोर से बरसेगी। झमाझम बरस कर मानो सब कुछ बहा कर ले जाएगी। फिर बिल्कुल थम जाएगी। कुछ देर बाद फिर बरसेगी। साथ में जोड़ों की हवा।”9 Why should we conserve forest and wildlife? क्योंकि यदि वनों का संरक्षण नहीं हुआ तो अनेक प्राकृतिक आपदाएँ, बाढ़ तथा सूखे का प्रकोप हो जाएगा और भारतीय जनता तथा सरकारों के लाख प्रयासों के बावजूद हम इस समस्या का समाधान नहीं ढूंढ पाएंगे। क्योंकि पारिस्थितिकी पारितंत्र की तकनीक को विकसित होने में कई हजार वर्ष लगते हैं। उसी प्रकार उस तकनीक का अनियंत्रित होने की प्रक्रिया भी धीमी होती है जो वर्तमान समय में जारी है। 

जब प्राकृतिक प्रक्रिया पूरी तरह अनियंत्रित हो जाएगी उसके पश्चात पुनः उसे नियंत्रित करना मानव शक्ति के बाहर है। यह मानव सभ्यता के लिए असंभव है। 

वन संरक्षण के प्रयास: Forest Conservation efforts

वन संरक्षण तथा संवर्धन की दिशा में सरकार द्वारा भी विभिन्न प्रकार के कदम उठाए गए हैं। इन कदमों में महत्वपूर्ण हैं 

वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी अधिनियम 2006, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, राष्ट्रीय वन नीति 1988, राष्ट्रीय वन्यजीव कार्यवाही योजना, सामाजिक वानिकी, कृषि वानिकी, सामुदायिक वानिकी, संयुक्त वन प्रबंधन आदि विभिन्न प्रकार के प्रयास सरकार द्वारा हो रहे हैं।

सरकार द्वारा वन संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में किए जा रहे विभिन्न प्रयासों के बावजूद भारत में वन्य पारितंत्र की रक्षा उस प्रकार नहीं हो पा रही है, जिस प्रकार होनी चाहिए। “2019 के सर्वेक्षण की तुलना में इस वर्ष भारत का वन क्षेत्र 7,13,789 वर्ग कि.मी. (80.9 मिलियन हेक्टेयर) मापा गया है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 21.71% है जो वर्ष 2019 के 21.67% से कुछ अधिक है।“10 भारत सरकार के आंकड़ों में वन आवरण का प्रतिशत तो बढ़ता दिखाई देता है लेकिन वास्तव में प्राकृतिक वन समाप्त होते जा रहे हैं।

वन्यजीव अभयारण्य संरक्षण का एक कदम है

वन संरक्षण के सुझाव: Forest Conservation Tips

जिसे मानव सभ्यता मूल्यवान समझती है, उसकी रक्षा करना और उसे और साधारण बनाने की प्रक्रिया को ही संरक्षण एवं संवर्धन कहते हैं।

पारिस्थितिकी पर्यटन: Eco Tourism

यह एक प्रगतिशील अवधारणा है जो युवा पीढ़ी को प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने तथा संसाधनों का संधारणीय उपयोग करने हेतु प्रोत्साहित करती है। पारिस्थितिकी पर्यटन हमारे वन, नदी, जलाशय जैसे पारितंत्रों का संवर्धन के साथ-साथ जल, मृदा एवं वायु आदि में प्रदूषण कम करने की शिक्षा प्रदान करता है। पारिस्थितिकी पर्यटन दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता के साथ संधारणीय विकास को बल प्रदान करता है। 

यह पर्यावरण के साथ एक भावात्मक संबंध स्थापित करता है और समाज में नैतिक जिम्मेदारी को विकसित करता है। अतः हमें विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं स्नातक स्तरों पर पारिस्थितिकी पर्यटन के पाठ्यक्रमों को शामिल करना आवश्यक है। 

व्यावसायिक शिक्षा: Vocational Education

वन्य पारितंत्र से अनायास रूप से प्राप्त वन उत्पादन को बढ़ावा देने की दिशा में यह एक क्रांतिकारी विचार है। जिसमें शहद उत्पादन, टोकरी बनाना, जड़ी-बूटियों को एकत्र करना और औषधि बाजार में उनकी आपूर्ति करना जिससे आयुष क्षेत्र का विकास होगा। इसके साथ-साथ हस्तशिल्प तथा पर्यटन प्रबंधन में महिलाओं को प्रशिक्षित करना भी आवश्यक है। 

इन रक्षात्मक पहलुओं के साथ-साथ सम्मिलित वन प्रबंधन, संयुक्त वन प्रबंधन, वन रोपण, सामाजिक वानिकी, ग्रामीण स्तर पर पर्यावरण नियंत्रण तथा वन संरक्षण के लिए जन जागरण कार्यक्रम जो जल, मृदा, वायु, वन तथा अन्य संसाधनों की रक्षा एवं संवर्धन कर सके।

निष्कर्ष: Conclusion

Why should we conserve forest and wildlife क्योंकि इस शोध आलेख को पढ़कर हमे यह ज्ञात हो गया है कि वन या वन्य पारितंत्र हमारे लिए कितने आवश्यक और महत्वपूर्ण हैं। वन मानव जीवन ही नहीं बल्कि समग्र पृथ्वी पर जीवन के विकास में सकारात्मक भूमिका निभाते हैं। हमारे जीवन में वनों की आवश्यकता है क्योंकि वन विभिन्न पारिस्थितिकी सेवाएँ प्रदान करते हैं। वह हमें शुद्ध हवा, जल, मृदा तथा जीने योग्य वायुमंडल प्रदान करते हैं। 

वन एक स्वच्छ सुंदर पर्यावरण का निर्माण करते हैं। वनों का हमारे जीवन में सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक महत्व होता है किंतु आज वनों को काटकर समाप्त किया जा रहा है। वनों को केवल भौतिक विकास हेतु संसाधनों का भंडार समझा जा रहा है। अतः वनों का विनाश अंततः मानव सभ्यता का विनाश है। इसलिए हमें वनों का संरक्षण एवं संवर्धन करना चाहिए। इसके लिए विभिन्न स्तरों पर ठोस कदम उठाते हुए विभिन्न पाठ्यक्रमों एवं जन जागृति के माध्यम से इस दिशा में आगे बढ़ने की आज आवश्यकता है।

संदर्भ ग्रंथ: References

  1. एम एम गोयल, पर्यावरण संरक्षण की महत्ता, अनुप्रिया पब्लिकेशन हाउस जयपुर, प्र.सं. 2001 पृ.सं. 23
  2. महुआ माजी, मरंग घोड़ा नीलकंठ हुआ, राजकमल प्रकाशन दिल्ली, प्र.सं. 2012, पृ.सं. 112
  3. महुआ माजी, मरंग घोड़ा नीलकंठ हुआ, राजकमल प्रकाशन दिल्ली प्र.सं. 2012, पृ. सं. 70
  4. कुरुक्षेत्र पत्रिका, अप्रैल-2009, पृ.सं. 26
  5. महुआ माजी, मरंग घोड़ा नीलकंठ हुआ, राजकमल प्रकाशन दिल्ली प्र.सं. 2012, पृ.सं. 191
  6. हरिश्चंद्र व्यास, पर्यावरण संरक्षण के उत्प्रेरक, आशा प्रकाशन गृह नई दिल्ली प्र.सं. 2016 पृ.सं. 110
  7. आर.के. गुप्ता, पर्यावरण भयावह भविष्य, युग बौद्ध साहित्य दिल्ली, प्र.सं. 2017 पृ.सं. 25 
  8. देवेंद्र सत्यार्थी, रथ के पहिए, प्रवीण प्रकाशन दिल्ली, प्र.सं. 1953 प्र.सं. 67
  9. महुआ माजी, मरंग घोड़ा नीलकंठ हुआ, राजकमल प्रकाशन दिल्ली प्र.सं. 2012, पृ.सं. 60-61
  10. https://fsi.nic.in/hindi/

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